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आशाओं से जीवन (life with hope)
आशाओं से जीवन (life with hope): आशा और अपेक्षा ये दो शब्द लगते एक समान हे, पर इनमे उतना ही फ़र्क़ होता हे, जितना ज़मीन और आसमान में। अपेक्षा और आशा दिखाई नहीं देते पर ये वह भावना हे जिनके होने से जीवन में बहुत फ़र्क पड़ता है। आशा जैसे एक समुद्र, जिसकी गहराई, जिसमे छिपे जीव, क्या हे, कितना हे, अर्थात असीमित है। अपेक्षा समुद्र में मौजूद कोई एक जीव हैं जो ख़त्म हो जाता है।
आशा पेड़ की वह जड़ है, जिसमे से तना, शाखाएँ, पत्ते, फल, फूल आदि उगते है और उपर से पेड़ को कितना भी काटो उसकी जड़ो से फिर एक नया पेड़ उग जाता है। अपेक्षा पेड़ में मौजूद एक पत्ता या फल या फूल है जो टूट जाए तो वापस नहीं आएगा, उसी जगह दूसरा आ सकता है, पर वह जो टूटा था, वही दुबारा नहीं उग सकता।
हमे एक फूल बहुत पसंद था, वह टूट गया वैसा दुबारा नहीं उगा तो हमें दुख होता है। उसी जगह हमने जड़ से प्रेम किया होता तो हमें तना, शाखाऐं, पत्ते, फल, फूल आदि बहुत कुछ मिलता जिसका कोई अंत भी नहीं होता।
सुबह होती है, हमे लगता हे आज कुछ अच्छा होगा, जीवन में कुछ नया-सा परिवर्तन आएगा। ऐसा नहीं होता हम दूसरे दिन का इंतज़ार करते है शायद कल होगा इसी आस में ज़िन्दगी अग्रसर होती जाती है। इस आस को आशा कहते है, जो हमें निरंतर आगे बढ़ाती जाती है, वह भी बिना दुख के।
आशावादी विचारधारा, विचारो की वह धारा जो निरंतर आगे बढ़ती जाती है, उसे मंज़िल तक जो पहुँचना होता है। उस धारा में कई बदलाव आते है, कई लोग उसमें नहा रहे होते हे, कपड़े धो रहे होते है, परंतु वह नहीं रूकती आगे बढ़ती जाती है और एक समय ऐसा भी आता है जब वह स्वच्छ हो जाती है, या अपनी मंज़िल तक पहुँच जाती हैं।
अपेक्षा उस धारा में बहती वह वस्तुऐं जो हमेशा साथ नहीं रहती। माँ, बाप बच्चों से उम्मीद लगाते है कि वह डाक्टर बनेगा, नहीं बनता तो कितना दुख होता है। इसी कि बजाय आस लगाई होती कि जीवन में ख़ुशी खुशी आगे बढ़ेगा, तो शायद वह कुछ ऐसा कर जाए जो कभी आपने सोचा भी न हो।
अपेक्षा ख़ुद का और सामने वाले के आत्मविश्वास और मनोबल को कम करती है। जीवन आगे बढ़ता है, शादी होती। वर वधू दोनों एक दूसरे से कई अपेक्षा रखते है। बहस, तकरार, के साथ जीवन आगे बढ़ता जाता है। शायद दोनों ही इस स्थिति में खुश नहीं रह सकते। इसी की बजाय दोनों एक दूसरे से शांति से बाते करे और एक आस रखे कभी तो स्थिति बदलेगी। ग़लत को सहना नहीं है और ग़लत न करते हुए आस के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
यदि हम चाहे की पत्ता हमेशा हरा रहे, यही अपेक्षा के कारण क्या पता वह टूट जाए। क्योंकि उसका रंग परिवर्तन होने लगा हो। इसकी बजाय हम यह आशा रखे की उस पत्ते में जितने रंग परिवर्तन हो बस वह हमेशा लहलहाता रहे। तो हमे भी दुख नहीं होगा, न उस पत्ते को होगा।
आत्मा की हत्या
आत्महत्या अर्थात आत्मा की हत्या, जिसने अपनी आत्मा को ही मार दिया उसे सही का ज्ञान कैसे होगा। वो ग़लत ही करेगा। किसी कारण से जब कोई मरता हे, तो उसका शरीर मरता हे, पर आत्मा तो जीवित रहती है, उसे ज्ञान हे कि वह क्यो मरा हे। परंतु जब कोई अपने अस्तित्व को नहीं पहचान पाता, ख़ुद को पहचानता ही नहीं हे, जानता ही नही। शायद यह दुर्बलता ही हे, आत्महत्या करना हिम्मत का काम तो नहीं। उसे लगता हे कि में शरीर को ख़त्म कर रहा हूँ, अब सब सही हो जाएगा पर नहीं, मरने के बाद तो उसकी हालत ओर भी खराब हो जाएगी आत्मा अतृप्त रहेगी, ओर अधिक असमंजस में पड़ जाएगी। पर तब तक बहुत देर हो गई होती है, वह कुछ नहीं कर सकती।
एक उदाहरण प्रस्तुत हे, जैसे सब्जी में नमक मिर्च डालते हे सब्जी में नमक, मिर्च उसकी आत्मा के समान हे। हम एक की जगह अगर चार चम्मच नमक सब्जी में डाल दे तो वह खाने योग्य नहीं रहेगा। उसे फेंकना ही सही उपाय नहीं हे, हम दूसरी बिना नमक की सब्जी बनाकर उसमे मिला दे वह सही हो सकता है। हर समस्या का समाधान होता हे, बस हमें उसका निवारण ढूँढना होता हे, नहीं मिले तो दूसरो से मदद ले सकते है।
