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दोहरी मानसिकता (dual mindset)
आधुनिक समय में अधिकांश लोग दोहरी मानसिकता (dual mindset) रखते हैं… तो चलिए… इसी बिषय पर डॉ. अन्जू बेनीवाल जी की एक बेहतर कहानी पढ़ते हैं… डॉ. अन्जू बेनीवाल जी पेशे से एक समाजशास्त्री हैं… साथ ही लेखन में भी विशेष रूचि रखती हैं… दोहरी मानसिकता के अलावा उनकी कुछ और कहानियां भी प्रस्तुत हैं…
घर में पकवानों की ख़ुशबू आ रही थी साथ में चारुलता के गुनगुनाने की आवाज़ भी एक खुशनुमा माहौल था काफ़ी लंबे समय बाद ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने वीरान पड़े घर के दरवाजे पर दस्तक दी हो। चारुलता की शादी को चार दिन ही हुए थे वह बहुत खुश थी सब लोग घर में उसे बहुत प्यार और सम्मान दे रहे थे वह अपने आप को दुनिया में सबसे खुशकिस्मत मान रही थी अचानक एक ख़बर ने उसे दर्द के गहरे समंदर में धकेल दिया ऐसा लगा मानो उसकी खुशियों का महल ताश के पत्तों की मानिंद ढह गया। उसके पति का एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था वह टूट गई थी अंदर तक लेकिन सास ससुर के प्यार और उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी ने उसे मज़बूत रह कर उन परिस्थितियों का सामना करने की हिम्मत दी।
कुछ महीनों में उसकी अपने पति के ऑफिस में उसके स्थान पर नौकरी लग गई। समय बहुत बलशाली होता है गहरे से गहरे घाव भी भर देता है। चारुलता ने भी अपनी क़िस्मत से समझौता कर लिया था। अपने सास ससुर की सेवा और ऑफिस के कामों में ख़ुद को इतना व्यस्त कर लिया कि उसे अपने बारे में सोचने का मौका ना मिले।
दिन तो किसी तरह गुजर जाता था लेकिन रात की तनहाई उसे अकसर रुला जाती थी। जब भी अपने आस पास सजी संवरी महिलाओं या अपनी सहेलियों को अपने पतियों के साथ खुश देखती तो एक टीस-सी उसके मन में उठती। धीरे-धीरे उसने ख़ुद को दुनिया से समेटना शुरू कर दिया वह गुमसुम रहने लगी जैसे ज़िन्दगी एक बोझ बन गई हो। एक दिन जब वह ऑफिस में अपने काम में व्यस्त थी एक मधुर आवाज़ सुनकर वह चौंक गई। अरे तुम! तुम यहाँ कैसे? सामने रोहन को देख कर बोली। रोहन उसके साथ कालेज में पढ़ता था। दोनों एक दूसरे को मन ही मन पसंद करते थे लेकिन जब तक रोहन अपने मन की बात चारुलता को बता पाता उसके पापा का ट्रान्सफर हो गया। उसके बाद चारुलता के विवाह की ख़बर उसे मिल गई थी इसलिए उसने उससे मिलने का इरादा छोड़ दिया।
कुछ दिन पहले ही वह अपने काम के सिलसिले में आया तो पता चला चारुलता की ज़िन्दगी में आए तूफान के बारे में। कहीं से पता पूछ कर वह उसके ऑफिस उसे सरप्राइज देने पहुँचा। फिर मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ। चारुलता के चेहरे पर फिर से मुस्कान लौटने लगी। एक दिन बातों-बातों में रोहन ने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया जिसका जवाब देते हुए चारुलता ने अपने सास ससुर की रजामंदी को ज़रूरी बताया। आज रोहन उसके सास ससुर से उसका हाथ मांगने आ रहा था। बस चारुलता सुबह से उसी की तैयारियों में लगी थी। उसने अपने सास ससुर को बताया था कि उसका कोई सहकर्मी आ रहा है वह लोग भी ख़ामोश थे लेकिन अपनी बहु की ख़ुशी और बदला हुए व्यवहार उनसे छुपा न था।
