चन्दन (sandalwood) हो गया हूँ
चन्दन (sandalwood) हो गया हूँ : किशोर काबरा
समीक्षक : डॉ गुलाब चन्द पटेल
चंदन (sandalwood) हो गया हूँ गजल संग्रह का यह द्वितीय संस्कारण 2018 मे पब्लिश हुआ हे ,किन्तु ये बहुत अद्वितीय हे। हिन्दी मे काव्य का दूसरा स्वरूप गजल सभी को पसंद होता हे। हिन्दी मे गजल की परंपरा बहुत ही पुरानी हे। यह अमीर खुसरो की गोद मे पाली ,भारतेन्दु बाबू हरिच्चंद्र के आँगन मे खेली,प्रसाद निराला की छ्कया मे बड़ी हुई ,और दुष्यंत कुमार के दरवाजे तक पाहुचकर आदमक़द खड़ी हो गई ,किन्तु वहासे किशोर काबरा जी की कलाम तक पाहुच हे गई हे। गजल किशोर काबरा जी के केंद्र मे।
‘घीस गया इतना की चन्दन हो गया हु
सुक गया इतना की वंदन हो गया हु‘
कवि गजल लिखते लिखते घीस गए हे,और चन्दन बन गए हे। पाठको के हाथ लाग्ने से उनकी गजले स्पर्श होते ही पारस बन गई हे। और आगे कवि बताते हे की, आप का पारस स्पर्श होते ही कुन्दन बन गई हे। कवि के बल काले थे,तब की भी गजले हे, और अब की भी गजले हे। कवि के बल सफ़ेद झक हो गए हे। कवि की इन साठ गजलों मे पूरी षष्टि पूर्ति हे।गजल ज्वाला मुखी की आँख से टपके आँसू ओका अवतार माना जाता हे। गजले सूरज मुखी की पंख से लिपटे पराग –कणो का छंदावतार हे। गजल ज़िंदगी का आईना होता हे।
‘जन्म से लेकर मरण तक दौड़ता हे आदमी
दौड़ते दौड़ते ही दम तोड़ता हे आदमी‘
आज जहा देखो वही ,जिसे देखो उसे ,वह आदमी भागता दौड़ता ही नजर आता हे। और दौड़ते दौड़ते ही दम दम तोड़ता हे। इंसान को एक रोटी,दो लंगोट,तीन गज कच्ची जमीन ये तीन चीजो की ज़िंदगी मे जरूरत होती हे। एसी उम्दा सोच इस आदमी गजल मे देखने को मिलती हे।
“सात सागर पर करना सह्य हे मेरे लिए,
पर डुबोती हे तुम्हारी आँख की गहराइया”
अपनी प्रेमिका की आँख मे दुबे हुए इंसान को सात सागर पर करना सहज लगता हे,लेकिन प्रेमिका की आँख की गहराई से बाहर निकालना उसे कठिन लगता हे।
‘जंगल सब शहर हो गए,
और शहर जहर हो गए।‘
कवि इस गजल मे बताते हे की,आजकल शहरो का विकाश हुआ हे। जंगल को काटकर शहर को आगे बढ़ाया जा रहा हे। विकाश के नाम पर हजारो पेड़ कट रहे हे। पर्यावरण को नुकसान होने से शहर जहर बन गए हे। शहर की हवा प्रदूषण से जहरीली बन गई हे।
‘जो अभागे काम करते ही नहीं ,वो
भाग्य को दिन रात कोसे जा रहे हे’
गजल के माध्यम से कवि काबरा जी कहते हे की अभागे इंसान मेहनत याने की कुछ काम करते नहीं हे और अपने भाग्य को दिन रात कोसे जा रहते हे।
“सिप के मोती सभी प्यासे पड़े हे,और क्यारियों मे शंख पोसे जा रहे हे,”
कवि ने यहा व्यंग किया हे, एक ओर बच्चे रोटिया बिना तरस रहे हे और कुछ धनिक समोशे की महफिल उड़ा रहे हे।
