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वृद्धाश्रम (old age home)
वृद्धाश्रम (old age home) की संस्कृति हमारे देश की संस्कृति नहीं है यह तो पश्चिम की देन है, जिसे हमारे देश ने सहर्ष स्वीकार कर लिया है। हमारी संस्कृति तो यह है कि वृद्ध परिवार के परम सम्मानीय अंग होते हैं। हमारे यहाँ वृद्धजनों का सम्मान करने के संस्कार बाल्यकाल से ही रोपित कर दिये जाते रहे हैं, जिन्हें बीच-बीच में सींच कर पल्लवित पुष्पित किया जाता है।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयुर्विद्या यशो बलम्॥
हमारे संयुक्त परिवार की यह परिपाटी रही है कि हर कार्य में उनकी सलाह ससम्मान ली जाती रही है। सामाजिक समस्याओ के हल में भी उन्हें परामर्श के लिये बुलाया जाता रहा। “न-सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः। महाभारत के शान्ति पर्व में भी कहा गया है, वृद्धों की सेवा मनुष्य को महान बना देती है। वृद्धशुश्रूषया शक्र! पुरूषो लभते महत्।” तो फिर ऐसा क्या हो गया कि इतना संस्कारित देश अपनी संस्कृति को, अपने संस्कारों को भूला अपने बूढे माँ बाप को वृद्धाश्रम में भेज रहा है? अकेले मध्य प्रदेश में ही अठावन वृद्धाश्रम हैं, जिनमें से दस तो अभी हाल में ही खुले हैं। अकेले भोपाल में दस से अधिक वृद्धाश्रम हैं और अभी और खुल रहे हैं जिनमें महात्मा गाँधी, आनन्दधाम, अपनाघर, आसरा, दी नेस्ट जैसे आकर्षक नामों वाले वृद्धाश्रम प्रमुख है। कई एन जीओ के द्वारा संचालित वृद्धाश्रम कुकरमुत्ते की भाँति उग रहे हैं। अब प्रश्न उठता है कि क्यों इनका प्रचलन बढता जा रहा है!
सबसे पहली बात है, संयुक्त परिवारों का विघटन जिसके अनेकानेक कारण हैं, सरकारी नौकरियों का खतम होना, बच्चों का पढलिख जाने पर पैतृक व्यवसाय में अरूचि, अतः नौकरी करने दूसरे शहर जाने की बाध्यता, कृषक परिवार के बच्चों का भी कृषि की अनन्त समस्याओं के कारण मोह भंग होना आदि, स्वभाविक है परिवार से विलगता, आमने सामने वार्तालाप न होने से माँ बाप के प्रति प्रेम घटता जाता है। दूसरी बड़ी बात है, बड़े होने पर बच्चों का अपना परिवार बन जाता है और उनका ध्यान अपने साथ रहने वाले बुजुर्गो की तरफ़ कम होने लगता है। स्त्रियों का पूरा घर संसार आज भी घर एवं रसोईघर रहता है। बेटे का विवाह होते ही माँ और बहू में विवाद की स्थिति याँ जन्म लेने लगती है। बहू अब अपने हिसाब से घर चलाना चाहती है पर सास बरसों से जमाया साम्राज्य बहू को सौपने को तैयार नहीं होती और यदि आपस में सामञ्जस्य नहीं बैठता तो अंततः कुछ वर्षों के पश्चात रास्ता वृद्धाश्रम तक पहुँच जाता है।
आजकल सम्पन्न मातापिता अपने बच्चों को भविष्य बनाने हेतु होस्टल भेज देते हैं या बड़े शहरों में, फिर आगे विदेशों में पढने भेज देते हैं नतीजा यह होता है कि दीर्घकालिक दूरी आपसी स्नेह की बेल सूखती जाती है। अक्सर वे वहीं बस जाते हैं। माँ बाप बूढे हो जाने पर अपनी आजादी में खलल न पड़ने के लिये अपने पास न बुलाकर वृद्धाश्रम जाने की सलाह देते हैं।
