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मौत के आंकड़े (death figures)
death figures: ये तेरे आंकड़े ये मेरे आंकड़े।
नहीं किसी के सच्चे आंकड़े।
किसी ने गंगा किनारे दफनाये।
किसी ने गंगा में बहाए।
आंकड़े केवल जो आग में जलाए।
आंकड़े केवल जो अस्पताल पहुँच पाए।
जिस घर ने देखे है मोत के मंजर।
उनसे पूछो क्या कहते है आंकड़े॥
ऑक्सीजन तो शहरों में कम हुई।
ऑक्सीजन की मौतों के कहाँ है आंकड़े।
बेबजह लगे रहे कतारों में लोग।
मरने के भी सलीके होते है जनाव।
ऐसा भी क्या बिना आंकड़े के मरना।
ऐसे भी भला कोई मरता है।
बेबजह मरते रहे देहात के लोग।
देहात में कहाँ है ऑक्सीजन के आंकड़े।
ये तेरे आंकड़े ये मेरे आंकड़े।
स्वाभिमान
स्वाभिमान कुछ नहीं।
अहंकार और धौंस का दूसरा नाम है।
स्वाभिमान और कुछ नहीं।
अच्छे वक़्त की ही पहचान है।
ज़रूरतें हो पूरी तो।
स्वाभिमान धोंस दिखाता है।
अहंकारी स्वाभिमान को क्या पता।
तुझे वक़्त ही बड़ा बनाता है।
साधु ही स्वाभिमान को बचा सकता है।
मगर जब बात हो परिवार और प्यार की।
तो वक़्त अच्छों-अच्छों से भीख मंगवा सकता है।
धरी रह जाती है स्वाभिमान की कसमें।
जब मुसीवत मंज़र दिखाती है।
चुनाव करना पड़े मृत्यु और जीवन के बीच।
तो जीवन की भीख बड़ी बन जाती है।
चुनाव करना पड़े रोटी और भूख में तो।
रोटी की भीख बड़ी बन जाती है।
इंसान पहले ही इस सृष्टि का कर्जदार है।
ले रहा है सांसें बो भी प्राकृति की उधार है।
बिना कुछ लिए इंसान जी नहीं सकता।
क्योंकि लेन देन ही इस सृष्टि का आधार है।
स्वाभिमान का ताना न देना किसी को।
क्या पता वक़्त कब क्या मंज़र दिखलाये।
मुसीबत के आगे स्वाभिमान, बहुत छोटा हो जाये।
नई अमीरी
रोड किनारे बैठा फल बाला,
समझे ग्राहक को भगवान।
गाड़ी से उतर कर भगवान्।
खूब करे मोल भाव।
एक किलो फल लेकर।
फल बाले से गाड़ी में रखवाये।
अस्सी किलो का आदमी।
नई अमीरी के बोझ में।
एक किलो न उठा पाये।
फल बाला भैया भी।
मन ही मन समझ जाये।
फल से भी ताज़ी नई अमीरी।
अपना परिचय ऐसे करवाये॥
हजार पांच सौ का राशन लेने,
बिना थैले के गाडी में जाये।
अकड़ दिखा दुकानदार से।
गाड़ी में सामान रखबाये।
लाला मन ही मन समझ जाये।
नए बने है साहिब अमीर।
लड़के को झूठी डांट लगाए॥
खाने पर ग़र किसी के जायेंगे।
पूरे घर के रेट पता चल जायेंगे।
महंगे है चाबल और रोटी।
खाते वक़्त यह बात चलाये।
तो अमीरी है कोशों दूर।
कोई भी समझ जायेगा।
नए अमीर का खाना।
महंगे स्वाद से खाया जायेगा॥
सच में जो आमिर है।
कभी मोल भाव नहीं करेगा।
चल देगा थेला उठाकर।
कभी परेशान नहीं करेगा।
न बताये खाने की कीमत।
मेहमान नाबाजी दिल से करेगा।
भरे हुए की नहीं आवाज।
थोता चना ही घना बजेगा॥
मित्र की याद
मित्रता दिवस की शाम को गला भर आया।
बो बचपन का जमाना ही ठीक था।
एक टॉफी को भी चार टुकड़ों में बाँट खाया।
न गिला शिकवा, न किसी ने दुखडा सुनाया॥
कमबख्त हैसियत ने दीवारें खिंच डाली।
मतलव की यारी ने सारी हदें तोड़ डाली।
हाल चाल पूछो तो अपनी डींगें सुनाते है।
न निभाने के बहानों की बौछार छोड़ डाली॥
आज का कृष्ण कहाँ सुदामा को गले लगाता है।
मिल जाये ग़र कही तो अपनी हैसियत बतलाता है।
ऊँची नीची दीवारें इंसान ने खड़ी कर डाली।