दरवाजे पर घंटी की आवाज़ सुनाई दी तो वह ख़ुशी से दरवाज़ा खोलने गई सामने रोहन खड़ा था लेकिन उसके चेहरे से उदासी झलक रही थी। अंदर आने का कह कर उसने घबराते हुए पूछा क्या हुआ रोहन, तुम उदास क्यों हो? रोहन ने भर्राए हुए गले से कहा मेरे माता पिता इस विवाह के लिए सहमत नहीं है! मुझे माफ़ कर दो प्लीज़। मैं उनका इकलौता लड़का हूँ और वह मेरा विवाह किसी शादीशुदा लड़की से नहीं करवाना चाहते। मैंने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं माने। रोहन की बात सुन कर चारुलता के सास ससुर के क़दम ठिठक गए। चारुलता के ऊपर तो जैसे पहाड़ टूट पता। ख़ुद को संभालते हुए उसने कहा कोई बात नहीं मैं समझ सकती हूँ आज भी लोग अपनी दोहरी मानसिकता से ख़ुद को मुक्त नहीं कर पाए है। एक विवाहित पुरुष का विवाह उसकी पत्नी की मृत्यु के पश्चात किसी अविवाहित स्त्री से संभव है लेकिन स्त्री के विषय में जब बात आती है तो हमारी सोच बदल जाती है यह कहते हुए चारुलता से अपने आंसुओं को छुपाते हुए रोहन की ओर देखा।
रोहन अपने आप को गुनहगार-सा महसूस करते हुए उसके घर से निकल गया। आज चारुलता को अपने सास ससुर की सोच पर गर्व हो रहा था जिन्होंने एक माता पिता का फ़र्ज़ निभाते हुए उसे पुनः विवाह की स्वीकृति दी थी वह अपनी सास के गले लग कर रो पड़ी… उसे समाज की मानसिकता पर अफ़सोस हो रहा था और ख़ुद के एक बार फिर अकेले होने का अहसास उसे चुभ रहा था। उसने अपने आंसू पोंछते पूछा पापा चलो खाना खाते हैं कब से तैयारी कर रही थी कुछ गुनगुनाते हुए वह रसोई की ओर बढ़ चली क्योंकि अब उसे अहसास हो गया था कि उसकी खुशियों की चाबी उसके ही हाथ में है अब वह किसी के भरोसे नहीं थी अपनी खुशियों के लिए, उसने खुश रहना सीख लिया था।
नया रिश्ता
रात बहुत हो चुकी थी आज पता ही नहीं चला काम करते-करते कब इतना वक़्त हो गया मोहिनी ने घड़ी देखी तो रात के दो बजे थे। थकान से शरीर चूर-चूर हो रहा था लेकिन नींद आंखों से कोसों दूर थी। सारा सामान व्यवस्थित रखकर अपने कमरे में सोने को आई तो कोने में रखे फूलों के गुलदस्ते पर नज़र पड़ी तो एक मुस्कान चेहरे पर तैर गई। कल उसका जन्मदिन था और यह फूल उसके एक सहकर्मी ने दिए। मनोज को वह पिछले दो साल से जानती थी। इस शहर में जब वह पहली बार आई तो मनोज ही था जिसने उसकी बहुत मदद की। एक अपनापन और सुरक्षा की भावना उसे उसके साथ महसूस होती थी। बिस्तर पर लेट तो गई लेकिन बहुत ज़्यादा थकान से नींद नहीं आ रही थी।
लेटे-लेटे मोहिनी फिर से विचारों में खो गई। मनोज का सौम्य चेहरा उसकी आंखों के आगे घूमने लगा और वह हर बात याद आने लगी जब उसने उसका साथ दिया। मनोज अपने परिवार के साथ रहता था कुछ दिनों बाद मोहिनी की मनोज की पत्नी के साथ बहुत अच्छी दोस्ती हो गई। कई बार मनोज की पत्नी उसे मज़ाक में भी कह देती थी कि मनोज को तुम्हारी बड़ी चिंता रहती है लेकिन मोहिनी उसकी बात को हंस कर टाल देती थी। मोहिनी को पता था कि मनोज अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता है और उसने कभी उसके साथ कोई ग़लत व्यवहार भी नहीं किया। मोहिनी मानती थी कि कुछ रिश्ते हम नहीं बनाते वक़्त के साथ बन जाते हैं और ताउम्र खूबसूरती के साथ निभाएँ भी जाते है। सोचते-सोचते कब आँख लग गई पता ही नहीं चला।
