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दीपोत्सव (festival of lights)
festival of lights: आओ पावन धरा में अंतर्मन का दीप जलाएँ,
हृदय से कलुषता, पापाचार अवसान करें।
धरा में समरसता, सद्भाव का रसधार बहायें,
हर दीन-हीन के घर में दीप प्रज्वलित करें॥
दीपोत्सव का सकल वसुधा में खुशियाँ छाया है,
घर-द्वार में दीपों का झिलमिल असंख्य कतार।
दीप ज्योत्सना से हृदय तिमिर अवसान करें,
हर्षोल्लास से मनाएँ दिवाली का पावन त्यौहार॥
दिवाली के शुभ मुहूर्त में उत्तुंग उमंग तरंग,
हर शोषित, वंचित जनों के घर में दीवाली हो।
कुम्हार कृत के सौंधी मिट्टी का दीप जलाएँ,
हर असहाय निबलों के घर में खुशहाली हो॥
एक दीप प्रज्वलित करें उन शहीदों के नाम,
जो मातृभूमि के रक्षार्थ सरहद में बलिदान हुए।
भारत भूमि की सेवार्थ अटल प्रहरी बनकर,
जो सर्वस्व न्योछावर कर सरहद में कुर्बान हुए॥
पटाखों के धूम से पर्यावरण प्रदूषित ना करें,
अंतर्मन का दीप प्रज्वलित कर दैदीप्यमान हो।
उम्मीदों का चिराग जीवन में कभी बुझे नहीं,
सौहार्द, भ्रातृत्व अपनाकर स्व प्रकाशमान हो॥
हिंदुस्तान की मिट्टी
हिंद की मिट्टी में अजब सुगंध,
स्वर्णिम मिट्टी धरा की चंदन।
जिसमें महावीर, गौतम जन्में,
उस मिट्टी को शत-शत वंदन॥
हिंदुस्तान की सौंधी मिट्टी का, अजर, अमर कहानी है।
मातृभूमि की रक्षार्थ, जिसमें जन्में सच्चे हिंदुस्तानी हैं॥
इस मिट्टी में शौर्य, साहसी जन्में,
जिन्होंने मिट्टी को रक्त रंजित किया।
वीरों ने प्राणों की आहुति देकर,
अपना सर्वस्व बलिदान किया॥
हिंदुस्तान की सौंधी मिट्टी का, अजर, अमर कहानी है।
मातृभूमि की रक्षार्थ, जिसमें जन्में सच्चे हिंदुस्तानी हैं॥
धरा की रज को तिलक लगाकर,
रणधीर रणभूमि में उतर जाते हैं।
वीर रिपु दल का सर्वनाश कर,
विजय का पताका फहराते हैं॥
हिंदुस्तान की सौंधी मिट्टी का, अजर, अमर कहानी है।
मातृभूमि की रक्षार्थ, जिसमें जन्में सच्चे हिंदुस्तानी हैं॥
हिन्दी की मिट्टी पतित पावन सी,
जिसमें मीरा, तुलसी का भक्ति है।
हिंद का मिट्टी अजब निराली,
जिसमें वीर शिवाजी का शक्ति है॥
हिंदुस्तान की सौंधी मिट्टी का, अजर, अमर कहानी है।
मातृभूमि की रक्षार्थ, जिसमें जन्मे सच्चे हिंदुस्तानी हैं॥
हिंद का मिट्टी वीरों का क्रीडा स्थल,
जिसमें योद्धा लहू की होली खेले हैं।
वतन के स्वाभिमान की रक्षा हेतु,
रणबांकुरों नाना यातना झेलें हैं॥
हिंदुस्तान की सोंधी मिट्टी का, अजर, अमर कहानी है।
मातृभूमि की रक्षार्थ, जिसमें जन्में सच्चे हिंदुस्तानी हैं॥
हिंदुस्तान की उर्वर मिट्टी में,
धन-धान्य की बालियाँ खिलते हैं।
धरती माँ हरित चुनर ओढ़ी है,
