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श्रद्धा सुमन (Shraddha Suman)
Shraddha Suman : हे मांँ तेरे चरणों में, हम सुमन चढ़ाते हैं।
तू ज्ञान की देवी हैं, ये श्रुति बताते हैं॥
तेरी महिमा गाने को, नहीं शब्द रहे बाकी,
मेरे कण्ठ में बस जाओ, देखूँ मैं तेरी झांकी।
देखूँ मैं तेरी झांकी
पतवार हम जीवन की, लो तुम्हें थमाते हैं
तू ज्ञान की देवी है——-
मैं हार नहीं मांँनू, जो तेरी कृपा हो माँ,
अज्ञान मिटे मेरा, यदि मुझ पर कृपा हो माँ।
ऐसा प्यार मुझे दे माँ,
इस तन को हे माता, हम सफल बनाते हैं
तू ज्ञान की देवी है——-
जिह्वा से रस टपके, तुम ध्यान ज़रा रखना।
नहीं कटु वचन होवे, जिह्वा पर सदा बसना॥
जिह्वा पर सदा बसना,
बने सन्तों की वाणी, जो मृदु गीत सुनाते हैं
तू ज्ञान की देवी है——-
तू “उदार” हृदय कर माँ, वरदान मुझे देना।
कर जोड़ खडा़ हूँ माँ, प्रणाम मेरा लेना॥
प्रणाम मेरा लेना
उन पर भी दया करना, जो हमे सताते है
तू ज्ञान की देवी है——-
हे माँ तेरे चरणों में, हम सुमन चढ़ाते हैं।
तू ज्ञान की देवी है, ये श्रुति बताते हैं॥
वो है मेरी प्यारी माँ
जिसने मुझको जन्म दिया है,
वो है मेरी प्यारी माँ।
जिसने मुझको दुग्ध पान कराया,
वो है मेरी प्यारी माँ।
स्वयं गीले में सोकर मुझे सूखे में सुलाया,
वो है मेरी प्यारी माँ।
जिसने लौरी गा-गाकर मुझे सुलाया,
वो है मेरी प्यारी माँ।
जिसने उँगली पकड़ चलना सिखलाया,
वो है मेरी प्यार माँ।
जिसने बोलना मुझको सिखलाया,
वो है मेरी प्यारी माँ।
जिसने रिस्तों का बोध कराया,
वो है प्यारी मेरी माँ।
जिसने सभ्य शब्दों का ज्ञान कराया,
वो है मेरी प्यारी माँ।
जिसने पाठशाला मुझे पहुँचाया,
वो है मेरी प्यारी माँ।
जिसने भूखी रहकर मुझे खिलाया,
वो है मेरी प्यारी माँ।
स्वयं दुख भोगे सुख में मुझे पहुँचाया,
वो है मेरी प्यारी माँ।
जिसने सत्य का पाठ पढा़या,
वो है मेरी प्यारी माँ।
जिसने कविता लिखने का जिज्ञासु बनाया,
वो है मेरी प्यारी माँ।
जिसने ईश्वर के प्रति आस्था जगाई,
वो है मैरी प्यारी माँ।
जो शिशु की “प्रथम गुरु” कहलवाई,
वो है सबकी प्यारी माँ।
जिसने सबके प्रति “उदार” बनाया,
वो है मेरी प्यारी माँ।
सब कुछ छोड़ जो चली गई स्वर्ग को,
वो है मेरी प्यारी माँ।
माँ की ममता
एक दिन की बात
मैं पलंग पर लेटा
कुछ सोच रहा था
कुछ अतीत के बारे में
तो कुछ
भविष्य के बारे में
विचार कर रहा था
कि अचानक
मेरी कमर पर
किसी के हाथ से
सहलाने का एहसास हुआ
मैं कुछ चोंका
और कुल मुलाया
फिर हाथ को देखने का
अथक प्रयास किया
भरसक प्रयास के बाद भी
हाथ दिखाई नहीं दिया
किन्तु हाथ से
सहलाने का एहसास
लगातार होता रहा
होता ही रहा
मैंने सोचा कि
आखिर वह कौन है
जो मुझे सुलाने की
कोशिश में लगा है
फिर अचानक
मेरे कानों में
एक जानी पहचानी सी
आवाज सुनाई पड़ी
बेटा, तू क्यों परेशान है
ध्यान से मेरी बात सुन
बहुत जल्दी ही
तेरा भी भाग्य
एक दिन उदय होगा।
मुझे तेरे पिताजी ने
तेरे पास
यह कहने भेजा है
कि तेरा छोटा बेटा
बहुत परेशान है
उसका कोई भी भाई
या कोई सगा समबन्धी
उसका साथ नहीं दे रहा।
और वह पगला
सबके दुःखों की गठरी
अपने सिर पर
लिए घूम रहा है।
उसे परोपकारी का
क्या शौक चढ़ा है?
