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उजड़ता गाँव एकता की मिसाल (ruined village is an example of unity)
example of unity : एक गाँव था वहाँ सभी प्रकार के लोग रहते थे। गरीब, अमीर कृषक, मजदूर, किसान सभी लोग आपस में मिल जुल कर रहते थे। एक दूसरे की मदद करते थे। लेकिन एक समय ऐसा आया कि थोड़ी-थोड़ी बात तु-तु मैं मैं में सभी एक दूसरे से इतने ख़फ़ा हो गए की वह एक दूसरे का दुश्मन बन गए। उसी गाँव में एक धनी सेठ रहने के लिए ज़मीन लेता है और घर बना कर रहने लगता है।
कुछ दिन बीत जाने के बाद धीरे-धीरे गाँव में अपनी धाक और लोगों को अपना गुलाम बनाने का प्रयास करता है। धीरे-धीरे उसने गाँव के सभी लोगों को अपने गुलाम की जंजीरों में जकड़ भी लिया। कुछ समय बीतता है कि उस धनी सेठ के बच्चों का जन्म होता है। धीरे-धीरे धनी सेठ के बच्चे बड़े होते हैं। अब धनी सेठ पैसे वाला और ऊपर से गाँव के लोगों पर राज करने वाला। चलो देखते हैं राजा के लड़कों की करतूत।
गाँव ख़ूब खुशहाल था लोग अपने-अपने काम में व्यस्त रहते। गाँव के लड़का लड़कियाँ स्कूल, कॉलेज जाती। लेकिन गाँव के लोगों में यही कमी थी कि वह एक दूसरे का साथ नहीं देते। एक समय ऐसा आया कि धनी सेठ के लड़के बड़े हो जाते हैं और गाँव में अत्याचार मचाना शुरू कर देते हैं।
जो मर्जी आए वही गाँव में करते रहते है। पूरे दिन गाँव की गलियों में मोटरसाइकिल घुमाते रहते है। किसी को मारना पीटना तो आम हो गया। सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि लोग कुछ बोलते ही नहीं एक को मारते तो दूसरा देखता रहता। ऐसा होते करते होते करते धनी सेठ के बच्चों के भाव इतने ऊंचे हो गए की वे तो गाँव की बहन बेटियों पर भी काली नज़र डालने लगे।
एक दिन ऐसा होता जब सरयू की बेटी दिशा गाँव के रास्ते से गुजरती तो उसे देखकर अनाप शनाप के शब्द बोलते हैं। ऐसा ही काफ़ी दिन तक चलता रहता है। धनी सेठ के लड़के आते और गाँव की लड़कियों को छेड़ते और चले जाते। एक दिन सरयू की बेटी दिशा अकेली जाती हुई देख धनी के लड़के उसे छेड़ते हैं। जब सरयू की बेटी दिशा घर आकर धनी के लड़कों की पूरी कहानी पिता को सुनाती है।
सरयू बड़ा दुःखी होकर धनी सेठ से इसके बारे में बताता है लेकिन धनी सेठ सरयू को डाट फटकार कर भगा देता है। सरयू गाँव के लोगों से इसके बारे में बताता है। लेकिन कोई इस लिए नहीं सुनता की ये उनके ऊपर नहीं बीती। वह तो कहते हैं कि ये तुम्हारा मामला है तुम्ही निपटान करो इसका हमारे साथ नहीं हुआ। कोई नहीं आज नहीं तो कल अगर तूफ़ान आया है तो झोके में तो सभी आएंगे।
ऐसा देख सरयू ने अपनी बेटी को बाहर भेजना बंद कर दिया। काफ़ी दिन बीत जाते है ऐसे में सरयू की लड़की बाहर न निकल देख धनी के बेटे सरयू को मारने की योजना बनाते हैं। इसी तरह एक दिन जब सरयू दूसरे गाँव जाता है। तो धनी के सेठ सरयू को रास्ते में ख़ूब मारते हैं। सरयू बेचारा किसी तरह घर आता है और गाँव वालों से मदद के लिए कहता है।
