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ईमानदारी की मिसाल (example of honesty)
ईमानदारी की मिसाल (example of honesty): नैतिक शिक्षा हमें हर प्रकार के नैतिक ज्ञान से परिपूर्ण करती है। नैतिकता जीवन में जब मुसीबतें आती है तो अपना होंसला कायम रखने का जज्बा प्रदान करती है। बात उन दिनों की है जब हरि नाम का एक गरीब व्यक्ति अपनी गरीबी से परेशान था। उसने परिश्रम करने में कोई कमी नही रखी लेकिन उसकी मेहनत सामने ना आ सकी।
लंबे समय के बाद वह और उसकी मेहनत एक धनी व्यक्ति की नज़रों में आ गयी। उसने हरि को अपने घर पर आने के लिए कहा। हरि दूसरे ही दिन उस व्यक्ति के घर पहुँच गया। उसने हरि को अपने खेत खलिहानों की निगरानी एवं मजदूरों से काम करवाने का उसे काम दे दिया। हरि बड़ा खुश था। उसने कभी ये उम्मीद ही नही की थी कि उसे इस प्रकार काम भी मिल पायेगा।
बड़ी शिद्दत व ईमानदारी से वह अपना काम करता था। मालिक की नज़र में उसने अविश्वसनीय स्थान पा लिया था । अब वह एक नौकर की तरह नही बल्कि परिवार के एक सदस्य की तरह स्थान बना चुका था। एक दिन किसी ने मालिक को हरि के खिलाफ भड़का दिया कि वह उसके भरोसे का फायदा उठा रहा है। लेकिन वह हरि की ईमानदारी से भलिभाँती परिचित था। उसे जरा भी उस पर कोई शक नही था। फिर भी मन की तसल्ली के लिए उसने हरि को मजदूरों को मजदूरी देने के लिए चौंतीस हजार रुपये देते हुए कहा कि इसमें मजदूरों को भुगतान करने के लिए तीस हजार रुपये है। पिछले सप्ताह मंडी से लाकर रखे थे। ये उन्हें बाँट देना।
जब मजदूरों का भुगतान हुआ तो रुपये बताए हुए रुपयों की तुलना में चार हजार ज्यादा थे। उसने बचे हुए रुपये अपने मालिक को यह कहकर लौटा दिए कि शायद उनसे कुछ भूल हुई होगी क्योंकि रुपये उनके बताए रुपयों से ज्यादा थे। मालिक ने बिना कुछ कहे वो पैसे रख लिए व मन ही मन खुश थे कि जिसपर उसने भरोसा किया। उसका भरोसा बेबुनियाद नही था। उस दिन के बाद हरि ने उसके मन में ईमानदारी की एक मिसाल बनकर जगह बना ली। इसलिए जब भी आपके साथ कोई ऐसी घटना घटे तो विचलित होने के बजाय अपने ईमान पर कायम रहे शायद कोई आपकी परीक्षा ले रहा हो।
अपनी कमज़ोर मेहनत को ईश्वर की मर्ज़ी न कहें
सुबह से घर से ये सोचकर निकला था कि शायद काम मिल जाए किंतु दिनभर इधर उधर भटकने के बाद पहुँच जाता है अपने रैनबसेरे पर, उसे लगता था कि ईश्वर की जब इच्छा होगी तभी काम मिलेगा।ऐसा था मनमोहन। वह अपने आप को कहीं का राजा समझता था। उसे ऐसा प्रतीत होता था कि वह कभी किसी के सामने हाथ नही फैलाएगा। किंतु ये जीवन का अटल सत्य है कि यदि आपको किसी चीज की आवश्यकता है और उसे हासिल करना है तो या तो आपको उसके लिए जी तोड़ मेहनत करना पड़ेगी या किसी के सामने झुकना पड़ेगा।
चाहे वो आपका काम ही क्यों न हो। ये बात वह समझ नही पा रहा था। उसे कई लोगों ने समझाने की कोशिश की कि यदि वह काम करना चाहता है तो उसे उसके लिए उसे काम के लिए लोगों से निवेदन करना पड़ेगा, मेहनत करना पड़ेगा। यदि वह ऐसा सोचता है कि काम खुद उसके पास चलकर आये तो ये किसी हाल में भी संभव नही है। लेकिन वह समझने को तैयार ही न था। एक दिन अचानक उसके लड़के को तेज बुखार चढ़ गया।
मनमोहन लाचार था क्योंकि उसके पास घर मे खाने को पर्याप्त न था अब वह डॉक्टर को देने या दवाई खरीदने के लिए पैसा लाये भी तो कहाँ से। उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था। अब वह पहुँच गया गाँव के ही एक ज़मीदार के पास ज़मीदार भला आदमी था उसने उस समय तो उसे कुछ पैसे दे दिए। मनमोहन ने बालक को डॉक्टर को दिखाया और अगले दिन फिर ज़मीदार के पास पहुँच गया।
ज़मीदार कुछ समझ नही पाया पर मनमोहन ने उसे उसकी मदद के लिए धन्यवाद दिया और धीरे से कहा,’मालिक कुछ काम मिल जाता तो मैं आपका दिया उधार चुका देता।’ ज़मीदार ने कहा यदि पहले भी तुम काम की तलाश ऐसे ही करते तो तुम्हें कभी किसी की मदद की जरूरत ही नही होती। चलिए,देर आये दुरुस्त आये।तुम्हें पैसा चुकाने की जरूरत नही पर कल से काम पर आ जाना। आज मनमोहन को समझ में आया कि मेहनत करने,माँगने एवं झुकने से सबकुछ मिल जाता है। ईश्वर के भरोसे रहने से जीवन नही चलता।
मित्र एक हो पर नेक हो