“संसद की कुर्सी पर बैठे कुत्तो के मानिंद लड़ेंगे ,
कुरुक्षेत्र मे शंख बजा तो घर के कोने हुए आदमी”
संसद मे बैठे नेता कुत्तो की तरह आपस मे लड़ रहे हे लेकिन जब देश की रक्षा की बात आती हे,तो नेता गहर के कोने मे छिपकर बैठ जाते हे। आगे नहीं आते हे। आज आदमी मुफ्त का माल ढूंढ रहा हे,बेटे के पालन पोषण मे अपना सब कुछ लूटा देंगे,लेकिन जब बिटिया की बात आती हे तो आदमी सोचता हे,आदमी स्वार्थी हो गया हे। आज के इंसान की व्याख्या चाँदी सोने हुए आदमी,गजल मे कवि ने दी हे।
‘बड़ी देर की ,पर बड़ा राज पाया,
जिसे अपना समझा ,वह निकला पराया’
कवि इस पंक्ति के माध्यम से अपनी गजल मे बताते हे की, जिस पर भरोसा किया था,अपना समझा था, वह पराया निकला । दुश्मन की जिम्मेवारी दोस्त ने निभाई हे,दोस्त ही दुश्मन बन गया हे। कवि ने जिस ,जिन पर भरोसा किया था वे सभी पराए निकले। बेटा,नौकर ,चेला,सभी अपने रिसते मे पराए जेसी भूमिका अदा करने मे लगे हे।
कवि ने पिरा के लिए बताया हे की,प्यार करके छीपाना बुरी बात हे। प्यार किया हे तो निभाना पड़ता हे। यदि रेत पर मकान बनाए हे तो उसे ढहाना भी बुरी बात हे। कवि अपनी गजल ‘ बुरी बात हे ‘ मे बताते हे की, किसी की भी मौत पर हसना बुरी बात हे।
‘पाँव लटकाए हुए हे,काबरा मे कबसे मगर,
जन्म दिन पर ले रहे हे भेट और बधाइया’
आज इंसान मरने पड़ा हो,दवाइया खाकर जी रहा हो,एसे इंसान जन्मदिन पर भेट और बधाइया के इंतजार मे बैठा होता हे। कवि ने उम्र वाली व्यक्ति पर व्यंग किया हे। लोगो को आजकल युवा दिखना बहुत पसंद हे। अपने बाल काले करके युवा दिखने की कोशिश करता हे।
‘हर चिड़ी का चहकना जरूरी नहीं,
हर काली का महकना जरूरी नहीं’
‘जरूरी नहीं’ गजल मे कवि बताते हे की, हर चिड़िया को चहकना जरूरी नहीं हे,हर काली महके वो भी जरूरी नहीं हे, गम भूलने के लिए चाहे पीना पड़े किन्तु पीकर बहकना जरूरी नहीं हे।मौन भाषा समजे तो आवाज की कोई जरूरत नहीं हे । आँख से चाहे आँख बह रही हो लेकिन आह भरकर सिसकना जरूरी नहीं हे।
‘रात विधवा की बनी हे चीख जेसे ‘गजल मे कवि बताते हे की गजल मे कवि बताते हे की ,आज इंसान का आचरण बादल गया हे, लोग इंसान को चूस रहे हे। इंसान की ज़िंदगी विधवा रात जेसी बन गई हे। मतलब विधवा जेसी ज़िंदगी बन गई हे। इंसान की ज़िंदगी महगी बन गई हे।
‘बबुल हुई बाते ‘गजलमे कवि लिखते हे की,जब तक मतलब था तब तक दोस्ती गहरी थी लेकिन मतलब पूरा होने के बाद अब दोस्ती फिजूल लगती हे,बाते बाबुल जेसी लग रही हे। कवि कहते हे की,आज ईएसए कौन व्यक्ति हे जो सुख दुख का खेल खेलता न हो ?
हे कौन जो सुख दुख के खेल खेलता न हो ?