समय के साथ-साथ मनुष्य की काया में दुर्बलता आने लगती है अनेकानेक व्याधियाँ घर बना लेती है, जो आदमी को असहाय और चिड़चिड़ा बना देती है, उन्हें बार-बार अस्पताल ले जाना पड़ता है, उनके लिये उनके स्वास्थ्य के हिसाब से अलग भोजन बनाना पड़ता है। इन सब झंझटों से बचने के लिये बहू अपने पति को बुजुर्गो को वृद्धाश्रम भेजने को बाध्य कर देती है। कई परिवारों में गृहलक्ष्मी को वे वृद्ध तभी तक सुहाते हैं जबतक वे आत्मनिर्भर रहते हैं, बच्चो को बस स्टाप छोड़ने जाते हैं, सब्जी भाजी लाने से छोटे मोटे काम कर देते हैं। पर जैसे ही उनकी उपादेयता नहीं रहती, वह उन्हें व्द्धाश्रम का रास्ता दिखा देती हैं। अत्यधिक ग़रीबी भी एक महत्पूर्ण कारक है। पर याद रखे ग़रीबी में भी गाँवों में वृद्धजनों को बाहर नहीं निकाला जाता है। यह बिमारी अभी शहरी ही है।
कई घरों में वृद्धजनों की उपेक्षा की जाती है, उन पर ध्यान नहीं दिया जाता न समय पर डाक्टर को दिखाया जाता है, फलस्वरूप वे स्वयं वृद्धाश्रम चले जाते हैं। कई परिवारों में जीवनसाथी बिछाने पर उनसे बात करने वाला कोई नहीं रहता, तो वे स्वयं हमउम्र साथियों के साथ रहने, बोलने के लिये वृद्धाश्रम चले जाते हैं।
अभी कोई समाचार पढा कि चार बेटों के रहते भी एक वृद्ध दम्पत्ति वृद्धाश्रम में रोते-रोते दिन गुजार रहा है। चारों सम्पन्न हैं पर उनमें से एक भी कभी उन्हे देखने या हालचाल जानने कभी नहीं पहुँचा। कुछ वृद्धाश्रम में रूपये भेज कर इतिश्री कर लेते हैं। कोई भी वृद्ध अपना घर, परिवार नहीं छोड़ना चाहता, पर वे बाध्य हैं। दुखी मन से वहीं खुश रहने की कोशिश करते हैं। सरकारी वृद्धाश्रमों में कई में नर्स डाक्टर या सहायकों की कमी रहती है और तो और मूलभूत आवश्यकताओं काभी अभाव रहता है।
अब सबसे महत्त्वपूर्ण और अंतिम सवाल और उसका जवाब। क्या वृद्धजनों को वृद्धाश्रम भेजने में उनकी स्वयं की कोई भूमिका तो नहीं रहती। जी हाँ आप का युवावस्था में सब कहना मानते थे, सेवानिवृति के पश्चात् भी आपकी वही आदत है, हर बात में अपनी-अपनी चलाना, कहना नहीं मानने पर चिल्लाना, बात-बात में अधीर होना, बेवजह अपनी राय लेना, अपने शारीरिक दुखों को बढ़ा चढाकर बताना, अपनी गाँठ ढीली न करना, बिना बताए जबतक अपने घर में दोस्तों की महफ़िल जमाना, युवकों बच्चों को जब तब नसीहत देना, पड़ोसियों से बेबात झगड़ा और बेवजह बहू के कामों में दखल देना तो संभल जाईये, आपके लिये वृद्धाश्रम का दरवाज़ा कभी भी खुल सकता है। अपने अन्तर्मन में झांके कि कहीं अपनी संतान को संस्कार देने में आपसे तो चूक नहीं हो गई। महाभारत के कर्णपर्व की इस नसीहत पढे समझे और जीवन में उतारे, यदि आप अभी अपने परिवार के साथ हैं
परवाच्येषु निपुणः सर्वो भवति सर्वदा।
आत्मवान् च न जानीते
जान्ननपि के मुह्यति