उसे ही नहीं
बल्कि उसका पूरा परिवार
परोपकारी में फंँसा है।
जा तू उसके पास
और उससे कह दे
कि बेटा!
अब तेरे बुरे दिन
समाप्त होने वाले हैं।
इसलिए मैं तेरे पास
तेरे पिता के दिल की
बात बताने आई हूंँ।
उनकी बात सुनकर
मुझे भी बहुत दुःख हुआ।
देख बेटा
मैं अब जा रही हूंँ
यह बात सुनकर
मेरे कानों में आवाज
आनी बंद हो गई
और हाथ से सहलाना भी
अचानक बंद हो गया।
और जब चेतना
लौट कर आई
तो ध्यान आया कि
वह कोई और नहीं
जिसका हॄदय
मेरे लिए द्रवित था
वह “उदार” हृदय वाली
मांँ ही हो सकती है
और कोई नहीं हो सकता।
जो मुझे
शान्ति देने मेरे पास आई थी
मेरी प्यारी मांँ।
शान्ति माँ! शान्ति मांँ! शान्ति मांँ!
मेरी पीडा़ कौन सुनेगा
मेरी पीड़ा कौन सुनेगा।
जबसे माँ के गर्भ में आई।
पहली पीड़ा यही है पाई।
लिंग परीक्षण करवाया मेरा,
प्रथम ताना-बाना यही बुनेगा।
मेरी पीड़ा——
माँ के मन में शंका पनपी।
पिता ने मजबूरी, दिखाई धन की।
सास ससुर ने ताना मारा
प्रथम दामाद का ससुर बनेगा॥
मेरी पीड़ा——-
मम्मी पापा ने, हिम्मत करके
क्रमश: दाएँ बाएँ नैना फड़के॥
जन्म लिया जब मैंने घर में
नामकरण मेरा अब कौन करेगा॥
मेरी पीड़ा——
उम्र हुई जब १५ के ऊपर,
ताने मारे जब मेरे मुंह पर।
यह कन्या किसकी है जाई,
कन्यादान कब इसका करेगा॥
मेरी पीड़ा——-
मैं भी हूँ उस, देश की लड़की,
युद्ध। करने को जब, वाहे फड़की।
कायरों ने, तब साथ है छोड़ा,
देखू, चीरहरण मेरा कौन करेगा॥
मेरी पीड़ा———
विवाह होकर जब, ससुराल में आई,
गाँव वालों ने, नई बात बनाई।
सुना है हमने, बहु तेज बहुत है,
लड़के का जीवन, अब कैसे कटेगा॥
मेरी पीड़ा——-
सद्-आरचण से, मैंने मोह लिया सबको,
अल्प समय में, अपना बना लिया सबको।
जो करते थे, सदा मेरी बुराई,
“उदार” ह्रदय अब सबका बनेगा॥
मेरी पीड़ा——-
वीरों की शौर्य गाथा
भारत वीरों की शौर्य गाथा,
लिखनी नहीं असान है।
भारत देश में जो जन्मा,
वह मानव अति महान है॥
भारत का हर कोना-कोना,
हमारे लिए बहुत पवित्र है।
इसकी राजकण भारत वीरों को
हर क़ीमत पर अति पवित्र है॥
भारत ही नहीं, विश्व जानता,
भारत का हर चरित्र है।
ऐसे लगता जैसे कोई—,
चलता फिरता चलचित्र है।
कंकड़-पत्थर नहीं यहांँ पर,
वे हर स्थिति में भगवान हैं॥
भारत देश में——————
वीरों की गाथाएंँ गाकर,
नित ढोल नगाड़े बसते हैं।
उनके जैसा रूप बनाकर,
नित बूढ़े बच्चे सजते हैं।
कायरता का नाम नहीं,
नर-नाहर से नहीं डरते हैं॥
वीर भरत औ पृथ्वीसिंह को,
याद श्रद्धा से करते हैं।
भारत माता को शीश चढ़ाने,
तत्पर रहता हर जवान हैं
भारत देश में—————
नर से भी आगे निकली,
भारत की ये नारियाँ॥
पद्मिनी के संग जोहर कर गई,
सोलह हज़ार वे नारियांँ।
अंग्रेजों के संग लड़की देखी,
जो झांँसी की थी नारियांँ।
दुर्गावती और रानी चेन्नम्मा,
