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भारत के सैनिकों (soldiers of india) को नमन
soldiers of india: देश की सीमायें नहीं बनती हैं कागच पर लकीरों से
ये तो बनती आयी है फौजियों की ही शमशीरों से,
हमारे सैनिक हैं प्रहरी, हमारे देश की सीमाऔं के
भारत है सुरक्षित-अखंड, अपने लाडले वीरों से।
अपने प्राणों की दे देते हैं आहुति माँ के चरणों में
जीना मरना है देश की खातिर रहता है वचनों में,
अजर-अमर हैं ये सभी, भारत माता के लाडले
क्या अदभुत शौर्य गाथायें इनकी गूंज है रणों में।
देश की सुरक्षा में चौकस हर क्षण और हर पल
कंहा बचेगा दुश्मन इनसे इनका है नभ-जल-थल,
कठिनतम हालातों में भी इनके हैं हौंसले बुलंद
सम्भाला है आज हमारा ताकि सुरक्षित हो कल।
सागर की लहरों को भी चीर डालते हैं ये जांबाज
आवाज से भी तेज आसमां में उडने वालों शाबास,
नदियों पहाडों मरुस्थलों सभी से करते हैं सामना
हर क़दम बढे सैनिक का वंदेमातरम है आवाज।
युद्ध में तो पूरे विश्व में, इनका ना कोई सानी है
कैसी भी हो विपदायें सबने इनकी सेवा मानी है,
बाहरी हो या आंतरिक हर सुरक्षा इनका जिम्मा
भारत का हर सैनिक वीर बहादुर अभिमानी है।
भारत की तीनों फौजों के हर सैनिक को नमन
देश आजाद रहेगा आजाद इन वीरों का अभिनन्दन,
फूल की ही नहीं अभिलाषा इनके पथ पर गिरने की
हर भारतीय इस पथ की धूल समझता है चंदन।
मेरा भारत है बहुत महान
मेरा भारत है बहुत महान
वीर इसके हैं सपूत जवान,
खडे हैं बन सीमा पर प्रहरी
तैयार हैं अस्त्र शस्त्र तान,
जल थल नभ के रखवाले
देश हित में न्यौछावर प्राण।
मेरा भारत है बहुत, महान
कर्मठ इसके सपूत किसान,
सर्दी गर्मी वर्षा में हैं तत्पर
खेतों में लगा देते हैं जान,
खून पसीने से धरा सींचते
भारत माँ का बढ़ाते हैं मान।
मेरा भारत है बहुत, महान
योग्य सपूत सम्भालें विज्ञान,
हर क्षेत्र में सबसे आगे हम
दुनिया माने हमारा ये ज्ञान,
औधोगिक, चिकित्सा, संचार
इन वैज्ञानिकों का अभिमान।
मेरा भारत है बहुत, महान
इसका भूगोल इसकी शान,
मुकुट, हिमालय बन गया है
सागर परछाले इसके पांव,
पूर्व से पश्चिम तक ये देखो
नदियाँ, वन, खेत, खलिहान।
मेरा भारत है बहुत, महान
अनेकता में एकता की जान
भाईचारा, सौहार्द, सम्भाव
के, हर भारतीय गाता गान,
धरमनिरपेक्ष यह राष्ट्र हमारा
यह देश हमारा है हिन्दुस्तान।
मेरा भारत है बहुत, महान
खेलों, कलाऔं से पहचान,
सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है हमारी
यही भारत का रहा सम्मान,
विश्व गुरु और सोन चिडिया
रही सदा भारत की पहचान।
रंग भेद नहीं भाता
मुझे तेरा काला और तुझे मेरा गोरा रंग भाता है
हम दोनों के बीच में तो, प्रेम रंग का ही नाता है,
हम दोनों का लहू, किसी रंग का नहीं मोहताज
निकले तेरा या फिर मेरा, लहू लाल ही आता है।
मेरा यह गोरा यार, कुरबान मुझपे अपने दिल से
घर के दूध से ज्यादा, मेरी ब्लैक टी पी जाता है।
चेहरे का रंग देखकर, ये दिल नहीं जुडे हमारे
