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शिक्षकों का योगदान (contribution of teachers)
contribution of teachers: हूँ जो कुछ भी आज मैं,
श्रेय में देता हूँ उन शिक्षकों।
जिन्होंने हमें पढ़ाया लिखाया,
और यहाँ तक पहुँचाया।
भूल सकता नहीं जीवन भर,
मैं उनके योगदानों को।
इसलिए सदा में उनकी,
चरण वंदना करता हूँ॥
माता पिता ने पैदा किया।
पर दिया गुरु ने ज्ञान।
तब जाकर में बना लेखक,
और बना एक कुशल प्रबंधक।
श्रेय में देता हूँ इन सबका,
अपने उनको शिक्षकों।
जिनकी मेहनत और ज्ञान से,
बन गया पढ़ा लिखा इंसान॥
रहे अँधेरा भले
उनके जीवन में,
पर रोशनी अपने
शिष्यों को दिखाते है।
जिस से कोई
बन जाता कलेक्टर,
तो कोई वैज्ञानिक कहलाता है।
सुनकर उन शिक्षकों को,
तब गर्व बहुत ही होता है।
मैं कैसे भूल जाऊँ उनको,
योग जिन्होंने हमें बनाया है।
देकर ज्ञान की शिक्षा,
हमें यहाँ तक पहुँचाया है।
रिश्तों को बनाये रखें
रिश्तो का बंधन
कही छूट न जाये।
और डोर रिश्तों की
कही टूट न जाये।
रिश्ते होते है बहुत
जीवन में अनमोल।
इसलिए रिश्तो को
हृदय में सजा के रखे॥
बदल जाए परिस्थितियाँ
भले ही ज़िन्दगी में।
थाम के रखना डोर
अपने रिश्तों की।
पैसा तो आता जाता है
सबके जीवन में।
पर काम आते है
विपत्तियों में रिश्ते ही॥
जीवन की डोर
बहुत नाज़ुक होती है।
जो किसी भी समय
टूट सकती है।
इसलिए कहता हूँ में
रिश्तो से आंनद वर्षता है।
बाकी ज़िन्दगी में अब
रखा ही क्या है॥
बेटियाँ
घर आने पर,
दौड़कर पास आये।
और सीने से लिपट जाएँ,
उसे कहते हैं बिटिया॥
थक जाने पर,
स्नेह प्यार से।
माथे को सहलाए,
उसे कहते हैं बिटिया॥
कल दिला देंगे,
कहने पर मान जाये।
और जिद्द छोड़ दे,
उसे कहते हैं बिटिया॥
रोज़ समय पर
दवा की याद दिलाये।
और साथ खिलाये,
उसे कहते हैं बिटिया॥
घर को मन से,
फूल-सा सजाये।
और सुंदर बनाए।
उसे कहते हैं बिटिया॥
सहते हुए भी,
दुख छुपा जाये।
और खुशियाँ बाटे,
उसे कहते हैं बिटिया॥
दूर जाने पर,
जो बहुत रुलाये।
याद अपनी दिलाये,
उसे कहते हैं बिटिया॥
पति की होकर भी,
पिता को भूल पाये।
सुबह शाम बात करे,
उसे कहते हैं बिटिया॥
मीलों दूर होकर भी,
जो पास होने का।
एहसास दिलाये,
उसे कहते हैं बिटिया॥
इसलिए अनमोल “हीरा”
बेटियाँ कहलाती है।
और घरों में संस्कार,
भर पूर फैलती है॥
इसलिए इन्हें सरस्वती,
दुर्गा और लक्ष्मी कहते है।
और ये कविता संजय,
बेटी दिवस पर बेटियों
को समर्पित करता है॥
भगत सिंह की गाथा
फौलाद-सा सीना लेकर
एक बालक ने जन्म लिया।
बचपन से ही कुछ कर गुजरने
की इच्छा शक्ति दिखलाई।
और देश प्रेम की भावनाओ ने
आज़दी की आग लगा दी।
कूदन पड़ा वह रण भूमि में
उम्र जब उसकी थी १५.
