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वक्त की अहमियत (importance of time)
importance of time: वक्त! हम सब को अकसर वक़्त से बहुत सारी शिकायतें होती है। की मेरा वक़्त हर दम बुरा ही रहता है। मेरे भाग्य में लक्ष्मी हैं ही नहीं में जो करना चाहता हूँ! वह होता ही नहीं। किन्तु मुझे एक बात भूल जाता है कि और लक्ष्मी सदैव ही कर्म के अधीन होते हैं। अब सोचिए जिस व्यक्ति ने गिरना हि न सीखा हो उसे उठने की अहमियत भला कैसे पता होगी।
ठीक वैसे ही दुखमरी ज़िन्दगी का आइना होते है। जो हमें हर वक़्त के साथ हर समस्या से लड़ने के लिए मज़बूत बनाते हैं। एक बात हमेशा याद रखियेगा की भाग्य और लक्ष्मी सदैव ही कर्म के अधीन होते हैं। आपके अच्छे कर्म आपके ही नहीं बल्कि आपके कूल के पाप को भी धोते है। इसलिए बुरे वक़्त से घबराएँ कभी नहीं। उनसे भयभीत न होए बल्कि उनका सामना कीजिए फिर देखिएगा वहीं होगा जैसा आप चाहोगे।
क्योंकि मैं माँ हूँ
स्नेह बच्चों का अधिकार है एवं माता–पिता का कर्तव्य। यही वह पूंजी है, जो अभिभावक शिशु सम्बंधों को दृढ़ बनाती हैं।
एक समय की बात है। किसी एक औरत के एक प्यारे से दस वर्ष की आयु में एक संक्रामक रोग से बीमार हुआ। डॉक्टरों ने घोषित किया कि बीमार की छूत से, खांसकर सांस से दूर रहा जाय, अन्यथा संपर्क करने वाले की जान को ख़तरा है और इसी के मुताबिक सभी लोग दूर रहने लगे, पर बच्चे की माँ ने उसे गोद में ही रखा।
जब बच्चे ने ममता भरी आवाज़ से कहाँ–मां, तुम मुझे प्यार नहीं करती? चुम्बन लिए कितने दिन हो गए। माँ ने प्यार भरा चुम्बन लिया। देखते–देखते वह उसी बीमारी से ग्रसित हुई और कुछ समय में बच्चे के साथ मर गई। पूछने वलों से वह यही कहती रही–”क्योंकि मैं माँ हूँ।”
आत्मविश्वास (Self-confidence) कैसे बढ़ाएँ
आत्मविश्वास (Self-confidence): जैसा कि हम जानते है अब हम आत्मविश्वास (Self-confidence) की शक्ति को, पूरी तरह पहचान गए है हम जान गए हैं कि हमारे जीवन में इसका बहुत महत्त्व है। तो आइये हम आत्मविश्वास (Self-confidence) को बढ़ाने के लिए कुछ बातें सीखें!
सोचो नहीं कार्य करो
हम जब भी कोई भी कार्य करें तो उसमे ज़्यादा सोचना नहीं चाहिए, उस काम को ठीक से करें।
तुरंत निर्णय लेना
कुछ भी करने से पहले हमे सबसे पहले निर्णय लेना चाहिए।
दूसरों की मदद करें
जब भी हम किसी को असहाय या मजबुर देखें तो उसकी हमे मदद करने को तत्पर रहना चाहिए। ताकि हमारा आत्मविश्वास (Self-confidence) बढ़ें।
जूनून
हमारे जीवन में कुछ करना, कुछ पाने का जूनून भी हमारे आत्मविश्वास (Self-confidence) में वृद्धि करता हैं।
अपने उद्देश्य से कभी विचलित न हो
किसी शहर में एक कॉलेज था । एक बार एक लड़का उस कॉलेज में नामांकन के लिए पहुँचा । उसने देखा की कुछ छात्र-छात्रा एक दूसरे के साथ ठिठोली कर रहे हैं, कुछ छात्र मोबाइल से बात कर रहे हैं। तभी उसकी नज़र कॉलेज परिसर से बाहर दो छात्रों पर पड़ी, जो किसी बात पर झगड़ा कर रहे थे। यह सब देखकर उसका मन थोड़ा व्यथित हो गया।