छोड़ दीजिये सबके अवगुण गिनना, जीओ और जीने दो। अपने सारे शौक पूरे करे, घूमें फिरे, और परिवार में सकारात्मक माहौल बनाकररखे वृद्धाश्रम न जाना पड़े तो छोड़ दीजिए काम, कोध्र और लोभ-
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनात्मनः
काम कोर्धस्तथा लोभस्तस्मादेत्त्रयं त्यजेत।
२१वीं सदी का समृद्ध भारत
हिमालयं समारभ्य यावत् इदुं सरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देश हिन्दुस्तानं प्रचक्षते॥
यह देव भूमि अपनी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को संजोकर रखने के साथ उत्तरोत्तर विकास के पथ पर बढती जा रही है। कोरोना काल में अपने ढंग से कोरोना को नियंत्रित कर, सम्पूर्ण विश्व को भारत ने अपनी संस्कृति के मूल तत्व संयम को नये सिरे से परिभाषित कर दुनियाँ को विस्मित कर २१ वीं सदी में क़दम रखा है। सबसे पहले बात करे कोरोना वेक्सीन की जिसकी माँग आधे विश्व में है।
ब्राजिल राष्ट्रपति जेयरबोल सोनारो ने भारत से २० लाख वेक्सीन प्राप्त कर खुशी जाहिर कर हनुमान की संजीवनी बूटी जाते हुऐ हनुमान की तस्वीर ट्वीट कर वैश्विक संकट में भारत की भागीदारी की प्रशंसा की। जाहिर है विश्व का भारत के आयुर्वेद में विश्वास बढ़ा है और २१ सदी के भारत को इससे मजबूती मिलेगी। पीई किट को भी संकट काल में भारत ने अमेरिका जैसे देशों कोभेज कर नाम कमाया। भारत ने ज्ञान विज्ञान को योग से जोड़ विश्व को स्वास्थ्य के प्रति सचेत भारतीय जीवन पद्धति से परिचित कराया।
इन्टरनेट में भारत का दबदबा प्रारम्भ से ही रहा साथ ही रक्षा क्षेत्र में भारत की काबिलियत तारीफे-काबिल है जिसमें हम आत्मनिर्भर हो चुका है। आज पूरी दुनियाँ भारत के ऊर्जा अभियानों सहित स्वदेशी रक्षा उत्पादों का लोहा मान रही है जिसका रक्षा बजट दुनियाँ में पाँचवा है। २०० में १.८९ करोड़ भारतीय नौकरी खो चुके हैं, पर नौजवान भारत तेजी से खड़ा हो रहा है, और पढे लिखे नौजवान गाँवों की ओर मुड़ कर आधुनिक कृषि कर किसानों को भी प्रशिक्षित कर रहे हैं।
सोनीपत के मनौली गाँव में “स्वीट कार्न” की खेती हो रही है जहाँ रिलायन्स जैसी कम्पनियाँ ख़ुद पहुँचाती हैं। जलैपिनोज, पार्सले जैसी सब्जियाँ जो इजराइल एवं हालेन्ड में पैदा होती है, पंजाब में उगाई जा रही हैं, जिन्हें उगाने का प्रशिक्षण लेने हालेन्ड, अमेरिकी किसान भारत आ रहे हैं। कोरोना काल को सुअवसर में बदलते हुऐ किसान कहीं तो तीन फसले ले रहे हैं, कहीं एक ही सीजन में सब्जियों की तीन फ़सल लेकर समृद्ध हो रहे हैं। तकनीकी क्षेत्र में भारत झंडे गाड़ता रहा है। ३००० मीटर पर “अटल सुरंग” और चीन सीमा पर बनी सड़के इसके चंद उदाहरण हैं। जोया अग्रवाल की उत्तरी ध्रुव को पारकर १८० डिग्री का टर्न लेकर दुनियाँ की सबसे लम्बी हवाई उड़ान २१ सदी के समृद्ध भारत की तस्वीर बता रही है।
मनोरमा पंत
भोपाल, मध्य प्रदेश
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१- अज्ञान
२- समय चक्र
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