जहाँ नव नित कलियाँ खिलते हैं॥
हिंदुस्तान की सौंधी मिट्टी का, अजर, अमर कहानी है।
मातृभूमि के रक्षार्थ, जिसमें जन्में सच्चे हिंदुस्तानी हैं॥
वीर सपूत
माँ भारती के अमर वीर सपूत,
कारगिल युद्ध में कुर्बान हुए है।
उन शहदतों को सहृदय नमन,
जो मातृभूमि के लिए बलिदान हुए॥
पावन वसुंधरा की शौर्य, साहसी,
दुश्मनों पर सशस्त्र प्रहार किए।
हिंद के मस्तक को ऊँचा कर,
पाक आतंकियों पर वार किए॥
लालिमा रक्त रंजितअभिषेक कर,
निज मातृभूमि का सम्मान किए।
कश्मीर को किसलय केसर कर,
स्वर्णिम वतन का उद्धार किए॥
जब पाक के चरम उग्रवादियों ने,
भारत के सरहद को पार किए।
खून खौला भारती के लालों का,
उत्तेजित होकर शत्रु सर संधान किए॥
कश्मीर में घुसकर पाक आतंकी,
लद्दाख में भी घात ल गाए थे।
कतिलों को नहीं बक्शे हिंद जवान,
माँ भारती को रिपु सिर भेंट चढ़ाएं॥
२६ को विजय आपरेशन मूर्त किये,
हिंद में जयघोष का शंखनाद हुआ।
रणवीरों का यश पताका फहर गया,
कारगिल युद्ध में भारत विजयी हुआ॥
सफलता निश्चित है
कर्तव्य मार्ग में अटल रहो,
निश्चित कामयाब होगे वहाँ।
तू हृदय का साहस न तोड़,
विकट परिस्थितियाँ हों जहाँ॥
विघ्न, बाधाओं को लांध कर,
अब पहुँच जाओ वहाँ।
मन में दुस्साहस न हो
प्रतिकूल परिणाम आए जहाँ॥
गर रुक गए पथ में कहीं,
तो फिर सफलता कहाँ।
इरादों को मज़बूत कर,
अनवरत चलते रहो वहाँ॥
ध्येय का पथगामी के लिए,
कठिन मुकाम कहाँ।
लगन, मेहनत, धैर्य, मनोबल,
अगर साथ में हों जहाँ॥
गर लक्ष्य से फिसल चुके हो,
आशा की दीप जलाओ वहाँ।
रग-रग में जोश भरो,
फिर पथ में अंधकार कहाँ॥
दुर्भाग्य की अमिट लकीरें,
सौभाग्य में तब्दील होगा वहाँ।
दृढ़ निश्चय, समर्पण भाव,
संकल्प शक्ति हो जहाँ॥
मुसीबत में लक्ष्य साधक,
पथ से विचलित होते कहाँ।
जहाँ हर कुछ असंभव हो,
सहज कामयाब होते वहाँ॥
तम हटेगा लक्ष्य मार्ग से,
अब अरुणोदय होगा वहाँ।
निश्चित ही मुसाफिर का,
अब भाग्योदय होगा वहाँ॥
स्वदेशी स्वर्णिम वस्तुएँ
स्वदेशी वस्तुओं को आत्मसात कर,
वतन का मस्तक ऊंचा करना है।
मौलिकता है हिंद के ज़मीं पर,
मुल्क की सपनों को पूरा करना है॥
जिसने दोस्ताना का हाथ बढ़ाया था,
आज वोअपना रुतबा दिखला दिया।
सरहद में ड़टे वीर सपूतों का,
निर्दयी कातिल लहूलुहान किया॥
हिंद की वस्तुओं से सुवासित,
हृदय का हर कोना-कोना।
स्वदेशी वस्तुएँ अजब रसीले,
मधुरस सादृश्य सरस सलोना॥
शत्रु देश के नीरस वस्तुओं को,
तन, मन से बहिष्कार करें।
वतन के स्वर्णिम वस्तुओं को,
हृदय से सहर्ष स्वीकार करें॥
यदि रिपु दमन करना है तो,
संकल्प करें विजय का ध्येय हमारा।
बौखला जाए चीन साहस देखकर,
चरमरा जाए अर्थव्यवस्था सारा॥
आकृष्ट न हो बनावटी वस्तुओं पर,