जुडता वही है, जो प्यार के रंग में ही नहाता है।
काले के बिन गोरा, गोरे के बिना काला अधूरा
सजती हैं सफेद आंखें, जब कजरा लग जाता है।
एक ही श्वेत रंग से, निकले हैं सातों रंग यंहा
इन्सान कयों फिर, मर्ज़ी से रंग बांट जाता है।
आंखे पथरा जाती हैं, सफेद बादल जाते देख
आखिर बरस कर तो, काला बादल जाता है।
काले गोरे का यह जाल बुना गया है मतलब को
मतलब है तो सत्य स्याह, झूठ सफेद हो जाता है।
चेहरे पर नकाब लगी, दिल पर नकाब लगती नहीं
काली से नजरें फेरे, गोरी पर आंखे सेंक जाता है।
काले गोरे की जंग में, क्यूं यह दुनिया उलझी है
आखिर जीवन का मूल मंत्र, यही तो समझाता है।
ये रंगो का बे-रंग खेल, नहीं समझता है ‘देवेश’
आंख की काली पुतली को, काला रंग नहीं भाता है।
तुम आओ न आओ
तुम आओ न आओ, यूं लगे कोई आया
तुम कब हो अलग मुझसे, बने तुम्हीं साया,
सपने देखे खुली आंखो से, की थी कुछ बातें
जब बातें करी ख़ुद से, तिरा ज़िक्र हि आया।
कहते हैं गीतों की दुनिया में, बसे प्यार वाले
सुर तेरे, ग़ज़ल भी तू, वही फिर मैं गाया।
इश्क वह चीज है रूसवा करदे अपने आप से
रह जाती एक यही, इश्क़ मोह, यही माया।
लोग हंसे मुझ पे, लौट आया बुद्धू घर पे
जब भी लौट के आया, नहीं तुमको पाया।
भाग के जाता था, हरेक के दुखों में ‘देवेश’
खुद के ज़ख़्म पर रखने, खुदी मरहम लाया।
कैसे कटेंगे अब पहाड से ये दिन
जिंदगी कट रही देखो गिन गिन
कैसे कटेंगे अब पहाड से ये दिन
कई महीनों से पसरा सन्नाटा है
कोरोना से हुआ सब छिन्न भिन्न।
छोटे बडे सभी व्यापारी परेशान
आमदनी बंद हुयी बढ रहा ॠण,
स्कूल कालेज की ठप है पढाई
बच्चे बडे शिक्षक सभी गमगीन।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे भी बंद हैं
मन में प्रभु याद आते हैं निशदिन,
कयामत का-सा हो रहा एहसास
माहौल भारी और लगता संगीन।
मजदूर गरीब आम आदमी सोचे
कैसे कटेंगे अब पहाड से ये दिन,
बेनूर हुआ है देखो सारा यह जग
जल्दी लौट आये वह रौनक रंगीन।
भय का माहौल बढ रहा है रोज
जल्दी से आ जाये कोई वैक्सीन,
हर दिन लगता है मानो हो पहाड
सोचने की क्षमता हुई जीर्ण शीर्ण।
प्रभु करेंगे सब ठीक बहुत जल्दी
थाम रखो एक दूजे को हमनशीन,
सभी सावधानियाँ रखो अवश्य ही
कट जायेंगे ये भी पहाड से ये दिन।
संतोष
संतोषी परम सुखी, बहुत गहरा है यह ज्ञान
ना कांहू से दुश्मनी, ना करता है अभिमान
ना करता है अभिमान, तन मन से रहे प्रसन्न
सादा जीना व उच्च विचार से काट दे जीवन
कह संजय देवेश, संतोषी करे सदा विचार
इज्जत से कट गयी, प्रभु करें भवसागर पार।
संतोष संतोष सब करें, संतोषी भया ना कोय
ये भी मेरा वह भी मेरा, बस हाय-हाय ही होय
बस हाय-हाय ही होय, जोड तोड में ज़िन्दगी
छोड ईश आराधना, केवल दौलत की बंदगी
कह संजय देवेश, सुन लो बुजुर्गो की बात
अंत समय आयेगा, खाली रह जायेंगें हाथ।
संतोष को सदा समझें, सभी सुखों का मूल
हंसते हंसते कर्म करें, रात को सोयें सब भूल
रात को सोयें सब भूल, रखें प्रसन्न यह मन
