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अटूट रिश्ता (Unbreakable relationship)
अटूट रिश्ता (Unbreakable relationship): पी.ई.टी.सी. हॉस्टल बिलासपुर जहाँ रहके मैं पी.एस.सी. का तैयारी कर रहा था एक समय भी ऐसा आया जब मेरा भावनाओ को समझने वाला मेरा हौसला हिम्मत बढ़ाने वाला वह मेरे ज़िन्दगी में आयी या मैं उसके ज़िन्दगी में गया कुछ समझ नहीं आ रहा था या भगवान की कोई लीला है सच पूछो तो उससे एक प्यार के बंधन का अटूट रिश्ता हो गया है।
आज के दिन को भूल कैसे सकता हूँ मुझे आज भी याद है १५ अगस्त २०१९ इस दिन स्वतंत्रता दिवस और रक्षा बंधन एक ही दिन था सभी दोस्त अपने-अपने घर चले गए थे त्यौहार मनाने अगले साल मैं उस समय थोड़ा फ्रस्टेनशन के दौर से गुजर रहा था हॉस्टल में कुछ दोस्त के साथ मैं वही रुक गया। घर जाने का बिल्कुल भी शौख नहीं था। मैंने धीरे-धीरे अकेले रहना सिख लिया। दिनभर हॉस्टल के रूम में गुजार दी।
उस दिन शाम को मैं अपने बुआ के यहाँ जा रहा था तो उसी मोहल्ले में उसी मोहल्ले में एक लड़की एकदम उदास मायूस राखी से थाल सजाएँ अपने घर की दरवाज़ा के पास बैठी थी। शायद किसी की राह देख रही थी। फिर मैं उसे अनदेखा कर आगे बढ़ गया और अपने बुआ के यहाँ अच्छे से पहुँच गया। मैंने सबको प्रणाम किया और मुझे आदर सत्कार से साथ बैठाया गया वहाँ बच्चो के साथ ३ घंटा कैसे बिता पता नहीं चला फिर अपना हॉस्टल आने के लिये वहाँ से लगभग ९ बजे निकला।
आगे आया तो देखा वह लड़की अभी तक उसी हालात में वही पर बैठी थी। मैंने उसके घर के सामने वाले दुकानदार से उसके बारे में पूछा-उसने बताया वह लड़की सुबह ९ बजे से वहाँ बैठी है पता नहीं कुछ खाई होगी या नहीं। ये सुनके मुझे बहुत बुरा लगा उसके उदासीपन मुझे देखा नहीं गया आखिरकार मैंने उससे जाके पूछ लिया बात क्या है। उसने मायूस होकर दर्द भरे आवाज़ में बोला-
आज रक्षा बंधन है मेरा भाई आने वाला था उसी का इंतज़ार कर रही हूँ। मैंने मुस्कुराते हुए कहा-मुझे भाई बनाना चाहोगे। उसने कहा-मेरा भाई बनना चाहोगे। मैंने हाँ में सर हिलाया। उसके आँख अश्को से गया था। फिर उसके चेहरे में थोड़ी-सी ख़ुशी की झलक दिखाई दिया।
फिर मुझे अपने घर के अंदर लेके गया आदर सत्कार के साथ बैठाया अंदर से खांसने की आवाज़ आ रहे थे
उसने बताया दादा जी है जो बीमार है आर्मी में थे रिटायर हो गए है। फिर मुझे अपने कमरे में लेके गया और आरती उतारी टिका लगाया फिर राखी बाँधी वह लड़की बहुत खुश नज़र आ रही थी। मैं भी बहुत खुश था।
उसने बहन होने का अपना फ़र्ज़ तो निभा दिया अब मुझे भाई होने का अपना फ़र्ज़ निभाना था मैंने ५०० रुपये निकाल के दिया वह रोने और सिसकने लगी मुझे लगा पैसा कम होगा फिर १००० दिया वह फिर भी रो रही थी मैंने कारण पूछा-अब क्या हुआ?
उसने रोते सिसकती हुए बोली—मैंने आपसे झूठ कहा मुझ माफ़ करदो। मैं कुछ समझा नही। फिर उसने बताया-उसका कोई भाई ही नहीं है माँ बचपन में छोड़के चली गई और पापा भी आर्मी में थे शाहिद हो गए। चाचा चाची गाँव में रहते है कभी कभार मिलने आते है। मैं हर साल इसी तरह राखी से थाल सजाएँ बाहर बैठती थी शायद किसी को मेरे मासूमियत पर रहम आ जाये पर आज तक कोई नहीं आया। इस बार भगवान ने आपको भेजा है। समझ में नहीं आ रहा शुक्रिया अदा कैसे करूँ।
ये सुनके मेरे आँख अश्को से भर गया फिर मैने उसके आंसू पोछते हुए कहा-कौन कहता है आपका भाई नहीं है क्या मैं आपका भाई नहीं हूँ ये धागा भले मेरे हाथों से टूट जाएगा पर हमारा रिश्ता अटूट है मैं आपके सुख दुख में हमेशा साथ निभाऊँगा ये वादा है मेरा उसने आंसू पोछते हुए थोड़ी-सी मुस्कुराई फिर हम दोनों साथ में खाना खाएँ मैंने उसे अपने हाथों से खाना खिलाया वह बहुत खुश नज़र आ रही थी उसे खुश देखकर मैं बहुत खुश था किसी के मुस्कुराने की वज़ह तो बना ।फिर दोनों ढेर सारी बाते की उसे मैंने ख़ूब हंसाया उसे हंसते देख मुझे जो किक मिलता था उसका तो जवाब ही नहीं … शायद वह भी अपना ग़म और दर्द भूल गई थी।
बातें करते-करते कब रात १२ बज गया पता ही नहीं चला फिर मैंने जाने की अनुमति मांगा उसने रात वही रुक जाने को कहा। मैंने फिर कभी रुकूँगा करके बहाना कर दिया दादा जी से मिला उसका आशीर्वाद लिया बहन के आंखों में मेरे जाने का विरह साफ़ दिखाई दे रही थी। मैंने पूछा—राखी के बदले में आपको क्या चाहिए उसने करुण स्वर में कहा-मुझे कुछ नहीं चाहिय सिर्फ़ आपका साथ और प्यार चाहिए आप कही राहो सिर्फ़ रक्षा बंधन के दिन राखी बंधवाने आ जाना। मैं समझूँगी संसार की सारी दौलत मुझे मिल गई मैंने मुस्कुराते हुए कहा-मैं वादा तो नहीं करूँगा पर कोशिश ज़रूर करूँगा। रक्षा बंधन में आने की फिरमैं अपने हॉस्टल के लिये निकल गया वह ओझल होने तक मुझे देखती रही।
जब भी मन उदास होता था मैं अपने बहन से मिलने जाता था हम दोनों ख़ूब घूमते थे और ढेर सारी बाते किया करते थे। उसे बहुत हंसाता था वह मुझे सगी बहन की तरह प्यार करती थी। भगवान का जितना भी धन्यवाद करूँ कम था। मुझे बहन के साथ-साथ बेस्ट फ्रेंड भी मिल गया था। जो मेरा सुख दुख ग़म दर्द सबको समझ जाती कभी मुझे माँ की तरह डांटती तो कभी दोस्त की तरह समझाती थी।
बिनुसिंह नेताम
बेमेतरा
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