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खुदीराम बोस (Khudiram Bose) शहादत दिवस
Khudiram Bose: धन दौलत से कोई धनवान नही
बिन धन दौलत भी होता गरीब नही
जीवन तो कर्मो की पूंजी है,
धर्म कर्म समर्पित जीवन स्वर, नश्वर नही॥
लम्बी उम्र जीवन भी किसी काम नही
पल प्रहर का जीवन युग की आशाओं का बेकार नही,
युग को सतत जीता जाता निःस्वार्थ कोई स्वार्थ नही॥
युग त्याग बलिदानों का कायल समय गवाने वालो को करता याद नही
भारत का इतिहास सुनाया जाता है
खुदी राम का नाम न हो भारत का इतिहास नही॥
जन्म लिया विपन्नता में फिर भी
कोई मलाल नहीं बड़ी बहन के घर परिवरिश
स्वाभिमान मोहताज नही॥
बंगाल का बटवारा फिरंगियों की चाल
समय काल की पुकार खुदी राम बोष क्रांति की अंगार ज्वाला
शूल शोला साहस शक्ति ही पूंजी था कुछ भी पास नही॥
क्रूर फिरंगी की क्रूरता आहत किशोर खुदी का मन प्रफुल्ल
चेती खुदी राम का संकल्प मातृ भूमि की मुक्ति बिना जीवन का कोई मोल नही॥
राज द्रोह के आरोप से गोरों ने बरी किया
पर मातृ भूमि की पीड़ा से आहत मन चैन आराम नही॥
नारयण गढ़ रेल स्टेशन देता आज गवाही है
गवर्नर बोगी खुदी राम का बम प्रहार किशोर खुदी की क्रांति का
विस्फोट नासमझी का काम नही॥
युग में गूंजी आवाज़ फिरंगी बदहवास उम्र बचपना
सब दीवारें टूटी बता दिया खुदी ने
मातृ भूमि की आजादी का मतलब त्याग बलिदान शुख शांति नही॥
भारत ही नहीं अपितु विश्व में मातृ भूमि पर मर मिटने की ऐसी कोई मिशाल नही॥
ना जीवन में खुशियाँ, अभाव उद्देश्य पथ से विचलित कर ना सका
किस्सा सुना है हमने फिरंगियों की न्याय प्रियता की हुआ न्याय नही॥
हदे टूट गई न्याय लज्जित लिये हाथ में गीता
झूल गया फांसी के फंदे पर कर्म क्रांति का किशोर खुदीराम बोष
दुनियाँ में दूजा नाम नही॥
जीवन की कस्ती
भावों रिश्तो संग जीवन कस्ती जैसी
निर्मल निर्झर प्रवाह हद हस्ती जैसी
सागर की गहराई जीवन की सच्चाई जैसी॥
झरने झील तालाब नदियाँ जीवन
जीवन मकसद की राहों जैसी
कभी निर्बाध निकलती कभी
डूबती छिछलेपन की कंकण जैसी॥
जीवन की कस्ती का पतवार
जैसा चाहो वैसी कभी चाहत
की मस्ती कभी वक़्त की मार
तूफानों जैसी॥
जीवन की कस्ती जीवन की
कठिन चुनौती से डगमग होती
झूठ और सच्चाई जैसी॥
उठते गिरते तूफानों में जंग
जीवन का लड़ती जीत हार
का जश्न हाहाकार हश्र की
संसय जैसी॥
जीवन के रिश्ते नाते जीवन
की कस्ती सवार मांझी मकसद
मंजिल खेवनहार को मिलती
चाही अनचाही मुरादों जैसी॥