वह प्राचार्य के पास पहुँचा और बोला सर आपके कॉलेज का सभी जगह नाम है और हम सुनते थे कि आप अनुशासन से कॉलेज चलाते हैं, लेकिन कॉलेज के बाहर तो कोई अनुशासन नहीं है। कोई मोबाइल इस्तेमाल कर रहा है, कोई मज़ाक कर रहा है, यही नहीं मैंने तो दो लड़कों को लड़ते हुए भी देखा है। प्राचार्य मुस्कुराए और बोले-मेरा तुम एक काम करोगे, लड़का बोला-जी बिल्कुल।
प्राचार्य बोले एक मोमबत्ती लो और सामने चर्च में लगा के चल आओ, लेकिन ध्यान रहे मोमबत्ती रास्ते में बुझनी नहीं चाहिए। प्राचार्य ने एक मोमबत्ती निकाली, उसे जलाया और लड़के को दिया। लड़का सावधानी से जलती हुई मोमबत्ती लेकर गया और चर्च में लगाकर वापस आ गया। प्राचार्य ने पूछा क्या तुमने किसी लड़के को मोबाइल चलाते हुए देखा? लड़का बोला नहीं सर, मैंने नहीं देखा … तब तो ज़रूर तुमने किसी को झगड़ते देखा होगा या लड़के-लड़कियों को मज़ाक करते हुए देखा होगा।
लड़का बोला नहीं सर मैं भला कैसे देखता मेरा पूरा ध्यान तो मोमबत्ती पर था कि वह ना बुझे। अब प्राचार्य मुस्कुराए और बोले, बिल्कुल जब तुम अपने उद्देश्य की तरफ़ समर्पित हो जाते हो, तो आसपास की नकारात्मक बाते तुमको नज़र आना बन्द हो जाती है। यह सुनते ही लड़के की आंखों में चमक आ गया, मानो उसे भविष्य को देखने का एक नज़रिया मिल गया हो …
दोस्तों, यदि आप चाहते हैं कि आपके सपने हक़ीक़त में बदले, तो अपने उद्देश्य को पकड़ ले और उसका पूरा ध्यान उसपर केंद्रित करें । इसके बाद दुनिया की कोई ताकत आपको दिग्भ्रमित नहीं कर सकती।
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
दूसरों की प्रसिद्धि से हतोत्साहित होने के बजाय कुछ पाने की तरफ़ क़दम बढ़ाएँ। भले ही छोटी सफलता मिले लेकिन वह आपको बड़ी ख़ुशी देगी। कभी-कभी जीवन में बहुत खालीपन का एहसास होता है। आप उत्तर ढूँढने की कोशिश करते हैं कि आख़िर यह खालीपन क्यों है। अपने जॉब को लेकर सोचते हैं कि यह आपकी रुचि का नहीं है।
रिश्तों में अपने महत्त्व को लेकर भी थोड़े संशय में होते हैं तो इस तरह के विचार आपको एक संघर्ष की स्थिति में खड़ा कर देते हैं। आप बहुत अरुचि के साथ चीजों को आगे बढ़ाने लगते हैं और इसका परिणाम है बहुत उत्साह के साथ जीवन की खुशियों को नहीं जी पाते हैं।
जीवन के किसी भी ऐसे मोड़ पर जब हमें लगता है कि हमारा कोशिश करना कोई अर्थ या मायने नहीं रखता है क्योंकि कुछ लोगों को तो हमसे बहुत ज़्यादा विरासत में ही मिला हुआ है। ऐसे लोग पहले से ही हमसे थोड़ा आगे खड़े हैं और हम उन जैसी सफलता और प्रसिद्धि पा भी सकेंगे या नहीं। यह सोचकर आप कोशिश करना छोड़ देते हैं। दूसरों की तरक्क़ी के साथ इस तरह की तुलना आपके मन में निराशा को जन्म देती है।
दूसरों से तुलना की इस प्रक्रिया में धीरे-धीरे हम ख़ुद को खोने लगते हैं। जीवन के प्रति हमारा उत्साह और जोश जाता रहता है। निराशा और खालीपन के ऐसे एहसास के बीच हमें याद रखने की ज़रूरत है कि भले ही हमें धन और संपदा विरासत में मिल जाए लेकिन जीवन का आनंद हमें कभी भी विरासत में नहीं मिल सकता, उसे तो हमें स्वयं ही प्राप्त करना होगा। हमारी छोटी-छोटी सफलताएँ, जीवन में छोटे-छोटे संघर्ष हमारे होने और हमारे अस्तित्व के लिए ज़रूरी होते हैं।