क्षणिक सुखद की अनुभूति है।
कोरोना की जलजला से व्यथित मन,
दोस्ताना देश चीन की करतूती है॥
विलासिता की वस्तुओं का त्याग करें,
जिसमें चीन का छाप पड़े हों।
आर्यावर्त की भक्ति को साकार करें,
विपदा काल में देश के साथ खड़े हों॥
दहेज प्रथा
दहेज प्रथा जग में आतंकवाद का पर्याय,
बेटी निष्ठुर, निर्मम दरिंदों के शिकार हुई।
बेटी सिसकियाँ हरदम लेती रहती है,
पावन-सी धरा में बेटी की अपकार हुई॥
बेटी पितृ हृदय आँगन की राजकुमारी,
पर घर में कुछ अरमान लेकर आई थी।
कातिलों के द्वारा बेटी अपमानित हुई,
बेटी पति के घर मेहंदी रचा कर आई थी॥
बेटी की जीवन चमन उजड़ गई,
बेटी की हृदय में अंतर्द्वंद चल रहा है।
बेटी की जीवन उमंग गमगमीन हुआ,
नित हृदय में क्रोध की अग्नि जल रहा॥
बेटी धरा में अभिशाप नहीं वरदान है,
गुनाहगारो बेटी के सह अत्याचार बंद करो।
दहेज के लोभी बेटी को प्रताड़ित ना कर,
बेटी के साथ कुकृत्य करना बंद करो॥
हाय! बेटी जीवन चमन की प्रस्फुटित कली,
तुम्हारी जीवन करुण क्रंदनमय हो गया।
स्वार्थ सिद्धि के कारण तुम अपमानित हुई,
तुम्हारी मुखाग्नि से तन, मन, बेदग्ध हुआ॥
हिंदी राष्ट्र धरोहर है
हिंदी संस्कृति सुता बहु भाषाओं की जननी है,
हिंदी नव विवाहिता सदृश्य मस्तक में सोहे बिंदी।
हिंदी भाषा की सुरम्य लय, ताल, यति, गति है,
हिंद भूमि में मधुरस सम सरस सुवासित हिंदी॥
हिंदी कोमल कविता, छंद, गजल, गीत सोहर है।
हिंदी भाषा सहज, सरस, सुवाच्य राष्ट्र धरोहर है॥
हिंदी कभी स्वतंत्रता की ज्वालंत चिंगारी बनी,
हिंदी से हिंद की धरती में फैला अति हर्ष।
हिंदी आंदोलन में क्रांतिकारियों का भाषा बनी,
हिंदी भाषा से कामयाब हुआ स्वतंत्रता संघर्ष॥
अलख जागृति का मिसाल हिन्दी राष्ट्र धरोहर है।
हिंदी लेखनी की आवाज, जग में अति मनोहर है॥
हिंदी राष्ट्र की सुरम्य, सरल, सुहृद, सुग्राह्य भाषा,
हिंदी भाषा अखिल विश्व में सिरमौर है।
हिंदी भाषा पीयूष बनकर बहती है जीवन तल में,
सुंदर, सुबोध भाषा, जग में क्या कोई और है॥
हिंदी भाषा अति मनभावन, हिन्दी राष्ट्र धरोहर है।
हिंदी भाषा सुवाच्य, सुलेख अति मनोहर है॥
हिंदी कवि वृंदो का लेखनी की भाषा,
हिंदी भाषा में साहित्य का अथाह वेग समाया है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र हिन्दी में साहित्य सर्जन कर,
हिंदी को हिंद में उत्तुंग श्रृंग तक पहुँचाया है॥
हिंदी जन-जन की भाषा, हिन्दी राष्ट्र धरोहर है।
हिंदी प्रतिष्ठित, कीर्तिमान विश्व का जौहर है॥
हिंदी भाषा में स्वराष्ट्र का स्वाभिमान छिपा है,
हिंदी भाषा का सर्वजन सहृदय से करें सम्मान।
हिंदी राष्ट्र की विविधता को एक सूत्र में समेटी है,