लेकिन गाँव का एक भी आदमी सरयू की मदद नहीं करता। अरे गाँव वालो अब तो मदद करो एक दूसरे की कब तक ज़ुल्म सहते रहोगे इस धनी सेठ की। हद तो तब हो जाती है जब धनी सेठ के लड़के आधी रात सरयू के घर जाकर सरयू की लड़की के साथ दरिंदो वाली हरकतें करते और उसे जान से मार डालते हैं। सुबह हुई पूरे गाँव में चारों तरफ़ हाहा कार मच गया।
पुलिस आई थाना रिपोर्ट हुआ धनी सेठ के बच्चों को पुलिस ले गई। इतनी बड़ी दुर्घटना घटने के बाद कुछ दिन तक तो गाँव में शांति रही। लेकिन थोड़े दिन बाद धनी सेठ के बच्चे तो बाहर घूमते नज़र आए। ऐसा क्या हुआ जो धनी सेठ के बच्चे बाहर घूम रहे हैं। क्या पुलिस ने इन्हे छोड़ दिया। सरयू बेचारा दुख का मारा वह ये शहर ही छोड़कर कर चला जाता है। धनी सेठ के लड़के फिर वही अत्याचार शुरू कर देते हैं।
लेकिन अबकि किसी सरयू गरीब की बेटी नहीं रामू अमीर की बेटी को नज़र में बिठाया है। इसी तरह एक दिन रामू की बेटी एक दिन स्कूल जाती रहती है। तो उसे छेड़ते हैं और ये रामू कौन है। अरे ये रामू तो धनी सेठ का मुंशी है। क्या ये अपनी बेटी को बचा पाएगा। अब तो रामू की बेटी के तो ये दरिंदे रास्ते लगने लगे। स्कूल आते समय छेड़े और जाते समय छेड़े।
लेकिन रामू की बेटी ये सब अपने पिता से क्यों नहीं बता रही। क्योंकि इसको डर है। की उसके पिता कुछ नहीं कर सकते और दूसरा कहीं ऐसा न हो कहीं सरयू जैसी कहानी बन जाए। होते करते होते करते काफ़ी दिन ऐसे ही रास्ते लगते रहते। लेकिन हद तो तब हो गई जब उसके साथ छेड़ खानी की और उसकी सायकिल को तोड़ डाला। रामू की लड़की रोते हुए घर आपस आती है।
गाँव के सभी लोग देख बड़े चिंता में डूब जाते हैं। की आख़िर गाँव में हो क्या रहा है। क्या अब हमारी बहन, बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं। रामू की लड़की घर पहुँचती है। रामू शाम को धनी सेठ की गुलामी कर अपने घर आकर अपनी बेटी की हालत देख हैरान हो जाता है। इस घटी दुर्घटना के बारे में पूछता है। अपनी बेटी से पूरी कहानी सुनने के बाद। रामू एक मरी लहाश-सा हो जाता है।
सुबह जब होती है। रामू धनी सेठ के घर जाकर धनी सेठ से उसके लड़कों की काली करतूत के बारे में बताता है। रामू तो धनी सेठ का मुंशी है। क्या पता उसको न्याय मिल जाए। लेकिन मुंशी के सारी कहानी सुनाने के बाद रामू मुंशी को धनी सेठ लात मार कर भगा देता है। मुंशी रोता हुआ घर आता है और रात में ही सारी तैयारी कर सुबह होते ही अपनी बेटी को दूर किसी दूसरे शहर भेज देता है।
