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पहले मुक्ति दी (liberated); अब उसी में धकेल रहें हैं
दोस्तों… आर्या भार्गव एक नवोदित लेखिका हैं… आइये पढ़ते हैं उनके द्वारा लिखा आलेख ‘पहले मुक्ति दी (liberated); अब उसी में धकेल रहें हैंl’ आलेख पढ़कर बताइए कि लेखिका का यह प्रयास कैसा रहा… ताकि भविष्य में वे और बेहतर लिखने का प्रयास कर सकें…
“धुएँ से होनी वाली बीमारी से निकाला सरकार ने वही सरकार आज गैस के दामों से अपनी जनता को डिप्रेशन में डाल रही है”।
हमारी सरकार बहुत अच्छी है। बहुत अच्छे कार्य किये जनता के हित के लिए “पहले सांस दी; अब सांस को रोककर जान ले रही है” , यह गरीब व्यक्ति पर महंगाई ज़्यादा असर डाल रही है।
सरकार कई योजना बनाती फिर उन्हीं योजना को आगे चल कर नया नाम देकर पुकार-पुकार कर जनता का हित करती पर वह हित और फ़िक्र कहाँ गयी, अब हमारी प्यारी सरकार की जो नित-नूतन जनता की सोचती, अब उसी सरकार ने कोरोना के कहर को देखकर ‘गांधारी’ जैसे पट्टी अपने अक्षु (नैनो) पर बाँध ली। वह सरकार हर रोज़ सुबह उठकर कहती देशवासियों, हे! देशवासियों, जबतक हम न छू सकेंगा कोई ग़म तुम्हें, जबतक नींद हमारी उड़ी है। जबतक देशवासियों मेरे प्यारे देशवासियों चैन से नींद पूरा करिये।
हमारी सरकार; कोरोना के कहर के बाद अब महंगाई का कहर आ गया। यह कैसी बिडम्बना है। हे! मेरी प्यारी सरकार? क्या? कोरोना में आदमी कम परेशान था, हाय! … सुनो सुनो, सोचों-सोचों, विचार मेरी प्यारी सरकार गरीब की तरह एक बार कर के देखिये हे सरकार! कोरोना के कहर से कहर के बाद से ही कि जनता उठी थी। पर सरकार सो गई, हाय! महंगाई करके हर-हर छोटी-छोटी चीजों का मूल्य ऊंचाई से भी ऊंचाई छू रहा है।
१. पहले जागरूक कराया हूँ, हूँ धुएँ से दूर रहना। यह है, सबसे बड़ी बीमारी का कारण,
२. गरीबों से सामान्य वर्ग तक के कईं प्रश्न आयें सरकार बोली हम है; जबतक चिंता नहीं।
३. मिल-जुल कर कोरोना जैसे रोग से एक-दूसरे यानी सभी को बचाया, मरण पर थे, तो नया जन्म दिया।
४. वही सरकार आज इतनी महंगाई कर जान ले रही है।
घर-घर आर्थिक तंगई से घर-गूंज रहें हैं।
पेट-पेट के लिए दाना तो दाना पूरा दामों से तोला…, गैस का मूल्य गैस के नाम से भी ज़्यादा महंगा और तो और बिजली बड़े-बड़े देशों, राज्यों की पूंजी अमीरों का हक, ‘हक बाबा हक़’ रोजमर्रा की ज़िन्दगी की हर चीजें को वौ महंगी…, मीठा तेल भी “मीठा खाने से सब बचते” मीठा जमा कर कारखानों, फैक्ट्री में रखा है महंगाई जो कर दी, गरीब कैसे? उसे लें यें… अरे! बाबा वह मीठा है, फिर भी इतनी हिफ़ाज़तकरके रखने से खराब ही होगा। “माल” मूल्य में गिरावट करिये ताकि विक्रय हो सकें। सरकार मीठा का मूल्य थोड़ा कम तो करवा दो “मीठा-मीठे के कारण न विक्रय हो पाता, सोचो-सोचो” मीठे में वैसे ही हाय दईया! कीड़ा