सादगी में खुशियाँ मिलें, दूर रहते हैं व्यसन
कह संजय देवेश, संतोषी की देखो मुस्कान
धवल चाँदनी-सी लगे, सब पर छिडके जान।
हम चलें साथ में
हम चलें साथ में
हाथ में दीपक लिये तुम
करती आलोकित पथ
और मैं बचाऊँ दिये को
हवाऔं से बुझने से
ताकि वह जलता रहे सतत
हम चलें साथ में
चांद और चादंनी से
रूह में बसी कहानी से
साथ जैसे सांस धडकन
साथ जैसे बिम्ब दर्पण
फूल सुगंध से साथ में
थामे एक दूजे को हाथ में
हम चलें साथ में
हम चलें साथ में
एक दूजे से ज्यादा
एक और एक ग्यारह बन कर
हर परिस्थिति में तन कर
साथ तभी तो निभेगा
जब चलेंगे साथ मिलकर
और बनेंगे हम सफ़र
हम चलें साथ में
जीते हुये खवाबों को
सवाल नहीं जवाबों को
ना विश्राम इन पांवो को
झुठला कर
जग के दांवो को
खुशी रहे साथ में
ना बिछुडें किसी हालात में
बस चलें तो चलते रहें
चलते रहें बस साथ में
हम चलें साथ में
हम चलें साथ में …
मेरे पिताजी की साइकिल
अपनी गाढी कमाई से पिताजी लाये साइकिल
मेरा सांतवे आसमान में उछलने लगा था दिल,
कलेवा बाँध और उसपर टीका लगाया था माँ ने
नयी साइकिल की बात को सबको बताया मैंने,
बहुत दिल के करीब मेरे, दास्तान-ए-साइकिल
आज भी याद करता पिताजी की वह साइकिल।
माँ तो पीछे बैठती थी, मेरी डंडे पर सीट छोटी
वह साइकिल मानो, घर की सदस्य ही होती,
फिर सामान रखने की भी बडी समस्या आयी
पिताजी ने हैंडल पर आगे एक टोकरी लगवायी,
आयी हमारे घर मैं, मेरी छोटी बहिन मुनिया
टोकरी में बैठकर, खुश होती थी नन्हीं गुडिया।
यह साइकिल ही थी, हमारी स्कूल की सवारी
कोई होता बीमार तो बन जाती एंबुलेंस हमारी,
शाही रथ-सा आता इस पर बैठकर आनन्द
सवारी हमें कराते, पिताजी हंसते मंद-मंद।
आफिस जाते थे इसपर पिताजी हाथ हिलाते
शाम को घर आते थे इसकी घंटी को बजाते।
पिताजी जाते आफिस टिफिन लटका हर रोज
पर रविवार को तो मेरी ही, रहती थी मौज,
रविवार, छुट्टी को मैं, देखता था यही पल
धोता था साइकिल को, ख़ूब मसल मसल,
फिर पौंछता था उसको साफ़ सूखे कपडे से
छांव में रखता बचा के, इसे धूप के थपेडे से,
खाया-पीया और फिर, साइकिल ले खिसके
पांव कैंची से बना, चलाते, हाथ सीट पर रखके।
कभी देख कर पंक्चर उदास होता और डरता
हाथ से खींच साइकिल दुकान का रूख करता,
पंक्चर निकलवा कर, लौट कर आता घर
पिताजी डाटेंगे, बस यही लगता बहुत डर,
साइकिल भी मानो करती, उनसे ही शिकायत
पिताजी देते सावधानी से चलाने की हिदायत।
नौकरी तक इसने, पिताजी का निभाया साथ
रिटायरमेंट के बाद भी कहाँ छुटा यह साथ,
बडे प्यार से यह अमानत मुझे है सम्भलायी
मैंने उनके प्रेम की, मन से दी ख़ूब दुहाई।
उनकी मेहनत और आशीर्वाद से मैं हूँ सफल
साइकिल का महत्त्व याद आता है पल-पल,
सहेज रखी है साइकिल, जान अमूल्य धन
श्रद्धा से निहारता, जब याद करे पिता को मन,
रख देता हूँ साइकिल की सीट पर सर अपना
आभास होता है उनकी की गोद में है बचपना।
नदी
यह नदी केवल एक जल की मात्र धार नहीं है
प्रस्तर शिला खंडो पर वेग-प्रहार ही नहीं है