साँसे का भर आँसू ओ पे झेलता न हो ?
याने की जीवन मे सुख दुख का आवन जावन न हो। साँसो का भार याने की मुसकेलिया सहता न हो,एसा कोई व्यक्ति इस दुनिया मे नहीं हे।
“इस तरफ तुम छिपी माय के अंदर उस तरफ
तुम मे माय का समंदर ,माय पिये या तुझे देखे
सकी ,रिंद सारे घबराए हुए हे”
कवि श्रुंगार रस वाली गजले भी लिखना नहीं भूले हे। महफिल गजल मे कवि बताते हे की तुम मय के अंदर छिपी हे,तुझ मे मय का समंदर हे। मय पिये या तुझे देखे ? मेरा दिल घबराया हुआ हे, प्रिये।
“ सच्चे को कोड़े लगवाती दुनिया
झुठठे को पुजवाती दुनिया”
कवि ने दुनिया पर व्यंग किया हे। आज की दुनिया जूठे लोगो को पूजन करती हे,और सच्चे लोगो को मर खिलाती हे।
“ सुनो गुलाब को बबुल कर दिया मैंने
सफ़ेद जूथ को उसूल कर दिया मैंने”
कवि का यह व्यंग तो देखो,गुलाब के फूल को बाबुल बना देते हे ,सफ़ेद जूथ याने की बिलकुल जूठ बोलने का उसूल याने की जूठ बोलने का नियम ही बना दिया हे यह दुनिया ने।
“कुछ दिखा दे झलक मेरे यार तू ,हमे
द्वार पर कबसे खड़े दीदार के लिए”
मित्रा के लिए कवि ने व्यंग किया हे,अरे यार, तुमसे मिलने कबसे खड़े हे ,आपकी चोखट पर ,आप के दीदार के लिए लेकिन तुम दिख ही नहीं रहे हे।
“ धारा को गंध,जल को रस, हवा को स्पर्श ,देकर अब,
गगन को ,धूप को महका रहे हे नीम के पत्ते”
नीम के पत्ते क्या काम आते हे , उसका सुंदर वर्णन कवि ने ‘ नीम के पते ‘ गजल मे किया गया हे। नीम के पते हवा को शुध्ध कर रहे हे,उसके रस से शरीर मे स्फूर्ति आती हे, उसकी महक से वातावरण महक उठता हे, उसके धूप से जीव जन्तु का भी नाश होता हे। कवि यहा रोमांस मे आ गए हे,’ भूल गया ‘गजल मे कवि लिखते हे,
‘ कली के गाल पर यह तिल कहा से उग आया ?
बड़ा मगरूर हे भँवरा की उड़ना भूल गया ।
कली के गाल पर तिल देखकर भँवरा उड़ना भी भूल जाता हे ,क्यो की कली के गाल पर तिल से कली बहुत सुंदर दिखती हे,इस लिए भँवरा उसे छोड़कर जाना नहीं चाहता हे ।
“ अंधेरी रात मे चमकी शमा दरिंदे सी ,
परिंदा शाख से नीचे उतरना भूल गया”
रात मे शमा एसी दरिंदे जेसी चमकने लगी की यह देखकर परिंदा वृक्ष की डाली से नीचे उतरना भी भूल जाता हे। वो शमा को देखकर दर जाता हे, कई, ‘ अब तुम कहा चले ‘ गजल मे कहते हे की हे प्रिये,
“ तुमने किया था कॉल ,हम बैठेंगे उम्र भर ,
पहला ही दांव हर कर अब तुम कहा चली ?”
