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सुहाना सावन और यादों की कुछ बूँदें (few drops of memories)
सुहाना सावन और यादों की कुछ बूँदें (few drops of memories) कहानी के लेखक हैं विकास कुमार चौरसिया जी… विकास कुमार चौरसिया जी मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर के रहने वाले हैं… हिंदी लेखन में बेहद रूचि रखने वाले विकास कुमार चौरसिया जी अब तक कई रचनाओं का सृजन कर चुके हैं… तो आइये पढ़ते हैं विकास जी की कहानी सुहाना सावन और यादों की कुछ बूँदें (few drops of memories)…
ऐसी कोई चाहत नहीं के सावन की एक बूँद भी, मुझसे हो कर गुजरे। पर बारिश की झड़ी में बनती, तेरे चेहरे की तस्वीर, मुझे तर-बतर होने पर मजबूर करती है।
बात तब की है, जब हम कॉलेज में थे। वह मेरा पहला प्यार, पहला खुमार थी। एक दिन हमने इस हलचल भरी दुनिया से दूर, कहीं खुली हवा में, एक दूसरे में खो जाने का, प्लान बनाया। हाँ वह सन्डे का दिन था, माहौल सावन का था और मौसम बेहद सुहाना। पर सुबह बारिश भी नहीं थी, और ना ऐसा कोई आसार नज़र आ रहा था। फिर हम दोनों ने फ़ोन में बात कर के एक दूसरे से मिलने के लिए घर से निकले, हम दोनों एक जगह मिलने ही वाले थे के अचानक बारिश जोर-जोर से होने लगी।
वह बेचारी उस बारिश में बिना छाते, रेनकोट के भीग रही थी, मेरा इंतज़ार कर रही थी। में भी अपनी बाइक से था बिना रेनकोट के और में भी बिल्कुल भीग चुका था। शायद सावन की ये हसीन बारिश हमारे जज्बातों को तरोताजा करने के लिए ही हो रही थी। उस दिन शहर की बारिश अपने रुआब पर थी और वह पगली मेरे इंतज़ार पर। उसकी वह प्यारी सांवली सूरत पर पानी के छीटे, सुर्ख होंठ, गीले बाल, उफ्फ ये सावन की झड़ी, मेरे आँखों देखा हाल, क्या कहूँ सचमुच सबकुछ कमाल। पर बारिश इतनी थी के हमारा जाना कहीं संभव भी नहीं था, पर हमने मूवी देखने का प्लान बनाया और एक मॉल चले गए।
ऐसे ही भीगे हुए, पूरे गीले कपड़ों में हमने मूवी देखी, अंदर ए.सी भी चालू था और उसे ठंड भी लग रही थी, वह मासूम चेहरा इतना लुभावना था के मानो, जैसे बारिश पड़ते ही पेड़-पौधे हरियाली में डूब जाते हैं। फिर हमलोगों ने वहाँ से निकलकर गरमा-गर्म चाय पी, कुछ हसीन बातें, कुछ हसीन पलों को ताउम्र के लिए अपने दिल की दीवारों में क़ैद कर लिया l
वक़्त भी काफ़ी हो चुका था, अब उसे अपने घर भी जाना था, फिर मैंने उसे ऑटो करवाया और उसके घर तक ऑटो वाले के पीछे-पीछे गया, के बस वह अपने घर सुरक्षित पहुँच जाये। शायद तब तक में उसका पूरा दीवाना हो चुका था, जो की मुझे ख़ुद को पता नहीं था। जब वह घर के अंदर चले गई तब में वहाँ से भीगता हुआ, उसके एहसासों को साथ लपेटे, पूरे रास्ते सावन के दरिया में डुबकी लगाता रहा। ये एहसास भी न था के कब तक उसका साथ रहेगा, कुछ साल या पूरी ज़िंदगी। क्या ये आखिरी सावन होगा, या पूरी ज़िन्दगी हम ऐसे ही सावन के साथ बिताएंगे।
पर आज अब वह मेरे साथ नहीं है, हम दोनों के रास्ते अलग हैं, शायद क़िस्मत को मंजूर नहीं था, के हम किसी बंधन में बँधे। पर ये सावन का माहौल, ये बारिश, ये झड़ी अब भी मेरे दिल को कुरेदते हैं, एक टीस-सी होती है के तुम मेरे साथ नहीं हो। हर रोज़ उसके यादों की झड़ी मेरे अंदर निरंतर होती है और ये याद दिला के तड़पाती है, के तुम मेरे साथ नहीं हो, बस नहीं हो।
ये घिरते बादल, कड़कड़ाती बिजली, बारिश का होना, सब एहसास कराते हैं उसके साथ बिताये पल, लम्हे, और ये भी के अब वह मेरे साथ नहीं है, मेरे पास नहीं है। ना मैं उसे छू सकता हूँ, ना देख सकता हूँ। बस महसूस होती है उसकी खुशनुमा, चहचहाती तस्वीर, उसके आँखों के पास की सिकुड़न, पलकों की थिरकन।
अब इसे एहसास कहूँ या टीस, जो शायद जब तक मेरी साँस हैं तब तक रहेगी। ये सावन शायद बदलते वातावरण के कारण थम भी जाये, पर यक़ीन है तू मेरे दिल में तब तक रहेगी जब तक मैं हूँ, हाँ मैं हूँ। मैं एक चोर की तरह भाग रहा हूँ इस ज़िंदगी से दूर, और तेरी याद है कि हर मोड़ पर मुझे गिरफ्तार कर लेती है।
विकास कुमार चौरसिया
जबलपुर म.प्र.
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