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महा शिवरात्रि (Maha Shivratri)
Maha Shivratri: हे शिव ही शक्ति
करू मैं भक्ति
शिव हर क्षण में विद्यमान है…
शिव है दयाऊ
दाता जग का
देता मन चाहा वरदान है…
है प्रेम निश्छल
अटूट हे बन्धन
यही शिव शक्ति पहचान है…
जो हाथ सर पे
रख दे दोनों
तो मुर्दों में आती जान है…
मां गौरी शक्ति की
करू मैं भक्ति
मां गौरी शिव में विद्यमान है…
प्रभु शिव का आवेश
मां गौरी हरती
मां गौरी भी तो महान है…
हे शिव ही शक्ति
करू मैं भक्ति
इस भक्ति कुछ तो सार है…
मैं अरज करू
जब माँ गौरी की
तब तब शिव मेरे साथ है…
जलाओ अंध का रावण
जलाओ अंध का रावण एक ओर बार।
जैसे जलाते है दशहरे पर हर बार॥
खत्म हो ही जायेगा दशहरा इस बार।
लगता है बुराई पर अच्छाई की जीत होगी इस बार॥
मन के लालच, बुराई को जलादो तुम इस बार।
भाई चारे, स्नेह, शान्ति अमन से रहो हर बार॥
फिर अगले साल का इंतेजार क्यों रहेगा।
क्यों रावण बन अपने ही जलाते है घर बार॥
क्यों बुराई पर जीत का झूठा दशहरा मनाते है हर बार।
कभी दिल में झांक कर देखो, कितनी बुराई छिपाते हर बार॥
दशहरे पर अन्दर के राक्षस को जलाओ इस बार।
फिर सच्ची दिवाली होगी, घर-घर के द्वार॥
अगर न बदला कुछ, रावण के जलने से इस बार।
तो फिर रहेगा मन में, अगले दशहरे का इंतेजार॥
अंधेरा मिटे
अंधेरा मिटे दिपो से, मन से मन मिले।
गीले शिकवे सारे दिल से निकलते रहे॥
ये दिवाली आपके घर सुख़ शांति ले आए।
पर्व रोशनी का खुशियों की सौगात ले आए॥
हर मोम की ज्योत से, जीवन में अंधकार मिट जाए।
मावे की मिठास से ज्यादा, रिश्तों में मिठास बढ जाए॥
दुःख दर्द भूल कर तुम सबको गले लगाओ।
ईद हो या दिवाली हर पर्व खुशियों से मनाओ॥
एक बेटी के सवाल
लगता है डर बाहर जाने से।
क्या मैं बाहर जा पाउंगी॥
बाहर रहते है वैशी दरिंदे।
पर मैं कब तक क़ैद रह पाउंगी॥
में कब तक सितम झेलती जाउंगी।
कब तक अपनी लाचारी दिखाउंगी॥
सवाल अपने आपसे है अब तो।
कब तक इंसानी जानवर से बच पाउंगी॥
मुझे भी जिना हे मुक्त परिदे कि तरह।
कब तक घुट-घुट कर मरती जाउंगी॥
मेरे दुश्मन तो आस पास ही रहते है।
कब तक पारिवारिक दुश्मनों से बच पाउंगी॥
हाथरस जैसे हत्याकाण्डों को।
मै कब तक झेलती जाउंगी॥
मुझे इंसाफ चाहिए, कैसे मिलेगा इंसाफ।
क्या मैं स्वय इन दरिंदों से लड पाउंगी?
किससे लगाऊ गुहार में, सरकार से।
सरकार क्या उस मनीषा को, इंसाफ दे पाएगी?
मैं आज का युवा हूँ
ये अधूरी शिक्षा भी, बेरोजगार की गिनती में आती है।
फूटी कोडी न कमाता, लाखों कि डिंगे गाता है।
सब्जी बेचने वाला भी तो सशक्त रोजगारी है।
छोटे कार्य करने में शर्म करते, वही तो बेरोजगारी है।
न फल फ्रुट का कारोबार, न फ़सल उगाना आता है।
फिर नव पिढी युवा, काहे का रोजगार कर पाता है।
डोर-टू डोर मार्केटिंग करना भी, तो नहीं आता है।
लगता है इन डिग्रीधारियों को, बेरोजगारी का कोरोना है।
डिग्री से रोजगार मिलेगा यह सोच पुरानी थी।
पढे लिखे अनपढों कि गाड़ी, रोजगार भवन ही जानी थी।
न आता वाहन चलाना, न आता बिजली का काम।
न आता कोई गेजेट्स बनाना, फिर क्यों करता आराम?