आप ने उम्र भर साथ निभाने का कॉल किया था, फिर भी तुम हमे छोडकर कहा चली ? हम तो आप के इंतजार मे बैठे हे। हम दर्पण लेकर द्वार पर आप के खड़े हे हम ,आप का कब से इंतजार कर रहे हे हम ,तुम आँचल संवार कर ,कहा चले गए ? हमारे दिल मे आप के प्यार का आंखो मे काजल का आँजन किया हे ,हमे स्वप्न दिखाकर हे प्रीतम हमे आन्शू बहाने छोड़कर तुम कहा चले गए ? प्रेम का ईझर करती यह गजल युवाओको बहुत ही पसंद आएगी।कवि यहा युवा बन गए हे।
“ कलाम को तलवार करना सीखिये
शब्द से संहार करना सीखिये”
कलम इतना तेज चलाये की आप के शब्दो से ही दुश्मन का संहार हो जाए ,कलम को तलवार बनाना सीखिये ।“ रह गए “ गजल मे कवि बताते हे की
“ इस अदा से ‘ आवजों ; तुमने कहा ,
सीढ़ियो से हम उतरते रह गए “
आप की अदा से हम घायल हो गए हे, आप ने ‘ आवजों ‘ इस अदा मे कहा की हम सीढ़िया उतरना भी भूल गए । कवि श्रुंगार रस मे डूब गए हे। आगे ; सरगम ‘ गजल मे लिखते हे की,
“ गीत को भरकर गजल मे पी गया हु ,इस तरह ,
होठो से निकली हुई हर बात सरगम हो गई”
कवि गीत को पी जाते हे,लेकिन वो गजल बनकर बाहर आती हे, कवि के होठो से निकली हुई हर बात ‘ सरगम ‘ याने की मीठे स्वर बन जाते हे। कवि ‘ सरगम ‘ बन गए हे।
जिगर मे प्यार की बरछी तुम्ही ने बोई हे,
अंधेरी रात मे क्यो चाँदनी पिरोई हे ?
मेरे दिल मे प्यार की बरछी याने की तीर तुमने चलाया हे, अंधेरी रात मे तुमने चाँदनी बनकर मेरा दिल जीत लिया हे। कवि आगे बताते हे की,ये चंद के मुंह पर पसीना केसे आया हे ? कोई ऊछाल कर समंदर के बीच याने की प्यार के समंदर के बीच उन्हे उछाला गया हे। प्यार के समंदर की लहरों ने उनके मुंह पर पनि की धारा बहाई हे,। इतनी उम्र मे कवि एसी प्यार भरी कल्पना केसे कर रहे हे ,और नव युवा गजलकर जेसे गजल लिखता हो एसी गजले लिख रहे हे।
यहा मे एक मेरा उदाहरण देना चाहता हु। हमे एक चैनल वाले ने काव्योत्सव मे कविता पढ़ने के लिए बुलाया था। वह मैंने अपनी रचना जो ‘ इस तरह थी,”हे प्रिये एसा भी हो तेरे प्यार के उपवन मे गुलाब काही खो जाए एसा भी हो ,तेरे प्यार भरे एसएमएस काही डिलीट हो जाए एसा भी हो,”इस तरह की पंक्तिया थी तो एनाउंसर ने मौजे कहा की इस उम्र मे एसी रचना क्यो प्रस्तुत करते हो ? ओर कोई रचना पढे होते तो अच्छा लगता ।किसको समजे उस एनाउंसर को अच्छा लगता । मे भी जन पहचान की वजह से शर्मिंदा हो गया। कभी कभी एसे प्रसंग भी बनते हे।‘ याद ‘गजल मे कवि लिखते हे की,
“ हमारी याद इधर भार-भार ढोती थी
तुम्हारी याद उधर डार-डार सोती थी”
हमे तुम्हारी इतनी याद आती थी की ,हमारी आंखो के अश्रु से तुम्हारी याद भीग जाती थी। अश्रु से तुम्हारी याद को हमारी आंखे बार बार ढों रही थी। कवि आँख के माध्यम से बताते हे की,
याद आंखे आ रही हे,क्या करे ?
बेवफा तरसा रही हे क्या करे ?
