कहानी समीक्षा (Story Review) : कफन
कहानी समीक्षा (Story Review) : मुंशी प्रेमचंद्र जी की कहानी कफन सामाजिक यथार्थ की प्रस्तुति है। प्रस्तुत कहानी में समाज में व्याप्त शोषण व्यवस्था व उनके परिणामों को सशक्त ढंग से अभिव्यक्त किया गया है। हम सभी इस वास्तविकता से परिचित हैं कि वास्तव में ग़रीबी बर्दाश्त करना एक सीमा के बाद मुश्किल हो जाता है। ग़रीबी व्यक्ति को किस स्तर तक संवेदनहीन और जड़ बना सकती हैं, कहानी के पात्र “घीसू और माधव” इसके ज्वलंत उदाहरण है।
प्रेमचंद्र जी की यह कहानी अन्य कहानियों से अलग है। कफन एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की कहानी है, जिसमें श्रम के प्रति आदमी में हतोत्साह पैदा होता है, क्योंकि उस श्रम की कोई सार्थकता उसे नहीं दिखाई देती। … बीस साल तक यह व्यवस्था आदमी को भर पेट भोजन के लिए के बिना रखती है। इसलिए आवश्यक नहीं अपने परिवार के ही सदस्य के मरने जीने से ज़्यादा चिंता उन्हें होती है और उससे ज़्यादा उन्हें अपने पेट भरने की चिंता होती है। कहानी ज़िन्दगी के मूल्यों के खंडहर की कहानी है। कहानी के मुख्य पात्र हैं घीसू और माधव। घीसू जो कि पारिवारिक मुखिया भी है, उसके घर में कुल तीन सदस्य हैं घीसू स्वयं, उसका बेटा माधव और माधव की बीवी बुधिया।
घीसू एक दिन काम करता है और बाक़ी के तीन दिन आराम। ताउम्र परेशानियों एवं गरीबी, अपने आलस्य के कारण घीसू ने कभी ज़िन्दगी से शिकायत भी नहीं की। घीसू के बेटे माधव का भी मेहनत और श्रम से कोई लेना-देना नहीं था। इनके पास रहने के नाम पर एक झोपड़ी थी और बाक़ी संपत्ति के नाम पर घर में मिट्टी के दो चार बर्तन, फटे पुराने कपड़े पहनकर दिन काट रहे थे।
जब बिल्कुल फांकें रह जाते तो कोई ना कोई बहाना बनाकर मांग कर खाते। जिससे एक बार उधार लिया दोबारा उसका कभी वापस नहीं दिया। पिटाई का भी कोई ग़म नहीं होता। वे बुधिया को तड़प-तड़प कर मरने से भी चिंतित नहीं थे, सोच रहे थे कि अगर बुधिया मर जाएगी तो अच्छा ही होगा क्योंकि वह इन सब दुखों से मुक्त हो जाएगी। आलू खाकर उन्होंने पानी पिया और सो गए बुधिया की कराह से उनको कोई मतलब नहीं था, उन्होंने उसको सुन अनसुना कर दिया। बुधिया सारी रात भर तड़पती रही और रात में ही उसके प्राण पखेरू उड़ गए। अपने दर्द के साथ वह प्राण त्याग कर चुकी थी।
अब घीसू और माधव को उसके अंतिम संस्कार की चिंता हुई, परंतु कफन के पैसे भी उन दोनों के पास नहीं थे। अपनी बीती हुई ज़िन्दगी को याद करते हुए, दोनों जमीदार को लाचारी दिखाकर पैसे लेने गए। जमींदार ने जब भी काम के लिए घीसू को बुलाया हमेशा घीसू ने बहाना बनाकर टाल दिया। बुरे वक़्त की वज़ह से जमींदार ने तरस खाकर दो रुपए दे दिए। उनका हवाला देकर घीसू और माधव ने सभी गाँव वालों से पांच रुपए इकट्ठे कर लिए। अब पांच रुपए मिलते ही, वह दोनों अपनी भूख एवं विलास के वशीभूत मधुशाला के सामने जा पहुँचे।
तर्क से एक दूसरे को कफन की आवश्यकता और महत्त्व को झुठला कर, दरकिनार करते हुए, चटनी, अचार, कलेजियांँ, पूडियाँ एवं बोतल खरीद कर अपने आप को तृप्त करने में लग गए। थोड़े समय की ख़ुशी उन्होंने कफन के पैसों से खरीद ली। कहा जा सकता है कि यथार्थ को दिखाती हुई मार्मिक कहानी है- “कफन” । ज़िंदा इंसान अपने स्वार्थ के वशीभूत क्षणिक सुख को प्राथमिकता देते हुए, मृतक शरीर की आवश्यकता को भी दरकिनार कर देता है। मनुष्य कितना क्रुर, स्वार्थी एवं संवेदनहीन हो चुका है।
डॉ. प्रीति चौधरी
बुलंदशहर
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