
child abuse
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बाल यातना (child abuse) एवं अवैध तस्करी
बाल यातना (child abuse) एवं अवैध तस्करी
बाल यातना (child abuse) एवं अवैध तस्करी का,
रूक नहीं रहा-
देश में व्यापार।
कितनी ही बालाएँ यहाँ,
नित होती है-
उनका शिकार।
शिक्षा का अभाव और निर्धनता,
बनाती बच्चो को-
शोषण का शिकार।
कब-तक चलता रहेगा,
देश और समाज में-
ऐसा कुत्सित अत्याचार।
रोक लगानी ही होगी इस पर,
सभी मिल-जुल-
इस पर करो विचार।
शिक्षा का हो प्रसार साथी,
निर्धनता का हो-
समाज में उपचार।
तभी मुक्ति मिलेगी साधी,
बाल यातना एवं अवैध तस्करी का-
कुछ तो हो पायेगा उपचार।
समाज को करना होगा सजग,
कड़ी व्यवस्था से ही-
मिटेगा यह विकार॥

चाहत
चाहत जागी मन में ऐसी,
मैं भी देखूँ सपने ऐसे।
ख़ुशियों को भर ले आँचल में,
बगिया महके जग में जैसे॥
सपने-सपने न रहे साथी,
उनको भी कर ले सच ऐसे।
बनी रहे तृष्णा जीवन में,
संग-संग प्रभु की भक्ति जैसे॥
छाये न विकार जीवन में फिर,
बना रहे ये तन-मन ऐसे।
जीवन चमके पल-पल ऐसे,
देख रहे हो दर्पण जैसे॥
तूफान
प्रकृति का तूफान तो साथी,
थम ही जायेगा-
कर के कुछ नुकसान।
कारण खोजो फिर न आये,
प्रलय-सा तूफान-
सफल हो ये अभियान।
सब कुछ सहज हो जाता साथी,
उठता न जो मन में-
अपनो के अपमान से तूफान।
बड़ा मुश्किल है जीवन में साथी,
थामे उस तूफान को और-
मन आये अभिमान।
अहंकार में डूबे हुए जग मे,
मिट गये बड़े-बड़े नाम-
रहा न उनका धरती पर नामो निशान।
तूफान तो तूफान है साथी,
प्रकृति का कोप हो-
चाहे मन छाया अभिमान॥
सोचा नहीं था
कभी सोचा नहीं था जीवन में,
ऐसा दिन भी आयेगा-
खुद अपने ही घर में क़ैद होना पड़ जायेगा।
अपनो से मिलने के लिए भी,
मन पल-पल-
तड़प कर रह जायेगा।
कभी जीवन में सोचा नहीं था,
ऐसा वायरस भी आयेगा-
इलाज न कोई विश्व घबरायेगा।
महामारी है ये तो महामारी,
कितनो को निगल चुकी-
कैसे-इससे पर पायेगा?
घर में रहना ही सुरक्षित होगा,
बाहर तो कोरोना-
पल-पल डरायेगा।
सुरक्षा में ही सुरक्षा होगी,
संभलकर चले-
तभी जीवन बच पायेगा।
कभी सोचा नहीं था जीवन में,
ऐसा दिन भी आयेगा-
खुद अपने ही घर में क़ैद होना पड़ जायेगा॥
घरौंदा
पंचतत्वो से बना घरौंदा ये तन,
इसी में साथी-
मिल जाना है।
छोटी-सी इस ज़िन्दगी में,
क्यों-आपस में-
कटुता बढ़ाना है।
मिल जुल कर रहो साथी,
अपनत्व को-
जीवन में बढ़ाना है।
करो न अभिमान जीवन में,
सब कुछ यही रह जाना-
माटी का तन माटी में मिल जाना है।
सद्कर्मो से इस जीवन को,
जग में सार्थक और-
अमर कर जाना है।
कौन-अपना, कौन-बेगाना,
भूल इसको साथी-
अपनत्व को बढ़ाना है।
पंचतत्वो से बना घरौंदा ये तन,
इसी में साथी-
मिल जाना है॥
लद्दाख सीमा हालात
चीन की नियत में छाया खोट,
लद्दाख सीमा पर-
अपनी नज़र गड़ाई।
भूल गया वह तो ये भी,
हमारे देश से-
व्यापार में की भारी कमाई।
भड़काने को चीन ने हमें,
अरूणाचल को तिब्बत में दिखा-
अपने हक़ की दी दुहाई।
सब जानते है जग में साथी ये तो,
अरूणाचल अखण्ड भारत का अंग-
फिर भी उसने आँख दिखाई।
देख कड़ा रूख लद्दाख सीमा पर,
चीन को शर्म न आई-
छेड़-छाड़ से विश्व युद्ध की आहट आई।
सुधरेगे हालात लद्दाख सीमा पर,
रक्षा और प्रधान मंत्री ने-
देश में आस जगाई॥
अकेला
माना होता जो मन मेरा,
यहाँ देखता जग का मेला।
रहता न यूँही पल-पल मैं,
क्यों-अपनो संग अकेला?