सनम बेवफा हो गई हे,ये आंखे उसे देखने को तरस रही हे ,बेवफा प्यार का पूरा समंदर पी गई हे लेकिन अब अश्क को बहा रही हे क्या करे ? ‘ देश ‘ गजल मे व्यंग करते हुए कवि लिखते हे की,
“ देश की अच्छी हिफाजत कर रहे हो ,
खेत विधवा का समझकर चर रहे हो “
ये देश की हिफाजत के नाम पर उस विधवा याने की कोई देखने वाला नहीं हे समजकर देश को लुंत रहे हो,यहा नेता पर कवि ने व्यंग किया हे। कल हाथ जोड़कर वोट मांगते फिरते थे और आज अपना घर भार रहे हो। लोगो को झोपड़ी मे खुश मानकर आप महलो मे बस कर एश रहे हो /जिस दिन इस यह देश जागेगा न उस दिन कुत्ते की मौत मरेंगे । कवि बहुत रोमांशकारी भी बनरहे हे,देखिये ये ‘ तिल ‘नामक गजल मे,
“ फिसल गए हे,अश्क इन गुलाबी गालो पर ,
सभी हेरन हे ,तिल ने कहा मुकाम किया”
आप के गुलाबी गालो पर अश्क फिसल रहे हे,ये तिल ने आपके गालो पर मुकाम किया हे,तो सभी लोग परेशान हे,की तुम जिस जगह मिली हे वह हमारा होना था। आपकी सुंदरता देखकर लोग ओर छलकते हुए जाम तरह आपके होठो को देखकर सब सलाम करते हे। कवि कहते हे की, हमे काही छांव न मिली तो आप की छांव मे आकर हमने तनिक विश्राम किया हे।
उनकी गजलों के बारे मे लिखते लिखते पूरा उपन्यास बन जाए एसी उनकी गजले हे। अंधेरी रात मे टूटे हुए दर्पण मे चाँदनी को देखकर कवि को अपनी प्रियतमा याद आती हे। ये चमन के फूल जबसे रहे हे तो ये चमन का क्या हल हुआ होगा ? मतलब सजनी आप रूठ गई तो हमारा क्या हल हुआ हे, सजनी आज जरा घूँघट उठाकर देख लो । आप लोगो की दष्टि होली की आग की तरह हो गई हे।
प्रिये आँख मे ही हमे मोती मिल जाए तो ये शंख की क्या जरूरत हे। आगे कवि लिखते हे, आप को दिल दे चुके हे सनम,दिल मे तूफान मचल रहा हे प्रिये, तुम मेरी कश्ती को समाल कर आप के दिल के सहारे किनारे तक पहुचा देना । कवि व्यंग करते हुए लिखते हे की, आज संसद मे सभी होरी खेल रहे हे, ये संसद ने कागज पर बीज बोये हे बाग के लिए, फिर ये बंजर खेत मे हरियाली केसे आएगी ?
याद रहने भी दे उन पुराने हिसाब,
कुछ तुम्हारे रहे ,कुछ हमारे रहे।
हे प्रभु बीजलियों के बादल हम आंखो से देखते रहे हे,किन्तु मांझी ये मुसाफिर तो यहा किनारे रह गया हे, और आप नव लेकर चले गए।
“जरा सी बात थी ,तुम किन्तु तिल का ताड़ कर बड़े ,
नदी के बीच रातो रात एक पहाड़ कर बैठे”
तुम हमारी चौखट पर नाक घिसट रहे थे,और अब कंटीली वाड बनाकर तिलका ताड़ बनाकर अपने बीच आपने रातो रात एक पहाड़ खड़ा कर बैठे हे ? कवि को तिल ज्यादा पसंद हे,उनकी प्यार भरी ,श्रुंगार वाली रचना ओमे तिल का वर्णन आता ही हे।
‘ काजल मे नहीं और नहीं तिल मे हे शराब ,
आशिक़ी की पसलियो मे छिपे दिल मे हे शराब ‘
प्रिये आप की आंखो के काजल मे नहीं किन्तु आप के तिल मे और आप के दिल मे शराब छिपा हुआ हे,याने की शराब जेसा नशा आपके प्यार मे छिपा हुआ हे। “ए खुदा “गजल मे कवि खुदा से विनती करते हे की,ये खुदा ,
मौतके पहले तू आता हे खुदा,
लौरिया गाकर सुलाना ए खुदा,
आग मे मुझको जलाना तू भले,
अगर कांटो पर चलाना हे मुझे,
पाँव मे मेहदी लगाना ए खुदा,
दाग मुझ पर मत लगाना ए खुदा ,
बांध दे अर्थी हमारे लोग जब ,
काँध दे मुझको उठाना ए खुदा ,
गर’ जरूरत आ पड़े मेरी यहा ,
तो मुझे फिर से बुलाना ए खुदा !
