Table of Contents
विदेशी गुणगान (Foreign praise) बनाम राष्ट्रीयता बदनाम
दोस्तों आज हम लेकर आये हैं नीरज गौतम जी का आलेख विदेशी गुणगान (Foreign praise) बनाम राष्ट्रीयता बदनाम… नीरज गौतम जी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से हैं… नीरज जी की लेखन के क्षेत्र में बेहद रूचि है… अब तक इन्होंने बहुत सी रचनाओं का सृजन किया है… तो आइये पढ़ते हैं नीरज जी का यह आलेख…
मेरे एक परिचित हमेशा ही अपने उच्च विचार सब पर थोपते हुए, अपने आप को विद्वान एवं सामने वाले को कम ही आकते नज़र आते हैं। कारण कि उनके कितने ही प्रिय जन व रिश्तेदार विदेश में रहते हैं और उनके द्वारा काफ़ी कुछ ज़्यादा जानकारी विभिन्न देशों के विषय में उनके पास रहती है। और वैसे भी आजकल कुछ मुश्किल भी नहीं है किसी जगह के विषय में जानकारी रखना और रखनी भी चाहिए। अच्छी बात है।
लेकिन जो मन को कुरेदता है। वह यह है कि विदेशियों की कुछ अच्छी बातों का बढ़ चढ़कर गुणगान करना और अपने देश को छोटा साबित करने का प्रयास करना। यह सिर्फ़ अपने ज्ञानी होने का प्रदर्शन करने की कोशिश में होता है। अगर आप जानते हैं कि किसी देश विशेष में बहुत साफ़ सफ़ाई है, तो कहीं कोई देश अपने चिकित्सा ज्ञान व अनुसंधान में बहुत आगे हैं तो क्या… बात करने के ढंग में जो कसैला पन अपने देश के लिए दिखता है वही मेरा यह व्यंग लिखने का उद्देश्य है।
यही एक उदाहरण देखिए छोटा-सा है, ” अरे भाई उक्त देश में तो साफ़ सफ़ाई में कोई मुकाबला नहीं है। एक हमारा देश है जिसमें जहाँ देखो कूड़ा, कचरा, , कूड़े के ढेर और मैंले कुचैलेसे लोग ही दिखते हैं। यही रवैया है अधिकतर ऐसे लोगों का जो अपने आपको ज़्यादा बुद्धिमान समझते हैं। ऐसे ज्ञानियों से यदि पूछा जाए कि आपके ऐसे बोलने से क्या देश में साफ़ सफ़ाई हो जाएगी? क्या आप के भाषण सुनकर लोग प्रोत्साहित होकर सफ़ाई रखने लगेंगे? जी नहीं ऐसा कुछ भी नहीं होगा। न ही लोग आपको सुनेंगे यदि सुनेंगे तो भी घृणा भरी नज़र से ही देखेंगे।
आप ज्ञानी तब सिद्ध होंगे, जब आप अपना बहुमूल्य समय व ऊर्जा को बोलने में ने लगाकर उसी क्षण से अपने घर, गली, मोहल्ले के स्तर पर साफ़ सफ़ाई की व्यवस्था में लग जाएँ। हो सकता है आपको देखकर बाक़ी सब लोग भी आपके साथ जुड़ जाएँ और तब आपके उस ज्ञान का कुछ सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो। सरकार या सफ़ाई कर्मचारी का ही कर्तव्य नहीं बनता कि देश में साफ-सफाई रहे। देश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी बनती है ठीक उसी तरह जिस तरह सारी सरकारें, सारे शिक्षक, सारे विद्यालय, सारी शिक्षण नीतियाँ आपके बच्चे को शिक्षित करने में लगे हैं, परंतु आपका बच्चा फिर भी कमजोर है।
