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मन के अँधेरे में (in dark of mind)
मन के अँधेरे में (in dark of mind)
छिपा पडा़ हैं अपार खजाना,
मन के अँधेरे में।
ढुंढ़ सको तो ढुंढ़ लेना,
मन के अँधेरे में।
वहीं मिलेंगे राम-रहीम,
वहीं मिलेगा कान्हा कन्हैया।
छिपे पडे़ हैं, मन के अँधैरे में।
हे! बन्धे मन-मंदिर की बत्ती जला दे,
तेरा मन अमृत का प्याला,
यहीं काबा, यहीं शिवाला।
न मिलेगा मंदिर-मस्जिद,
न मिलेगा गिरजाघर में।
सब कुछ तुझे मिल जाएगा,
मन के अँधेरे में॥
काश! वह कह देती
घर में एक बुढिया…
भरा पूरा परिवार…
उसके खुशियों की बगिया हैं
सब अच्छा हैं…
खाना भी मिल जाता हैं
पीना भी मिल जाता हैं
मगर …
बहू को ये बुढिया
अच्छी नहीं लगती
क्योंकि बहू के आधे से अधिक
काम वह बुढिया कर लेती हैं
बुढिया को पता है
काम करने वाले बहुत हैं
मगर फिर भी उनका मन…
कहता है…
शायद! वह सुनना चाहती हैं
अपने बहू के मुँह से
कि माँ जी आप बैठो
ये काम मैं कर दूंगी।
ये समझ कर कोई न कोई
काम हाथ में ले लेती हैं
शनैः शनैः उम्र भी …
जवाब देने लगी हैं
बुढिया बीमार थी
प्यास के मारे …
कंठ सुखे जा रहा हैं
पर पता है
कोई नहीं कहेगा
कि माँ जी पानी पीना हैं
सो बुढिया स्वयं उठ
अपने पैरो पर…
भरोसा कर पनघट
को चली ही थी
इतने में तो
पैरो ने जवाब दे दिया …
वो धडा़म… से गिर पडी़
शायद वह उनके जीवन का
आखिरी दिन था …
मालिक ने सुन ली
बहुत परेशान हो रही हैं
बेचारी …
क्यों न उन्हें इस जहन्नुम
से छुटकारा दिया जाए
परन्तु
बुढिया के सीने में
एक आह
कुछ कहने को रुकी हुई हैं
वो सुनना चाहती थी …
पर आँखे खुली ही रह गयी
साँसे थम गयी…
खुली आँखे
शायद सुनना चाहती थी!
काश! वह कह देती
माँ जी पानी मैं दे देती …
हमें पता हैं…
हमें पता हैं…
तुम क्या करते हो?
जब चुनाव आता हैं…
तो कोरोना लाते हो
शिक्षा के मंदिर
बंद करके
हमें जिस्म से नहीं
दिमाग से अपाहिज…
बनाते हो…
अपना उल्लू सीधा
करने को…
जन जन में
नफरत का जहर…
घोलतें हो…
देश की एकता,
अखण्डता
सभ्यता और संस्कृति
मिटाने को…
छद्म चोला
हिन्दू बनते हो…
धर्म के नाम पर
सता की
रोटियाँ सेकते हो
असल में
धर्म का मर्म …
नहीं जानते हो…
इंसानों को मारकर
तुम धर्म रक्षा की
बात करते हो…!
नरपत परिहार ‘विद्रोही’
वणधर, तह. रानीवाडा़, जालोर
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