कवि ने यह गजल के माध्यम से सब कुछ खुदा से मांग लिया। मदिरालय बंद हो गए तो ,मदिरापन भी बंद हो गया ,ये अब शराब पिलाने वाली प्रियतमा भी नहिहे, इस लिए सभी जहर ढूंढते हे,
न हे यहा मयकदे अब, न हे मयकशी भी,
ये सकी सभी अब जहर ढूंढते हे,
लोगो ने बमो से शहर के जहन्नुम बनाया हे,
फिर भी शहर ढूंढते हे,
फागुन माह का वर्णन कवि ने “ फागुन “ गजल मे बहुत हिसुंदर रीति से किया हे। फागुन मे प्रेम पत्र की तरह वृक्ष के पते झर झर के गिर जाते हे। लू मे भी ये नंगे पेरो से पत्तों को घर घर पाहुचते हे। सूरज की किरणों के निकाल ते ही मृग बाग से काँप रहे हे। कोई शिशु घुटनो के बल पर अपनी माँ की गोदी से जेसे सरककर नीचे चोरी छुपी से सरक जाते हे वेसे ही वृक्ष के पत्ते गिर जाते हे। रंगीन फूल गुलाब फागुन मे खिल रहे हे।
“ गोदी मे जेसे उतर उतर कर चुपके चुपके शिशु जेसे ,
घुटनो के बल सरक रहे हे ,सर सर पत्ते फागुन मे,’
कवि “ उतर गए “ गजल मे आज के बेटो पर व्यंग किया हे।
“जवान होते ही जिनके भरण मे और पोषण मे ,
वही बेटे बुढ़ापे मे बगावत पर उतर आए”
जिन बेटो के पालन पोषण मे पूरा ज़िंदगी होम दिया ,वही बेटे बुढ़ापे मे बाप के सामने बगावत पर उतर आते हे। उनकी देखभाल से दूर भागते हे।
कवि आगे की गजल मे बताते हे की,तैरना या डुबना,मरना या मारना ,राम या रावण बनना,शीट या सावन बनना ,कष्ट देना या कष्ट सहना,सध्या या साधन बने, दुश्मन या मित्र बने,कर्म या कारण बने,यह सभी अपने हाथ मे हे। आदमी पर व्यंग आज के समय काल के अनुरूप गजल मे किया हे।
खून पीता हे,जो पीता था,कभी आके हयात,
देखता था ,अब दरिंदा हो गया हे आदमी।
आज इंसान-इंसान का खून पी रहा हे,जो देवता था वो आज दरिंदा बन गया हे। राज नैतिक चालबाजी से भ्रष्टाचार की गण्दकी मे आदमी आज गंदा बन गया हे। कवि ज़िंदगी के लिए गजल मे कहते हे,
“ ज़िंदगी का क्या ठिकाना हे यहा ?