जहाँ जीवन में बिलकुल भी संघर्ष नहीं है शायद वहाँ जीवन की मधुरता का एहसास भी नहीं है। संरक्षित वातावरण या सब कुछ बना-बनाया पाने वाले जीवन के छोटे संघर्षों को पार करने के आनंद से दूर रह जाते हैं। संघर्षों से गुजरना और ख़ुद को बेहतर बनाना एक आनंद का विषय है।
इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि आपको किसी दौड़ में भाग लेने से पहले ही अगर ट्रॉफी दे दी जाती है तो ट्रॉफी पा लेने के बाद भी उसमें सफलता का मज़ा कहाँ है? जबकि अगर आप कुछ लोगों को पीछे छोड़कर दौड़ जीतते हैं तो वह आपकी प्राप्त की हुई सफलता है।
मां तुझे सलाम
प्रेम की कथाएँ कैसे लिखूं, जब चारों तरफ़ ग़म के बादल छाए हैं।
नमन है मेरा उन शहीदों को जो तिरंगा ओढ़ कर आए हैं॥
एक माँ के तीन बच्चे है। तीनो एक-एक करके सेना में भर्ती हो जाते हैं और उसी समय सीमा पर लड़ाई हो जाती है और वह तीनो बेटें अपनी माँ का आशीर्वाद लेके उस फ़ौज में उस जंग में चले जाते हैं। एक दिन उस माँ को ख़बर मिलती हैं कि उसका एक बेटा जंग में देश के लिए शहीद हो गया है माँ के चेहरे पर मुस्कान आईं और बोली मुझे गर्व है अपने बेटे पर जो देश के लिए शहीद हुआ।
थोड़े दिनों बाद एक ओर ख़बर मिलती हैं कि उसका दूसरा बेटा भी देश के लिए शहीद हो गया है। अपने दूसरे बेटे के लिए ही चेहरे पर मुस्कान लाकर बोली “यह बहुत भाग्यशाली हैं जो देश के लिए कुर्बान हुआ” फिर बात आती हैं तीसरे बेटे की एक या दो दिन बाद फिर ख़बर मिलती है कि उनका तीसरा बेटा भी देश के लिए शहीद हो गया।
जब लोगों ने उस माँ की आंखों में देखा और उसकी आंखों में आंसू थे लोगों ने कहा अब आपकी आंखों में आंसू क्यों है वह बोली मेरी आखों में आंसू इसलिए है कि अब मेरे पास भारत माता पर न्योछावर करने के लिए कोई संतान नहीं है ये को जज़्बा है जो हमें प्रेरित करता हैं। इस तरह की कथा हमारे मन में नया उत्साह जगाता है। हमे भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए भले ही हम फ़ौज में न जाए लेकिन देश के लिए हमे कुछ न कुछ अच्छा करना चाहिए।
जय हिन्द!
क्या इंसानियत (humanity) ज़िंदा है
इंसानियत (humanity): आख़िर इस शिशु का कसूर क्या था। जो इस क़दर कूड़े के ढेर पर मरने के लिए छोड़ दिया। आख़िर इस बच्चे की क्या मजबूरी रही होगी जिन्होंने इस बच्चे को अपनों से दूर कर दिया। आख़िर उस माँ की ममता ने उसे रोका नहीं क्या कारण था कि इस नवजात को दुनिया में आए हुए कुछ ही दिन हुए है। इस क़दर उनके माँ बाप ने कूड़े के ढेर में फेंक दिया।
थोड़ी देर बाद पता चला की इसका कसूर यह था कि वह एक बच्ची थी। लड़के की चाहत में लड़की का जन्म हुआ तो उसके माँ बाप ने इसे कूड़े के ढेर में फेंक दिया और कहते हैं कि इंसानियत (humanity) आज भी ज़िंदा है और उस बच्ची को किसी ने संभाला और उसे अपनाया। यह घटना हमारे जीवन में कई सवाल खड़े कर देती हैं जिनके जवाब हमे अपने आप पूछने चाहिए और में सोचता हूँ इनका जवाब हमारे पास न हो.
