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कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandit)
कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandit)
कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandit): हाँ कष्ट है इस बात का हमें लड़ाई से वंचित कर दिया
हमारे धर्म ने हमें श्रेष्ठ बना दिया,
दुनियाँ को ज्ञान देने का हमें हक़ दे दिया,
इस बात का कष्ट है,
७००००० कश्मीरी पंडित कश्मीर से भगा दिए,
तिलक लगाने वालों को भी होश ठिकाने लगा दिए,
मां को काटा बहन को लूटा वह चुपचाप खड़े रहे,
न तंत्र काम में आता है ना मंत्र काम में आता है
दुश्मन का जो शीश काट दे वह यंत्र काम में आता हैं,
जब लूटने लगे लाज आबरू सुनो ब्राह्मण तब शस्त्र उठा लो तुम
एक बार बन जाओ परशुराम और दुश्मन का धड़ उड़ा दो तुम,
अरे ब्रह्मणों सागर से बहती पतवार उठा लेते,
७००००० में से केवल सौ ही हथियार उठा लेते,
दुश्मन की छाती पर जाकर उसका लहू ले आते तुम,
केवल कुछ दिन की खातिर ही परशुराम बन जाते तुम,
पाक का झंडा ना होता इस हिंदुस्तान की माटी में,
जय, जय परशुराम के नारे लगते कश्मीर के घाटी में,
डोनाल्ड ट्रंप की भाषा में जब दिल्ली वाले बोलेंगे,
सत्ता पैसा चले जाएंगे कुछ आनंद नहीं होगा,
उस दिन तुम को समझाने को विवेकानंद नहीं होगा,
हमने अब ठान लिया है
हमने अब ठान लिया है ज़िन्दगी की
हर समस्या को नया समाधान देंगे,
खुद से ख़ुद को ही संभालेंगे,
टूटेगें तो ख़ुद को बिखरने ना देंगे,
दूसरों के आगे दुखड़ा रोने से बेहतर है
हम कान्हा के आगे रो कर दिल हल्का कर लेंगे,
हर पल हर क्षण निर्धारित है उस बंसी
वाले के हाथ, जो सबको देने वाला है
उसी से हम मांग लेंगे,
यश और अपयश में हम कभी न हम घबराएंगे,
मेरे साथ मेरे कान्हा और विवेक शक्ति साथ होगी,
सब ख़त्म हुआ-सा लगेगा दुनिया में कोई अपना
नहीं है ऐसा लगेगा, अंधेरा भी घना होगा, फिर भी दीपक
की तरह हम जलते जाएंगे,
हमने अब ठाना है, ज़िन्दगी की हर मुश्किल को
आसान करेंगे हर परिस्थिति को नया समाधान देंगे,
क्योंकि हमारे साथ दृढ़ अटल विश्वास होगा,
आंधी होगा तूफान होगा फिर भी परिस्थिति
को निडरता के साथ समाधान देंगे,
परिस्थितियाँ भी उन्हीं को चुनौती देती है जिनमें
चुनौतियाँ सामना करने की हिम्मत होती है
परिस्थितियाँ चाहे जितनी भी नाज़ुक होगी, रास्ता
सही और सत्य का मार्ग ही चुनेंगे,
नेता वह है
नेता वह हैं जो समाज का सुधार करे,
वह नहीं जो ख़ुद का ही प्रचार करे,
खुद आचरण का पतन हुआ हो, और
बात समाज सुधार की करें, चुनाव आए
तो घर के बर्तन धोने वालों का भी कार से
उतर कर पांव छुए, खुद को मसीहा बताए
और चुनाव के बाद गुंडा बन जनता पर
अत्याचार करे, चुनाव आए तो बड़ी बड़ी
बातें हांके, हमेशा दूसरे दल की खिड़की में
छाके, औरतो से अईयासी करे और जनता
को आश्वासन दे कि हमारा संकल्प है कि
हरित खुशहाल और स्वस्थ समाज
बनाएंगे जो खुद
गंदी मानसिकता के साथ राजनीति में उतरे,
समाज सुधार की आशा नेता से मत रखे, यही
तो समाज को दलदल में झोकें, जानेगी जनता
जब अपना अधिकार तब समाज में होगा असली सुधार
सुख के साथी सब हैं
सुख के साथी सब हैं,
दुख में खड़े कोशो दूर हैं,
बाते बनाते राय सुझाते,
यही दुनियाँ का दस्तूर हैं,
बिना मतलब साथ खड़े हैं,
मुसीबत में ना कोई हैं,
बहानों की गठरी लिए, रिश्ते
ऐसे कमजोर है,
समय अगर साथ हो तो सब
रिश्ता साथ देता हैं, चाचा ताऊ
और भतीजा, बुरे वक़्त में अपनी
परछाई भी साथ छोड़ देता
यही दुनियाँ का दस्तूर हैं,
कमियों पर देते ताने,
अपराधी जैसे करते सुलूक
हैं, गुणों पर मुक दर्शक बन जाते,
खामोशी से सिर्फ़ देखते ही जाते,
ईर्षा से सराबोर ये नाते करते बुरे सुलूक हैं
मैंने पढ़ा है
मैंने पढ़ा हैं, महाभारत का,
युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ,
कौरवों और पांडवों ने,
एक दूसरे पर वार किया!