अलार्म की आवाज़ सुनकर हड़बड़ा कर उठी और जल्दी-जल्दी ऑफिस के लिए रवाना हुई तो कुछ तो नींद और कुछ लेट होने की चिंता के कारण घर से कुछ दूर निकलते ही कार से उसकी स्कूटी टकरा गई। उसके बाद उसे कुछ याद नहीं रहा। जब आँख खुली तो ख़ुद को अस्पताल में पाया ओर उसके सामने परेशान-सा मनोज खड़ा था। ‘मुझे क्या हुआ?’ दर्द से कराहते हुए मोहिनी ने पूछा। ‘कुछ नहीं पांव में फ्रैक्चर है और कुछ मामूली चोट, लेकिन तुम ऐसे कैसे ड्राइव कर रही थी?’ मनोज की आवाज़ में चिंता साफ़ झलक रही थी। तुम्हारे मम्मी-पापा को फ़ोन कर दिया है। वह कल तक आ जाएंगे आज तुम मेरे घर चलो यह कह कर वह डॉक्टर से बात करने लगा।
मोहिनी कातर निगाहों से मनोज को देख रही थी उसे वह किसी भगवान-सा लग रहा था। मनोज के घर पहुँचते ही उसकी पत्नी ने उसका ख़्याल रखना शुरू कर दिया मोहिनी को लगा मानो उसे अनजान शहर में परिवार मिल गया। दूसरे दिन मनोज ऑफिस से घर पहुँचा तो कुछ परेशान-सा लग रहा था। घर पहुँचते ही वह सीधा मोहिनी के पास गया और उसकी तबीयत पूछ कर बाहर आ गया। मोहिनी को बाहर से आवाजें सुनाई दे रही थी मनोज बता रहा था कि कैसे आज सब ऑफिस में उसे ओर मोहिनी को लेकर बातें बना रहे थे। मनोज की पत्नी ने भी उसे एक बार कह ही दिया कि तुम्हें उसके माता पिता को बुला लेना चाहिए तो मनोज ने बताया कि उसके पैरेंट्स बहुत परेशान थे और वह किसी ज़रूरी काम की वज़ह से दो दिन बाद आ पायेंगे। मोहिनी की भी अपने पापा से बात हो गई है। उसका हमारे अलावा कौन है? यह कह कर उसने अपनी पत्नी की तरफ़ देखा लेकिन वह ख़ामोश थी पिछले कई दिनों से मेरी सहेलियाँ भी मुझे ऐसा ही कुछ कह रही थी।
लेकिन मुझे तुम पर पूरा भरोसा है यह कहकर मनोज की पत्नी खाने की तैयारी करने चली गई। मनोज को कमरे से रोने की आवाज़ आई तो वह दौड़ कर मोहिनी के पास गया वह फूट-फूट कर रो रही थी-मनोज प्लीज मुझे मेरे घर छोड़ दो मैं मैनेज कर लूंगी, मैं नहीं चाहती कि तुम्हें कोई तकलीफ हो तुमने मुझे बिना किसी रिश्ते के बहुत कुछ दिया जो प्यार और सम्मान तुमने मुझे दिया है मैं कभी नहीं भूल सकती लेकिन मैं अब तुम्हें ओर परेशान नहीं करूंगी मोहिनी की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे और वह बोले जा रही थी। मनोज ने उसे गले लगाते हुए कहा-चुप हो जाओ और रोना बंद करो तुम्हारी तबीयत खराब हो जाएगी।
तुम्हें क्या लगता है एक स्त्री और पुरुष के बीच कोई पवित्र सम्बंध नहीं हो सकता? क्या हर रिश्ते को कोई नाम देना ज़रूरी है? दो लोग एक दूसरे के साथ खुश नहीं रह सकते? मोहिनी मुझे तुमसे बात करना अच्छा लगता है तुम मेरे परिवार का मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा हो कल तुम्हारी जब शादी होगी तो सबसे ज़्यादा ख़ुशी मुझे होगी। क्या सिर्फ़ कुछ लोगों की दकियानूसी सोच की वज़ह से मैं इतना प्यारा रिश्ता खो दूं। लोगों की बात ने मुझे परेशान किया लेकिन मुझे अहसास हुआ कि लोगों से ज़्यादा मेरे लिए तुम महत्त्वपूर्ण हो। दरवाजे पर खड़ी मनोज की पत्नी सब सुन रही थी मोहिनी के सिर पर हाथ फेरते हुए उसने कहा मुझे माफ़ कर दो मैं भी एक बार को लोगों की बातों में आ गई थी लेकिन अब तुम कहीं नहीं जाओगी जब तक ठीक नहीं हो जाती। आंटी अंकल को फ़ोन करके कह दो हम हैं वह चिंता ना करें। तीनों के चेहरे की ख़ुशी नए रिश्ते को परिभाषित कर रही थी।
