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जिन्दगी का फ़साना (fate of life)
जिन्दगी का फ़साना (fate of life)
जिन्दगी का फ़साना (fate of life): ज़िन्दगी का वाे फ़साना ना रहा,
दिल भी अब ये दीवाना ना रहा!
भीगें बरसातों में सोचा बरसों से,
आज पर मौसम सुहाना ना रहा!
बेरूखियों से लफ़्ज भी गूँगे हुए,
और वह दिलकश तराना ना रहा!
परछाँईयाँ पलकों में धुँधली हुई,
कनखियों का मुस्कुराना ना रहा!
क्यूँ सुनाऊँ तुमको मैं शिकवे गिले,
प्यार जब अपना पुराना ना रहा!
दिल के होठों से
दिल के होठों से यूँ, मुस्काये मेरी ज़िन्दगी,
ख़ुद ही साँसों से महक, जाये मेरी ज़िन्दगी!
है चमकती धूप और, है यहाँ दिलकश समां,
दुआओं से है रोज़ सँवरी, जाये मेरी ज़िन्दगी!
चाँद भी तारे भी हैं और चाँदनी मदहोश है,
रात को इक जश्न-सा, मनाये मेरी ज़िन्दगी!
जो भी चाहूँ मैं ज़रा, वह हो रहा है सब यहाँ,
ख़्वाब सारे यूँ ही सच, बनाये मेरी ज़िन्दगी!
क़ुदरती हर बात है, ये क़ुदरती सौग़ात है,
क़ुदरतों-सा हर पल यूँ, सजाये मेरी ज़िन्दगी!
तुझको तनहाइयों में
तुझको तनहाइयों में, सजाते रहे,
उम्र भर यूँ ही हम, गुनगुनाते रहे!
तेरी ख़ामोशियों से, नहीं था गिला,
ख़ुद को ही सुनते और, सुनाते रहे!
बीते लम्हे वह और, गुज़रे हुए दिन,
ख़ुद की साँसों में हम, बसाते रहे!
तुझसे माँगा नहीं था, तुझको कभी,
फिर भी ख़ुद को तुझ पे, लुटाते रहे!
आशिक़ी का तुझको, पता तब चला,
बिन कहे जब दुनिया से हम, जाते रहे!
मेरे दिल की
मेरे दिल की, मुझे धड़कन, इतना क्यूँ सताती है,
जिसे मैं, भूलना चाहूँ, क्यूँ अक्सर याद आती है!
जो मुझसे ना, कहा तूने, मेरे इज़हार के बदले,
मुझे तू, मेरे ख़्वाबों में, क्यूँ अब वह सुनाती है!
गुज़रा वह, हरेक लम्हा, ठहरा है ख़यालों में,
तेरी ख़ुशबू, हरेक पल में, क्यूँ उनको बुलाती है!
मेरे दिल ने, सताया था, तेरे दिल को कभी शायद,
धड़कन बन, उसी दिल में, क्यूँ अब तू समाती है!
जिसे तूने, छिपाया था, बरसों से इन आँखों में,
सूखा वह, एक आँसू अब, क्यूँ पलकों से गिराती है!
कह के ख़ुशबू को
कह के ख़ुशबू को, तेरी याद, बुलाई हमने,
तंज सुनके भी, ना फ़रियाद, भुलाई हमने!
तूने चाहा था, मेरा साथ, उम्र भर के लिये,
तू ना आई मगर, तेरी चाह, बुलाई हमने!
तेरी आँखों में, थे आँसूं और, परछांई मेरी,
दिल को हर रोज़, सूरत वह, दिखाई हमने!
तुझसे वादा था, मर के भी ना, भूलेंगे तुझे,
लम्हा लम्हा, ये क़सम ख़ूब, निभाई हमने!
तुझको पूजा, तुझे चाहा है, हर घड़ी हमने,
बिन तेरे साँसों पर, बंदिश है, लगाई हमने!
इन फ़िज़ाओं में नहीं, दिल में हम, रहते हैं तेरे,
ख़ुद तेरे दिल की, धड़कन है, चलाई हमने!
तेरे ख़्वाबों की महक
तेरे ख़्वाबों की महक, साँस मेरे, महकाती है,
मेरी धड़कन भी, तेरा नाम बस, सुनाती है!
कैसे भूलूँ तुझे और तेरी, मुहब्बत का सिला,
लम्हा लम्हा मुझे, तेरी याद ही, बुलाती है!
तेरी ख़ुशबू से, भीगे होंठ थे, मेरे भी कभी,
तुझको छूने की कशिश, आज भी, सताती है!
वो तेरी आँखों के, कोने से, तेरी पहली नज़र,
रोज़ ही दिल में, उस लम्हे को, जगाती है!
तुझसे रिश्ता मेरा, कुछ ज़िन्दगी में, ऐसा है,
जैसे छू के हवा, साँसों को, बहक जाती है!
गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा
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