भी तो थी सब नारियांँ।
किसी का भाला, तलवार किसी की,
किसी का हथियार तीर कमान है।
भारत देश में—————
भारत में ही नहीं, विदेशों,
में भी हार न मानी है।
सूर्य और परिमाला कि नहीं,
झूठी बनी कहानी है। ।
कई समुन्दृर पार ले गए,
कि बेगम नवाब की बनानी है।
मुहम्मद-बिन-कासिम की,
झूठी कहानी बनानी है॥
जहर बुझी दोनों ने मारी,
अपने ही उदर कटार है
भारत देश में———-
भारत देश की शौर्य गाथा,
लिखनी नहीं आसान है।
भारत देश में जो जन्मा है,
वह मानव अति महान है॥
जाड़े का मौसम
जोरो पर जाड़े का मौसम,
सभी ऊँनी कपड़े पहने हम।
गद्दे कम्बल और रजाई,
रोज रात को ओढ़ें भाई।
चाय पियें और बिस्कुट खायें,
और जाड़े के मजे उड़ायें॥
लेकिन! यदि की लापरवाही,
तो दुःख होगा और तबाही।
हमको सर्दी लग जायेगी,
और भारी आफत आयेगा॥
छींकेंं आयेंगी ज्वर होगा,
परेशान सारा घर होगा।
कड़वी-कड़वी बुरी दवाई,
हमको पीनी पड़ेगी भाई॥
इससे होशियार हो जायें,
और जाड़े के मजे उड़ायें॥
जिन्दगी बहुत छोटी है
कुछ लोगों के मतानुसार
वर्तमान में ईमानदारी
केवल कहानियों या
किताबों में ही लिखी रह गई है।
ईमानदारी तो अब सुरा के संग
गंदे नालों में ही बह गई है
या यू कहिए
बेईमानी ईमानदारी को
दवाई के कैप्सूल की तरह
पानी के साथ निकल गई है।
किन्तु मेरी नजरों में
ऐसा कहना उचित नहीं है।
क्योंकि
ईमानदारी
संकल्पित लोगों में
अभी भी कूट-कूट कर भरी है
ऐसे संकल्पित व्यक्ति पर
बेईमानी का
किंचित भी असर नहीं होता।
वे तो
चन्दन के वृक्ष के समान हैं,
जिन पर विषैले सर्प
अपना ज़हर छोड़ते रहते हैं
किन्तु चन्दन का पेड़
सुगंध ही देता रहता है
और अन्त में
पराजित सर्प
चन्दन के वृक्ष पर
फन पटक-पटक कर
दम तोड़ देते है।
ठीक उसी तरह बेईमानी
ईमानदारी से हार जाती है।
“उदार” के मतानुसार
बेईमानी की ज़िन्दगी भी
अल्प समय की होती है
क्योंकि
जिंदगी बहुत छोटी है
हिन्दी का मैं प्रेम दीवाना
हिन्दी का मैं प्रेम दिवाना।
हिन्दी मुझको रोज़ सिखाना॥
हिन्दी मेरी मातृ भाषा है,
इसमें मेरी पूर्ण आशा है।
सम्मनित शव्द इसमें भरे हैं,
यही तो मेरी अभिलाषा है॥
हिन्दी का ही गीत सुनाना,
हिन्दी मुझको——————-
अंग्रेज़ी हम जब सीखेंगे,
ऐंग्लो इण्डियन तब दीखेंगे।
अंग्रेज़ी मुझे नहीं प्यारी,
मातृ भाषा रस में भीगेंगे॥
नहीं चलेगा कोई बहाना,
हिन्दी मुझको—————
डैड मम्मा नहीं सुहाती,
मरे हैं ये सब यह बताती।
गिटपिट गिटपिट भाषा है ये,
मेरे दिल को नहीं सुहाती॥
इंगलिस एरो नहीं चलाना,
हिन्दी मुझको—————-
देवनागरी भाषा हिन्दी,
ज्यों भारत के माथे पर बिन्दी।
मद्रासी, पंजाबी, बंगाली, सिन्धि,
हम सब मिलकर बोलकर हिन्दी॥
हिन्दी बोलकर मत सरमाना,
हिन्दी मुझको———————
उधार मिली है मुझको कविता,
कर मत देना मेरा फजीता।