किसी गाँव में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे। एक का नाम जय दूसरे का धीरेन्द्र था । दोनों ही अपने काम को बखूबी करते थे। पूरे गाँव में दोनों के चर्चे थे। एक समय ऐसा आया जब दोनों अपनी शिक्षा के लिए साथ साथ शहर में रहने लगे। शहर में रहते हुए उन्हें मात्र कुछ महीने ही हुए थे कि धीरेन्द्र गलत संगत में पड़ गया। उसे कुछ गलत आदतों ने घेर लिया था। वह अपनी आदतों के कारण घर से पढ़ाई के नाम पर लाया हुआ पैसा अपनी गलत आदतों में खर्च कर देता था। जब इस बात की भनक जय को लगी तब उसने वीरेंद्र को समझाने की बहुत कोशिश की परन्तु जिन लतों ने धीरेन्द्र को घेर रखा था वो उसका पीछा छोड़ने का नाम नही ले रही थी।
अब तो धीरेन्द्र जय के सामने कभी सिगरेट तो कभी शराब पीकर आने लगा,नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि अब वह जय की जेब से पैसे भी चुराने लगा। जय ने लाख कोशिशें कर ली मगर धीरेन्द्र सुधरने को तैयार न था। उसने योजना बनाई की इसे कैसे सुधारा जाय? जय ने उससे अलग रहने को कहा। मगर धीरेन्द्र उसका साथ छोड़ने को तैयार नही था क्योंकि वह जय की अच्छाइयों का बड़ा सम्मान करता था। जय भी इस बात से अवगत था कि वह उसका साथ नही छोड़ पायेगा लेकिन उसे सुधारने का उसके पास और कोई चारा न था। जय धीरेन्द्र से दूर रहने लगा उसे उसकी गलतियों का अहसाह करवाने के लिए इससे अच्छा कोई उपाय नही लगा।
कुछ दिनों दूर रहकर धीरेन्द्र को अजीब लगने लगा और जिस गलत संगत में वह खुशी महसूस करता था वही लोग उससे गाली गलौच व मारपीट करने लगे। पैसा नही होने के कारण उसे अपने से दूर करने लगे। तब धीरेन्द्र को समझ में आया कि गलत संगत के लोग तभी तक साथ देते है जब तक जैब में पैसा हो और दोस्त यदि सच्चा हो तो गलत व्यक्ति को भी सही मार्ग पर ले आता है।
साथ ही गलत संगत व्यक्ति को सिर्फ विचलित करने के कुछ भी नही करती। उसने जय के पास जाकर अपनी गलती के लिए माफी माँगी। और कहा कि वह अपने दोस्त से दूर कभी नहीं जाएगा। उसे ये बात ज्ञात हो चुकी थी कि एक सच्चा मित्र कैसा भी हो अपने मित्र को सही राह पर ले ही आता है। वे वापस पहले की तरह अपने कार्य को समर्पित रहने लगे। आज जय पुलिस में एक बड़ा अधिकारी है और धीरेन्द्र एक व्यवसायी है जिसका व्यवसाय आज उच्च स्तर पर पहुँच चुका है। आज भी गाँव में लोग दोनों के नाम की मिसालें देते है।
प्यार अधूरा रह गया
रिमझिम बारिश में झूमती हुई सत्रह- अठारह की उम्र की एक बाला शायद उन्नीस बरस की उम्र में पहुँचे केशव के सपनों की रानी है। कभी अपने पैरों से पानी को उछालती तो कभी अपने दोनों हाथों को फैलाकर,बारिश की बूँदों का अपने चेहरे पर अहसास करते हुए मुस्कुराती हुई घूमती। दूर एक पेड़ के नीचे केशव खड़ा होकर उसे देख रहा है। उसका खुशी से झूमना,मुस्कुराना बच्चों की तरह कूदना उसे भा गया था। वो उस बाला को एक टक देख रहा है तभी अचानक बारिश तेज होने लगी बिजलियाँ कड़कने लगी। बिजली की चमक और बादलों की गड़गड़ाहट से वह भयभीत हो गई और उसी जगह पहुँच गई जहाँ केशव खड़ा था। थरथराते हुए होंठ व काँपती हुई लड़की को देख केशव उससे कुछ कहना चाहता था।
कुछ मिनटों के बाद ही वह उससे बात करने लगा। वह जानता है कि बातों बातों में उसका ध्यान कपकपाहट से परिवर्तित हो जाएगा और उसे उसका अहसास भी नही होगा। बारिश थी कि थमने का नाम ही नही ले रही थी लेकिन उन दोनों की बातें बढ़ती चली जा रही थी। उन्हें लग ही नही रहा था कि वो दोनों अनजान है। कभी वो खिलखिलाकर हँसती, कभी दुप्पटे से चेहरे पर आ रही पानी की बूँदों को पोछती। उसकी आवाज और अंदाज़ से केशव अब पूरी तरह से मंत्रमुग्ध हो चुका है। उसने लड़की का हाथ अपने हाथों में लिया, उसे चूमा और ये कहने के लिए कि उसे उससे प्रेम हो गया है! मुँह खोला ही था कि अचानक उसका सपना टूट गया। उसके सपनों की रानी फिर सपनों में कहीं खो गयी। ये सपना न जाने उसे क्या कह गया? सपने में भी केशव का प्यार अधूरा ही रह गया।
अतुल भगत्या तम्बोली
सनावद, मध्यप्रदेश, पिन 451111
मोबाइल 9893849782
शिक्षा:- एम.बी.ए. मानव संसाधन प्रबंधन, एम.ए. हिन्दी एवं अंग्रेजी साहित्य, बी.एड.
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