आज हम २०२० में जी रहे हैं, टेक्नोलॉजी आज बहुत बढ़ चुकी है, एजुकेशन बहुत बढ़ चुकी है, हमारा देश प्रगति पर है, हमारी सोच बहुत आगे जा चुकी है पर जब ऐसी घटनाएँ हमारे सामने आती हैं तो लगता है शायद उसी दौर में जी रहे हैं जिस दौर में यह सब चीजें आम हुआ करती थीं।
हर धर्म की शिक्षाएँ यही कहती है कि आप समानता से जिए, आप समानता के नजरिए से सबको देखिए पर भी हमारे देश में इतना धर्म होने के बाद भी ऐसी घटनाएँ आती हैं। जो हमें शर्मिंदा कर देती हैं, जो इंसानियत (humanity) के नाम पर धब्बा है। समाज में कहते है कि लड़कियाँ लड़कों से कम नहीं, फिर भी हमारे देश में हमारे समाज में लड़कियों का अपमान करते है। क्या यही इंसानियत (humanity) हैं?
मां के प्यार की क़ीमत
हमारे गाँव में राजेश नाम का लड़का उसकी माँ के साथ रहता था। एक बार स्कूल में गणित विषय में जमा ख़र्च हिसाब रखने का पाठ पढ़ाया गया। उस दिन कुछ सोचकर वह घर आ गया। जब रात को सोने के समय एक काग़ज़ हाथ में लिया और उस पर कुछ लिखकर अपनी माँ के तकिए पर रख दिया, माँ ने उसे पढ़ना शुरू किया उस पर लिखा था “मां के लिए किए गए कामों का हिसाब।
१. एक बाज़ार में जाकर बनिए से तेल लाने का सेवा शुल्क,
२. दो रुपए माँ की मदद करने का सेवा शुल्क,
३. तीन रुपए माँ काम कर रही में छोटी बहन को संभालने का सेवा शुल्क,
४. चार रुपए रात को सोते समय बिस्तर ठीक करने का सेवा शुल्क।
कुल मिलाकर ९ रुपए माँ ने हिसाब की पर्ची को पढ़ा और वह मुस्कराई उसने सोए हुए बेटे की तरफ़ देखा। माँ ने भी कुछ पेपर उठाया और उस पर कुछ लिखकर बेटे के तकिए पर रख दिया। जब राजेश उठा और उस पर्ची को पढ़ना शुरू किया। उस पर लिखा था” राजेश के लिए किए गए कामों का हिसाब…
एक जन्म के पहले नौ महीने पेट में राजेश को संभालना सेवा शुल्क कुछ नहीं, दो बड़ी यातनाएँ झेलकर राजेश को जन्म दिया सेवा शुल्क कुछ नहीं, तीन अपने कलेजे का टुकड़ा समजकर राजेश का पालन किया सेवा शुल्क कुछ नहीं, चार राजेश बीमार पड़ने पर रात–रात जगकर उसकी देखभाल की उसको दवाई दी सेवा शुल्क कुछ नहीं, पांच राजेश को पढ़ा लिखाकर एक अच्छा लड़का बनाने की कोशिश की सेवा शुल्क कुछ नहीं, कुल मिलाकर माँ की राजेश से अपेक्षा सिर्फ़ राजेश का प्यार।
इस पर्ची को पढ़ते-पढ़ते राजेश की आंखें भर आईं उसने माँ के लिए लिखी हुई हिसाब की पर्ची ख़ुद फाड़ दी और माँ के पास जाकर उसे गले से लगा लिया। मां ने भी पर्ची फाड़ दी। राजेश के मन की भावना शब्दों में बयाँ करने की ज़रूरत नहीं थी बस उसके आँख में आये आंसू इसके लिए काफ़ी थे। इसलिए माँ के प्यार की क़ीमत कोई भी नहीं कर पाता।
आखिर बेटी पर अत्याचार क्यों