तृप्त करती है भू-जीव-जन्तु-खेत-खलिहान
जंहा बहाव है नदी का प्रकृति सौंदर्य वहीं है।
नदियों के किनारे रचते रहें है अनेक इतिहास
समग्र सभ्यताओं का इसके तीर पर विकास
पूजा है मानव ने इन सब को एक माँ के रूप में
सदियों से अनवरत जल राशि का रहा है साथ।
मनुष्य, देवों के पापों का करती रहीं है प्रक्षालन
नौचालन, मत्सय पालन और है विद्युत उत्पादन
कल-कारखानों की भी यह हैं एक आवशयकता
तभी तो अमृत मान कर जल का करते आचमन।
पर इन सभी नदियों का क्यूं हो रहा है प्रदूषण
कूडा-करकट और डाल रहे हैं ज़हर-रसायन
बना दिया है नदियों को मानव ने गंदा नाला
हम सबको इसकी भारी क़ीमत करनी वहन।
जब हम सभी एक-एक बूँद जल को तरसेंगे
प्यास मिटाने को अपना सब कुछ ही खरचेंगे
तब याद करेंगे हम मन से इन महान नदियों को
और नयनों से रो-रो कर झर-झर झरने बरसेंगे।
मेरी पहचान
माता पिता को है शत-शत नमन, सम्मान
जिन्होंने बनाया है मुझे, अच्छा इन्सान
आज जो कुछ भी मैं हूँ, जैसा भी मैं हूँ
उन्हीं के आशीर्वाद ने दी है मुझे पहचान।
क्या है मेरी पहचान, माकूल सवाल है ये
जिंदगी की राह पर मेरे कदमों के निशान।
दिल दिमाग़ नहीं बंटे हैं मेरे धर्म, जाति पर
सबसे पहले मैं हिंदुस्तानी, मेरा हिंदुस्तान।
उठती है बात दिल में, लिखता कागच पर
तारीफों का मुझे कभी नहीं, रहा गुमान।
जो दिल में होता है, दिखता है मेरे चेहरे पे
ना मेरे आंसू नकली, ना नकली है मुस्कान।
गुम नहीं हैं मेरे विचार किसी की गुलामी में
स्वच्छंद अभिव्यक्ति ही है मेरा अभिमान।
नहीं करता गरूर मैं कभी अपने आप पर
पतंग उडे ऊंची मेरी, रहती हवा मेहरबान।
मुझे भरोसा रहता है ख़ुद ही पर हमेशा
ना तो खुदा मेहरबान ना गधा पहलवान।
पल की ही ना ख़बर रखूं, सोचता दूर की
बीते से सबक लेता, रखता हूँ इत्मीनान।
जैसा, जेसै बन पडे, कुछ मदद करता हूँ
समाज का अंग हूँ, नहीं हूँ मैं कोई मेहमान।
लोग कहते हैं जाने क्या-क्या मेरे बारे में
परवाह करता नहीं, क्या कर लेगा ये जहान।
उपर वाला एक है, देवेश को रहता है भान
राम भी मेरा लगे मुझे, मेरा ही लगे रहमान।
मेरे कान्हा
कन्हैया बाजे, जो तेरी बासुंरिया
सुध बुध खो बैठी, मैं बावरिया
नाचूँ मैं और नचाये, तू कान्हा
मैं तो तेरी हो गयी हूँ साँवरिया।
जमुना-सी लहरें उठें हैं, मन में
भूली बिसूरी भटकूं हूँ, वन में
मत तरसा, दरश दिखा मोहन
यूँ तो बसा है तू कण-कण में।
ना भाये मुझे मोर की कुहू कुहू
पपीहा की ना भाये पीहू पीहू
कानों में बजती है बासुंरी तेरी
अंखियन में बसता है तू ही तू।
हांडी भरके रखी है माखन की
सून लो अरज मुझ अभागन की
आजा श्याम, चुरा के सब खाजा
मेरी तो आस है तेरे दरशन की।
वृंदावन हो जाता कुंज कलवरित
पत्ता-पत्ता गाता है, मधुर गीत
सब कुछ कान्हा तू चुरा ले गया
काहे सताये लगा कर अब प्रीत।
सुन ले अरज तू, ऐ मेरे गोविन्द
कटे नहीं जीवन तूझे देखे बिन
मैं तो जोगन बस यही कहती हूँ
तुझे निहारूं हर पल हर दिन।
तू अनोखा, तेरी लीलायें अनोखी