लग जाते ” इसलिए मेरी मानों तो मीठा तेल का मूल्य तो कम करवा दो, पेट्रोल-डीजल तो वैसे ही पहले से महंगेहै इनके दाम इनको भी कर दो थोड़ा ढीला दामों को ऊपर से नीचे गिरा दो ना, अब मान भी जाओं ना, सब हम जानते सब कुछ सरकार के हाथों में ही हैं तो प्यारी मेरी सरकार सबसे न्यारी मेरी सरकार, गरिमा तेरी, गर्व मुझे हो यें, चलो-चलो सबसे पहले गैस का मूल्य कम कर दो… सभी प्यारी, सम्मानीय माहिलाओं की सोचो।
कितनी भी जीएसटी, लगा लो, (कर) का बोझ माथे पर फोड़ दो, फिर भी ज़िन्दगी हीन +हानि गरीबों, माध्यमवर्गों की ही होगी हालत खराब सबके तो मोज होंगे। तुम “कर” बढ़ा़ओंगे वे अमीर चन्द उनकी फैक्ट्रियों के सामान और मिला-जुलाकर के सामान बेचेंगें, सरकार ७% से २५%कर ‘ लेती है तो सामान बेचने वाले २५% से ज़्यादा मूल्य बढ़ाते हैं। हाय! गरीबों का संघर्ष से जीवन भर जाता, फिर भी एक समय का पूरे परिवार को पेट भर भोजन न मिल पाता, इतने पर ही गरीब क्या करें? इस महंगाई की दुनिया में तिल-तिल घुटता, गरीब मजदूरी कर पैसे दो-चार कमाता है। इस महंगाई में गैस से ज्यादा; चूल्हा उसको सस्ता पड़ता, पूर्व की सोच फिर वह धुएँ देते। चूल्हा पर लड़की-उपला से भोजन पकाता, ” सरकार दाम कम करो नहीं तो फिर यह माता, दादी, बहनों आदि। स्त्रियों की आंखों खराब हो जायेंगी। आप तो सब जानों, प्रदूषण कितना घातक है कितनी बीमारियों…, धुएँ से कई बीमारी उत्पन्न होती। अच्छे-अच्छे व्यक्ति को भी यह बीमार कर देता।
मूल्यों को कम करों, चीजों पर से महंगाई कम करों मेरी प्यारी सरकार, हितों की सब तू ही सोचती, नहीं तो कौन, कौन है, किस में उलझा, गरीबों की तू ही फ़िक्र करती मेरी सरकार की जय हो।
“पहले मुक्ति दिलायी, बीमारी से अब उसी में धकेल रही हैं”
इस महंगाई की दुनिया में गरीब न जी पायेगा, टेक्स थोड़ा कम करों, महंगाई कम करों, नया जन्म दों जनता नया जन्म दों; गैसों से लेकर सब चीजों का दाम (मूल्य) कम करों, ज़िन्दगी किसी की बर्बाद न होने दो, उफ! इस महंगाई से हाय! डिप्रेशन में न कोई जाये, इससे सभी को बचाओ हर रोज़ वही एक नया तनाव से सभी गरीबों को मुक्त करों। ऐसा नहीं होता तो, नई योजना बना डालो ” गरीबों-सामान्य वर्ग, मजदूरों आदि का नया योजना में नाम रजिस्टर करों; कम क़ीमत पर गरीबों को सामान, गैस पेट्रोल-डीजल इत्यादि दिलवाने मूल्य कम नहीं होता तो योजना तो नयी बन सकती है।
मेरी प्यारी सरकार गरीबों को देखों।
मेरी प्यारी सरकार मेरी न्यारी सरकार।
दोहे-
पहले पहल की, जागरूकता अभियान,
पहले मुक्ति दिलाती, सरकार शासन॥
मजबूरी सै मनुष्यों, चित्त बदल रहै,
पुराने ज़माने में वै फिर सै लौट रहें॥
ना, ना जाने दै, मरण पर तू, कर दै तू कमाल नई योजना बना दै॥
आर्या भार्गव ‘आरती’
जिला- विदिशा, मध्यप्रदेश।
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