“उदार” कवि की लेखनी से मैं,
बोल रहा हूँ आज कविता॥
बुरा मुझे न कोई बताना,
हिन्दी मुझको—————-
भारत की महिमा
भारत तेरी महिमा, संसार गा रहा है।
तू विश्व गुरु बनेगा, वर्तमान बता रहा है॥
भारत तेरी महिमा—————
गीता जैसी रचना, ईश्वर की अमर वाणी।
पढ़कर अमर हुए हैं, भारत के हरएक प्राणी॥
वे धन्य हो गए हैं तेरा प्यार जो पा रहा है
तू विश्व गुरु बनेगा—————
संहार कर दिया था, दुष्टों का एक पल में।
है अजेय शक्ति सबमें, एकत्र किए हुए दल में॥
वानर भालू का वह दल हमको बता रहा है
तू विश्व गुरु बनेगा—————
पावन पुनीत धरा पाकर, हैं धन्य हो गए हम।
भारत हमारी मांँ है कह प्रफुल्लित हो गए हम॥
तेरे लिए जिएंँगे, कण-कण सिखा रहा है
तू विश्व गुरु बनेगा—————
थे महान वीर योद्धा, वह अपना राव केशव।
मधुकर ने ले लिया था, जो दे गए थे माधव॥
है संघ विश्व पौधा, जिसे “उदार” सुना रहा है
तू विश्व गुरु बनेगा—————
माँ शारदे को नमन
मैया दो ऐसा वरदान,
बढ़ा़यें तेरा जग में मान।
सप्त-स्वरों की देने वाली,
तू ही है जग की कल्याणी।
तेरा करते सब सम्मान,
बढ़ा़यें तेरा————
पुस्तक, वीणा, माला, स्फाटिक धारे,
मूढ़मति कालिदास तूने उबारे।
दे गयी ऐसा दुर्लभ ज्ञान
बढ़ा़यें तेरा————
पड़ी जब देवों पर आपत्ति,
दी तब तूने उनको शक्ति।
पाया सबने जीवन-दान,
बढ़ा़यें तेरा————
मैया कर दिल अपना “उदार”
दे-दो ज्ञान का तुम उपहार।
ज्ञानी होता अधिक धनवान
बढ़ाये तेरा———
तरूओं का आग्रह
मत काटो मुझको एँ भाई, मुझ पर दया करके छोड़ दो।
मैं भी तो एक सजीव प्राणी हूँ, तुम हत्या करनी छोड़ दो॥
मत काटो—————
मैंने जब से जन्म लिया, नरहित में जीना सीखा है।
मानव हमारा मित्र रहा, बस यही जीवन में सीखा है॥
जो दूसरों के काम ना आए, तो सारा जीवन फीका है।
नर से जो नारायण बना वह, सेवा करना सीखा है॥
जो तकियानुसी बंधन है, तुम उन बंधनों को तोड़ दो,
मैं भी तो—————
हम जब से मिले मानव को, उनको अपना बना लिया।
स्वयं जले अग्नि में रवि की, औ’ मानव को बचा लिया॥
फल संजोकर रखने सीखें और मानव को खिला दिया।
कितना उपकार किया उनपर, उसने सबकुछ भुला दिया॥
मानव और तरुओं का नाता अंतरात्मा से जोड़-जोड़ दो
मै भी तो—————
है मानव का धर्म नहीं, जो गला काटे जीवधारी का।
जीवधारी ही साथ ले चलता, बुग्गी, तांगा जीवधारी का॥
सदियों से गला काटा है और हमने मुंह नहीं खोला है।
एक दूसरे के रक्षक बने, तो भला होगा जीवधारी का॥
हमने तुमसे जोड़ा नाता, तुम दग़ा करनी छोड़ दो,
मैं भी तो—————
इसी गति से हथियार चला तो, भूमि बंजर बन जाएगी।
ग्रीष्म ऋतु में शीत पवन, अग्नि के शोले बरसाएगी॥
भूखे प्यासे जीव जन्तु भी, तुम पर ही दोष लगाएंगे।
प्यास बुझाने जल की धारा, हाथ नहीं फिर आएगी॥
प्रेम की हम पर बायार बहाओ औ’ शत्रुता करनी छोड़ दो,
