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मुसाफिर (traveler)
मुश्किलें जिसको डरा दे, है वह कैसा मुसाफिर (traveler)
जिसको थका दे शूल पथ, है वह कैसा मुसाफिर
हौसला वह क्या जिसे, कुछ आंधियाँ पीछे हटा दे
ध्येय पथ के पंथी को, पथ से अपने ही डिगा दे
मुस्कुरा कर चल मुसाफिर, तुझको ही बढ़ना पड़ेगा
आंधियों के अंधड़ों से, अविचल हो लड़ना पड़ेगा
सामने पहाड़ हो या मरू तुझको है चलना
झुलसती गर्मी में तप कर, सर्द रातों में है गलना
मौत मिल जाए अगर, तो तुझे भिड़ना पड़ेगा
हे मुसाफिर (traveler) कंटको का, सामना करना पड़ेगा
शूल पथ के ना हटेंगे, धैर्य धर कर पार कर
पांव की पीड़ा क्षणिक यह, लक्ष्य पर ही ध्यान धर
भावना यदि जीत की तो, मुस्कुराता चल मुसाफिर
जिंदगी की जंग में, नित विजय तू कर मुसाफिर (traveler)
जिम्मेदारी
अपने हक़ के लिए लड़े पर
भूल ना जाए जिम्मेदारी।
सड़कें जाम हुई धरनों से
परेशान जनता बेचारी।
तोड़ फोर्ड और लूटपाट तो
जैसे चोली दामन की यारी।
हम अपना घर फूंक रहे हैं
यह कैसी है जिम्मेदारी।
छुआछूत और जाति पंथ से
कब मिलेगी हमें आजादी।
मोहरे बनकर राजनीति के
हमने आग भी ख़ूब लगा दी।
अब जागे हम और जगाए
सब की है यह जिम्मेदारी।
इस दलदल में फिसल ना जाए
शेष रही जो ईमानदारी।
बागबां
कोई गीत प्रेम के गाता
कोई ग़म को छुपाता है
कोई आंसू को पीकर भी
सारे जग को हंसाता है।
हलाहल कंठ में धर कर
अमरता दान करता है
यहाँ की रीत को समझे
वही नरता को धरता है।
कहे भी तो किसे अपना
पराया कौन उसका है।
रूठ कर भी मना लेना
यही पेशा तो उसका है।
नए हालात में जी कर
पुराना हाल उसका है।
दिलों को जोड़ कर रखना
रोजाना काम उसका है।
खिलाकर फूल शूलों में
चमन को जो सजाता है
सींच कर खून से अपने
पसीने से नहाता है।
बागबां है वही सब का
वही सब को नचाता है
आसमां से धरातल तक
कोई तो है जो चाहता है।
रास है हाथों में उसके
वही सबको चलाता है
ह्रदय में है बसा सबके
कहाँ कोई देख पाता है।
स्वाधीनता
स्वाधीनता मिली हमें पर, हुई शपथ कहाँ पूरी है
कहाँ हुए सपने सच अपने, आजादी मिली अधूरी है।
नतमस्तक शत-शत प्रणाम, उन देशभक्त दीवानों को
हंसते-हंसते फांसी को चुमा, कर न्योछावर प्राणों को।
नभ मंडल भी गुंजित था, भारत की जय से डोल उठा
आजादी का उदित सूर्य था, माटी का कण-कण बोले उठा।
जिनके रुधिरों से पग धोकर, आजादी भारत में आई
बेघर हैं वे अब तक भी, दुख की काली बदली छाई।
आजादी का जश्न नया था, सभी जश्न में डूबे थे
बंगाली सड़कों से पूछो, रक्त सने जो सूबे थे।
कैसे उल्लास मनाऊँ इसका? ये तो आधी अधूरी है
पूछो उन बहनों से जिनकी, उजड़ी मांग सिंदूरी है।
खंडित आजादी हमको, बिल्कुल भी स्वीकार नहीं
अखंड भारत से कुछ भी कम, हमको है स्वीकार नहीं।
उस स्वर्णिम युग के लिए आज से, सीखें कुछ बलिदान करें
आजादी में खो ना जाएँ, कमर कसें अभियान करें।
सच-सच बताना यार
सच-सच बताना यार
याद करते हो कि नहीं।
वो घर से निकलने का बहाना
चुपके से नदियों में नहाना