छोड़ छाड़ के घर अपना
आजादी की जंग में कूंद पड़ा।
अंग्रेजो के घर में घुसकर
उनको उसने ललकार दिया।
अंग्रेजो के मुंह से उसने
मानो रोटियाँ छीन लिया।
नाम उन्हें जब पता पड़ा कोई
भगत सिंह रणभूमि आ पहुँचा।
भगदड़ मच गई अंग्रेज़ी सेना में
जब सुना नाम भगत सिंह का॥
दो लालों का जन्म
२ अक्टूबर का दिन, कितना महान है।
क्योकि जन्मे इस दिन दो भारत माँ के लाल है॥
सोच अलग थी दोनों की,
पर थे समर्पित भारत के लिए।
इसलिए दिनों को हम लोग याद करते है।
और दोनों के प्रति,
श्रध्दा सुमन अर्पित करते है।
और उन्हें दिल से आज याद करते है॥
सत्य अहिंसा के बल पर,
हमे दिलाई आज़दी।
और सत्यग्रह करके,
मजबूर कर दिया अंग्रेजो को।
और उन्हें छोड़ना पड़ा भारत देश को।
और मिल गई हमे आज़दी,
सत्य अहिंसा के पथ पर चलकर॥
याद करो उन छोटे कद वाले इंसान को।
जो सोच बहुत बड़ी रखते थे।
और हर कार्य भारत के हित में करते थे।
तभी तो उन्होंने नारा दिया था,
जय जवान जय किसान।
ये ही है भारत की आन मान और शान॥
दोनों के प्रति आदर भाव रखते हुए।
हम उन्हें श्रध्दांजलि अर्पित करते है।
और भारत माँ को प्रणाम करते है।
कि ऐसे लालो को आपने,
जन्म दिया हिंदुस्तान में॥
बापू तेरे बंदर
बापू तेरे तीन बंदरो का,
हम अनुसरण कर रहे है।
और आज तेरे जन्मदिन पर,
श्रध्दा फूल चढ़ा रहा हूँ।
आज़दी तो मिली गई भारत माँ को।
पर अबतक समझ नहीं पाया,
की क्या मिला इससे हमको॥
तेरे बंदर भी है कमाल के,
जो संकेत देते है हर बात के।
एक कहता है देखो सुनो,
पर बोलो मत।
वरना बोलती हमेशा,
के लिए बंद हो जाएगी।
दूसरा कहता है न देखे न सुनो,
और कुछ भी बोल दो।
सारे इस पर उलझ जाएंगे,
और फिर दिनरात पकाएंगे।
तीसरा कहता देखो बोलो,
और किसी की मत सुनो।
नेता अभिनेता बन जाओगें।
और अंधे गूंगे और बैहरो
कि तरह बनकर,
सफल नेता कहलाओगें।
और देश की जनता को
५वर्षों तक उल्लू बनाओगे।
न ख़ुद शांति से बैठोगें
न जनता को बैठने दोगें।
कुछ बोलकर कुछ सुनाकर
और कुछ दिखाकर,
अपास में इन्हें लड़वाओगें।
और देश में अमन शांति
स्थापित नहीं होने देंगे।
जिससे मूल समस्याओं की तरफ,
जनता का ध्यान नहीं जाएगा॥
इसलिए तो कहता हूँ कि,
बापू तेरे बंदर कमाल के है॥
किस्मत ख़ुद लिखते है
कभी गमो का साया था
तो कभी ख़ुशी का साया।
फर्क बस इतना था
जिस से हमने पाया।
वो पहले ग़म था और
बाद में ख़ुशी देने वाला।
वो कोई और नहीं था
हमारा ही मन था॥
डूब जाते थे तब हम
जब नहीं समझ पाते थे।
और गमो के अंधेरों में
अपने आपको पाते थे।
ये सब हमारे मन की
ही सोच होती थी।
जिसे हम और आप