लेकिन इस मामले में आप दूसरे ज़्यादा पढ़ने वाले बच्चे की तारीफ अपने घर में करने तक ही नहीं रुकेंगे बल्कि आप उसी दिन से अपने बच्चे को स्वयं भी पढ़ाने लगेंगे और ट्यूशन भी भेजेंगे हर संभव प्रयास करेंगे कि आपका बच्चा कहीं दूसरे बच्चों से पीछे न रह जाए। क्योंकि वह आपका बच्चा है उससे आपका भविष्य जुड़ा हुआ है। लेकिन क्यों? क्या देश आपका नहीं है? देश से आपका भविष्य नहीं जुड़ा है फिर वहाँ क्यों आप सिर्फ़ अपने देश की कमियाँ निकाल कर ही संतुष्ट हो जाते हैं? और चंद बुराइयाँ करके ही आप अपने आप को बुद्धिमान साबित करने का प्रयास करते हैं।
आप वास्तव में एक विलक्षण बुद्धि के मालिक होंगे, लेकिन आपकी विद्वता सिद्ध करने का तरीक़ा यदि कुछ यूं हुआ होता कि आप विदेशी मुद्रा तो अपने देश में लाते ही और उसी के साथ विदेश की कुछ अच्छाइयाँ जो आपको अच्छी लगती है। वह भी अपने देश की समृद्धि शाली संस्कारों व सभ्यता में जोड़ने का भरकस प्रयास अपने स्तर से कर चुके होते। सिर्फ़ अपने व्यक्तिगत स्वार्थों वह हितों तक ही सीमित ना हुए होते। हमारे देश में आदि काल से आधुनिक काल तक विविध एवं गौरवशाली सभ्यता व संस्कारों का प्रभुत्व रहा है। कहीं कोई कमी नहीं है, कमी हैतो सिर्फ़ कुछ कलुषित मानसिकता वाले व्यक्तियों की संख्या में बढ़ोतरी होना, क्योंकि ऐसे लोग जो मृत शरीरों के ऊपर पैर रखकर अपनी तिजोरियाँ भरना जानते हैं और बड़ी-बड़ी संस्थाओं में धन दान करके भारी-भारी रसीदें कटवाते हैं और अपने नाम का गुणगान करवाते हैं। वही लोग बैठकर अपने देश की कमियों का बखान करते हैं।
साहब कमियाँ तो हर एक प्राणी में, हर एक समाज में, हर एक प्रणाली में वह हर एक देश में व्याप्त होती हैं। लेकिन हमें कमियों का गुणगान नहीं करना है, हमें कमियों में सुधार करना है और हर एक में छिपी विशेषताओं का गुणगान करना है। यदि हम कुछ बड़ा करने में सक्षम नहीं है तो हम सिर्फ़ इतना तो कर सकते हैं कि यदि कोई हमारे सामने हमारे देश और देशवासियों की कमियाँ गिनाने बैठे तो, हम उसे ना तो सुने न ही किसी और को सुनने दे।
यदि आप इतने मजबूर हैं कि यह भी नहीं कर सकते तो आपको चाहिए कि उन कमियों को सुनकर उनका विश्लेषण करें। करें जहाँ मौका मिले जिस भी स्तर पर जिस भी माध्यम के द्वारा आपको उन कमियों में सुधार करने का प्रयास करना चाहिए। ना कि अपने देश की तुलना कुछ असभ्य से लोगों से करके स्वयं को खुश कर लें। इस रवैये को छोड़कर अगर अपने देश को भी अपने बच्चे की तरह ही अधिक और अधिक संवारनेऔर आगे बढ़ाने का प्रयास करें तो हमारे देश का भविष्य इतना उज्ज्वल होगा कि सदियों-सदियों तक विदेशी आँख उठाकर हमारे देश की तरफ़ नहीं देख पाएंगे।
“अपने राष्ट्र के गौरव गान में ही है, निहित राष्ट्र वासियों का अभिमान”
नीरज गौतम
(सरसावा) सहारनपुर
यह भी पढ़ें-
1 thought on “विदेशी गुणगान (Foreign praise) बनाम राष्ट्रीयता बदनाम”