कभी चाहों की राहों की कस्ती
कभी अनचाही शादिल और किनारा
अनजानी दुनियाँ जैसी॥
तूफ़ांनो झंझावत में लहरों
तूफानों में कस्ती जब फंसती
सवार भाँवो के रिश्तो में हलचल जैसी॥
रिश्ते नाते कुछ मुसक जैसे
जिस जिस कस्ती में सवार
उंसे कुतरते डूब ना जाए
भागते जल बिन मछली जैसी॥
छोड़ अकेला ख़ुद खुदा को
शुक्र कहते पता नहीं होता
उनको उनकी नियत दुनियाँ में
चोर उचक्कों जैसी॥
जीवन की कस्ती मस्ती
सूझ बोझ सोच समझ
शौम्य संयम पतवार की हस्ती॥
जिम्मेदारी नैतिकता
नीति नियत की निर्धारण
चुनौती से लड़ती बदलती
निकलती पहेली जैसी॥
जिंदगी
जिंदगी ऐसे मोड़ पर आ गयी
निराश हताश, जाने कहाँ खो गयी
खोजता हूँ, जिंदगी जीने के बहाने
अतीत की आवाज़ आ गयी॥
इंसा वही हो ज़िन्दगी में तमाम
मकसद मुकाम हासिल किये
क्या बात हुई ज़िन्दगी ठहर-सी गयी॥
अतीत की आवाज़ दिलों दिमाग
पे छा गयी ज़िन्दगी फिर नई मुकाम
पा गयी चल पड़ी फिर अंदाज़ नया
आतीत की आवाज़ क्या बात आ गयी॥
मुश्किलों दुश्वारियों में भी ज़िन्दगी का
जज्बा नहीं छोड़ा मौके धोखे परखना
सीखा बीते ज़िन्दगी में जाने कितने
तारीख का नाज़ अतीत की आवाज
चाह की राह बता गयी॥
कितनी ठोकरों से घायल
जहाँ को कर दिया कायल
जिंदगी को ज़िन्दगी की हद
हस्ती याद आ गयी॥
अतीत की आवाज़ कदमों के
निशां ज़िन्दगी में ज़िन्दगी की
सच्चाई ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की
हद बता गयी॥
मायूस ज़िन्दगी जाग गयी
अपनी हैसियत पहचान गयी
विखरे जज़्बात जुड़ गए
जिंदगी अपनी रवानगी में चल गई॥
हर इंसान की ज़िन्दगी अतीत के कुछ
लम्हे दुनियाँ के लिए खास
जिंदगी की राहों में जब भी
नजर आए अँधेरा पीछे मुड़ कर
देख लीजिये अतीत की आवाज़
सुन लीजिए॥
टूट जाएगी मुश्किलों की ठोकरे
जिंदगी, ज़िन्दगी की राह आईने
की तरह साफ, ज़िन्दगी नए उमंग
नई मंज़िल पा गई॥
अबोध का प्रेम
अवसान दिवस का होने वाला
संध्या कुछ विशिष्ठ-सी स्वर
एक पीली शाम के कहानी किसी अतीत की॥
किया बहुत प्रयास आया नही
कुछ याद छन-छन पायल की
आवाज गूँजती एक पीली शाम
संध्या करीब की॥
गगन कुछ लोहित स्वछंद मधुमास
पवन बता रही सृंगार शाश्वत
सत्य व्यक्त अव्यक्त मधुर पवन
झोके एक पीली शाम की॥
गमक रही धारा आने वाली सूरज की लाली
बता रही दृश्य दृष्टांत प्रभा प्रभात की गति चाल नित्य निरंतर की॥
सामने अचानक बचपन अठखेली प्रेम की परी संजी संवरी
वचन प्रतिज्ञा मुक्ति याचना विवश तिरस्कार
पुरस्कार एक पीली शाम की॥
आंखों से आंखे मिली शान्त मन कंठ अवरुद्ध अश्रु की धाराओं ने पल