धन्य हुआ वह जिसने यह देखी
मैं गोपी बस तूझ पर वारी जाऊँ
पार लगादे नैया इस जीवन की।
जन जन के श्री राम
कण कण में रमते हैं सबके प्रभु श्री राम
हर ह्रदय में वास करें, जन-जन के श्री राम।
राजा दशरथ के अहोभाग्य घर में जन्मे राम
सरयू के लला राम, अयोध्या के कुमार राम।
चारों भाइयों की अठखेलियाँ फैली खुशियाँ
राजा दशरथ के राम, माता कौशल्या के राम,
हर ह्रदय में वास करें, जन-जन के श्री राम।
विश्वामित्र के सबसे गुणी योग्य शिष्य हैं ये
ज्ञान की खान राम, बुद्धि के भंडार राम।
राजा जनक पुत्री को, स्वयंवर में विवाहा
जानकी के प्यारे राम, परशुराम के भी राम
हर ह्रदय में वास करें, जन-जन के श्री राम।
रघुकुल रीत जो चली आई, सदा निभाई
वचन के पक्के राम, धर्म के सच्चे राम।
पितृ आज्ञा ही, सर्वोपरि ही मानी थी सदा
छोडा परिवार, राज-पाट, वो अयोध्या धाम
हर ह्रदय में वास करें, जन-जन के श्री राम।
सब कुछ त्याग, निकल पडे घने जंगलों में
केवट के स्वामी राम, शबरी के आराध्य राम,
सीता हरण का पाप, पापी रावण ने किया
संकट को हरते राम, पापों को मिटायें राम
हर ह्रदय में वास करें, जन-जन के श्री राम।
सीता माँ की खोज में, दिन रात एक किया
राजा बलि के राम, वीर हनुमान के भी राम,
बंदर, भालू, आदिवासियों की सेना बनाई
लंका पर चढाई करते हैं, सेनापति श्री राम
हर ह्रदय में वास करें, जन-जन के श्री राम।
प्रभु ने शिव स्मरण कर, राम सेतु बंधवाया
रामेश्वर के भी हैं राम, सागर के भी राम।
रावण, मेघनाथ, कुंभकर्ण का किया नाश
विभीषण ने कहा राम, रावण भी बोला राम
हर ह्रदय में वास करें, जन-जन के श्री राम।
सीता, लखन, हनुमान संग अयोध्या लौटे
भरत के भाई राम, प्रजा के भी प्रभु राम।
राम राज्य स्थापना करें मर्यादा पुरुषोत्तम
हर काल में हों राम, हर राज्य में हों राम
हर ह्रदय में वास करें, जन-जन के श्री राम।
राम जी की कृपा से हर बिगडी बन जाये
राम भक्ति से निर्विधन संपन्न होते हैं काम,
राम का आशीर्वाद सभी पर बना रहे सदा
तुलसी के हैं ये राम, वाल्मिकी के भी राम
हर ह्रदय में वास करें, जन-जन के श्री राम।
रक्षाबंधन का पावन पर्व
हमारी संस्कृति में त्यौहारों की परम्परा यंहा है
उसी में रक्षाबंधन का पावन पर्व भी तो यंहा है,
भाई-बहिन के पवित्र प्रेम और रिश्तों की बानगी
ऐसा दोनों के बीच और कोई, उत्सव कंहा है।
बहिनें बाँधती हैं प्यार के धागे भाई की कलाई पे
भाई देता बहिन को, फिर हिफाज़त की जुंबा है।
दोनों के बचपन की शरारतें मस्ती लौट आती है
जिसकी यादें उनके दिलों में सदा से ही जवां है।
माँ पिता भी विभोर है, बेटी घर पीहर आयी है
भाइयों को लगे यही सबसे, खुबसूरत शमां है।
कभी दूरियाँ भी सताती हैं उन सभी बहनों को
जिनका भाई देश प्रहरी बन, सीमा पर जंहा है।
यूँ तो रिश्ते फीके पड जाते हैं, दूरियों के साथ
पर भाई बहिन का प्रेम कभी कम हुआ कंहा है।
एक राखी बदल देती है, रूख जिंदगियों का
इतिहास में ऐसी बहुत गाथायें भी तो बयाँ है।