विश्व में हिन्दी को नहीं होने देना है अपमान॥
अंतःकरण की यही पुकार, हिन्दी राष्ट्र धरोहर है।
हिंदी भाषा सरल, सुबोध, जग में अति मनोहर है॥
गुरु वंदना
वंदन को आतुर,
रोली अक्षत चंदन है।
परम पूज्य गुरुजनों का,
शत-शत अभिनंदन है॥
गुरु के चरणारविंदो में,
श्रद्धा सुमन अर्पित है।
नतमस्तक गुरु चरणों में,
तन, मन, धन समर्पित है॥
अज्ञान तिमिर नाश कर,
जीवन में सुपथ दिखलाया।
प्रकाश पुंज विकीर्ण कर,
सद् मार्ग में चलना सिखाया॥
गुरु अखिल ब्रह्मांड शिरोमणि,
परहित में जीवन को तपाया।
ज्ञान गंगा का रसधार बहाकर,
जीवन को सुरभित बनाया॥
दिव्य ज्ञान का भंडार गुरु,
शिष्य के अंतस को गढ़ता है।
जीवन को ज्योतिर्मय कर,
नव नूतन संस्कार भरता है॥
गुरु जगत में महिमा मंडित,
जन-जन के उपकारी।
गुरु ज्ञान का अथाह संमदर,
त्रैलोक्य में महिमा न्यारी॥
अखिल विश्व में नभ से ऊँचा,
गुरु जगत में सूर्य समान।
गुरु है त्रिलोक दर्शी,
गुरुवर है धरा में महान॥
हे सिद्ध विनायक
हे! गौरी नंदन सकल जग वंदन,
गजानन स्वामी रिद्धि सिद्धि के दाता।
मेरे घर में पधारो लंबोदर महाराज,
सर्व विघ्न विनाशक सद्बुद्धि प्रदाता॥
हे! सकल चराचर के स्वामी गणाध्यक्ष,
प्रथम पूज्य अखिल ब्रह्मांड में शिवनंदन।
सकल काज सिद्ध करो सिद्ध विनायक
प्रभु हृदय से है शत-शत अभिनंदन॥
हे! मोदक प्रिय गणनायक चतुर्भुज धारी,
मनोकामना पूर्ण करो सकल दुखहर्ता।
वक्रतुंड सकल भव बाधा हरण करो,
एकदंत प्रभु जगत में सर्व मंगल कर्ता॥
हे! प्रातः वंदनीय प्रभु जगत शिरोमणि,
सूर्य कोटि समप्रभा जगत बलिहारी।
बेलपत्र, सुमन गुच्छ, अक्षत के भोगी,
ज्ञानी, ध्यानी, गजानन सबके हितकारी॥
माँ यशोदा का कान्हा
देवकी नंदन सकल जग वंदन, मथुरा में अवतार लियो।
भाद्र मास कृष्ण पक्ष, तिथि अष्टमी को प्रकट भयो॥
हे! करुणा के सागर भक्तवत्सल, दीनन के हितकारी।
जग में पतित पावन प्रभु, रूप निरखि मुदित महतारी॥
नंद के लाल दीनदयाल, पापी कंस का सर संघान किये।
प्रभु काकासुर का वध कर, सर्व चराचर उद्धार किये॥
मीरा के गिरधर गोपाल, मुख मुरली सिर मोर पंख सोहे।
अनुपम श्याम छवि, सकल नर-नारी के मन मोहे॥
हे! प्रभु गोवर्धन नग को, अंगुल में उठाकर लीला कियो।
पूतना की विष दुग्ध पान कर, पिशाच धराशायी कियो॥
वृंदावन की खोरी-खोरी में, गोपियों संग रहस रचायो।
नटखट प्रभु मटकी फोड़कर, ग्वाल सह माखन खायो॥
नंदनवन में ग्वाल बाल सखाओं, के साथ गाय चरायो।
मुख मुरली की मधुर तान, गोपियों के मन को लुभायो॥
हे! दीनन के हितकारी, सखा सुदामा को गले लगायो।
नयन जल से पग धुलकर, सनेह जल पान कियो॥
बाल सखा सुदामा के, नेह तंदुल को मुट्ठी भर खायो।