जो युवा ग़र बाईक, कार रिपेयरिंग भी कर पाता।
वो बेरोजगारी के इस दल-दल से, क्यों न बच पाता?
मैं बी.ए. बी.काँम बीएससी बीटेक किया हू, ये न चल पाता।
अगर हूनर न हे कोई, कोई काम तुझे न आता।
मैं आजका युवा हू, इंस्टा व्हाट्सएप फ़ेसबुक ही चलाना है।
मैं बेरोजगार बनुंगा, संघर्ष न करूंगा क्या यह प्रण धारा है?
सुबह की चाय
निंद्रा, आलस, सुस्ती भगाये,
चुस्ती शरीर में लाये,
सुबह की चाय सबके मन को भाये।
किसी कि सुबह काफ़ी से होती,
किसी को ग्रीन टी सुहाये,
सुबह की वह पहली चुस्की सबके मन को भाये।
दिन चर्या के इस चक्कर मे,
चक्कर कभी ना आये,
इसिलिए डॉक्टर कहता है,
मरीज को काली चाय पिलाये।
आफिस में जब प्रेशर होता,
मन कहि न लग पाये,
ऑर्डर मारा फिर पिओन को,
भाई ग्रीन टी मंगवा ले आए।
मेहमान घर आते ही,
चाय की आवाज़ लगाते,
वो ना भी कहे,
फिर भी चुल्हे को सुलगाते है।
अंग्रेजो की देन है चाय,
हम समझ न पाते है,
एक दिन में लाखो कि चाय,
हम भारतीय पी जाते है।
आदी हो गये चाय के,
अब सबके मन को भाये,
सुबह की वह पहली चुस्की सबके मन को भाये।
शरहद के सैनिक
वाह! से देश के रक्षक क्या दिमाग़ लगाया है।
सरहद के सैनिको का जिवन अब व्यर्थ न जायेगा।
हिन्दु मुस्लीम एकता का परचम फिर लहराएगा।
लोगों के दिलों में जोश भरने का दिन फिर आया है।
स्वदेशी अपना कर विदेशो की अर्थव्यवस्था पर प्रहार ढाया है।
उम्मीद थी हमें, वह लेदजा सुधार लेंगे।
पिठ पर आघात, छिपके वार बन्द कर देगें।
दो छुट देश के सैनिक को, हमला अबकी बार कर देगें।
फिर चाहे चीन हो पाक, उसे राख कर देगें।
वाह रे मोदीजी चाणक्य रणनिति अपनाई है।
Tik Tok, PUBG चाइना साइट को बंद करवा दी है।
हमने सोचा था, आपने कर दिखाया है।
सबके दिलों में देश भक्ति का फितुर चढ आया है।
आपने सच्चे देशभक्त का फ़र्ज़ निभाया है।
हर बार का वार बेकार नहीं होगा।
आज तुम्हारा हे कल पर अधिकार नहीं होगा।
सुनलों ऐ दोंगले देशों, सुधार लो अपनी हरकत I
नहीं तो दुनिया के नक़्शे में चीन व पाक नहीं होगा।
अनंत चतुर्दशी का दिन
कृपा दृष्टि बनाए रखना, ओर बड़ेगा मेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
कई रंग धूल उड़ी, कई बजते मीठे ढोल।
गजानंद की पूजा, नित दिन करते सातो पोर॥
अनन्त चतुर्दशी का दिन आया मन होता विभोर।
थोड़ी ख़ुशी थोड़े ग़म के संग बिछड़ती भक्ति की डोर॥
पधारे थे गणेशा जबसे रोशन था हर गली का छोर।
संभल के जाजो अपने घर को, आशीष देजो चारों ओर॥
थाल सजाएँ छप्पन भोग, विनंती करे संत अपार।
त्रिलोक लोक में विचरण करता, तमे करजो हमारू उद्धार॥
पान चड़ाऊ, फूल चडाऊ और चड़ाऊ मेवा I
दुखो को सबके हरते जाना, ओ गणेशा देवा॥
…इस अनन्त चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए सभी को।
भारतीय संस्कृति एक झलक
संस्कृति है जीवन दर्शन, साहित्य ज्ञान का भंडार है
जिसको ज्ञान है संस्कृति साहित्य का, वह अनपढ़ भी विद्वान है।