उस वक़्त पढ़ नहीं पाते॥
परस्थितियों से तुम
कभी मत घबराया करो।
समस्या का समाधान
तुम्हें ही खोजना है।
तभी तो सफलता
तुम्हारे कदमो को छूएगी।
और जीवन के लक्ष्य को
तुम हासिल कर पाओगें॥
बैठकर हाथ पर हाथ
हमें कुछ नहीं मिलता है।
जो भी मिलता है वो
कर्म करने से मिलता है।
इसलिए तो कर्मवीरों का आज कल बोलबाला है।
जो अपने हाथों से ही खुदकी क़िस्मत लिखते है।
और सच्चे योध्दा और
शूरवीर ये ही कहलाते है॥
मन की पीड़ा
न कोई हमारा है
न हम किसी के।
यही सब कहता है
जमाना आज का।
इसलिए तो आज
सीमित है अपनो तक।
नहीं करते चिंता अब
किसी और की हम॥
पहले हम क्या थे
अब क्या बन गये।
जमाने ने हमें
कहा पहुँचा दिया।
और खो दी आत्मीयता
और दिल के रिश्ते।
तभी तो अपने घर
तक के हो गये॥
बना बनाया समाज
अब बिखर गया।
और आत्मीयता का
अब अंत हो गया।
बने थे जो भी रिश्ते
उनसे भी दूर हो गये।
और खुदकी पहचान
खुद ही भूल गए॥
कल्याण का पथ
छोड़कर सब कुछ अपना
शरण तुम्हारी आया हूँ।
अब अपनाओं या ठुकराओं
तुम्हें ही निर्णय करना है।
मेरी तो एक ही ख़्यास
गुरुवर तुम से है।
की अपने चरणों में
मुझे जगह तुम दे दो॥
किया बहुत काला गोरा
मैंने अपने जीवन में।
कमाया बहुत पैसा
मैंने अपनी करनी से।
पर मुझको मिली नहीं
कभी भी मन में शांति।
जो तेरा दर्शन करके
मिला मुझको जो शुकुन॥
ये दौलत और सौहरत
सभी कुछ बेकार है।
कमालो जितना भी तुम
अपने जीवन में यहाँ।
यही छोड़ जाओगें सारी
अपनी दौलत सौहरत को।
तेरे संग जाएंगे केवल
तेरे किये गये कर्म॥
तेरे कर्मो के कारण ही
तुझे मिलेगा नया जन्म।
और अपनी करनी का
तुझे भोगना होगा फल।
यदि किया होगा तुमने
जीवन में कुछ दानधर्म।
तो अच्छी पर्याय पाओगें
फिर से लेकर मनुष्य जन्म॥
धर्म से बढक़र जीवन में
और कुछ होता ही नहीं।
धर्म पर चलने से तुमको
मिलेगा मुक्ति का पथ।
इसलिए समझ लो तुम
पैसा ही सब कुछ नहीं।
जीवन जीने का आनंद
धर्म ध्यान करने से मिलता॥
बुढ़ापा
न जीत हूँ न मरता हूँ
न ही कोई काम का हूँ।
बोझ बन कर उनके
घर में पड़ा रहता हूँ।
हर आते जाते पर
नजर थोड़ी रखता हूँ।
पर कह नहीं सकता
कुछ भी घरवालो को।
और अपनी बेबसी पर
खुद ही हंसता रहता हूँ॥
बहुत ज़ुल्म ढया है हमने
लगता उनकी नजरो में।
सब कुछ अपना लूटकर
बनाया उच्चाधिकारी हमने।
तभी तो भाग रही दुनियाँ उनके आगे पीछे।
और हम हो गये उनको
एक बेगानो की तरह।
गुनाह यही हमारा है की
उनकी खातिर छोड़े रिश्तेनाते।
इसलिए अब अपनी बेबसी पर
खुद ही हंस रहा हूँ॥
खुदको सीमित कर लिया था
अपने बच्चों की खातिर।
और तोड़ दिया थे
रिश्तेनाते सब अपनो से।