किन्तु यही महा समर मैं
नित्य मन में लड़ती हूँ।
हृदय स्थल हैं युद्ध क्षेत्र,
इस रण से रोज़ गुजरती हूँ,
समझती हूँ ख़ुद को।
जब नदी अपना मार्ग स्वयं
बनाती हैं, कोई नहीं पुचकारता,
उछालता उसे, कोई उसकी ठेस पर
मरहम नहीं लगता।
दुलारना तो दूर,
कोई आँख भर देखता भी नहीं हैं,
तो क्या नदी रुक जाती हैं, या हार
मान लेती हैं,
सुर और असुर शक्तियाँ हर मानव
के अंदर हैं, उन में पल-पल होता
युद्ध मैं देख कर डर जाती हूँ,
मन मंदिर में घटने वाली घटनाओं,
को मैं देखती हूँ,
फिर हुई किसकी
विजय अंत में मैं देखती हूँ, अपने
इन्द्रियों पर काबू कर, मन को ईश्वर
में लगा, अपने अंतर्द्वंद को संयम के
साथ मन को शांत करने का प्रयास
करती हूँ
उसकी दुनिया में
उसकी दुनिया में मैं नहीं रहती थी
फिर भी वह मुझ में कहीं रहता था,
मुस्कुराहट थी उसकी होठों में
जिससे देख मैं जीती थी,
फासले इतने जैसे धरती पर रहकर
आकाश निहारा करती थी,
उस आकाश को देख कर जीवन मेरी
कटती थी, धरती से देख-देख आकाश
को यूं मुस्कुराते रहती थी, जैसे कोई
अंबर से मुझसे बाते करता हो,
मेरी आखों में डूब के कोई खुश होने को
कहता हो, प्रेम वहीं सच्चा जो बुढ़ापे में
समझ आए, जवानी में तो दो जवा दिल
खूबसूरती में नहाए
ईश्वर की माया
हैं ईश्वर की माया ये
कोई समझ नहीं पाया,
कहीं पर धूप निकली हैं,
कहीं पर हैं छाया,
प्रकृति ने हरियाली से
धरती को सजाया,
मानव को फल फूल अनाज
से भरपूर बनाया, हैं ईश्वर की
माया कोई समझ नहीं पाया,
सुनो दुनियाँ के लोगो
रब ने धरती पर क्या बनाया,
एडम ईव पैदा कर धरती
जगत बसाया, जनसंख्या पे
कंट्रोल करना मानव को नहीं
सिखाया, हैं ईश्वर की माया ये
कोई समझ नहीं पाया,
अच्छों के लिए परलोक में स्वर्ग
बुरों के लिए नरक बनाया,
चार बेद रचकर मानव को
मानव बनाया, मौतिक और
आध्यात्मिक जीवन का भेद,
बताया, अल्प बुद्धि देकर मानव
में घमंड भर दिया, स्वार्थ वश
कुलहाड़ा अपने पैर पर ही मार लिया,
हैं ईश्वर की माया कोई समझ नहीं पाया,
काम, क्रोध, मोह में पड़ कर मानव धर्म भूल गया,
सुख दे भेजा पहाड़ पर, दुखों का पहाड़ सिर धर लिया,
हैं ईश्वर की माया कोई समझ नहीं पाया,
धन की लालच में अपने माता
पिता को भूल गया, इस जगत के
रचईता का गुणगान गाना छोड़ दिया,
हैं ईश्वर की माया कोई समझ नहीं पाया
मनीषा झा
सिद्धार्थनगर
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