मम्मी मम्मी मुझे दस रुपए दो न मुझे आइस्क्रीम खाने का मन कर रहा है उसकी सौतेली माँ ने कहा तेरा कभी ज़हर खाने का मन नहीं करता जो हमेशा दस रुपए मांगती है। जो मेरी छाती पर बोझ बनके नीबैठी है।
बेटी ने रोते हुए कहा, मम्मी मैने ऐसा क्या कह दिया जो आप मुझ पर इतना प्यार बरसा रही हो उसकी सौतेली माँ ने कहा कर्मजली ख़ुद तो चुहिया जैसी है ओर मुझसे ज़ुबान लड़ा रही है बोझ है तू मेरे लिए बोझ। उसकी माँ ने कहा तेरी माँ तुझे तो मेरा बोझ बनाके चली गई। फिर उसके पापा आए ओर उसकी पत्नी से बोले इस बच्ची ने तुझे कुछ ग़लत तो नहीं कहा न।
पत्नी बोली मुझे बहुत कुछ ग़लत कहा। फिर बेटी ने रोते हुए कहा नहीं पापा मम्मी झूठ बोल रही है मैने कुछ ग़लत नहीं कहा। फिर बेटी को ज़ोर से थप्पड़ मारी उस माँ ने कहा इस बच्ची को किसी अनाथालय में छोड़ दो फिर उस पत्नी के पति बोले अगर इस बच्ची को अनाथालय भेजा तो लोगों के सामने हमारी बैजती करेगी उस बेटी की माँ बोली अगर इस लड़की को अनाथालय नहीं भेजा तो में यह घर छोड़कर चली जाऊंगी।
बेटी ने रोते हुए कहा आप यह घर छोड़कर क्यों जाओगी आप भी तो बीमार रहती हो। लड़की ने कहा मुझे किसी अनाथालय भेज दो में वहाँ रह लूंगी, ओर आपकी किसी के सामने भी बैजती नहीं करूंगी। फिर भी आख़िर बेटी पर अत्याचार क्यों?
सुख और आनंद कहाँ हैं!
पापा आप ऑफिस से आकर न तो कुछ खेल खेलते हो, न टी.वी देखते हो और न कई घूमने जाते हो कितनी बोरिंग है आपकी लाइफ। एक बार पापा ऑफिस से घर में पहुँचे ही थे थोड़ी देर बाद मैने उनसे कुछ सवाल किए मेरा नाम राम है और में १०वीं कक्षा में पढ़ता हूँ। पापा ने हंसकर उत्तर दिया क्या करे बेटा हमारे ज़माने में यह सब कहाँ था ना टी.वी ना वीडियो गेम ओर ना कई घूमने जाया करते थे।
इतना जवाब देकर पापा हाथ पैर धोने चले गए। शाम को पापा ने बताया उनके बचपन के दोस्त रमेश अंकल आ रहे हैं जो उनके गाँव से ही है। यह सुनकर माँ सब्जी लेने बाज़ार चली गई। रमेश अंकल घर आए सभी लोगों ने प्रणाम किया। मेरा ध्यान गेम खेलने में था पापा और रमेश अंकल बातों में लगे हुए थे रमेश अंकल ने कहाँ “और सचिन काम–धंधा कैसा चल रहा है” पापा ने कहाँ अच्छा चल रहा है।
रमेश अंकल ने कहाँ सचिन क्या जांव की याद आती हैं पापा का मन शांत सुन्न हो गया और मेरा भी ध्यान उस बातों में आ गया। फिर गाँव की बातें होने लगीं पापा और रमेश अंकल हंसने लगे। इस प्रकार से बातें चल रही थी तभी माँ आई और बोली खाना लगा दू रमेश अंकल बोले भाभीजी बचपन की बातें कभी पूरी नहीं होती वह तो यादों में हमेशा रहेगी पर आप खाना लगा दो।
इस तरह पापा और रमेश अंकल खाना खाने चले गए में सोच में पड़ गया कि पापा की ज़िन्दगी को में हमेशा बोरिंग समझता था उनकी ज़िन्दगी तो बचपन की इतनी मीठी यादों से भरी थी जो में कभी नहीं जी सका। मेरे तो सारे खेल ही घर के अंदर होते थे। क्या वह मेरे खेलों में आंनद और सुख था। जो पापा ने अपने बचपन में पाए। शायद नहीं।
