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अज्ञान (ignorance)
ज्ञान-अज्ञान (ignorance) की बातें छोड़ो,
मन से मन का नाता जोड़ों।
प्रेम की बोली तुम सब बोलो,
पहले तोलो फिर तुम बोलो।
कोरोना काल जो आया है,
भारी विपदा साथ वह लाया है।
वो न देखे जात-धर्म,
वो करता केवल कर्म।
अज्ञान की बातें छोड़ कर हमको,
भेदभाव सब भूल कर हमको।
कोरोना की इस जंग में हमको,
सबका साथ निभाना होगा।
अज्ञानता के चक्कर में आकर,
भूल से हमको बचना होगा।
मुँह पर मास्क ज़रूरी है,
दो में दो गज की दूरी है।
पर मन से मन की हो दूरी,
इसकी नहीं मंजूरी है।
अपनी सीमा में रहकर,
अपना हर कर्तव्य निभाओ।
किसी उदास चेहरे की,
हँसी का कारण बन जाओ।
मानवता की जोत जगाकर,
जीवन को खूबसूरत बनाओ।
अज्ञान के तम से निकलना होगा,
ज्ञान के रवि को मन में भरना होगा।
इससे हम कोरोना को हरायेंगे,
अपनी ज़िन्दगी खुशनुमा बनायेंगे।
माँ
माँ ही जीवन का आधार,
माँ ही जीवन का सार।
माँ ही जीवन को देती धार,
माँ ही बच्चे का संपूर्ण संसार।
माँ जीवन में निभाती,
कितने किरदार?
कभी सखा, कभी गुरु बन,
देती अच्छे संस्कार।
माँ दुआ है, माँ प्यार है,
जो लाती सदा ज़िन्दगी में बहार।
माँ से जो न करता प्यार,
उसका सुखी नहीं होता संसार।
माँ है भगवान के समान,
माँ के सान्निध्य में,
गम भी, खुशी का,
ले लेते आकार।
माँ की गोद, सुख की खान,
माँ की गोद जन्नत समान।
माँ का प्यार पाने को,
देवता लेते बार-बार अवतार।
जहाँ माँ, वहाँ भगवान,
जहाँ भगवान, वहाँ सुख अपार।
पाओगे दुआयें रहोगे खुशहाल,
माँ से करोगे जब प्यार बेशुमार।
माँ तुम कैसे जान जाती हो
माँ तुम कैसे जान जाती हो,
मेरे दिल की हर बात।
मेरा सोचना, तेरे दिल तक पहुँचना,
न जाने कौन-सा है तार?
जो पहुँचा देता है झट से,
मेरे दिल की हर बात।
बिन माँगे सबकुछ दे देना,
जैसे जादुई छड़ी हो तुम्हारे पास।
सोचती हूँ कई बार,
माँ क्या पीकर आई, इस धरा पर?
न थकती न करती आराम,
रखती हर समय परिवार का ध्यान।
करती सारा दिन घर और बाहर का काम,
तुम्हारे मुख पर कभी नहीं देखी थकान।
माँ तुम तो मेरे लिये हो पूरा जहान,
खुशी हो या गम,
बांटना अच्छा लगता है तुम्हारे ही संग।
खुशी चौगुनी हो जाती है,
गम छूम़ंन्तर हो जतॎा है।
माँ तुम तो हो मेरी भगवान,
तुम्हारे से ही बढ़ती, मेरी आन-बान-शान।
माँ तुझे सलाम, माँ तुझे सलाम।
मैं-अहम
जब मन में आ जाती मैं,
बुद्धि मलिन कर जाती मैं।
परायेपन की भाषा वह बोले,
चाहकर भी न अपना मन खोले।
रिश्ते सब हो जाते दूर,
करता जाता वह भूल पर भूल।
मन पर चढ़ती जाती धूल,
बेवजह हर बात को देता तूल।
अहंकार में जलता जाये,
सबको अपने से नीचा पाये।
क्लास-क्लास वह करता जाये,
समाज से एक दूरी बनाये।
मन में भ्रम पालता जाये,
मित्र न उसने कोई बनाये।
अकेलेपन का रोग लग जाये,
उसके पास कोई न आये।
अंत समय बहुत पछताये,
काया भी न साथ निभाये।
मन भी साथ ही मर जाये,
बार-बार वह यम को बुलाये,
प्राणों को वह हर ले जाये।
प्रभु से याचना
दे मुझे सद्बुद्धि प्रभु, ऐसा न कोई मैं काम करूँ,
बाद में पश्चाताप की अग्नि में आत्मघात करूँ।
करना इतनी कृपा मुझ पर
हे दयानिधि, कृपानिधान,