टायर वह साइकिल के चलाना
दोस्तों संग मौज मनाना
खेतों से ककड़ी चुराकर खाना
इशारों से दोस्तों को बुलाना
सच-सच बताना यार
याद करते हो कि नहीं।
चूल्हे में लकड़ी जलाना
ट्यूबवेल से पानी लाना
पिताजी को देखते ही छुप जाना
खतों को किताबों में छुपाना
कच्चे आमों को मिट्टी में दबाना
चांदनी रातों में महफिल जमाना
सच्ची झूठी कसमें दिलाना
सच-सच बताना यार
याद करते हो कि नहीं।
कुए पर मिट्टी से खुले में नहाना
दिन भर भुट्टे चबाना
गोबर और मिट्टी से घरों को सजाना
बबूल का गोंद गर्मियों में खाना
पेड़ों पर चढ़ना चढ़ाना
कागज की नाव बनाना
किराए की साइकिल चलाना।
सच-सच बताना यार
याद करते हो कि नहीं।
एरोप्लेन को हवा गाड़ी बताना
मोटरसाइकिल को फटफटी बताना
बैलगाड़ी के हिचकोले खाना
ट्रैक्टर में बारात निकालना
मेले से सामान चुराना
फटी पेंट को रफू कराना।
सच-सच बताना यार
याद करते हो कि नहीं।
बिना बताए स्कूल से भाग जाना
खिड़की से बस्ता गिराना
पिकनिक जाने की ज़िद करना
मां से रूठ कर सो जाना
सप्ताह में एक दिन नहाना
एक साइकिल पर चार-चार घुमाना
हैंडपंप को जोरों से हिलाना
बिस्किट को चाय में डुबोकर खाना।
सच-सच बताना यार
याद करते हो कि नहीं।
दाढ़ी मूछों पर रेजर रगड़ना
खेल खेल में रोज़ झगड़ना
माचिस में नमक मिर्च रखना
फोड़े फुंसियों का पकना
मंदिर का घंटा ज़ोर से बजाना
ठिठुरते हाथों को आग में तपाना
त्योहारों की मिठाई चुपके-चुपके खाना।
सच-सच बताना यार
याद करते हो कि नहीं।
योग
नित्य जो मानव करता योग
रहता जीवन में सदा निरोग
तन उसका चुस्त हो जाए
आलस उसके पास न आए
योग करें नित्य योग करें
इस जीवन का सदुपयोग करें।
मन स्वच्छ करता है योग
तन को स्वस्थ रखता है योग
सुदृढ़ बनाकर सफल बनाएँ
धन ख़र्च कभी ना योग कराए
योग से होते दूर सब रोग
स्वस्थ भारत सुखी सब लोग।
योग से ही सब का कल्याण
इसमें हैं बसते सब के प्राण
संदेश विश्व में यही फैलाओ
सब लोगों को योग करवाओ
सच्चे मन से जो करते योग
ईश्वर संग होता संयोग।
आसन होते इसके सारे अच्छे
करते सब बूढ़े और बच्चे
सूर्योदय से पहले उठ जाओ
पीकर पानी नित्यकर्म जाओ
योगिक सब क्रियाकलाप करो
हर दिन उठकर योग करो।
तुम हो मेरी मनमीत
स्वप्न सुंदरी-सी आकर, तुम ने कर ली प्रीत
बसी हुई हो मन में मेरे, तुम हो मेरी मनमीत।
भटकूं ना मैं राह कभी, तुमने मेरा हाथ धरा
महकाने जीवन की बगिया, सुंदर सपनों का भाव भरा
कैसे बतलाऊँ मैं तुमको, तुम जीवन संगीत
बसी हुई हो मन में मेरे, तुम हो मेरी मनमीत।
थी रात अमा की घोर अंधेरी, चंद्र किरण-सी तुम आई
मेरे मन के आंगन में, प्रभा चंद्र की बिखराई
भरा प्रेम इस जीवन में, तुमने बतलाई प्रीत
बसी हुई हो मन में मेरे, तुम हो मेरी मनमीत।
सुर्ख गुलाबी होठों से जो, तुमने संगीत सुनाया था
मेरी यादों में तुम ने, आंखों से अश्क बहाया था
रोज गुनगुनाओ तुम जिसको, बन जाऊँ ऐसा गीत
बसी हुई हो मन में मेरे, तुम हो मेरी मनमीत।
बिना तुम्हारे जीवन सूना, सारे ख़्वाब अधूरे हैं