हे! भगवन् सुदामा को, तीन लोक चौदह भुवन दियो॥
हे! अखिल ब्रह्मांड के स्वामी, मेरा जीवन उद्धार करो।
इस कलिकाल की भयावह से, मेरा नैय्या पार करो॥
राखी का मूल्य
वतन का प्रहरी बनकर अपना कर्तव्य निभाना भैया।
स्वर्णिम स्वप्न सजायी हूँ राखी का मूल्य चुकाना भैया॥
भाई-बहन का प्यार न रहे अधूरा,
हृदय में कुछ अरमान सजायी हूँ।
अडिग रहो विकट परिस्थितियों में,
प्रेम का रक्षा कवच लेकर आयी हूँ॥
वतन का प्रहरी बनकर अपना कर्तव्य निभाना भैया।
कुछ अरमान सजायी हूँ राखी में तुम आना भैया॥
सजल नयन टकटकी लगाए,
राह निरखि रही हूँ बारंबार।
अनमोल पवन रिश्तों का बंधन,
भैया तुम हो मेरी जीवन पतवार॥
वतन का प्रहरी बनकर अपना कर्तव्य निभाना भैया।
स्वर्णिम स्वप्न सजायी हूँ राखी में तुम आना भैया॥
कर्तव्य मार्ग में अविचल अटल,
राखी के बंधन को निभाना भैया।
दृढ़ संकल्प का गाँठ बाँधकर,
स्नेह छाया से दूर न जाना भैया॥
वतन का प्रहरी बनकर अपना कर्तव्य निभाना भैया।
कुछ अरमान सजायी हूँ राखी में तुम आना भैया॥
सरहद से कब आओगे भैया,
राखी का सुंदर थाल सजायी हूँ।
पावन रिश्तों का डोर बाँधने,
तुम्हारे आंगन में आयी हूँ॥
वतन का प्रहरी बनकर अपना कर्तव्य निभाना भैया।
स्वर्णिम सपना सजायी हूँ राखी में तुम आना भैया॥
रिश्तों का बंधन राखी
अटूट पावन रिश्तों का पर्व राखी,
अनुराग, समर्पण का अनुपम बंधन।
रक्षा सूत्र से कलाइयाँ पावन होती हैं,
मस्तक शुभग शुचि कुमकुम चंदन॥
दृढ़ प्रतिज्ञा हो निज हृदय पटल में,
सहोदरा की विकट काल में रक्षा हो।
प्रेम समर्पण हो नित प्रागढ़ सम्बंधों में,
सुहागिन बहन की प्राणों से रक्षा हो॥
पुनीत सनेह सुमन प्रस्फुटित हुआ।
भगिनी की निर्मल हृदय आँगन में,
नेह गंध से सुवासित हृदय का कोना,
तन, मन प्रमुदित स्नेह के अवलंबन में॥
भ्रातृत्व भाव सदा बना रहे जीवन में,
सहोदरा सदैव यही कामना करती है।
भाई अडिग रहे सदा विकट घड़ी में,
भाई के दीर्घायु की विनय करती है॥
अनुजा के लिए रक्षा अमूल्य उपहार,
सदा स्वर्णिम चिर स्वप्न सजाती है।
खुशहाल हो मेरी भाई प्रतिपल,
भगिनी की नित यही भाव सुहाती है॥
हे! भगिनी शपथ है मातृभूमि की,
मैं तन्मयता से कर्तव्य निभाऊँगा।
समरसता, सद्भाव सदा रहे हृदय में,
वतन के रक्षार्थ बलि-बलि जाऊँगा॥
त्याग, समर्पण संकट के घड़ी में,
प्रेम, करूणा, सौहार्द हृदय से अर्पित है।
निजता का भाव मिटा कर हृदय से,
तन, मन, वतन के लिए समर्पित है॥
विपदाओं में कर्तव्य पथ में अटल,
पावन रिश्तों को दृढ़ता से निभाना है।
भगिनी, माँ भारती के सम्मान में,
पावन रक्षा सूत्र का मूल्य चुकाना है॥
मनोज कुमार चंद्रवंशी
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