मानवता
कितने दिन से कोई बात नहीं हो पा रही थी एक अजीब-सा डर था जो अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। अब तो न्यूज देखने का भी मन नहीं करता जब भी देखती लोगों ने पुलिसकर्मियों पर पत्थर बरसाए तो मन विचलित हो जाता कोई कैसे इतना अमानवीय हो सकता है। एक तरफ़ मानवता का पाठ पढ़ाया जा रहा है और दूसरी ओर कुछ नासमझ लोग हैवानियत की हदों को पार करते हुए दिख रहे हैं। कभी नहीं सोचा था ऐसे दिन देखने को मिलेंगे।
अभी कल की ही बात है बाई आई और बोली-मेमसाहब हम कल से काम पर नहीं आएंगे। क्यों क्या हुआ? मैंने पूछा तो बोली घरवाले मना कर रहे है साहब पुलिस में जाने कहां-कहाँ जाते है किस-किस से मिलते हैं। हमको भी वह खराब वाली बीमारी कोरोना हो गई तो… यह कहकर मुंह में कुछ बड़बड़ाती हुई निकल गई। मैं सिर्फ़ उसे जाते हुए देखती रही बहुत कुछ बोलना चाहती थी लेकिन सोचा इसकी भी क्या गलती है जब पढ़े लिखे लोग ही नासमझ जैसा व्यवहार कर रहे हैं। यही बाई कितनी बार साहब का रौब दिखा कर अपने काम करवा लिया करती थी लेकिन आज सब बदल गया। इस बुरे वक़्त ने लोगों का नज़रिया और रिश्तों के मायनों को बदल कर रख दिया।
पिछले पंद्रह दिनों से घर और परिवार से दूर एक इंसान लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जान पर खेल रहा है और उस व्यक्ति के परिवार को सम्बल देने के बजाय उसे ही शक की नजरों से देखा जा रहा है, पहले जो लोग सम्मान देते थे आज अपमान करने से बाज नहीं आ रहे। यही सोचते-सोचते मधुरिमा को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। रात के दो बजे फ़ोन की घंटी से उसकी नींद खुली अस्पताल से फ़ोन था आपके पति को ड्यूटी के दौरान चोट आई है, हम सब पूरी कोशिश कर रहे है आप चिंता ना करें, यह कहकर डॉक्टर ने फ़ोन काट दिया।
मधुरिमा की घबराहट बढ़ गई उसकी आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे उसे समझ नहीं आ रहा था वह क्या करें। वह बस एक बार अपने पति को देखना चाहती थी लेकिन जानती थी यह सम्भव नहीं। उसने पति के करीबी दोस्त को फ़ोन किया और उससे कुछ पूछती इससे पहले ही उसने कहना शुरू किया; भाभी आप चिंता ना करें मैं आपको फ़ोन करने वाला ही था अभी आपरेशन पूरा हुआ है एक भला आदमी था जिसने अपनी जान पर खेल कर रोहन को हॉस्पिटल पहुँचाया और अपना खून भी दिया। अब रोहन खतरे से बाहर है आप चिंता ना करें हम सब है यहाँ। मधुरिमा की आँख से अब ख़ुशी के आंसू बह रहे थे उसे ख़ुशी थी कि शुक्र है अभी भी मानवता ज़िंदा है…
एहसास