पल-पल सोच रहा मन साथी,
कैसा-ये दुनियाँ का मेला?
अपना-अपना कहता साथी,
फिर भी रहता यहाँ अकेला॥
छाये न नफ़रत मन में साथी,
इतना तो होता मन उजला।
साध लेता जो मन साथी,
यहाँ रहता न फिर अकेला॥
विश्वास
भोर हुई संग उठो साथी,
कैसा-आया विचार है?
प्रकृति की गोद में देखो,
समा गया संसार है॥
भोर का उजाला देखो,
हर लेता अंधकार है।
जैसे हर लेता जीवन से,
मन में छाया विकार है॥
उड़ते पंक्षी नभ में देखो,
देते ऐसा आभास है।
छू ले ऊँचाई गगन की,
मन में भरते विश्वास है॥
अनोखा बंधन
सम्बंधों की डोर बंधी,
जीवन में नेह संग-
अपनत्व का है-अनोखा बंधन।
अपनत्व की चाहत में ही,
भटकता रहा-
साथी कैसा है-बंधन।
सम्बंधों में जो दें कटुता,
उनका तो साथी-
जीवन में करना होगा-मंथन।
टूटे न डोर सम्बंधों की साथी,
जीवन में बना रहे-
प्रेम का अनोखा बंधन।
प्रेम संग ही पूरे होते जीवन के-
साथी सभी अनुबंध।
मधुरवाणी से ही जीवन में,
महकते पल पल-
जीवन सम्बंध।
सम्बंधों की डोर बंधी,
जीवन में नेह संग-
अपनत्व का है-अनोखा बंधन॥
बेरंग ज़िन्दगी
अपनों के दिये दर्द ने,
कर दी साथी-
बेरंग ज़िन्दगी।
चलता रहा जीवन-पथ पर,
अकेला ही मैं-
रंगों की चाहत लिए ज़िन्दगी।
सतरंगी इन्द्रधनुषी रंगों संग,
चला मैं तो-
अपनो बिन रही बेरंग ज़िन्दगी।
भूलकर बीते पल साथी,
चले संग जो साथी-
महकने लगती ये ज़िन्दगी।
मधुमास छाता जीवन में साथी,
फिर न होती-
ये बेरंग ज़िन्दगी॥
फ़िज़ा
बदली फ़िज़ा मौसम की,
मिट रहा पल-पल-
प्रकृति में छाया प्रदूषण।
जल-थल और अंबर से अब,
महक रही चारो ओर सुगंध-
प्रफुलित हो रहा मन।
ऐसे में साथी संग हो साथी,
मिटे जीवन में-
छाई हुई घुटन।
भोर के उजाले में साथी,
भक्ति संग संग-
प्रभु को करें नमन।
भक्ति पथ पर चलकर ही,
साथी जीवन में-
होता विकारो का शमन।
बदली फ़िज़ा मौसम की,
मिट रहा पल-पल-
प्रकृति में छाया प्रदूषण॥
मौन
मौन रह कर जीवन में साथी,
क्या-कुछ फिर कह पाती है?