पर किया था जिनकी खातिर
वो ही छोड़ दिये हमको।
पड़ा हुआ हूँ उनकी घर में
एक अंजान की तरह से।
और भोग रहा हूँ अब
अपनी करनी के फलों को।
तभी तो ख़ुद हंस रहा हूँ
अपनी बेबसी पर लोगो॥
न जीत हूँ न मरता हूँ
न ही कोई काम का हूँ।
बोझ बन कर उनके
घर में पड़ा रहता हूँ॥
जहर
दिल जिस से लगा
उसे पा न सका।
पाने की कोशिश में
बदनाम हम हो गये।
फिर ज़माने वालो ने
खेल मज़हब का खेला।
जिसके चलते हम दोनों को
अलग होना पड़ा॥
मोहब्बत करने वाला का
क्या कोई मज़हब होता है।
दोनों का खून क्या
अलग अलग होता है।
क्यों मोहब्बत में मजहब
बीच में ले आते है लोग।
और सच्ची मोहब्बत का
क्यों गला घोंट देते है॥
स्नेह प्यार से जीने में
क्या मज़हब बाधा बनता है।
अरे जब रब ने दोनों को
एज दूजे से मिलाया है।
तो क्यों नफ़रत की आग
प्रेमियों के दिलों में लागते हो।
और राजनीति का ज़हर क्यों
मोहब्बत में भी फैला देते हो॥
परिणाम
खेल खेलो ऐसा की
किसी को समझ न आये।
लूट जाये सब कुछ
कोई समझ न पाए।
कर्ताधर्ता कोई और है
पर दाग और पर लग जाये।
और मकरो का रास्ता
आगे साफ़ हो जाये॥
देश का परिदृश्य
अब बदल रहा है।
लोगो का ईमान अब
बहुत गिर रहा है।
इच्छा शक्ति लोगों की
छिड़ हो रही है।
और अच्छे लोगों की
देश में कमी हो गई है॥
ऐसा तभी होता है जब
घोड़ा गधा साथ दौड़ता है।
और बुध्दि का परिक्षण
बिना संवादों से होता है।
और उस के परिणाम
देश में अब दिख रहा है।
तभी तो देश का नागरिक
ईमानदारी से लूट रहा है।
बस लूट रहा है…बस…॥
अपनों से डर
न जाने कितनों को,
अपने ही लूट लिया।
साथ चलकर अपनो का,
गला इन्होंने घोट दिया।
ऊपर से अपने बने रहे,
और हमदर्दी दिखाते रहे।
मिला जैसे ही मौका तो,
खंजर पीठ में भौक दिया॥
ये दुनियाँ बहुत ज़ालिम है,
यहाँ कोई किसी का नही।
इंतजार करते है मौके का,
जो मिलते भूना लेते है।
और भूल जाते है अपने
सारे रिश्ते नातो को॥
और अपना ही हित
ऐसे लोग देखते है॥
आज कल इंसान ही,
इंसान पर विश्वास नहीं करता।
क्योंकि उसे डर,
लगता है अपनो से।
की कही उससे विश्वासघात,
मिलने वाले न कर दे।
तभी तो अपनापन का, अभाव होता जा रहा है॥
जंग लड़ नहीं पाते
जो मुझ को मिला है,
वो मेरे कर्मो का फल है।
जमाना क्या कहेगा मुझे,
कुछ भी नहीं पता है।
पर मैंने सदा ही,
सत्य का साथ दिया है।
इसलिए आलोचनाओ का,
शिकार होना पड़ा है॥
आज कल के लोग बहुत, प्रेक्टिकली हो गए है।
जो औरों के लिए नहीं,
खुद के लिए ही जीते है।
और अपने फायदे के लिए,
कुछ भी कर जाते है।
और कुछ समय के लिए,
ये लोग प्रसन्न हो जाते है॥
जमाने की जंग ये लोग
अकेले लड़ नहीं पाते है।