पूजा पूजा कहाँ हो तुम जब देखो व्यस्त तुम्हारे पास वक़्त ही नहीं मेरे लिए, साहिल लगभग चीखता हुआ घर में दाखिल हुआ। अपना बैग सोफे पर रखते हुए उसने अपनी नज़र घर में दौड़ाई तो उसे एक खामोशी के अलावा कुछ ना दिखा। उसके आने से पहले पूजा हमेशा उसका इंतज़ार करती हुई मिलती थी लेकिन आज । कुछ देर तक साहिल ऐसे ही सोचता रहा फिर अपना फ़ोन उठा कर देखा पूजा के चार मिस कॉल थे। ओह शायद काम की वज़ह से नहीं देख पाया या फिर ऐसा कई बार होता है। उसे अजीब-सी बैचेनी होने लगी उसने पूजा को फ़ोन किया उसका फ़ोन घर में ही बज रहा था अब साहिल की परेशानी ओर बढ़ गई ऐसा कभी नहीं होता पूजा हमेशा अपना फ़ोन साथ रखती है वह मन ही मन पूजा पर गुस्सा करने लगा कितनी लापरवाह है। कोई ऐसे बिना बताए कहीं जाता है, आने दो ख़ूब डांट लगाऊंगा।
वह घर में इधर उधर टहलने लगा उसे घबराहट होने लगी उसे याद आने लगा कितनी बार वह पूजा को बिना बताए दोस्तों के साथ चला जाता था और पूजा उसका इंतज़ार करती रहती थी फिर नाराज भी होती थी लेकिन उसकी नाराजगी उसकी घबराहट उसे आज महसूस हो रही थी। वह अपने खयालों में डूबा ही था कि अचानक पूजा की आवाज़ सुनाई दी अरे तुम आ गए कितने फ़ोन लगाए पड़ोसन घर आयी थी अचानक उसकी तबीयत बिगड़ी तो दौड़ कर उसे पास के दवाखाने ले गई हड़बड़ाहट में फ़ोन और घर के लॉक लगाना भूल गई पूजा अपनी बात बोले जा रही थी और साहिल ने उसे दौड़ कर अपनी बाँहों में भर लिया। पूजा मुझे माफ़ कर दो अब कभी तुम्हें बताए बिना कहीं नहीं जाऊंगा। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे ओर पूजा को एक सुखद एहसास हो रहा।
लॉकडाउन
आज रीमा बहुत खुश थी उसके घर से फ़ोन था माँ का घर बुला रही थी। शाम को जैसे ही राजेश घर आया उसने बताया कि उसे दो दिन के लिए अपनी माँ के घर जाना है। राजेश थोड़ा नाराज होते हुए बोला क्या तुम भी जब देखो माँ के जाना है तुम्हें मालूम भी है मुझे कितना काम है यहाँ बच्चों और घर को कौन देखेगा मुझे कल मीटिंग के लिए मुंबई जाना है। रीमा चुपचाप रसोई में जा कर चाय बनाने लगी वह सोच रही थी अब माँ को क्या बहाना बनाएगी क्योंकि राजेश को बुरा नहीं लगना चाहिए हर वक़्त वह तारीफ करती रहती थी राजेश उसकी खुशियों का कितना ख़्याल रखते है उसके मन की बात बिना कहे समझ जाते हैं लेकिन वह जानती है कि ऐसा कुछ नहीं हर बार उसे ही अपना मन मारना पड़ता है। इसी उधेड़बुन में चाय जल गई और राजेश की तेज आवाज़ से वह डर गई अरे कितना वक़्त लगाओगी सो गई क्या चाय बनाने में इतना टाइम कौन लगाता है, कुछ भी काम ढंग से नहीं करती।
रीना के मन में कुछ टूटा ख़ुद को संभालते हुए उसने फिर चाय चढ़ाई जैसे ही वह चाय लेकर पहुँची राजेश न्यूज देखते हुए बोला क्या आफत है अब ये कोरोना क्या बला आ गई प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन लगा दिया कोई कहीं नहीं जा सकता सब पड़े रहो अपने घर मीटिंग भी निरस्त हो गई कैसे रह सकता है कोई इतने दिनों तक घर ही घर में। रीना चुप थी वह सोच रही थी सच में कोई कैसे रह सकता है घर ही घर में, लेकिन वह तो जैसे बरसों से लॉकडॉउन में है उसने तो कभी उफ्फ नहीं किया। न्यूज में आ रहा था लॉकडॉउन को अच्छे से फोलो करने पर ही हम सुरक्षित रहेंगे वह सोचने लगी उसकी ज़िन्दगी का लॉकडॉउन भी कहीं उसकी सुरक्षा की क़ीमत तो नहीं इसी उधेड़बुन में वह फिर से रात के खाने की तैयारी करने लगी लेकिन वह खुश थी अब उसे कोई बहाना बनाने की ज़रूरत नहीं है माँ को मना करने के लिए।
डॉ. अन्जू बेनीवाल
समाजशास्त्री
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