शिक्षा और अंधविश्वास (education and superstition)
शिक्षा और अंधविश्वास (education and superstition) : बहुत दूर एक गाँव था। उस गाँव में शिक्षा का काफ़ी अभाव था। वहाँ के लोग झाड़-फूंक तथा बाबा व ओझा-ओझा पर अटूट विश्वास रखते थे। एक बार की बात है। सरकारी विद्यालय में एक रसोईया काम करती थी। उसका नाम रामला था। एक बार उसकी लड़की बीमार हुई। उसने स्कूल के अध्यापक से बताया कि मेरी बिटिया ३ दिन से बीमार है।
स्कूल अध्यापक:-रामला क्या हो गया है बिटिया को?
रामला:-साहेब हमार बिटिया ४ दिन पहले जामुन तोड़न गई हती, बाई बाग़ में एक आत्मा रहति है। बाई ने बाको पकड़ लौ हवै। तबही ते बाको बुखार आय रहो है।
मास्टर:-नहीं रामला आत्मा, भूत-प्रेत यह सब कुछ नहीं होता है। इस समय बारिश का मौसम चल रहा है। इसलिए वायरल फीवर फैला हुआ है। तुम अपनी बिटिया को सरकारी अस्पताल में दिखा लो। वहाँ से दवा मिल जाएगी और बिटिया ठीक हो जाएगी।
रामला:-हम दवाई ना कराइन्हे, ना साहब ना सबै कहत हैं कि यदि इन मामलों माँ दवा कराइहो तौ आत्मा नाराज होउ जईहै और फिर उसे अपने साथ ही ले जईहै, इसीलिए हम तो ओझा बाबा को दिखइहै।
मास्टर साहब ने बहुत समझाया परंतु रामला कुछ भी मानने को तैयार ना हुई। मास्टर साहब अपने घर चले गए। दूसरे दिन रविवार था, रविवार को रामला की बिटिया की तबीयत और ज़्यादा खराब और ज़्यादा खराब हो गई सोमवार को मास्टर साहब जब स्कूल पहुँचे तो रामला स्कूल नहीं आई। मास्टर साहब ने बच्चों से जब इस बारे में पूछा तो बच्चों ने बताया की रामला की विटिया की तबीयत बहुत खराब है। ओझा साहब कल से बराबर झाड़-फूंक कर रहे हैं, परंतु बुखार कम होने का नाम नहीं ले रहा। जैसे ही स्कूल बंद हुआ मास्टर साहब सीधे रामला के घर पहुँचे के घर पहुँचे देखा वहाँ काफ़ी लोगों की भीड़ है।
मास्टर साहब: (रामला से) क्या हो गया?
रामला ने रोते-रोते रोते-रोते बताया की ब दिन से बुखार लचई नहीं रहो। देखो ओझा बाबा भी बराबर लगै हैं। लेकिन आत्मा अपनहि ज़िद पर अड़ी है।
मास्टर साहब ने गाँव के एक-दो कुछ बुद्धिमान लोगों से बात की और लाख विरोध करने पर भी उन लोगों के साथ बिटिया और बिटिया के पिता को अपने साथ ले कर सरकारी अस्पताल गए। वहाँ डॉक्टर साहब से बात की और सारी बात बताई। डॉक्टर साहब ने बिटिया को एडमिट कर लिया और इलाज़ शुरू कर दिया कर दिया। धीमे-धीमे बिटिया की तबीयत में सुधार होने लगा। मास्टर साहब शाम को अपने घर चले आए। दूसरे दिन जब अस्पताल पहुँचे तो देखा की बिटिया काफ़ी ठीक थी। उसका बुखार भी उतर गया था। मास्टर साहब बिटिया को कुछ फल देकर स्कूल पहुँचे। वहाँ पर काफ़ी लोग एकत्र थे। सभी ने मास्टर साहब से बिटिया की हालत पूँछी। कुछ तो कहने लगे अब बिटिया ना बची। डॉक्टर ने हाथ जो लगा दिया। अब तो आत्मा बिटिया को ले ही जाएगी।
मास्टर साहब (मुस्कुराते हुए) :-यदि मैं कल आप लोगों की बिटिया को अस्पताल ना ले जाता तो शायद वास्तव में बिटिया को दिक्कत हो जाती, लेकिन अब बिटिया बिल्कुल ठीक है उसका बुखार भी उतर गया है। मैं अभी उससे मिलकर आया हूँ। कल उसको अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी। उसे टाइफाइड हो गया था अगर आप लोग अपनी इस अज्ञानता पर अडिग रहते और मुझे बिटिया को अस्पताल ना ले जाने देते तो ओझा कुछ भी ना कर पाते और आप लोग अपनी बिटिया को हमेशा के लिए खो देते। गांव वाले मुंह नीचे किए हुए सारी बात सुनते रहे।
मास्टर जी (समझाते हुए) :-देखो कोई भी रोग हो, वह किसी ना किसी जीवाणु, विषाणु अथवा अन्य किसी कारण हो सकता है, जो बिना उचित इलाज़ के सही नहीं होता। ओझा लोग आप लोगों को बेवकूफ बनाते रहते हैं और धन उगाही करते रहते हैं। अब से किसी को कोई भी बीमारी हो सीधे सरकारी अस्पताल पहुँचे। सरकार ने इलाज़ की बहुत ही अच्छी व्यवस्था की है। अपने बच्चों को प्रतिदिन विद्यालय भेजो जिससे वह भी अंधविश्वास से निकलकर वास्तविक ज्ञान को प्राप्त करें।
गांव का मुखिया:-मास्टर साहब अब हमारे गाँव वाले अपने बच्चों को निश्चित ही विद्यालय भेजेंगे।
मास्टर साहब ने सबको बहुत-बहुत धन्यवाद-धन्यवाद दिया। वास्तव में जहाँ शिक्षा का अभाव है वहीं पर अंधविश्वास और रूढ़िवादिता अधिक है।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ‘ओम’
कानपुर नगर उत्तर प्रदेश
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