धरा ने बाँधी चंदा मामा को, इन्द्रधनुषी राखी
बिजली ख़ुशी से चमकी, बूंदें भी नाची वंहा है।
देवेश की तमन्ना है बहुत बहिनों का प्यार मिले
भर जाये कलाई ये हाथ, फैलादी दोनों बांह है।
पर्यावरण दिवस
कभी इन हवाओं में शुद्धता ही बहा करती थी
कभी इन नदियों में निर्मल धारा ही बहती थी
कभी भू मंडल हरे घने पेडों से आच्छादित था
कभी शिखरों पर हिम ही लदी रहा करती थी।
स्वच्छ जल, थल और नभ में कलरव होता था
उर्जा से उठता था मानव, चैन से ही सोता था।
फिर जो नया दौर चला, हर तरफ़ विकास फला
यह भी ज़रूरी था पर इसमें पर्यावरण भी जला।
हवा ये काली दमघोंटू हुई, सांस लेना मुश्किल
नदियाँ गंदे नाले बनीं और घबराये हमारे दिल।
प्लास्टिक कचरा, हानिकारक कूडा बस गंदगी
जमीं का पानी पाताल गया, सूखा तिल तिल।
ओजोन परत ख़त्म हो रही है, बढ रहा है ताप
विकास ने उन्नति दी, पर्यावरण को दिया श्राप।
मनुष्य असहाय हुआ सोचता यह, बस रह लेंगे
रह नहीं सके तो बस किसी तरह से तो सह लेंगे
पर्यावरण प्रदूषण की मार जीवन में हर जगह
यह बनेगा जीने का सम्बल या मरने की वजह।
पर अभी भी यंहा, इतनी देर भी तो नहीं हुई है
उठें और कुछ करें अभी भी यह समय सही है
बस हमें, अब तो बस, बस करके ही दिखाना है
पर्यावरण बचे और भावी पीढ़ी को बचाना है।
बूँद बूँद पानी को बचाये हमारा सारा समाज
प्लास्टिक को ना कहने की उठायें ही आवाज़
कूडा कचरा का हम सही जगह करें निस्तारण
एक पेड हर साल लगायें खिलायें हम उपवन।
हम यह अवश्य करें, सबका होगा यही प्रयास
प्रदूषण राक्षस का होगा तब समूल से विनाश।
कल कारखानों को कानूनन सब मानना होगा
राष्ट्रीय स्तर पर भी ठोस क़दम उठाना होगा।
पर्यावरण दिवस पर मिलकर हम लेते शपथ
हर सम्भव मिल यह बचायें, पुकार रहा वक्त।
बादल और बारिश
उमड घुमड बादल छाये, देते बारिश का संदेश
गौरी के खुले केश-विन्यास से, नृत्य करें मेघ
आसमान में सभी और, डाल लिया है बसेरा
सूरज भी छिप गया ओट में, भला लगे अंधेरा,
छिप गया है ओट में या लज्जा से मुख छुपाया
मिटा उष्मा और ताप, सावन का मौसम आया।
कोयल कूक रही है और झूमने लगे बागों में मोर
हर्षित कृषक हो रहे हैं, अब चले खेतों की ओर,
शीतल पवन बहने लगी, बिखरी है शीतलता
गोरी आतुर हो रही, शीघ्र मिटे मन व्याकुलता,
तन पर बूंदें गिरने लगी, उसने हाथ दोनों फैलाये
नाचे गोरी, हवा, बिजली, एक दूजे से शरमाये।
दंत पंक्ति चमकती है, जब ख़ुशी में गौरी हंसती
एक छोर से दूर छोर, बिजली भी ऐसे ही लगती,
टपटप बूँदें ले रही हैं, छमाछम का विकराल रूप
झरने, नदियाँ बहने लगी, सौंदर्य है बहुत अनूप
बच्चों की मस्ती स्वच्छंद है, भीग रहें हैं वह चंचल
मानव, जीव, जंतु, हर कोई अब रहा है मचल।
गडगडाहट बादलों की, सभी तरफ़ है बस शोर
बादल बारिश कह रहे, अभी तो होगी घनघोर,
अमृत नभ से बरस रहा, मिटे धरा जीव की प्यास
आओ मिलकर ख़ुशी बिखेरें, कोई ना हो उदास।
संजय गुप्ता ‘देवेश‘
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