में ही बता दिया युग को बचपन अठखेली प्रेम का अन्तर्मन अतीत की॥
शब्द नहीं थे फिर भी अविनि और आकाश में गूंज निर्झर निर्मल प्रेम
डोर टूटने अवसान दिवस की संध्या विशिष्ठ एक शाम पीली की॥
प्रणव दादा को समर्पित
बीर भूमि की आंखे रही निहार
प्रणव जन्म की बेला का जीवन सत्कार॥
साहस शक्ति सोच दृष्टि का
पुरुषार्थ भारत रत्न प्रणव का अविरल
निर्मल निश्चल प्रवाह॥
याद किया जाएगा जब जब
भारत का इतिहास प्रणव
शौम्य शीतलता का काल
समय देगा पुकार॥
बेटा भारत के स्वाभिमान
संस्कृति संस्कार का निडर
निर्भीक काल अभिमान॥
झुकना टूट जाना नियति
नही राष्ट्र हितैषी व्यक्तित्व महान॥
निरपेक्ष निर्भीक सच्चा
नैतिक मर्यादओ का पुरुषार्थ
पुरुष पराक्रम की परिभाषा
काल समय की आशा विश्वास॥
बेटा हिन्द का आवनी
अम्बर का शौर्य सूर्य
काल कपाल की अमिट छाप॥
बीर भूमि के बालक बीर
बंगाल की त्याग तपस्या
राष्ट्र प्रेम धर्म के भारत के
प्रखर प्रताप नमन प्रणाम॥
युगपुरुष कल्याण सिंह जी
अन्तर्मन भी पीड़ा की पराकाष्ठा से विचलित
व्यथित कुछ खो जाने जैसा॥
जग का कल्याण राम से
अपने ही राज्य अवध में सुबह
शाम कलरव करती युगों-युगों से
सरयू की धाराएँ॥
बाबर की बर्बरता क्रूर काल कुटिल घात
से शाश्वत राम मिथक जैसा॥
वर्षों के संघर्षों में जन्मा एक
योद्धा युग को पता नहीं राम जन्म
भूमि मुक्ति का मानव महापुरुष
युग नायक लोध कुल भूषण जैसा॥
छद्म स्वार्थ का युग संसार
त्याग बलिदान संस्कृति सांस्कार
बाबर की बर्बरता का कर दिया हिसाब
न्याय और न्यायधिशो जैसा॥
बाबर ने तोड़ा राम मंदिर मस्जिद बनवाया
कल्याण प्रतिज्ञा जब तक बाबर के कदमो निशाँ मिट ना जाये
तब तक विश्राम कहाँ आराम कहाँ भीष्म प्रतिज्ञा जैसा॥
कर्म सत्य, धर्म सत्य, मर्म मर्यादा
सत्य, सत्य सनातन सत्य युग ब्रह्मांड
कर्म योग भोग की भूमि जैसा॥
प्राणि प्राण के कर्म भोग का विराम
कल्याण कर्म की गूंज से स्वर्ग की
अनुगूंज गान जय-जय श्री राम आया
कल्याण स्वागत हो देवो जैसा॥
राम मंदिर अब सच्चाई यथार्थ चेहरे पर मुस्कान लिये
शांत चित्त पूर्ण प्रतिज्ञा का युग पुरुषार्थ भाव
महापरिनिर्वाण मोक्ष मार्ग जैसा॥
रक्षा बंधन
भाई हो कृष्णा जैसा
बहना की चाह रहा विश्वासों जैसा
भाई बहन का प्यार कृष्ना और सुभद्रा जैसा॥
बचपन की अठखेली ठिठोली
संग साथ जीवन की शक्ति जैसा
बहना की मर्यादा रक्षक सिंह काल गर्जन जैसा॥
नन्ही परी बाबुल घर अंगना
भाई बड़ा या हो छोटा धूप
छांव में स्वर सम्बल जैसा॥
