Table of Contents
दादी (Grandma) की बात न मानी
Grandma : जून का महीना था। गर्मीयों के दिन थे कि एक दिन भोर ढलने वाली थी। कि पापा ड्यूटी से आये ही थे और कहने लगे कि गर्मी बहुत तेज पड़ रही है। कहीं घूमने का मानस बनाते है। सामने बैठी दादी ने घूरते हुए कहा, आप को कहि जाने की ज़रूरत नहीं है।
ये सुनकर पापा की बोलती बंद हो गई और अंदर आ गए और उन्होंने अपने दोस्त के पास फ़ोन लगा दिया। कहने लगे कि कही घूमने चलोगे क्या पापा ने उनको बताया ही था, कि वह इतने खुश हुए की जैसे पापा ने उनकी मुँह की बात छीन ली।
मेरे पापा और उनके दोस्त ने मिलकर जम्मू कश्मीर में वेष्णो देवी माता के चलने का प्लान बनाया और अब पापा की निगाह दादी (Grandma) के आदेश को तरस रही थी। दादी ही घर को नियंत्रण में रखती थी। अचानक से पापा ने मेरे से कहा कि श्याम तुम दादी से पूछकर आओ की पापा घूमने जाना चाहता है। आप कहो तो, जैसे ही मैने दादी से कहा मेरी दादी (Grandma) पीछे-पीछे लाठी हाथ में लेकर कमरे की ओर आ गई। पापा को सामने बैठा देख कर दादी ने मंजूरी दे दी।
दादी ने मंजूरी क्या दे दी सब खुश थे, मेरी माँ और बहन तो कपड़े ज़माने में व्यस्त हो गई। पापा ने भी दोस्त को बोल दिया कि हम आने वाले रविवार को घूमने चलेंगे, और अब क्या था। सब अपने-अपने सामान को ज़माने लगे और पांच दिन पहले ही तैयारीयाँ शुरू कर दी। हमारे ४ सदस्य (पापा मम्मी और मेरी एक बहन और मैं) और मेरे पापा के दोस्त के ३ सदस्य थे और सारी तैयारियाँ थी।
मेरे पापा के दोस्त सुबह जल्दी ही हमारे घर आ गये और फिर ट्यूरिस्ट गाड़ी आकर रूकी। हम बहुत ही उत्साहित थे, की कश्मीर देखेंगे आज तक सुना ही था कि वहाँ का दृश्य बहुत ही आनन्द दायक और खूबसूरत होता है। लेकिन अब देखने का मौका मिलेगा।
अब जैसी ही सब बैठने लगे अब पापा दादी (Grandma) के चरण स्पर्श करने लगे और दादी ने मुस्कुरा कर आशीर्वाद दिया। मगर मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी दादी (Grandma) हमें अब भी जाने से रोक रही हो। अब सब हँसी ख़ुशी रवाना हो गए, लेकिन दादी बाहर घर पर अकेली बैठ कर देख रही थी।
सब गाना गाते हुए मनोरंजन कर रहे थें। अब हम माता के दरबार में पहुँच गए थे। हमनें माता के प्रसादी ली और माता के दर्शन करने गए भीड़ मानों की सारा भारत एक ही दिन में दर्शन कर राह हो, जैसे तैसे माता के दर्शन किये और हम खाना खाने के लिए होटल की तलाश कर रहे थे।
पापा और उसके दोस्त साथ-साथ थोड़े ही दूर एक होटल वाले से बात करने गए ही थे। मेरी माँ ने हाथ में बैग टांग रखा था। आचानक से दो आदमी आये और उसकी डोरी काट कर बैग को लेकर फरार हो गए। बैग में फ़ोन पैसे और कीमती जेवरात थे मेरी माँ ने उस बैग में दर्शन करने जाने से पहले ही कीमती सामान को खोलकर रख लिए थे।
मेरी माँ चीखी भी जब तक वह न जाने कहाँ गायब हो गए पापा आये और उनको ये सारी घटना बताई तो पापा के पैरों के नीचे ज़मीन खिसक गई। अब किसी ने भी खाना नहीं खाया और गाड़ी में बैठकर घर की तरफ़ रवाना हुए और पापा बार-बार दादी (Grandma) को याद कर रहे थे मेरी माँ ने मना कर दिया था लेकिन मैंने उसकी बात नहीं मानी। हालांकि हमने रास्ते में खाना खाया मगर जो हंसी मज़ाक का माहोल था वह अब नहीं राह मुझे आज भी याद है ऐसे विस्मरणीय दृश्य को मैं कभी नहीं भुला सकता हूँ।
श्याम सिंह “बेवजह”
पता:- लालसोट (दौसा) राजस्थान
यह भी पढ़ें-
१- तिलांजलि
२- वृद्धाश्रम
1 thought on “दादी (Grandma) की बात न मानी”