मौत का मीठा बहाना हे यहा”
आज के युग मे ज़िंदगी का कोई ठिकाना नहीं हे,कब मौत आ जाए, मौत एक बहाना हे, देह मर जाता हे,रूह याने की आत्मा नहीं मार्टी हे, ज़िंदगी की हर सांस एक अन बूज़ा तराना हे ,मुट्ठी बंद हम आए थे ,मुट्ठी पसारे हाथ यहा से जाना हे।
“ कुरसिया की क्यारियों मे कमल खिलता जा रहा हे,
क्यो की दिल के किनारे दल सता दल दल हुए हे,”
आज सभी दल कुरसियों की क्यारी ओमे राजकीय कीचड़ मे फस गए हे,और कमाल याने की कमाल के निशान वाला पक्ष खिलता जा रहा हे,प्रगति कर रहा हे,गरीबो की दशा देखकर मंच पर नेता मगर के अश्रु बहा रहे हे। गाँव सब मरुथल हुए हे, और शहरो का विकाश हो रहा हे।
कवि बताते हे की हमे पता चल गया हे की,हमे कौन चाहता हे ? हमारे मौत की अफवाह आई तो सभी आकार हमारी चादर तान ने लगे हे, सब मौत की अफवाह को सच मान गए हे।
हुजूर चाहते कितने ,ये अब हम जन गए ,
जरा से द्वार पर आए की चादर तान गए
चिड़िया के लिए बहुत ही सुंदर गजल कवि ने प्रस्तुत की हे।
“ तीनको जेसी कोमल किरणों से
सूरज बुनकर लता हे, तू चिड़िया हे”
खिड़की पर दरवाजे पर,गाना-गाना ,दाना खाने चिड़िया घर के भीतर भी जाती थी ,कभी धूल मे ,कभी पानी मे ,तू नहाती हे चिड़िया,,आंखो काजल और हाथो मे मेहदी लगाई हो ,एसी सोलह रूप से सजी हुई लगती हे चिड़िया,तू सयानी बिटिया जेसी हे,दो पल मे तू हमारा देश छोड़ देती हे, भूली बिसरि यादों के नगमे तेरी याद मे याद आते हे,तुम हमे बहुत तड़ पाती हे,चिड़िया ।
‘ क्या क्या कम आती हे
गोरी चाहे कली तीली,माचिस की,
होली और दिवाली,तीली माचिस की’
बर्फीले मौसम मे चाय की प्याली तीली याने की माचिस से ही बनती हे।
“ वाईटर्नी मे डूब गए हे कितने ज्ञानी ,कितने ध्यानी,
किन्तु अजामिल गणिका जेसे पापी पर उतरते देखे”
असंख्य लोगो को कवि ने रंग बदलते हुए ढेखा हे, नदियो मे नव डगमगाती देखि लेकिन वे किनारे पहुँच गए हे। एक गंदी मछली पूरे तालाब को बिगड़ती हे,हंस के रूप मे बगुले ध्यानी बन गए हे। आज बूढ़ेबच्चोकी तरह मचल रहे हे। अच्छे ज्ञानी ओ की बरबादी हो रही हे। ,किन्तु अजामिल और गणिका जेसे पापी संसार को पार कर गए हे।
कवि अंत मे शर्बती आंखो से मिला तो महफिल मे बेजूबा बन गए जंवा हो गए हे ,वे समजते थे की,वे अकेले ही आशिक हे,लेकिन यहा तो पूरा कार्वा आशिको को था। कवि बहुत रोमांस कारी बन गए हे। कवि ने व्यंग किया हे ,यहा देखे यह पंकन्तीया ।
“ जो पाँच साल के लिए संसद मे आ गए ,
लटके हुए वे झाड औ ‘फानूस की तरह
ईमानदारी कुन मे आएगी कहा से ?
बच्चो को दूध दे रही माँ की तरह”
आज जो नेता संसद मे जाते हे,वे एक पेड़ मे लटके हुए फनस की तरह लटक जाते हे। कवि दूसरा व्यंग करते हे,की जिस माँ अपने बच्चो को दूध घुस की तरह पिलाती हो तो उन बच्चो से ईमानदारी की क्या अपेक्षा रख सकती हे ?