भाई बहना का रिश्ता जीवन की
सच्चाई का सच्चा रिश्ता
माँ बापू की प्यार परिवश भाई
की संस्कृतियों जैसा॥
भाई तो ऊम्मीद अरमंनो का मान
जीवन के संघर्षों में शत्र शास्त्र हथियारों जैसा॥
भाई बहन का प्यार सांस्कार
अक्षय अक्षुण भाई धन्य धान्य
बहना अस्मत आभूषण जैसा॥
भाँवो के गागर का सागर भाई
बहना की खुशियाँ भाई बहना के
सुख दुःख में भाई दुनियाँ के मौलिक मूल्यों जैसा॥
कच्चे धागे का बंधन रिश्तो का
अभिमान भाई बहन दुनियाँ में
दो दामन एक प्राण जैसा॥
भाई की कलाई पर बहना
कच्चे धागे को बाँध जीवन आश्वस्त
जीवन की खुशियाँ उपहारों जैसा॥
भाई बहन का रिश्ता संकल्पों का
रिश्ता जीवन समाज स्वार्थ से ऊपर
जीवन के आदर्शो जैसा॥
बलदाऊ कृष्ण सुभद्रा जय
जगन्नाथ जग पालक के अविनि
जीवन की मर्यादाओं जैसा॥
कारगिल शहीदों को नमन
धर्म का बेजा नजीर इबादत
उग्र उग्रता का बेमतलब रंजिश
रवानी कहानी लिखूं॥
कारगिल का इतिहास
लिखूं या जांबाज माँ
भारती के सपूतों की
कुर्बानी लिखूं॥
नापाक इरादों का दुश्मन
धोखे से भारत की सीमाओं
ऊंची ऊंची दुर्गम पहाड़ी
दुश्मन की ललकार लिखूँ॥
हौसले हिम्मत देश भक्ति के
जज्बा भारत की सेना का
वर्तमान इतिहास,
वायु बीरों का शौर्य मिग मिराज लिंखू॥
दुश्मन ऊंचाई पर बैठा
एक पत्थर भी नीचे भारत
के बीर सपूतों पर तोप का
गोला धोखे का मुसक मार लिंखू॥
हाथ तिरंगा बसंती चोला
हिन्द हिन्द की सेना का
गर्व गर्जना शान लिंखू॥
पंच सहस्र जांबाज जवानों
के शव की सीढ़ी, बायु बीरों
की हुंकार अटल विजय कारगिल
छद्म फ़रेब का युद्ध दृढता निश्चय
देश भक्ति तरंगे का स्वाभिमान लिखूं॥
आत्मा से परमात्मा की यात्रा
सिद्धार्थ से बुद्ध अवतार
बढ़ गया अन्याय क्रूरता अत्याचार
पसरा व्यथि व्यभीचार॥
काया मानव की माया विष्णु ने
लिया मनुज अवतार सिद्धार्थ॥
कपिल वस्तु लुम्बनी पावन भूमि अविनि आँचल अवतार जन्मा सिद्ध अर्थ का नाम॥
शुद्धौधन महामाया के धन्य भाग्य जन्मा सिद्धार्थ जन्म भाग्य में बैराग्य॥
राज पाठ समाज जीवन सुख भोग विलास में रम जाए सिद्धार्थ माँ बाप के सारे प्रयास व्यर्थ बेकार॥
राम का चौदह वर्ष वनवास
कृष्ण कारागार ही जन्म भूमि
राज पाठ सुख भोग विलास का
स्वयं त्याग किया सिद्धार्थ॥
मर्यादा अवतार लीला अवतार
राम कृष्ण का रूप विष्णु
सिद्धार्थ जीवन सत्य आविष्कार अवतार॥
जीवन की अवस्थाएँ चार
बृद्ध बीमार मृत्यु असहाय
जीवन की सच्चाई निकल
पड़ा सिद्धार्थ त्यागा भौतिकता का संसार॥