और ज़माने के संग भी
ये चल नहीं पाते है।
दौर जैसे ही शुरू होता है ज़िन्दगी में कठिनाईयों का।
तो ऐसे लोग बीच मझधार में,
अपना दम तोड़ देते है॥
भारत माँ के लाल
मिलें अपनो का प्यार हमको,
तो सफलता चूमेंगी कदम।
रहे सभी का अगर साथ,
तो जीत जाएंगे हर जंग।
और मिल जाएगा हमको,
खोया हुआ आत्म सम्मान।
इसलिए हिल मिलकर,
रहो देशवासियो सब॥
तुम्हें क़सम भारत माँ की,
दिखाओ अपना जौहर तुम॥
तुम्ही तो कणधार हो,
अब भारत माँ के बच्चों।
इसलिए में कहती हूँ,
बहुत छला हैं गद्दारों ने।
तुम्हें अपनी माँ की रक्षा,
करने उतर जाओ मैदान में॥
बात जब माँ की आती हैं,
तो भूल जाते जाती धर्म।
और कस के कमर अपनी,
कूद जाते रणभूमि में हम।
और दिखा देते बहादुरी,
अपनी उन गद्दारो को।
तभी तो छोड़कर भाग जाते,
वो जंग के मैदान से॥
शहीदों को नमन
बहुत ख़ुशी है आज
हम सब को।
मना जो रहे है
स्वतंत्रता दिवस को।
पर मिली कैसे
हमे ये आज़ादी।
जरा डालो नज़र
तुम इतिहास पर॥
न जाने कितनी मांओ
की गोदे उजड़ गई।
न जाने कितनी माँगे
बहिनों की उजाड़ गई।
न जाने कितने बच्चों के
सिर पर से उठ गया साया।
तब जाकर मिल पाई थी
हमको ये आज़ादी॥
न जाने कितने वीरो को
हम लोगों ने खो दिया।
भरी जवानी में उन्हें
प्राण गमाना पड़ा।
और न देखा सुख
उन्होंने इस आज़ादी का।
जिसके लिए दे गए
सभी अपनी कुर्बानियाँ॥
सलाम करते है हम
उनके माँ बाप को।
जिनके पुत्रो पुत्रियों ने
दिया बलिदान अपना।
उन्हें अर्पण करते है
श्रध्दा के सुमन हम।
सदा ज़िंदा रहेंगे वह
भारत माँ के दिलो में।
जिन्होंने दिलाई आजादी
हमें उन अंग्रेजो से॥
टूट गये परिवार
मान अभिमान के चक्कर में,
उजड़ गए न जाने कितने घर।
हंसते खिल खिलाते परिवार,
इसकी भेंट चढ़ गये।
फिर न मान मिला,
न ही सम्मान मिला।
पर पैदा हो गया अभिमान,
जिसके कारण टूट गये परिवार॥
हमें न मान चाहिए,
न सम्मान चाहिए।
बस आप का,
प्रेम भाव चाहिए।
मतभेद हो सकते है,
फिर भी साथ चाहिए।
क्योंकि अकेला इंसान,
कुछ नहीं कर सकता।
इसलिए आप सभी का,
हमें साथ चाहिए॥
यदि आप सभी आओगे,
एक साथ एक मंच पर।
तो मंच पर चार चांद,
निश्चित ही लग जायेंगे।
अनेक भाषाओं और जाती,
होने के बाद भी।
जब एक साथ मिलेंगे,
तभी हम हिंदुस्तानी कहलायेंगे॥
दिल बेहाल है
किसी का क्या जो कदमो पर,
जबी ए बंदगी रख दी।
हमारी चीज थी हमने,
जहाँ जानी वहाँ रख दी।
जो दिल माँगा तो वह बोले, ठहरो याद करने दो।
जरा-सी चीज थी हमने,
न जाने कहाँ रख दी॥
तुम्हे अब भूल जाये,
तो अच्छा है।
ये फासले और भी,
बढ़ जाये तो अच्छा है।
तुम्हारी चाहते,