आओ तुम्हें जी भर कर देखुं, अधिकार हमारे पूरे हैं
तुम हो मेरी पावन सरिता, तुम झरनों के गीत
बसी हुई हो मन में मेरे, तुम ही मेरी मनमीत।
दिये बाती-सी प्रीत तुम्हारी, ज्यों जल बिन है मीन
लता प्रेम की तुम बो देती, उसर हो चाहे जमीन
शब्द तुम्ही कविता के मेरे, तुम्ही गीतों में गीत
बसी हुई हो मन में मेरे, तुम हो मेरी मनमीत।
भाग्य
बैठ गए जो भाग्य भरोसे
बैठे ही रह जाते हैं
कोशिश जो करते हैं पूरी
अपनी मंज़िल पा जाते हैं।
भाग्य प्रधान होता जीवन तो
कर्म नहीं कोई करता
सारे सुख मिलते सबको
दुख सारे भाग्य हरता।
चंद पलों के जीवन में
भाग्य को किसने देखा है
अपने ही निज कर्मों का
लिखा भाग्य में लेखा है।
सत्कर्मों की मेहनत से
रुठे भाग्य बदल जाते
विश्वास यदि ख़ुद पर हो
सौभाग्य के ताले खुल जाते।
कर्म प्रधान इस जीवन में
सुख दुख तो आना जाना है
पौरुष तुम अपना मत भूलो
भाग्य का सिर्फ़ बहाना है।
मन के काग़ज़ पर
बनी हुई तस्वीर तुम्हारी
मन के कोरे काग़ज़ पर
कई रंग के पुष्प खिले हैं
इंद्रधनुष से बादल पर।
कलम चलाने जब बैठा तो
मन का काग़ज़ बोल उठा
कितना और लिखेगा मुझ पर
कोरा काग़ज़ भी खोल उठा।
कागज मन का जब कोरा था
उस पर तुमने अधिकार किया
जब घोर अँधेरा था जीवन में
हंसकर तुमने स्वीकार किया।
प्रणय निवेदन की बेला को
सोच सोच घबराता हूँ
मन के कोरे काग़ज़ की
स्याही बन अकुलाता हूँ।
रंगीन बनाकर काग़ज़ को
लिखता और मिटाता हूँ
बैठ नदी के रेत किनारे
अपना मन बहलाता हूँ।
उन्मुक्त गगन को देख देख
रातें छोटी पड़ जाती है
अतृप्त ह्रदय के जख्मों पर
मरहम भी रोती जाती है।
मन के कोरे काग़ज़ पर
तुमने जो लिख डाला था
अमिट स्याही से चित्र बना
अब कौन मिटाने वाला था।
मास्क एवं दो गज की दूरी
मुश्किल के हालात से गुजर रहा यह देश
मुंह पर मास्क दो गज दूरी देना है संदेश।
महामारी के रूप में किया शत्रु ने वार
कई दिनों के बाद में एक हुए परिवार।
स्कूल बंद, मंदिर बंद, बंद हुए व्यापार
मदिरालय सारे खुले कैसी यह सरकार।
मास्क लगाकर बाहर जाना हुआ बहुत ज़रूरी
राम राम-सा बोलकर रखना दो गज की दूरी।
कोरोना से जीतकर जो आए है पास
खुशियाँ घर में छा गई बंधी जीवन की आस।
दो गज की दूरी से रहे सुरक्षित आप
मास्क लगा कर ही सदा निकले घर से आप।
मुंह पर मास्क सामाजिक दूरी बनी हुई है खास
घर में रहे सुरक्षित रहे यही है सबसे आस।
जन्म लिया जिसने
जन्म लिया जिसने इस जग में
एक दिन उसको जाना है
राजा हो या रंक परिंदा
सबको कर्म फल पाना है।
निश्चित फलता कर्म किया जो
सुख और दुख का व्यर्थ विचार
बोया बबूल कांटे ही होंगे
मीठे फल की कहाँ बहार।
यह संसार गगरिया जल की
इस जल की सब माया है
फूटी गगरिया एक हुआ सब
जल धरती में समाया है।
जैसा कर्म फल मिलता वैसा
गीता का यही सार है
कर्म पथ हो अच्छा सबका
तो जीवन गुलजार है।
शुभ कर्मों से जीवन उत्तम
बनता मानव श्रेष्ठ महान
परोपकार के कर्मों से
सुंदर बनता सकल जहान।
गर्मी का मौसम
तपता अंबर झुलसी धरती
देखो सूरज ने आग लगाई