पहुँचा राजगीर गया मोक्ष का तीर्थस्थल सत्य सनातन का विश्वाश॥
बट बृक्ष की छाया मात्र सिद्धार्थ से बुद्ध की जीवन यात्रा
आत्मा की परम यात्रा की यात्रा बुद्ध परमात्मा का सत्य साकार॥
आत्म बोध का बोध
बोध राजगीर बोध गया
बट बृक्ष बोधि बट बृक्ष
बन गया युग का पारिजात॥
सारनाथ वाराणसी में
उद्देश्य उपदेश का प्रथम सोपान॥
हिंसा नहीं अहिंसा
धर्म सिद्धान्त का शंखनाद॥
अहिंसा परमोधर्म युग का
धर्म मर्म करुणा सत्य अहिंसा
सिद्धार्थ से बुद्ध की आत्मा के
परमात्मा का यथार्थ सत्यार्थ॥
तारीख तरक्क़ी का इंसान
सयंम संकल्प साहस शक्ति
अरमंनो का आसमान॥
संघर्षों में तपता निखरता राह नहीं आसान॥
ख्वाब चाहत मुकाम वक़्त की कसौटी का शुरखुरु इंसान॥।
हिम्मत हौसलों का जांबाज
जहाँ अलग अंदाज़ इंसान॥
लाख मुश्किल चुनौतियों को
कर देता ख़ाक फौलाद इंसान॥
मकसद मंज़िल हसरत
की हस्ती की मस्ती का
मुसाफिर तन्हा ही तारीख
की पहचान नाम॥
आम इंसान के हुजूम में
ख़ास ज़िन्दगी पहचान॥
तमाम इम्तेहाँ से गुजरते
जिंदगी जंग फ़तह का वाहिद नाम॥
इंसानियत ईमान का
इंसान मुकाम तमाम का
मुसाफिर जहाँ का नाज़॥
भीड़ में अकेला जहाँ की उम्मीदो यक़ीन इंसान॥
निराश हताश नहीं चाहे कितने
आये मकसद की राहों में तूफान॥थकना हारना जानता ही नही
करता नहीं आराम॥
नफरत की दुनियाँ से अंजान
इंसानियत का रौशन चिराग॥
फर्श से अर्श का सफर
मजबूत इरादों का अंगार॥
चलना गिरना और संभलना
जमीं से आसमान की बुलन्दिया पैगाम॥
तकदीर भी मर्जी की इबादत
इबारत मंजिलों की शान॥
खुशियों का पल परिवार
प्राणि प्रकृति परमेश्वर
ब्रह्मांड युग अवयव निर्माण
प्राणि जीवन परिवार समाज॥
प्रेम भाव भावना रिश्ता
समाज का आधार सुख
दुख ग़म ख़ुशी मुस्कान॥
रिश्तो की दुनियाँ का
अपना रीति रिवाज
संस्कृति सांस्कार जन्म
जीवन का लम्हा-लम्हा साथ॥
माँ बाप से शुरू रिश्ता
समाज माँ बाप से सफर
सुरु ना जाने कितने ही
रिश्ते नातो का आना जाना समाज॥
परिवार परस्पर नेह स्नेह
सामाजिक नैतिक सम्बंधों
रिश्तो का विचार व्यवहार॥
घर एक मंदिर
भाव भावना की दीवारे
आस्था विश्वाश की बुनियाद॥
हर रिश्ता एक दुजे की खातिर
एक दूजे की खुशियाँ सौगात॥
एक दूजे का साथ हाथ
चाहे जो भी स्तिति परिस्तिति
दुःख चुनौती लम्हा-लम्हा साथ॥
एक साथ जब होते साथ
खुशियों की वारिस सौगात॥
माँ बाप दादी दादा भाई बहन
जाने क्या-क्या रिश्तो का परिवार॥
एक साथ जब होते
परमेश्वर मुस्काता
देख अपनी दुनियाँ
का परिवार समाज॥
द्वेष दंम्भ गृणा बैर
नाही चाहता है ईश्वर