हमको नहीं हासिल।
इसलिए अब गैर ही,
बन जाए तो अच्छा है॥
बाग में टहलते हुए एक दिन,
जब वह बेनकाब हो गए।
जितने भी पेड़ थे बाबुल के,
सब के सब गुलाब हो गये।
तेरी चहात का अंदाजा,
ये दृश्य देखकर,
हम तेरी दीवाने हो गये।
और प्यार के इस बाग़ में,
अब हम भी खो गए॥
कदर की होती यदि,
हमने तेरी प्यार की।
तो आज,
हम साथ-साथ होते।
और न थामना पड़ता,
हाथ किसी और का।
अब तो जो तेरा हाल है,
वही हाल अब मेरा है।
अलग अलग तरह से,
जिंदगी अब जी रहे है॥
चांदनी रात
ओढ़कर प्यार की चुनरिया,
चांदनी रात में निकलती हो।
तो देखकर चांद भी थोड़ा, मुस्कराता और शर्माता है।
और हाले दिल तुम्हारा,
पूछने को पास आता है।
हंसकर तुम क्या कह देती हो,
की रात ढलते लौट जाता है॥
चांदनी रात में संगमरमर,
की तरह तुम चमकती हो।
रात की रानी बनकर,
पूरी रात महकती हो।
और हर किसी को,
मदहोश कर जाती हो।
और धरा पर प्यार के,
मोती बिखर देती हो॥
अपनी मोहब्बत से तुम,
सब को लुभाती हो।
काली रात में भी,
चांद को मिलने बुलाती हो।
भूल जाती हो प्यार में,
की पुर्णिमा को चांद आएगा।
और पूरी रात तुम्हे,
दिल से लगाएगा॥
उम्मीदें क़ायम रखे
प्यार मोहब्बत से,
जीना चाहता हूँ।
आपकी बाहों में,
झूलना चाहता हूँ।
जब से दिल,
तुमसे लगा है।
जिंदगी जीने का,
अर्थ समझ आया है॥
न उम्मीद होकर भी,
उम्मीद से ज़िया हूँ।
प्यार मोहब्बत के लिए,
हर दिन तरसा हूँ।
पर अपनी उम्मीदों,
पर क़ायम रहा हूँ।
तभी तो तेरा प्यार,
हमे मिल पाया है॥
टूट जाते है सपने तब,
जब आत्मविश्वास न हो।
देख कर हालात तब,
छोड़कर चले जाते है।
और बीच मझधार में,
अकेला छोड़ देते है।
और हमारी ज़िन्दगी में, अँधेरा कर देते है॥
भंवर जाल
बनाकर आशियाना अपनी मोहब्बत का,
क्यों तुम गिरा रहे हो।
जमाने के डर से शायद,
तुम भाग रहे हो।
और लोगों के भवर जाल में,
तुम फस गये हो।
और अपनी मोहब्बत का,
जनाजा ख़ुद निकल रहे हो॥
ये दुनियाँ बहुत ज़ालिम है,
जिसने न छोड़ा राम सीता को।
जुदा करवा दिया था,
उस समय राम सीता को।
यही क्रम आज भी चल रहा है,
इस कलयुगी संसार में।
और मोहब्बत के दुश्मन,
मर देते है प्रेमियों को॥
यदि की है मोहब्बत तो
क्यों ज़माने से डरना।
जो दिल कहता है हमारा,
वही अब आगे है करना।
और अपनी मोहब्बत को,
अमर कर के जाएंगे।
और लोगों के भंवरजाल को,
तोड़कर हम दिखलायेंगे॥
दूर हो गये
कैसा ये दौर आ गया है,
जिसमें कुछ नहीं रहा है।
और ज़िन्दगी का सफर,
अब ख़त्म हो रहा है।
क्योंकि इंसानों में अब,
दूरियाँ जो बढ़ रही है।
जिससे संगठित समाज,
अब बिखर रहा है॥
इंसानों की इंसानियत,