सूखा जल नदियों झीलों का
गर्मी धूप पसीना ले आई।
भूख प्यास में भटके पंछी
छांव कहीं ना मिल पाई
मुश्किल में जीना है सबका
देखो है कैसी गर्मी आई।
सूनी गलियाँ सड़क चौराहे
चुभती लपटें गरम हवाएँ
उबल रहा तन में जल जैसे
बहे पसीना तरबत हो जाएँ।
ह्रदय पिघलाते जब शोले
मंद समीर है मन को भाता
बरगद की शीतल छाया में
मन गदगद तृप्त हो जाता।
उमस भरे इस मौसम में
जब बदली काली दिखती है
कलियाँ आशाओं की खिलकर
सूरज संग महकती है।
कैसी आफत आई है
ना दारू है, ना दवाई है
देखो, ये आफत कैसी आई है
मानव क़ैद है, अपने ही घर में
ना पुलिस, ना जेल, ना कोई कार्यवाही है।
बाजार बंद, मकान बंद
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे बंद
शादी, मंगनी, मंगल काम
खामोश हुई शहनाई है।
पीड़ित बहुत जन मन अब तो
मन मार रहे थे अब तक तो
द्रवित ह्रदय-प्रस्तर भी अब तो
जब देखी जग से विदाई है।
क्या होगा आगे? ज्ञात नहीं
हंसने रोने की बात नहीं
संकट धरती पर आया है
हमें करनी इससे लड़ाई है।
मंजर खतरों का फैल रहा
अतुलित पीड़ा मनु झेल रहा
नव अंकुर फिर से आएंगे
क्यों जीवन बेल कुम्हलाई है?
व्यवहार
नम्रता ही जीवन का, हो केवल आधार
शील, सम्मान, विवेक का, जग में हो व्यवहार
शत्रु और मित्र न कोई, ये है सिर्फ़ विचार
मानव की पहचान है, बस उसका व्यवहार।
प्रेम बसा हो ह्रदय में, होता मंगलाचार
भाईचारा अपनाएँ, कर लें सब से प्यार
द्वेष, घृणा, कटुता का, न हो अब व्यापार
खुशहाल ज़िन्दगी की कुंजी, है सच्चा व्यवहार।
प्रेम पूर्ण व्यवहार से, होती सब की जीत
विचित्र है दुनिया बहुत, करें जीवो से प्रीत
सहयोगी बनकर सदा, बन जाएँ सच्चे मीत
परोपकार, मैत्री विचार, यह है उत्तम रीत।
प्रतिबिंबित मानवता सदा, अपने ही गुण-धर्मों से
बनता मानव श्रेष्ठ, सभ्य, संस्कारी निज कर्मों से
पहचान दिलाते त्याग-समर्पण, परहित जैसे भाव
है ये धरोहर रिश्तो की, अनुशासित मधुर स्वभाव।
मद में पड़ कर अहंकार के, भूले न सदाचार
जीवन के इस मंच पर, सदा रहे सद्विचार
मन के दर्पण पर कभी, बढ़े ना विष का भार
श्रेष्ठाचार व्यक्तित्व हो, अजर अमर व्यवहार।
नियति छोड़ संभलना होगा
अदृश्य शत्रु है अति प्रबल
फैल रहा नित पवनों में
हे नर सिंहों डरो नहीं तुम
रुक जाओ अपने भवनों में।
कुछ दिन संयम करना होगा
खुद को मज़बूत बनाएँ हम
क्या पाया क्या खोया हमने
सीखें इतिहास बनाएँ हम।
विचलित करती बाधाओं को
सहना और कुचलना होगा
अरि सीमाएँ लांघ चुका सब
नियति छोड़ संभलना होगा।
पग पग पर मौतों का मंजर
रुग्ण हुई धरती सारी
किसकी सांसे बची रहेगी
सोच रहे हैं सब नर नारी।
वक्त कठिन है कट जाएगा
मानव का शत्रु मिट जाएगा
फिर जीवन संचालन होगा
सीख नई यह दे जाएगा।
धरती का शृंगार है उजड़ा
शीतातप संतुलन बिगड़ा
प्राण वायु को तरसा मानव
अपने प्रिय जनों से बिछड़ा।
अनहोनी के अंधकार से
मन पर आशंका का डेरा
दिग्गज डोल गए इस रण में
चक्रव्यूह-सा बना है घेरा।
डगमग डगमग धरती डोले
स्वच्छ समीरों में विष घोले