“माटी मालव की “गजल मे माटी का सुंदर वर्णन किया गया हे। माटी कली ,कठीली,सीधी सादी,सहज-सरल,दुल्हन सी शर्मीली,चीता-भस्म,हल्दी,कुंकम,लाल,पथरीली माटी ,मादक नशीली माटी ,सुरीली,मोहक,रसीली ,हठीली,माचिस की तीली सी माटी,चंचल,छेल छबीली,माटी,राजा भोज और विक्रम जेसी शीतल माटी, कालिदास के जंगल की जेसी माटी,महाकाल के शुल की माटी,जहरीली माटी ,आदि मिट्टी के लिए विशेषण कवि ने लगाए हे। राणा प्रताप की रन भूमि हल्दी घाटी की हल्दी सी माटी का कवि ने अद्भुत वर्णन किया हे।
कवि किशोर कब्र जी को जितनी बधाई दे उतनी कम हे,एक प्रसिद्ध ,पिध गजल कार उनके जीवन का निचोड़ इस गजल संग्रह मे देखने को मिलता हे। मे समीक्षा लिखते समय कवि को कम लेकिन रचना ओ की ज्यादा समीक्षा लिखता हु,अपितु यहा कवि के लिए प्रसंशा करना उचित समजता हु।मेरी समीक्षा मे कवि लेखक केंद्र मे नहीं रहता हे।किन्तु उसकी रचनाओ को मे प्राधान्य देना सही समझता हु।
प्रेमायुक्त गजले ,सामाजिक समशयाए,राज नैतिक ,आम आदमिकी कुंठाए ,वैज्ञानिक उपलबधिया ,आज के युग की समशयाए ,इस गजल संग्रह मे देखने को मिलता हे। चन्दन सा हो गया हु,जब कवि के बल काले थे और अब की गजले भी हे। जब की कवि के बल सफ़ेद झक हो गए हे, इन साठ गजलों मे कवि की षष्टि पूर्ति हे। एनआईडी से नंदनवन और चिड़ से चंचनवन बनने की अंतरयात्रा की गजले इन गजल संग्रह मे हे। उनकी गजल मुक्तक से महा काव्य तक फैले राज मार्ग से यह पग दंडी की तरह मिलती, बिछडती, गजल की तरह झाँकती हुबकती रही हे।
उनकी गजले क्त्ये की तरह कतरा कतरा टपकती रही हे। उनकी गजले ज्वाला मुखी की आँख से टपके अश्रु ओका काव्यव्तार हे।,और सूरज मुखी की पंख से लिपटे पराग कणो का छंदावतार हे। गजल उनकी ज़िंदगी का आईना हे। गजल का अर्थ हे प्रेमयुक्त भाषा बोलना . प्रीतम या प्रियतमा के साठ वार्तालाप करना। इसमे इशके मजाज़ी और इश्क हक़ीक़ी डौनो को स्थान मिला हे। कवि को हार्दिक बधाई देते हुए उनकी स्वस्थ लंबी आयु की कामना के साथ पूर्णता की ओर ।
इस गजल संग्रह “ चन्दन सा हो गया हु “ के प्रकाशक; एवं प्राप्ति स्थान सेतु प्रकाशन-9 माधव पार्क, वस्त्राल रोड ,अहमदाबाद -382118, मो 94276 22862
संस्करण-द्वितीय 2018 पेज- 96
मूल्य : 200/ रुपए
गजल संग्रह के कवि –किशोर काबरा जी
2-नव जीवन प्रेस ,कॉलोनी ,गुजरात विध्यापीठ पीठ के पीछे,,अहमदाबाद -14 मो 93250 25511
समीक्षक : डॉ गुलाब चंद पटेल
कवि लेखक अनुवादक
नशा मुक्ति अभियान प्रणेता
ब्रेस्ट कैंसर प्रोग्राम योजक
इंडियन लायन्स गांधीनगर
भूत पूर्व ऑफिस सुपेरिटेंडेंट
जिला शिक्षाधिकारी ऑफिस अहमदाबाद
मो 88497 94377
ईमेल:gulabchandpatel15072@gmaildotcom
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