Table of Contents
अनमोल रिश्ता (priceless relationship)
अनमोल रिश्ता (priceless relationship): जीवन की डोर बँधी रिश्तों से
रिश्ते होते हैं अनमोल
जो समझो तो रिश्तो में समाया
सारे संसार का सार
प्यार से गुँथा हर भाव
मन मंदिर में बसे भगवान
यही सोच थी अपराजिता की अरनव के लिये, अपराजिता आज मान-सम्मान का जीवन जो जी रही है I वह अरनव की वज़ह से वरना आज वह एक शापित जीवन जी रही होती I अपराजिता मध्यम वर्गीय घर में जन्मी सीधी-साधी लड़की थी। बड़े चाव से माता-पिता ने उसकी शादी कर दीI हितेन एक बैंक में प्रबंधक की नौकरी करता था और अपरजिता ऑफिस में typist की। नौकरी कर दोनों अपना घर चलाते। उनका विवाहित जीवन सुखमय और खुशहाल बीत रहा था और एक दूर्घटना में हितेन की मौत हो गयी। अपराजिता का मानो सब कुछ लुट गया। फिर भी उसने हिम्मत का दामन नहीं छोड़ा और नौकरी करती रही।
समाज में अकेली औरत की क़ीमत एक कटी पतंग की तरह हो जाती है। ज़िसे लूटने के लिए लोग बस अपनी नज़र गड़ाये रहते हैं कि कब मौका मिले और उसे लूट लिया जाये और ऐसा ही कुछ अपराजिता के साथ हुआ।
एक रात के हादसे ने अपराजिता का पूरा जीवन बदल दिया और वह अपना सब कुछ खो बैठी। उसने अपना दुख अपने माता-पिता को बताया और उसके माता-पिता समाज के डर से उसको ही दोषी बना रहे थे और चाहकर भी उसका साथ न दे पाने को मजबूरी का जामा पहना रहे थे क्योंकि उसके छोटे भाई-बहन का भविष्य दांव पर लग जायेगा।
इससे भी बड़ी बात यह की वह एक विधवा थी और उसका मान खण्डित करने वाले उसी मोहल्ले के बड़े पिता की औलादें थी। ज़िन पर इलजाम लगाना अपने आप को फिर से अपमानित करना था। ऐसे में अपराजिता के पास मौत को गले लगाने के अलावा कोई और रास्ता न था। इस मुश्किल समय में अरनव अपराजिता के लिये फारिश्ता बन कर आया।
अरनव ने उसके जीवन की रक्षा की और उसे और उसके होने वाले बच्चे की रक्षा भी की तथा उसे समाज में सर उठा के जीने का सम्मान भी दिया। अरनव जो अपराजिता के मुहल्ले में दो गली छोड़ कर रहता था और दिल ही दिल में उसे चाहता था किंतु अलग जाति का होने के कारण उसे उसके माता-पिता स्वीकार नहीं करते और उसने भी यह बात अपराजिता को कभी नहीं बताई थी।
अरनव एक विधुर है ज़िसकी पत्नी मर चुकी है। बच्चे की किलकारी अरनव के आँगन में न गूँज सकी किंतु अपराजिता के बच्चे को अरनव ने पिता का नाम तो दिया ही साथ ही अपराजिता की माँग भर समाज के सामने पत्नी का दर्जा भी दिया।
आज अपराजिता अरनव को भगवान की तरह पूजती है और इस रिश्ते को अनमोल समझती हैं। जहाँ उसे अपनो ने ठुकराया वहीं अरनव ने जीवन और रिश्तों का मान रख मानवता की रक्षा कर नारी को मान से जीने का सम्मान दिया।
ज़िन्दगी के सफ़र की शाम
दादी, दादी अनु ने आवाज़ दी और दादी अपनी इस देह का त्याग कर उस अनंत में विलिन हो चुकी थी अनु की आँखों से निर्झर की तरह नीर बहते जा रहे थे रमादेवी की अंतिम य़ात्रा इतनी कष्टप्रद न होती अगर उनका एकलौता बेटा उनकी ज़िन्दगी की शाम में अपनी पत्नी की हर बात को मानते हुए बड़ा आदमी बनने और ऐशोआराम की ज़िन्दगी बिताने की चाह में उन्हें अकेला न छोड़ गया होता रमादेवी ने अपने पति की मृत्यू के बाद अपने बेटे को अपनी मेहनत के बल पर उसे डॉक्टर बनाया।
बेटा पढ़ाई के दौरान ही अपने साथ पढ़ने वाली लड़की से प्रेम कर बैठा लड़की बड़े घराने की थी और एकलौती भी लड़की के पिता ने रमादेवी के संस्कार देख सोचा मेरी बेटी माँ के प्यार से जो वंचित रही वह कमी भी पूरी हो जायेगी लेकिन शायद पिता को अपनी बेटी पर अंधाविश्वास था और बेटी पिता की उम्मिदों के विपरीत अपने पति को हमेशा ऊँचे सपने देखने और उसे पूरा करने पर ज़ोर देती और कभी ताने भी देती बेटा अपने संस्कार के अनुरूप अपनी माँ से प्रेम करता और पत्नी से भी माँ की सेवा करने की बात करता पति की बात का मान रखते हुए वह करती कुछ और दिखाती कुछ इस तरह वह शादी के ६ महीने बाद ही पति को अलग कर दूसरे शहर चली गई.
बेटा पत्नी से छूपकर माँ से मिल आया करता और पैसे भी भेजा करता ये सिलसिला करीब ५ सालों चला और अब रमादेवी अपने बेटे के पास रहना चाहती थी किंतुं बहु की दी गयी क़सम के आगे बेटा मजबूर हो गया और माँ उसकी राह ताकते हुए हर आहट पर बेटे से मिलने की उम्मिद में जी रही थी पडोस में रहने वाली सीता की बेटी हर दिन रमादेवी से मिलने और कहानियाँ सुनने आती और देर रात खाना खिलाकर जाती। किंतु आज वह सिलसिला भी समाप्त हो गया रमादेवी के जीवन का समय अकेलेपन और संघर्ष में बीता और जीवन की शाम बेटे के आने की राह तकते हुए बीत गयी आज उन्हें किसी का इंतज़ार नहीं है।
मंजू राय शर्मा ‘क्वीन’
यह भी पढ़ें-
१- आह्वान
2 thoughts on “अनमोल रिश्ता (priceless relationship)”