गांव और बचपन की यादें
आज सफ़र में निकल पड़ा हूँ हर गाँव घूमना चाहता हूँ। पर जिस गाँव में जाता हूँ मुझे मेरा गाँव और बचपन की याद आ जाती हैं। जहाँ खेला करते थे हम मिट्टी के घर बनाते थे हम वह मिट्टी के ढेरों से मित्रो को मारते थे हम वह लड़ना–झगड़ना रो–रो के दादी के पास चले जाना, गाँव बचपन की याद आ जाती है।
आंखों पर नमी पर चेहरे पर मुस्कान आ जाती हैं। मुझे मेरा गाँव और बचपन याद आ जाता हैं। वह खेतों में जाना वह आम के पेड़ों से केरी को चोरना वह नदी में नहाना और ख़ूब मस्ती करना आज भी इस सफ़र में मेरा गाँव ओर बचपन याद आ जाता हैं। जब किसी बच्चे को स्कूल जाते हुए देखता हूँ तो मुझे मेरा स्कूल याद आ जाता हैं। वह रोज़ स्कूल जाना पढ़ाई न करने पर मास्टर जी से डाट खाना और जैसे ही स्कूल की छुट्टी की घंटी बजी तो दौड़कर पैदल घर जाना यह देख मुझे मेरे बचपन ओर गाँव की याद आ जाती हैं।
वह चूल्हे की रोटी और हाथ से बनी चटनी वह दादी का मक्खन निकालना और साथ में बैठकर खाना वह गाँव की बात शहर में भी याद आ जाती हैं। मुझे मेरा गाँव और बचपन याद आ जाता है। वह आँख मिचौली, छुपम्–छुपाई और लंगड़ी टांग खेलना माचिस के डिब्बों से रेल बनाना यह देखकर आनंद-सा आ जाता है। मुझे मेरा गाँव बचपन याद आ जाता हैं।
लॉकडाउन का किस्सा
चलिए, आपको लोकडाउन से जुड़ा एक किस्सा सुनाते है। …यहाँ दो पड़ोसी बालकनी में खड़े है और दोनों अपने आस पास के माहौल को निहार रहे हैं उसमे से एक नाराजगी जताते हुए दूसरे से कहता है।
पहला व्यक्ति–अरे रे! भाई, देखते हो सत्यानाश कर रखा है सरकार ने। इनसे कुछ हो नहीं रहा बस लॉकडॉउन की तारीखें बढ़ाते जा रहे है परेशान कर रखा है हम लोगों को।
दूसरा व्यक्ति–क्यूं भाई, क्या हुआ? आप परेशान क्यों हो रहें हैं। जो भी निर्णय लिया वह हमारे भले के लिए ही लिया गया है और कुछ लोग नियमों का पालन नहीं करते इसलिए लॉक डाउन बढ़ाया गया हैं।
पहला व्यक्ति–क्या ख़ाक भला करेंगे। कह रहे थे के २१ दिनों में ठीक हो जाएगा सब। पर ऐसा तो कुछ हुआ नहीं। इसलिए, हम तो भाई इनकी बातों पर ध्यान नहीं देते और अपने बगल वाली इमारत के मित्र के साथ बाहर आराम से लोगों से मिलने और घूम कर आते हैं। कौन, रहे क़ैद में इतने दिन…
तभी भीतर फ़ोन की घंटी बजी… उनकी बेगम बालकनी में आवाज़ देते हुए आयी और बोली… अजी, सुनते हो वह आपका दोस्त है ना उसके घर से फ़ोन आया है उनका बेटा बोल रहा है कि अब्बू को कोरोना हो गया है
यह सुनते ही पहले व्यक्ति की सीटी पिटी गुम हो गई। क्योंकि कल भी ये उन्हीं से मिलने गए थे।
सुरेश प्रजापति
गांव पथमेड़ा, सांचौर, जालोर, पिनकोड- 343041, राजस्थान
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