उन अंग्रेज़ो की हर हुकूमत संस्कृति साहित्य के सहारे तोड़ी है,
रानी झांसी, महाराणा, शिवाजी के खतों में विद्रोही बोली है।
फिर गुमराह किया उन अंग्रेजो ने अंग्रेज़ी के चक्कर में,
कुछ बिचौलियों ने आग लगा दी, भाई-भाई के टक्कर में।
कोई संस्कृति, जातिवाद, कोई धर्म के नाम पर लड़ने लगा,
अब भाई का दुश्मन भाई बना, व भाई को भाई ही मारने लगा।
इस संस्कृति विरोधी कुर्रता को कूर्रता से ही मिटाना था,
इतिहास तो बदला न जाता नया इतिहास रचना था।
भारती संस्कृति वेराग धारी, जब पहुँचे विदेशी थल पे,
हसी का पात्र बना दिया, कुछ विदेशी जन ने।
जीरो देकर बिठा दिया, जब विश्व पटल के दल में,
पर विवेकानन्द जी जैसा ज्ञानी पड़ा न अहम के दल-दल में।
बारी आई बोल उठे वह सत्य वचन, मन में था बिता जो जन में,
विश्व पटल सक्षियत देखती रही उन्हें पल-पल में।
गूंज उठी थी तालिया चहु ओर,
उस विशाल सभागर के तल में।
ऎसे कई क्रांति कारियो ने जब क़लम उठाई क्षण में,
जातिवाद, धर्म अधर्म, रंग भेद, मिटाने ठान लिया मन में।
बाबा साहेब की क़लम उठी, जातिवाद के चक्कर में,
जातिवादी लोग न ठहर सके बाबा के टक्कर में।
अपना हक़ छीन के उन्होने सबको न्याय दिलाया है,
उस स्वतंत्र सेनानी ने नया इतिहास रच डाला है।
प्रभात
जिंदगी बहुत छोटी है, हर सुबह अपने
लक्ष्य के साथ आगे बढ़ते रहो।
हर व्यक्ति से अच्छे सम्बंध बनाए रखो।
ओर ख़ुद नेक राह पर चलो।
लोग क्या सोचते है यह मत सोचो।
उन्हें नज़र अंदाज़ करो।
हर समय खुश रहने का प्रयास करो।
हमेशा ख़ुश रहने का कारण ढूँढे। ️
जिंदगी में मौके मिले तो ले लीजिए।
भले ही वह आपकी ज़िन्दगी में लेट आये हो।
(कहावत_ दौड़वा थी देर भली, झुकवा थी जाए वेर टली।)
क्या पता ये आपका जीवन बदल दे।
हर कोई कहता है कि यह कार्य आसान होगा।
वो सिर्फ़ वादा करते है, अगर आप इसके लायक हो तो।
उस परमात्मा का शुक्रिया जिसने हर सुबह के साथ एक नया दिन दिया।
आज का समय व आज का दिन सब के लिए आशा वादी हो यही ईश्वर से प्रार्थना है।
प्यार
अधूरी ख्वाइशों को पूरा करना हो या एक दूजे के दुख दर्द का अनुभव हो।
इसे कहते है प्यार।
ये कब, कहा और किससे हो जाए कुछ पता नहीं चलता।
यह क्षणभर में हो जाता है।
जिसका दर्शनीय उदाहरण है राधा और कृष्ण।
उनका प्रेम अमर है।
परन्तु आज वर्तमान में कुछ लोगों ने प्यार को व्यापार बनाया हुआ है।
ये लोग सिर्फ़ अपने स्वार्थ सिद्ध के लिए प्यार का झूठा नाटक करते हैं।
यूं कहें कि प्यार गूंगा, बेहरा और अंधा होता जा रहा है।
लोग निरंतर स्वार्थी प्रेम की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
इस प्यार का अर्थ-ईर्षा, झूट, धोका आदि उल्लेखनीय हैं।
इन सब से ऊपर है माता-पिता का प्यार।
यह एक अंधा प्यार भी है।
हर माता-पिता अपने बच्चों से अंधा प्यार करते हैं।
जो कि अहम है।
नटवर चरपोटा
जिला बांसवाड़ा, राजस्थान
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