हैसियत में रखो दोस्ती यही सीख बतलाता है॥
क्या हुआ ग़र कोई गलती हमने कर डाली।
होती थी जो छोटी बात, बो आज बड़ी बना डाली।
दुर्योधन कहाँ सही था ये जानते हुए भी।
कर्ण ने दोस्ती की मिशाल क़ायम कर डाली॥
बादल बने बाराती
बर्षा नहीं रिमझिम बरसात है ये।
धरती को अम्बर से मिलन की आश है ये॥
मिलन ये तब तक न हो पाए।
जब तक सूरज पंडित अपना ताप न बढ़ाये॥
सूरज प्यासी धरती की बेचैनी को न देख पाया।
सूरज ने दहकती यौवन शक्ति के ताप से।
विशाल समुन्दर के पानी को सुखाकर भाप बनाया॥
भाप के क्रोध को सूरज न झेल पाया।
तब अम्बर ने भाप को समझाया।
ठंडा करके अम्बर ने अपने आगोश में छुपाया॥
मगर भाप कहाँ मानने बाला था।
अम्बर के आगोश में गुदगुदी करता रहा।
गुद गुदी की मस्ती में अम्बर ख़ुद को न रोक पाया।
गडघडाट के ठहाकों से धरती को ललचाया॥
बेचैनी अपनी अम्बर भी ज़्यादा दिन रोक न पाया।
अम्बर ने भाप को बादल बनाया।
अम्बर की बारात में बादलों को बाराती बनाया।
बाराती बादलों ने काली घटा का लिवास सजाया।
झूमते, गाते और नाचते मतबाले बादलों ने।
कड़कती बिजली से धरती को संदेशा भिजबाया।
प्रकृति के सब जीव जंतु, पेड़ पौधे स्वागत में जुट गए।
तूफ़ान को भी बारातियों को रास्ता बताने का जिम्मा मिला।
तूफ़ान ने भी अपना काम बखूबी निभाया।
दौर दौड़ समस्त धरती के जीवों को सन्देश पहुँचाया।
धरती ने भी ओड़ी चुनरी काली घटा घनघोर की।
रिमझिम बरसात बनी लडियाँ अम्बर के सेहरे की।
खूब बाजे बजे बादलों की गडघड़ाहट से।
आतिशबाजी ख़ूब चली बिजली की चमकार से।
अम्बर और धरती के मिलन की बेला पर।
नाच उठे धरती के सब जीव जंतु। महक उठीं फूलों की डाली।
धन धान्य हो उठी धरती। फैल उठी चारों और हरियाली॥
धरती के सब बच्चे जीव जंतु अपने स्वर में गुन गुनाने लगे।
रिमझिम बारिश की फुआर में ललकाये मन मानुष के।
आनंदित होकर बेबसी में लिखने और गाने लगे॥
परदेशी पिया की पुकार, झींगुर की आवाज़ से मिलाने लगे।
गिरती बूंदों से तपते तन को नहलाने लगे।
भर गया पेट पानी से खेतों का।
अब उनमे धान लहराने लगे॥
बरसात की बूंदों को न छुओ इस तरह हथेली पर।
हाथ लगते ही ये मोती से पानी बन जायेंगे।
गिरने दो इनको धरा पर।
गिरते ही ख़ुद धरती की कोख में समा जायेंगे।
बरसात की बेबसी पक्के घरों में न महसूस कर पाएंगे।
टप्पर के नीचे सोने से जो बरसात का सुखद एहसास होगा।
जितना मर्जी ज़ोर लगायेंगे, मगर शव्दों में बयाँ नहीं कर पाएंगे।
पक्की छत पर भीगने से बेशक अपने आप को न रोक पाओगे।
मगर भिगो जा कर किसी तालाब के किनारे।
आस्मां से गीरते मोती कैसे फूटते है यह एहसास तुम कर पाओगे॥
जंगल में कैसे चिड़िया पंख फैलाये अपने बच्चों को दुवकाये बैठी है।
माँ की कुर्बानियों को शायद तुम समझ पाओगे।
बरसात ये हमें एक सीख दे जाती है।
सब कुछ पैदा करती है मगर ख़ुद कुछ नहीं खाती है।
फैलाया था जो तुमने घरती पर कूड़ा। उसे साफ़ कर जाती है।
उजड़ती प्रकृति ये फ़रियाद मनुष्य से करती है।
भविष्य में अगर देखना चाहते हो बरसात तो तुम यह काम करो।
बरसात के दिनों में ख़ूब पेड़ पौथो का निर्माण करो।
बर्षा नहीं रिमझिम बरसात है ये। धरती को अम्बर से मिलन की आश है ये॥
नारायण डोगरा
चण्डीगढ़
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