चाहत उसकी प्रेम करुणा का संसार॥
भाव भावना की
अनुभूति अनुभव रिश्तो
खुशियों का परिवार समाज
प्राणि प्रकृति ब्रह्मांड॥
मासूम
बच्चे मन के सच्चे
भगवन को लगते प्यारे
माँ बाप की आंखों के तारे॥
सपनों के रंग हज़ार
माँ बाप के राज दुलारे॥
बच्चे माँ बाप ही नहीँ राष्ट्र
समाज के भविष्य वात्सल्य वर्तमान हमारे॥
बच्चों में धीरज धर्म मर्म
मर्यादाओ की संस्कृति सांस्कार निखारे॥
आदर्श स्वयं माँ बाप समाज
आचरण उदाहरण बच्चे
अनुसरण मार्ग पर चलते बढ़ते जाए॥
कच्चे मिट्टी-सा बच्चे माँ
बाप समाज प्रजापति ब्रह्मा
जैसा चाहे वैसा ही बच्चे बन जाए॥
चूक कहीं भी हो जाये
पछताना ही भाग्य हिस्से में आएँ॥
बच्चे के पल प्रहर प्रगति
गति चाल पर मन दृष्टि भाव लगाए॥
सड़क गली मोहल्लों पर
नन्ही-सी जान किसी जोखिम
में ना पड़ जाए॥
घर से बाहर बच्चे हो
जब भी माँ बाप संरक्षक की नज़रों
से ओझल ना पाए॥
बच्चों को मालूम नही
जोखिम कहाँ प्यार कहाँ
बच्चे तो मासूम अनजान
उनको सारी दुनियाँ भाए॥
भले बुरे की पहचाना नहीं,
ज्ञान नहीं प्राणि प्राण में बच्चे देखते
अपनी मासूमियत का भगवान माँ बाप समाज की जिम्मेदारी बच्चे अंजान
मुसीबत में ना फंस जाए॥
कोमल भाव नाज़ुक नन्हीं
नादा जिद्द बच्चे राष्ट्र की फुलवारी के
फूल हुई ज़रा भी चूक जोखिम
काल समय के भौंरे ना जाने क्या हरकत कर जाए बचपन छीन जाए
बागवान सर धुन पछताए॥
खुशियों का दिया
रंगोली की बोली उत्साह उमंग है
मन भावो का रंग ख़ास खुशियाँ प्रसंग है॥
आशा अभिलाषा की पूर्णतया
सुख शांति बैभव का आगमन है॥
दिया जला है प्यार उजियार का
तमस मन का मिटाना संकल्प है॥
सुख बैभव का आचार व्यवहार
दुःख क्लेश से मुक्ति का आश्वाशन आवाहन है॥
जीवन में भय रोग बाधा
ना हो, दृश्य अदृश्य शत्रु का
समापन आस्था संस्कार है॥
हताशा निराशा पल ना आवे
नित्य नियमित रिद्धि सिद्धि
आराधना अवसर अपरिहार्य है॥
जल गए दिये जीवन संचार में
मनौती मान्यता प्राप्ति प्रमाणिकता
प्राथमिकता का अनुष्ठान है॥
बच्चों की चाहत खुशियाँ
लौ दिए कि तरह, कुटुंब
परिवार की राह का प्रकाश है॥
फुलझड़ियों आतिश बाजी
द्वेष दंम्भ घृणा के अंधकार
दुनियाँ पर प्यार मोहब्बत
के जग मग जग मग चिराग है॥
जन्म दिन
जश्न जोश का बहाना चाहिये
जन्म दिन उत्साह उमंग से मानना चाहिए॥
सच्चाई की जीवन की
लम्बाई ज़िन्दगी छोटी होती हर
जन्म दिन पर एक वर्ष
उम्र कम होती ग़म नही
जीवन में जीने का अंदाज़ चाहिये॥
जन्मदिन के जश्न में
कोई परंपरा भारतीय नही
ना कैंडल्स ना केक फिर भी