मैं भी तो—————
धरती उगलेगी सोना तो, रंक राजा हो जाएगा।
घर में बैठकर मनपसंद, खाना मानव ही खायेगा॥
कल कल कर जल की धारा, गिरि से बहती आएगी।
गर कहना नहीं माना मानव, तो रक्त के अश्रु बहाएगा॥
“उदार” भावना का मुख तुम, हमारी ओर को मोड़ दो,
मैं भी तो—————
आओ मिलकर पेड़ लगाऐं
पेड़ लगाएँ, पेड़ लगाएँ।
आओ मिलकर पेड़ लगाएँ॥
पेड़ लगाएँ————
वायु प्रदूषण के कारण,
शुद्ध वायु मिले इस कारण।
जीवन बचाएँ पेड़ लगाएँ
आओ मिलकर——-
जब हरियाली धरती में होगी,
सुख शांति जगती में होगी।
बञ्जर भूमि न हम पाएँ
आओ मिलकर———
पौधारोपण है इसका हल,
ये देंगे हमको मीठे फल।
ताजे तोड़कर फल हम खाएँ
आओ मिलकर———
जब बादल होंगे अंबर में,
बिजली चमकेगी अंबर में।
हरे पेड़ न कभी कटवाएँ
आओ मिलकर———-
भारत माता हमें बुलाती,
अपना कृन्दन हमें सुनाती।
हम हम तरुओं को न छपवाएँ
आओ मिलकर———-
धरती कहती हमें पुकार,
पेड़ लगाओ बनो “उदार” ।
जन-जन को हम आज जगाएँ
आओ मिलकर———-
माँ शारदे
मांँ शारदे। माँ शारदे॥
हमें तार दे।
माँ शारदे।
ज्ञान का ऐसा हमको वर दो।
तम मेरे हृदय का हर लो॥
ऐसा तू प्यार दे।
हमे तार दे।
मांँ शारदे।
मांँ शारदे॥
हाथ की वीणा बजा दो।
ज्ञान गंगा फिर बहा दो॥
ऐसा कुछ व्यवहार दे
हमें तार दे
मांँ शारदे
मांँ शारदे
जिस घर में तुम रहती हो।
छण में दु: ख तुम हरती हो।
“उदार” को यही उपहार दे।
हमें तार दे।
माँ शारदे।
माँ शारदे।
उपदेश
कच्ची धूप का यह संदेश।
सबके लिए है उपदेश॥
आगे बढ़ो और बढ़ाओ ज्ञान।
मिलेगा सबको फिर सम्मान॥
फूल उगेंगे जब उपवन में।
सुविचार उपजेगेगे मन में॥
वृक्ष लगाओ अवश्य एक।
रखो फिर उसकी देख रेख॥
प्रदूषण मुक्त यह जग को करती।
दुख संताप है सब का हर के है॥
जिसने यह गूढ़ रहस्य जाना।
और तारुओं का कहना माना॥
वही सदा अच्छे कहलाते।
नहीं जाते वे कभी भुलाए॥
“उदार” बनो और लगाओ पेड़।
मत करना कभी इनसे छेड़॥
माँ से विनती
माँ तेरे चरणों में, मैं शीश अपना झुकाऊँ।
करूँ पूजा तेरी, तुझे सदा ही मनाऊँ॥
माँ तेरे चरणों में—————
बहुत सोचा मैंने, है नहीं कोई मेरा।
निशा में हूँ भटका, ना होता सवेरा॥
अज्ञानता के दलदल को मैं कैसे मिटाऊँ
करूँ पूजा तेरी—————-
तुम ही मेरी माँ हो, हो तुम ही मेरी देवी।
धरूँ ध्यान तेरा, हो तू ही ज्ञान देवी॥
अपनी आत्मकथा मैं, क्या तुमको बताऊँ
करूँ पूजा तेरी—————
भटक मैं रहा हूँ, इस मोह के भँवर में।
नहीं प्रीत मेरी, इस माया के भँवर में॥
इस भँवर से निकालो, पुष्प तुझपे चढा़ऊँ
करूँ पूजा तेरी—————
“उदार” करके हृदय, माँ मुझको उबारो।
भविष्य आज मेरा, माँ लो तुम्हीं सँवारो॥
निज मन की व्यथा और किसको सुनाऊँ
करूँ पूजा तेरी—————
माँ तेरे चरणों में, शीश अपना झुकाऊँ।
करूँ पूजा तेरी, तुझे सदा ही मनाऊँ॥