अब मरती जा रही है।
क्योंकि इन्सान एकाकी,
जो होता जा रहा है।
सुखदुख में वह शामिल,
अब नहीं हो पा रहा है।
और अन्दर ही अंदर,
घुटकता जा रहा है॥
मिलते जुलते थे जहाँ,
रोज इंसान अपास में।
वो मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे,
अब बंद हो गये है।
मानो भगवान भी अब,
इंसानों से रूठ गये।
और उनकी करनी का
फल इन्हें दे रहे है॥
साफ पाक स्थान भी,
पवित्र नहीं बची है।
जिससे पाप बढ़ गए है,
और परिणाम सामने है।
क्यों दौलत की चाह में,
इंसान इतना गिर रहा है।
जिसके कारण ही उसे, भगवान ने दूर कर दिया॥
याद रहोगे
हम सब एक दिन मर जाएंगे।
इस संसार से मुक्ति पा जाएंगे।
और छोड़ जाएंगे अपनी लेखनी व कर्म।
जिसके कारण याद किये जाएंगे॥
शब्दो के वाण दिल को बहुत चुभते है।
दिलसे जुड़ी बातों को
ही याद रखते है।
भूल जाते है जिंदामें जब लोग।
तो मरने के बाद क्यों याद करेंगे॥
लोग करनी के कारण,
ही याद किये जाते है।
जो अच्छा करके जाते है,
वो ही याद आते है।
यदि किया नहीं कोई अच्छा काम ज़िन्दगी में।
तो बाहर वाले क्या,
घर वाले ही भूल जाते है॥
मानव जीवन है अनमोल,
इसके मूल्य को समझे।
खुद जीये औरों को भी,
सुख शांति से जीने दे।
इस सिद्धांत को अपने,
जीवन में अपनाएंगे।
तो निश्चित ही लोगों के, दिलो में ज़िंदा रह पाओगे॥
अधूरे सपने
हंसते चीखते गली मोहल्ले,
अब वीरान से हो गए है।
शहर के सारे चौहराये,
अब सुनसान हो गए है।
पर घर परिवार के लोग,
घरों में क़ैद हो गए है।
और परिवार तक ही,
अब सीमित हो गए है।
और बनाबटी दुनियाँ को,
अब वह भूल से गये है॥
महानगर बेहाल हो गए है,
माल सिनेमा बंद हो गए है।
पर गांवों के चौपाल,
अब आवाद हो गये है।
क्योंकि गांवों के वासिंदे,
गांव लौट आये है।
और गांवों में शहरों जैसी,
चहल पहल बढ़ाये है।
छोड़कर चकाचौंध शहरों की,
सुख शांति से जीने आये है॥
बेटा बहू नाती पोते आदि,
गांव परिवार में लौट आये है।
और सुख दुख के लिए,
अपनो के बीच आ गये है।
और आधुनिकता को अब,
शहरों में छोड़ आये है।
और गाँव की खुली हवा में,
मानो वह अब जीने आये है।
और अपनी पुरानी संस्कृतिको,
अब ठीक से समझ पाये है॥
जिंदगी की बहुत बड़ी सीख,
दुनियाँ वालो को मिली है।
बनाबटी चकाचौंध क्या है,
ये दुनियाँको समझ आया है।
विश्वशक्ति बनाने के चक्कर में,
अपने घरों को आग लगा दी।
और इसके अच्छे बुरे परिणाम,
पूरे विश्व को दिला दिए है।
इससे तो हमलोग अच्छे थे,
अपने पुराने दौर में।
जिसमें रूखी सुखी खाकर,
कम से कम शांति से जीते थे॥
संजय जैन
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