गर्व अभिमान भारतीय है हम
भारतीयता को अपनाना चाहिये॥
जन्म दिन की खुशियों में
शुमार दावत दारू नाच गान
उपहार हैप्पी बर्थ डे जिओ
हज़ारों साल होना चाहिये॥
गर मौका मिल जाए
गर्ल फ्रेंड की बाहों में बाहें डाल
घुमाना चाहिए शायराना अंदाज़
बडा नाज़ जन्म दिन आता साल
में एक बार इश्क़ मोहब्बत प्यार
आजमाना चाहिए॥
पूरे जश्न जोश खो जाए
होश दोस्तो संग मौज
मौके का जौक शौख का
खास खुशियों का खुमार आना चाहिये॥
भारत भारतीयता की परम्परा
तकिया नुकुसी जन्म दिन पर
भी मंदिर देवता आशीर्वाद
मन्नत मुराद नीरस नीरसता
पास भी नहीं जाना चाहिये॥
घटती सिमटती ज़िन्दगी में
दान पुण्य पाप जन्म दिन
पर ग़र कर दिया रक्त दान
क्या फायदा बेवजह जन
कल्याण से ख़ुद को बचाना चाहिये॥
जोश जश्न से जन्म दिन मनाना चाहिए॥
जिंदगी और हवाई जहाज़
जिंदगी हवाई जहाज
ख्वाबों खयालो कल्पना
उड़ानों में उड़ती॥
खूबसूरत कल्पना लोक
विचरती कभी कल्पना
ख़्वाब खयाल वास्तविकता
वास्तव के रनवे पर चक्कर
काटती एरोड्रम पर रुकती॥
करती कुछ विश्राम॥
नई सोच नई कल्पना की
उड़ान उड़ती नए अम्बर की
ऊंचाई का पंख परवाज़॥
उड़ते आकाश में कभी
आशाओ के बादल साफ
निराशाओं का अंधकार॥
डगमगाता खतरे के देता
संकेत कभी सभल जाता
कभी अविनि पर चकनाचूर॥
अविनि से जीवन शुरू
अविनि ही शमशान कब्रिस्तान
कल्पनाओं ख़्वाब की उड़ान
विखर जाती टुकड़े हज़ार॥
हवाओं में उड़ना इंसानी
जिंदगी फ़ितरत अंदाज़
जिंदगी का जांबाज
पंख परवाज हवाई जहाज॥
कल्पना लोक में उड़ते
समय मौसम खराब
तमाम खतरे तमाम
फिर भी बेफिक्र लड़ता
जीवन की कल्पनो की
उड़ान भरता ज़िन्दगी में इंसान॥
जिंदगी और रेल गाड़ी
जिंदगी समय काल
संग नित्य निरंतर
चलती सुख दुख की अनुभूति॥
जिंदगी रेलगाड़ी
रिश्तो के डिब्बो का
साथ रिश्तो के डिब्बों में
भावनाओ का सवार॥
अपनी रफ़्तार से मंजिल
की तरफ़ बढ़ती कभी
खुशियों का प्लेटफार्म
उमंग उत्साह के स्टेशन
पर करती विश्राम॥
पल दो पल विश्राम
उपरांत नए स्टेशन की रफ़्तार॥
कभी दुःख पीड़ा के प्लेटफॉर्म
पर ठहरती शांत लेकिन ठहरती
नही वहाँ फिर चल पड़ती॥
दौड़ती ज़िन्दगी की राह
पर जोखिम बहुत घटना
दुर्घटना की आशंका से
नही इनकार॥
जिंदगी रेलगाड़ी की तरह
अपना सफ़र पूरा कर पहुँच
जाती यार्ड जहाँ से गंदगी
होती साफ़ जैसे कर्मानुसार
जिंदगी का इंजन और डिब्बो
का रिश्ता सफर॥
नन्दलाल मणि त्रिपाठी ‘पीताम्बर‘
गोरखपुर उत्तर प्रदेश
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