प्रश्न कठिन कोई क्या बोले
कष्ट हरो शिव शंकर भोले।
कभी ख़ुद से बात करो
हो गई बहुत-सी बातें इस दुनिया से
कभी कभी ख़ुद से भी बात किया करो
हर धड़कन की आवाज़ सुनते हो तुम
कभी अपने दिल की तरफ़ भी कान दिया करो।
माना कि बड़े झमेले हैं ज़िन्दगी में पर
कुछ पल बैठ पुरानी यादें याद किया करो
इतना वक़्त गुजरा है गुजरता चला जाएगा
कुछ अपने लिए भी वक़्त निकाल लिया करो।
अपने अंतर्मन में जाकर उसे टटोलो कभी
हृदय पर जमी धूल को भी झाड़ लिया करो
अपने मन की पीड़ा की गांठें खोलो अब
कभी कभी ख़ुद से भी बात किया करो।
अपने मुख पर मुस्कान सजाकर शृंगार करो
अक्स कभी दर्पण में अपना निहार लिया करो
व्यस्त ज़िन्दगी में भी यारों से मुलाकात करो
वक्त बेवक्त ख़ुद से भी बात किया करो।
रही ख्वाहिशें कुछ अधूरी अभी तो क्या
कभी-कभी पूरे पंखों से उड़ान लिया करो
याद करो बचपन की वे काग़ज़ की नावें
बारिश की ठंडी बूंदों से तन भीगो लिया करो।
मन की गहराई में डूबो ख़ुद को ही अपना लो
शक्ति पहचानो अपनी सत्य जान लिया करो
खामोश रहकर भी खुश रहना जीवन में
चुप रह कर भी ख़ुद से बात किया करो।
डॉक्टर / कोरोना योद्धा
जब कोरोना विकराल हुआ
भय से जन बेहाल हुआ
केवल वैद्य डॉक्टरों का ही
हम सब पर उपकार हुआ।
एक पैर पर खड़े रहे
हर संकट में अड़े रहे
कोरोना के योद्धा बनकर
दिन रात कर्म में लगे रहे।
हर रोगी के रक्षक बनकर
प्राणों के संरक्षक बनकर
खड़े हुए थे चक्रव्यूह में
अभिमन्यु से बालक बनकर।
मानवता की सीख सिखाई
निस्वार्थ भावना ख़ूब दिखाई
ये है कलयुग के भगवान
कैसी है इनकी भाग्य लिखाई।
नमन करें इन सच्चे वीरों को
इस धरती के सच्चे हीरो को
कोरोना से जंग है लड़ते
जांबाजों, संत, फकीरो को।
भोर
संग भोर लेकर आती सबके जीवन में लाली
जगजीवन आलोकित करती खिलती फूलों की डाली।
सौरभ सुमन की फैलाकर महकाती अवनी सारी
अति रुचिकर शीतलता भरती लगती कितनी सुखकारी।
ग्राम नगर और अंत: पुर में भोर सदा सुख मंगलकारी
इंद्रधनुषी रंग देकर यह लगती कितनी हितकारी।
पुलकित तन मन रसमय जीवन दृग दुति उपजाति
मधुर नाद से दसों दिशाएँ प्रतिपल है पुलकाती।
भोर पवन सेवन से बढ़ती नित-नित है मुख की लाली
उर में नव ऊर्जा भर तम को हरती मतवाली।
उषा सवेरे लेकर आती सुरभित कुसुमों की थाली
वन उपवन तरू पा जाते मधुर मनोहर हरियाली।
फागुन आया
सुखद मनोहर लगता प्यारा
हर्षित मन पुलकित तन सारा
नई सुबह ले सूरज आया
धरती धानी फागुन आया।
कृषकों के चेहरे मुस्काते
काट फ़सल वह ख़ुशी मनाते
धरती ने सोना जो उगला
निखरा रूप बड़ा ही उजला।
खग कुल को मिल गए निवाले
फागुन में सज गए शिवाले
महक उठी पुरवाई प्यारी
खिल गई रंग बिरंगी क्यारी।
छैल छबीली होली आई
प्रीत भरा संदेशा लाई
करते रंगों की बौछार
मस्ती भरा है यह त्यौहार।
आओ मिलकर खेले खेल
रंग लगा कर-कर लो मेल
रंगों की है छटा निराली
फागुन ने देखो धूम मचाली।
निलेश जोशी “विनायका”
बाली, पाली, राजस्थान
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