कही-अनकही व्यथा वह तो,
नैनों से कह जाती है॥
नैनों की भाषा ही उनकी,
जीवन में बस जाती है।
मौन रह कर ही वह तो यहाँ,
फिर सब कुछ कह जाती है॥
साधना-अराधना उनकी,
मौन संग बस जाती है।
मौन रह कर ही वह तो यहाँ,
लक्ष्य अपना पाती है॥
रैन
सोचते रहे साथी तुम तो,
गुज़र गई यूँही वह रैन।
सोचो उनकी भी साथी तुम,
जिनकी चुराई तुमने चैन॥
छलकती फिर चाँदनी साथी,
क्यों-सोचे अंधेरी रैन?
पल-पल याद सताये साथी,
कैसे-मिलेगे फिर वह नैन?
देखे सुनहरे सपने साथी,
गुजरी सारी-सारी रैन।
देखा ऐसा सपना साथी,
ये तन-मन तो रहा बेचैन॥
प्रेयसी
प्रेयसी तुम रूठ न जाना,
संग चल जीवन में-
जीवन नैया पार लगाना।
प्रेयसी तुम्हारी ही चाहत में,
भटकता रहा जीवन भर-
मिलकर अब खो न जाना।
तुम्हारे होने का अहसास ही,
देता जीवन प्राण-
प्रेयसी भूल न जाना।
जीवन में कही-अनकही व्यथा,
प्रेयसी मन से-
न तुम लगाना।
हम एक ही है प्रेयसी,
तुम जीवन मे-
ये भूल न जाना।
प्रेयसी तुम रूठ न जाना,
संग चल जीवन में-
जीवन नैया पार लगाना॥
उन्हें फिर अपनाना-तुम
अंतहींन इस जीवन-पथ पर,
साथी बन मिल जाना तुम।
भूले जो हँसना जग में,
फिर से याद दिलाना तुम॥
मिलकर बिछुड़े जो जग में वो,
सपना बन छा जाना तुम।
भूले कटुता जीवन की फिर,
ऐसी राह दिखलाना तुम॥
अपना-बेगाना न कोई,
ये मन को समझाना तुम।
साथ निभाए जीवन-पथ पर,
उन्हें फिर अपनाना तुम॥
हौसला रखिये
बढ़ती महामारी से साथी,
जीतेगे जंग ज़रूर-
बस हौसला रखिये।
दूर नहीं जीवन में साथी,
हम-तुम मिलेगे ज़रूर-
बस हौसला रखिये।
गुज़र जायेगा ये समय भी साथी,
पंख लगाकर-
बस हौसला रखिये।
मिले न मिले हम साथी,
मिलने का अहसास ही काफी-
बस हौसला रखिये।
छायेगा मधुमास जीवन में फिर साथी,
मिट जायेगी कटुता-अवसाद सारा-
बस हौसला रखये।
बढ़ती महामारी से साथी,
जीतेगे जंग ज़रूरी-
बस हौसला रखिये॥
मजदूर
मज़बूर है-मजदूर आज,
खाली बैठा वह तो-
घर से बहुत दूर।
दहशत के साये में वह तो,
यहाँ जीने को-
है-मज़बूर।
दूसरो की मेहरबानी से,
एक वक़्त मिला भोजन-
खाने को मज़बूर।
कुछ का तो धैर्य टूटा,
चल पड़े पैदल ही-
घर जाने को मज़बूर।
दहशत के साये में ही,
परिवार को ले चले-
घर की ओर।
खुले में बिताई सारी रात,
सुबह फिर-
चल पड़े मंज़िल की ओर।
मज़बूर है-मजदूर आज
खाली बैठा वो-
घर से दूर॥
साथी साथ होते-तुम
हर दु: ख सह लेता जग में फिर,
जो साथी साथ होते-तुम।
कदम तो न बहकते यहाँ फिर,
जो संग साथी चलते-तुम॥
थाम लेते इन कदमों को,
जो मंज़िल ही होते-तुम।
उदासी न छाती जीवन में,
जो साथी साथ होते-तुम॥
संग चलते न चलते साथी,
ऐसा अहसास देते-तुम।
आते न आते जीवन में,
सपनो में तो छाते-तुम॥