नम्रता का संचार तुम मुझमें ऐसा भरो।
अधीरता वश कर्म ऐसा मैं कोई न करूँ,
बाद में पश्चाताप की अग्नि में जलती मरूँ।
सकारात्मकता की ऊर्जा तू मुझे प्रदान कर,
मानवता के लिये उठे क़दम ऐसी शक्ति दान कर।
मोह ममता में आकर न ऐसा काम करूँ,
जैसे मन्थरा ने कैकयी को बरगलाया था।
राज भरत को राम को वनवास दिलवाया था,
बाद में वह कितनी रोयी पछतायी थी,
राम को वन से वापिस न ला पायी थी।
आपदा आयी धरा पर जो तुमको तो ज्ञान है,
लोभ लालच और शत्रुता का परिणाम है।
कई अज्ञानी अब भी न समझ पाते हैं,
न बनाते सामाजिक दूरी और,
न मुँह पर मास्क लगाते हैं।
जब बीमारी घर कर जाती
तब करते अफ़सोस और रोते पछताते हैं।
हे प्रभु तू सबके मन में संतोष भर,
ज्ञान के दीपक से आलोक कर।
कालाबाजारी दवाओं तक की करवाते हैं,
अंत में पकडे़ जाते हैं, करते अफ़सोस और पछताते हैं।
जेल की चक्की के साथ-साथ,
अपना मान-सम्मान भी गवाते हैं।
हे प्रभु सबके मन का तू संताप हर,
दया, ममता, और नम्रता का सबमें आलाप भर।
संघर्ष
संघर्ष ही जीवन है, जीवन ही संघर्ष है,
संघर्ष से ही व्यक्ति का होता उत्कर्ष है।
संघर्ष करना जो गया सीख,
जीवन की बाजी वह गया जीत।
संघर्ष कामयाबी की सीढ़ी है,
जिन्दगी संघर्षों से घिरी है।
बचपन से जवानी तक रहता संघर्ष जारी है,
शिक्षा प्राप्ति के बाद नौकरी की मगजमारी है।
संघर्ष से आज़ादी हमने पायी है,
दासता से मुक्ति संघर्ष ने दिलवायी है।
संघर्ष ने इन्सान को सदा ऊपर उठाया है,
इतिहास उठाकर देख लो सबने नाम कमाया है।
जीवन में संघर्ष ज़रूरी है,
इसके बिना ज़िन्दगी अधूरी है।
संघर्ष के बाद मिलती जो जीत है,
उस जैसी ज़िन्दगी में न कोई प्रीत है।
संघर्ष जीवन में बहुत कुछ सिखाता है,
मनुष्य को सोने से कुंदन बनाता है।
वक्त
वक्त बीत जायेगा, हाथ न आयेगा।
कद्र कर इसकी, नहीं तो पछतायेगा।
मात-पिता की कर तू सेवा,
उनके चरणों में स्वर्ग है तेरा।
कर्म कमा ले, नसीब बना ले,
कद्र कर इनकी, नहीं तो पछतायेगा,
वक्त बीत जायेगा———————।
गुरूजनों से ज्ञान तू पा ले,
सेवा, श्रद्धा का भाव अपना ले।
सद् मार्ग से आगे बढ़ जायेगा,
कद्र कर इनकी, नहीं तो पछतायेगा,
वक्त बीत जायेगा—————।
इस धरा ने जीवन दिया है,
इसके प्रति फ़र्ज़ बड़ा है।
वहन करती सब भार हमारा,
कद्र कर इसकी नहीं तो पछतायेगा,
वक्त बीत जायेगा—————-।
इन सबकी तू सेवा करके,
प्रभु की आँखों का तारा बन जायेगा।
प्यारा बन जायेगा, दुलारा बन जायेगा,
कद्र कर सबकी, नहीं तो पछतायेगा,
वक्त बीत जायेगा——————।
कान्हा के संग होली
शाम ने ऐसी मारी पिचकारी,
भीग गयी हैं सखियाँ सारी।
मन भीगा और तन भी भीगा,
प्रीत के रंग में रंग गयी सारी।
राधा के संग कृष्ण मुरारी,
रंगों से सरोबार (सनी) सखियाँ सारी।
लाल गुलाल हाथ में लेकर,
शाम के पीछे दौड़ी सारी।
पकड़े गये जब नंद गोपाल,
कसर उतारी गोपियों ने सारी।
होली खेलत हैं नंद गोपाल,
मस्ती में निकली टोली सारी।
हुड़दंग मचाते, मस्ती में गाते,
रंगों में रंग गयी गोकुल सारी।
प्रीत का रंग ऐसा चढ़ा है,
सुध-बुध भूली सखियाँ सारी।
डॉ. ममता सूद
कुरुक्षेत्र, हरियाणा
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