इस तरह धीरे-धीरे धनी सेठ के बच्चे सभी को एक-एक कर के प्रताड़ित करने लगते हैं। इससे परेशान लोग अपनी-अपनी बहन, बेटियों को दूर दूसरे शहर भेज देते हैं। और तो और इस धनी सेठ के परिवार से लेग इतना परेशान हो गए की लोगों ने लड़की को जन्म देना ही बंद कर दिया। अब करें भी तो क्या गाँव के लोगों में एकता भी तो नहीं और अकेला कोई धनी सेठ से लड़ सकता नहीं।
ऐसे में कौन अपनी बहन बेटियों की इज़्ज़त इन दरिंदो के हवाले करेगा। एक दूसरे की मदद न करने के कारण अब ये गाँव खंडर-सा हो गया। गाँव में एक भी लड़की नहीं। ये गाँव में हो क्या रहा है। अगर लड़की नहीं होंगी तो वंश कैसे बढ़ेगा। परिवार कैसे बढ़ेगा समाज की स्थापना कैसे होगी इसका समाधान कैसे किया जा सकता है। फिर एक कदम। काफ़ी दिन बीत गए अब रामू की लड़की की शिक्षा दीक्षा पूर्ण हो जाती है।
अब रामू को अपनी बेटी कि शादी करनी है। रामू ने अपनी लड़की के लिए लड़का देखा। अब भाई लड़का वाले रामू के घर आते हैं। रामू, धनी सेठ के परिवार के डर से अपनी बेटी को केवल एक ही दिन के लिए बुलाता है। वह भी लड़का को दिखाने के लिए। लड़का वाले रामू के घर आए। रामू के घर पर चाय पानी हुआ। लड़के के दोस्त के मन में गाँव घूमने का विचार हुआ। कोई नहीं एक बार तो बनता ही है। दोनों गाँव घूमने निकल पड़े।
पूरा गाँव घूम लिया पूरे गाँव में केवल लड़के ही लड़के। दोनों घूम के आए। अब वह दोनों तो सोच में पड़ गए। आख़िर मन नहीं माना रामू से पूछ ही लिया। रामू शुरू से अंत तक की कहानी लड़कों को सुनाता है। लड़के वाले अरे ये तो बहुत ही ग़लत बात है। लड़का अपने पिता जी से बताता है। उसके पिता पूरी बात सुन बड़े अचंभित हो जाते है वह सब रामू से बात करते हैं और कहते हैं। सब सही हो जाएगा। लेकिन मुझे कुछ दिन यहाँ रहने की इजाज़त मिले तो। रामू उनको रहने के लिए आमंत्रित करता है। अब वह लोग वही रह कर पूरे गाँव की जांच पड़ताल करते हैं। सभी को एकत्रित करते हैं और सभी को एक साथ रहकर रहने को कहते हैं।
अब सभी लोगों ने अपनी हालत देख अपनी-अपनी पुरानी दुश्मनी भूल कर एक दूसरे का साथ देने का वादा, ऐलान करते हैं। अब से सभी लोग आपस में मिल जुल कर रहने लगे। लेकिन अब क्या होगा। चलो देखते हैं। पूरी रणनीति बन जाने के बाद में निर्णय लिया गया कि अब अपनी हमारी बहन, बेटियाँ हमारे घर पर ही रहेंगी। अब आपस में मिल जाने से गाँव वालों में ताकत आ गई।
अब से जब कभी धनी सेठ का परिवार आत्याचर करता गाँव वाले दौड़ा-दौड़ा के मारते। अब धनी सेठ की सत्ता शक्ति सब ख़त्म हो गई और सब दब कर एक साथ इंसानियत का जीवन जीने लगे। अब कोई किसी का गुलाम नहीं। सब स्वतंत्र है। धनी सेठ ने भी अपने दरिंदे बेटों को शहर भेज दिया पढ़ाई करने के लिए। अब गाँव पहले जैसा हंसता खेलता जैसा हो गया॥। एकता ही शक्ति है।
संजय कुमार
पिता- श्री राम कुमार, माता- श्रीमती श्याम कली, पता – पूरे सुक्खा सिकंदर पुर महराज, रायबरेली, उत्तर प्रदेश, भारत
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