माँ तेरे चरणों में————-
श्रद्धा सुमन माँ शारदे को नमन
मैया दो ऐसा वरदान,
बढ़ा़यें तेरा जग में मान।
सप्त-स्वरों की देने वाली,
तू ही है जग की कल्याणी।
तेरा करते सब सम्मान,
बढ़ा़यें तेरा————
पुस्तक, वीणा, माला, स्फाटिक धारे,
मूढ़मति कालिदास तूने उबारे।
दे गयी ऐसा दुर्लभ ज्ञान
बढ़ा़यें तेरा————
पड़ी जब देवों पर आपत्ति,
दी तब तूने उनको शक्ति।
पाया सबने जीवन-दान,
बढ़ा़यें तेरा————
मैया कर दिल अपना “उदार”
दे-दो ज्ञान का तुम उपहार।
ज्ञानी होता अधिक धनवान
बढ़ाये तेरा———
छोटा मेंढक
नदी किनारे एक छोटा मेंढक
टर-टर-टर-टर्राता था।
पानी में कहीं डूब ना जाऊंँ,
इस बात से घबराता था॥
बहुत लगाया ज़ोर मगर,
न पार दूसरी जा पाया।
तभी आया एक मोटा मेंढक,
तब उसने उसको बतलाया॥
जोर नहीं उत्साह बढ़ाओ,
तभी पार हो पाओगे।
हार गए यदि हिम्मत अपनी,
फिर सफल नहीं हो पाओगे॥
कर हिम्मत छलांग लगाई,
और पानी में तैर गया।
धीरे-धीरे तैरता मेंढक,
उस नदी के पार गया॥
इस प्रकार जो साहस करता,
बस वही सफलता पाता है।
“उदार” कभी जो हारा हिम्मत,
हाँ! वही पीछे रह जाता है॥
बिटिया की पाती
थी तेरे आँगन की फुलवारी,
खिलि तेरे उपवन में हर-पल।
सींचा सदा तेरी ममता ने,
प्यार मिला है मुझको हर पल॥
जो भी माँगा दिया सदा ही,
नहीं लगाई तनिक भी देरी।
पंखा झलती मिली मुझे तुम,
आँख खुली हों जब भी मेरी॥
लोरी गाकर सुलाया तूने,
अर्धरात्रि हो या भरी दुपहरी।
बाल कथा या बाल गीत की,
आती स्वप्न में परी-सुनहरी॥
कितना और करूँ मैं वर्णन,
जो भी पाया, लिख दिया मैंने।
अखंड, प्रचंड, चण्डी-सम तुम हो,
साक्षात ममता की मूर्ति पाया मैंने॥
चली आई तेरे आँगन से अब,
जो कुछ सीखा विस्तार करूँगी।
अच्छी शिक्षाओं का निज घर में,
कैसा रंगोली-सा रंग भरूँगी॥
“उदार” हृदय वाली हे मैया,
मुझको ऐसा वर ओर देना।
पति रूप में पाया जो वर,
पुत्रवत् स्नेह उसको देना॥
शारदे माँ की वन्दना
झनन-झनन झनकारे तेरी,
वीणा के मृदु ता ऽ-ऽ र।
नर-किन्नर करते तेरी सब,
जय जय-जय जय ऽ का ऽ-ऽ र॥
झनन-झनन झनकारे——-
ज्ञान का दीप जला दो ऐसे,
नव पल्लव पुष्पित हो जैसे।
ज्योति आलौकित कर दो ऐसे,
चन्द्र किरण-सी होती जैसे॥
कोकिल कुहूके भँवरा गूँजे
मधुर मधुर गुंजा ऽ-ऽ र
झनन झनन झनकारे——-
श्वेत पद्म हैं श्वेत हंस है,
श्वेत तेरा परिधान बना है।
सप्त स्वरों से बनी है सरगम
सुर लय से यह राग बना है॥
जन्म दिवस हर वर्ष करे हैं
ऋतुराज बसन्त बहा ऽ-ऽ र
झनन झनन झनकार——-
तू ही दुर्गा लक्ष्मी तू ही,
तू ही है अम्बिके भवानी
आर्त हरण हो माता तूम हीं,
तुम ही हो जग की कल्याणी
हाथ कृपा का रख दो सिर पर
करके हृदय “उदाऽऽर”
झनन झनन झनकारज तेरी
वीणा के मृदु ताऽऽर
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