एक और उदाहरण पत्ता पीला या भूरा होकर गिरता हे तो वह तुरंत नष्ट हो जाता है। वह ताज़ा ताजा गिरता हे तो जल्दी नष्ट नहीं हो पाता ज़्यादा समय तक परेशान रहता है। तूफान, हवा के थपेड़ो, पानी की तेज बौछारो में वह पत्ता भी इधर उधर लहराता रहता है। वैसे ही हमे मुसिबतो से निकलने के लिए कई रास्ते मिल जाएंगे, अगर हम चाहे तो। रास्ता हमारे पास चल कर नहीं आएगा, हमे ही उस रास्ते को ढूँढना होता हे। रास्ते सीधे सरल कहाँ होते हे, उसमें कंकर, पत्थर, कांटे, सब होते है। कई मोड़ होते हे, कई गड्ढे होते, तेढ़े-मेढ़े रास्तों पर कैसे हम आगे बढ़ते जाते हे, उसी प्रकार हमे जीवन में मुसिबतो का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहना होता है।
मुझे एक घटना अभी भी याद है, मेरी एक ख़ास मित्र थी कॉलेज में, जो बहुत संवेदनशील थी। हम सब एक साथ बहुत मस्ती करते थे, एक दूसरे को परेशान करके हँसना। वह छोटी-छोटी बात का बहुत बुरा मान जाती थी। हम समझाते तो फिर थोडा समझ जाती थी। पर उसकी रूम पार्टनर बहुत बोलती थी, इतना नहीं कि बुरा लगे। मे तो उल्टा उसी को छेड़कर हँस दिया करती थी। गर्मी की छुट्टियों में हम सब घर चले गए। हम सब वापस होस्टल आ गए, लेकिन उसके यहाँ से फ़ोन आया कि उसने सुसाईड कर लिया। कुछ समझ नहीं आ रहा था, ये अचानक क्या हो गया।
हमे लगा कि उसके घर की कोई समस्या हे, उसके घर से फ़ोन आया कि क्या हुआ होस्टल में जो हमारी बेटी ने सुसाईड कर लिया। फिर पुलिस आई उसके कमरे की जाँच हुई, उसके बेग से एक चिट्ठी निकली दो पृष्ठों की। पूरी चिट्ठी में एक ही बात कि मूझे कोई छेड़ता हे तो में सहन नहीं कर पाती, पता नहीं मैं ईतनी संवेदनशील क्यु हूँ। सब तो ऐसे नहीं हे, में अलग हूँ। केवल ईतनी-सी बात के लिए उसने इतना बड़ा क़दम उठा लिया। मेरी सबसे अच्छी सहेली। किसी से बात करती, कुछ ना कुछ हल तो निकल जाता। आत्महत्या करने का यह कोई कारण नहीं।
एक दूसरी घटना जिसमे मेरी एक ओर ख़ास सहेली का ज़िक्र करने जा रही हूँ। वह मूझसे सारी बाते शेयर करती थी। हम होस्टल में एक साथ नहीं थे, क्योंकि वह वही की रहने वाली थीं। हम एक ही क्लास में पड़ते थे। काॅलेज ख़त्म हुआ हम सब अपने-अपने घर आ गए। उसकी शादी हो गई। एक दिन उसका फ़ोन आया वह टेंशन में थी। उसने कहा कि उसका पति कभी भी उससे बात नहीं करता, घर पर ही नहीं रहता। दो साल निकल गए, ऐसा ही चलता रहा, मैने उसे समझाया की सब मिलकर बात करो। फिर उसके पति ने कहा कि वह किसी ओर को चाहता है। फिर मेरी सहेली ने हिम्मत नहीं हारी, उसकी दूसरी शादी कर दी गई। आज वह बहुत खुश हैं। उसके दो प्यारे-प्यारे बच्चे हैं। उसने कभी हिम्मत नहीं हारी।
हमारे पड़ोस की ही घटना हे एक लड़के ने आत्महत्या कर ली, कारण यह था कि उसे जुआ खेलने की आदत पड़ गई थी जो छूट नहीं रही थी। उसके सारे पैसे बर्बाद हो रहे थे। तो क्या आत्महत्या सही रास्ता चुना। एक मंज़िल तक पहुँचने के क्या एक ही रास्ता होता है। जबकि सच्चाई यह हे कि एक मंज़िल तक पहुँचने के कई रास्ते होते है।
तात्पर्य यह है कि सभी अपना आत्मसम्मान चाहते हे, तो दूसरों का भी सम्मान करे अपने अहंकार को त्याग के दूसरों की बातें सुने, समझे तो आत्महत्या का विचार मन में आएगा ही नहीं। या कोई ग़लत विचार मन में घर नहीं करेगा। आत्मसम्मान की रक्षा ही आत्महत्या का निदान है।
गीता में भी कृष्ण ने कहा हे कि अहंकार जहाँ जन्म लेता वहा प्रेम, अपनापन सब ख़त्म हो जाता है। अर्थात आत्मसम्मान को जगाना होगा और अहंकार को ख़त्म करना होगा।
ममता बारोट
गांधीनगर, गुजरात
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१- अज्ञान
२- समय चक्र