मरहम
साथी शरीर पर लगी चोट,
ठीक हो जायेगी-
लगा कर मरहम।
साथी अपनो के दिये दर्द से,
उपजे दिल के जख़्म पर-
काम न करेगा मरहम।
साथी साथी हो साथी,
दे अपनो को सम्मान-
मिलेगी राहत करें मरहम का काम।
साथी मधुर वचन और व्यवहार,
देगा जीवन आस-
यही विश्वास करें मरहम का काम।
साथी भोर का उजाला ही,
देगा नव-विश्वास-
होगा जग में नाम।
साथी टूटे सम्बंधों को भी,
स्नेंह संग जोड़े-
वही करें मरहम का काम॥
भीड़
भीड़-भाड़ से दूर रहना,
घर में रहना-
सुरक्षित रहना।
भूल जाना सैर सपाटा,
देर तक न बहार रहना-
भीड़-भाड़ से दूर रहना।
अपने अपनो के लिए साथी,
बस दुआ करना-
स्वस्थ रहे सुरक्षित रहना।
आहार ऐसा करना साथी,
तन की बढ़े रोग प्रतिरोधक शक्ति-
मन में रखना प्रभु भक्ति।
जब तक न जीत ले कोरोना से जंग,
तब तक भीड़-भाड़ से-
साथी तुम दूर रहना।
भीड़-भाड़ से दूर रहना,
घर में रहना-सुरक्षित रहना॥
मेल मिलाप
मेल मिलाप तो अच्छा साथी,
जीवन में अब-
मिलने से डर लगता है।
दूर रह कर ही हम तो साथी,
कर लेगे सब्र-
तुम रहो आबाद दिल कहता है।
महामारी का देख प्रकोप साथी,
क्या-मेल-मिलाप में रखा-
सुरक्षित रहो मन यही दुआ करता है।
स्वस्थ हम रहे-तुम रहो साथी,
मिलेगे मिलने के मौके बहुत-
मन यही कहता है।
मेल-मिलाप तो अच्छा साथी,
जीवन में अब-
मिलने से डर लगता है॥
फिर तुम याद आये
जीवन में संग चले थे कभी,
यादो के झरोखो से-
फिर तुम याद आये।
बहुत दूर हो तुम हमसे,
कभी मिल न पाओगें-
फिर तुम याद आये।
साया बन संग चले जो,
कभी जीवन में-
फिर तुम याद आये।
यादो के साये गहराने लगे,
भूले थे तुमको-
फिर तुम याद आये।
मिले न जीवन में तुम,
मिलने की आस में-
फिर तुम याद आये।
सपने तो सपने है-साथी,
उसमें भी-
फिर तुम याद आये॥
साथी
बहके क़दम जब मेरे यहाँ,
बढ़कर थाम लेना साथी।
संग-संग चल कर मेरे तुम,
सत्य-पथ दिखलाना साथी॥
छाए कटुता मन में जब जब,
छोड़ दूर ना जाना साथी।
सुना मधुर गीत यहाँ कोई,
मन को तुम बहलाना साथी॥
कहे न बेगाना कोई फिर,
वो राहें दिखलाना-साथी।
निभाये साथ जीवन में जो,
वो साथी तुम बनना-साथी॥
घर वापसी
महामारी की बढ़ी चाल,
घर में रहे-सुरक्षित रहे-
तभी बचेगी जान।
फँसे है जो जहाँ कहीं,
वही रहे-
समय की करें पहचान।
घर वापसी की दौड़ में,
खो न जाना-
जान है-जहाँंन है इसे मान।
बेरोज़गार हुए लोग,
भूख से व्याकुल-
घर वापसी को चल पड़े इन्सान।
कब-कहाँ-पहुँचेगे वो-
इसका भी नहीं उन्हें भान।
घर वापसी होगी ज़रूर,
थोड़ा करो-
सब्र और ध्यान।
महामारी से बचने को,
घर में रहे सुरक्षित रहे-
तभी बचेगी जान॥
पति परमेश्वर
पति परमेश्वर मान कर ही नारी,
करती है-जीवन में-
सोलह श्रृंगार।
