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रिश्ते (relations)
रिश्ते (relations): छत्तीसगढ का एक ज़िला है, राजनांदगांव जहॉ एक विकासखंड में बसे है शहीद नगरी छूईखदान जहॉ पर एक सोनू नाम का लडका था जो चाय की दूकान पर काम करता था। वह बहुत ही गरीब और लाचार था जो खाने पीने के लिऐ मोहताज था चाय की दूकान में काम करने पर उसे बीस रूपये के हिसाब से मजदूरी मिलता था पर वह बीस रूपये में ही संतूष्ट रहता। सूबह आठ बजे काम पर आता और रात आठ बजे घर जाता था उसके मकान मिटटी से बना हूआ था और लकडी पैरा झिल्ली लगी थी।
ज़्यादा बारिश होने पर घर से पानी टपकती थी घर में एक बूढी मॉ थी और एक बहन जिसकी अब शादी के उम्र हो चूकी थी मॉ बर्तन साफ़ करने जाती थी और बहन खेतो पर काम करने जाती थी एक दिन सोनू रात आठ बजे काम से आ रहा था आते-आते रास्ते पर उसे चक्कर आ गया और ज़मीन पर गिर गया सिर पर चोट लग गया और खून आने लगा और बेहोश हो गया रास्ते पर तेज गाडिया चल रही थी एक गाडी वाले ने गाडी रोका और उसे उठाया पानी छिडके थोडी देर बाद हौश आया मलहम पटटी लगवाया और दोनों के बीच दोस्ती हूई, सोनु ने दोस्त को धन्यवाद दिया और अपने-अपने घर चले गऐ.
ऐसे ही चाय की दूकान में काम करते-करते समय बीतता गया एक दिन सोनू अपने मॉ और बहन के साथ घूमने के लिऐ रायपुर जा रहे थे रायपूर के बस स्टेशन पर तीनो खडे थे उसी समय अचानक एक गाडी वाले आकर एक दूसरे गाडी वाले को टक्कर मार दिया जिसमे एक व्यक्ति पूरी तरह जख्मी हो गया।
और उसकी एक ऑख भी चला गया तूरंत उसे अस्पताल ले गऐ वह व्यक्ति और कोई नहीं वह वही गाडी वाला था जो सोनू के चक्कर आने पर उसका उपचार कराया था। सोनू उसे पहचान गया और अपनी एक ऑख उस अजनबी दोस्त को दे दिया। सिर्फ़ एक इन्सानियत के नाते, उसने अपने ऑख उसे दे दिया इसी लिऐ वह रिशता खून के रिशते से भी बडा है।
आत्महत्या कारण दहेज
मेरे ही गॉव धारिया में एक गरीब किसान था जिसका नाम प्यारे था, लोग उसे प्यार से प्यारेलाल भी कहते थे। प्यारे की पत्नी का नाम माला थी जो एक बेटी गौरी को जन्म देते ही परलोक सिधार गऐ तब से प्यारेलाल ही उस लडकी का पालन पोषण करता था। गौरी पॉच साल की हो गई तब प्यारेलाल भी लम्बी बिमारी की वज़ह से परलोक सिधार गऐ तब गौरी अकेली और अनाथ हो गई.
पॉच साल की उर्म में गौरी को उसके चाचा चाचीयों ने अपने पास रख लिया और उसके खेती को भी कमाने लगे। गौरी को भी खेत पर काम कराने के लिऐ लेकर जाने लगे गौरी बहूत छोटी थी फिर भी काम करती थी बात-बात पर रोने लगती थी। चाचा चाचीयों ने गौरी को पढने नहीं देते थे क्योकि वह उसके ज़मीन को अपने नाम पर करना चाहते थे। इसलिऐ गौरी को अनपढ बनाना चाहते थे। यूं ही धीरे-धीरे दिन बीतता गया धीरे-धीरे सारे दर्द सहते हूऐ गौरी आज अठारह वर्ष की हो गई चाचा चाचीयों ने गौरी की शादी एक अमीर घराने में कर दिया लडका पडा लिखा डिगरी वाला था।
गौरी बहूत खूश थी। कूछ महिने बीत गया धीरे-धीरे गौरी के पति उससे नफ़रत करने लगा कि वह अनपढ और गंवार थी इसलिऐ वह बार-बार उसे कोसता था सास ससूर भी गौरी को सताता था। गौरी की पति गौरी को मारने पीटने भी लगे थे कि वह उसके चाचा चाचीयों ने उसे दहेज नहीं दिया गौरी रोती थी बिलकती थी पर उसके दर्द सूनने वाला कोई नहीं था।
एक दिन गौरी के ससूर झूठ मूठ के हार्ट अटैक आने की बहाना बनाकर इलाज़ के लिऐ अपने मायके से पैसे लाने को कहा गौरी दौडकर अपने मायके जाकर अपने चाचा चाचीयों को पैसे मॉगे पर नहीं दिया। अब तो गौरी के लिऐ जैसे एक तरफ़ आग और दूसरे तरफ़ खाई, मौत के सिवाऐ और कोई रास्ता नहीं था गौरी ने एक पेड के नीचे फॉसी लगाकर आत्महत्या कर लिया। एक निरदोस लडकी जायजाद और स्वार्थी लोगों के खातीर आत्महत्या करने पर मजबूर हो गई इसलिऐ यह दहेज एक बहूत बडी बिमारी है।
बिहारी साहू सेलोकर
धारिया छूईखदान पोष्ट पदमावतीपूर ज़िला राजनॉदगॉव छत्तीसगढ
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