पति परमेश्वर ही बनाता,
जीवन में-
गृहस्थी का आधार।
सात जन्मों तक रहे संग,
उसके लिए ही करती-
करवा चौथ व्रत का त्यौहार।
पति परमेश्वर की आरती उतार,
देती चन्द्रमा को जल-
चाहे सुख अपार।
पति-पत्नि दोनों में होता तालमेल,
घर घर होता-
सुखी होता उनका संसार।
आस्था-विश्वास से ही साथी,
पति परमेश्वर और पत्नी देवी रूप-
सजाते अपना घर द्वार।
पति परमेश्वर मान कर ही
नारी,
करती है-जीवन में-
सोलह श्रृंगार॥
आपसी सहयोग
आपसी सहयोग बिन साथी,
चलती नहीं-
ये जिंदगी।
अकेलापन जीवन को साथी,
छलता रहा-
दुर्भर हुई जिंदगी।
डर लगता है अंधेरे से साथी,
उजालो की चाहत में-
गुजर रही जिंदगी।
साथी-साथी बन संग चले साथी,
अपनेपन का-
अहसास हैं जिंदगी।
आपसी सहयोग से ही साथी,
मिलती है-मंजि़ल-
सार्थक होती जिंदगी।
आपसी सहयोग बिन,
चलती नहीं-
ये जिंदगी॥
क्यों-इसकी अब बात करो?
पल जो बीत गया जग में,
क्या-उसकी फिर बात करो?
छोड़ चले जो साथ साथी,
क्यों-उनको अब याद करो?
सपना-सा जीवन सारा,
यूँही न तुम बर्बाद करो।
सपनो-सी दुनियाँ में फिर,
कुछ सपने साकार करो॥
हर ले उदासी तन-मन की,
उनके ही संग साथ चलो।
कौन-अपना-बेगाना फिर,
क्यो-इसकी अब बात करो?
सपने नये सजाना-तुम
साथी पतझड़ से जीवन में,
बसंत बन छा जाना-तुम।
सूने-सूने नैनो में भी,
मधुर सपने सजाना-तुम॥
हर कर ग़म की बदली फिर से,
उपवन को महकाना-तुम।
भौरो की गुंजन संग-संग,
मधुर गीत गुनगुनाना-तुम॥
विरह की अग्नि में जीवन फिर,
यूँहीं न यहाँ जलाना-तुम।
साथी मिलन की आस संग फिर,
सपने नये सजाना-तुम॥
क्या-उससे घबराना है?
माटी का ये तन जग में,
माटी में मिल जाना है।
कुछ पल के इस जीवन में,
जग में स्वर्ग बनाना है॥
याद करें दुनियाँ सारी,
ऐसा कुछ कर जाना है।
सत्य-पथ पर चल जग में,
सत्य से न घबराना है॥
संग चले जीवन-पथ पर,
ऐसा साथी पाना है।
छोड़ दे मंझधार में जो,
क्या-उससे घबराना है?
हमसफ़र
जीवन के सफ़र में साथी,
हमसफ़र बन संग चले जो-
यादें उनकी गहराने लगी।
जब से बिछुड़े हमसफ़र हमसे साथी,
जीवन में अपने-
खुशियाँ भी बेमानी लगने लगी।
मधुमास से महका उपवन भी,
बिन हमसफ़र-
राहे सूनी लगने लगी।
सपने भी अब आते नहीं साथी,
यादें हमसफ़र की जाती नहीं-
जिंदगी बेमानी-सी लगने लगी।
अचानक देख हमसफ़र को साथी,
जिंदगी फिर-
रंग बदलने लगी।
मिलन की आस में साथी,
जिंदगी इन्द्रधनुषी रंगो से-
पल-पल महकने लगी।
जीवन के सफ़र में साथी,
हमसफ़र बन संग चले जो-
यादें उनकी गहराने लगी॥
सपनों की उड़ान
सपने तो सपने है-साथी,
कुछ सार्थक-कुछ निरर्थक-
सपनो की उड़ान बाकी।
देखते रहे सपने साथी,
भरते रहे उड़ान-
उसमे भी अपनी आन बाकी।
सपने होगे तभी तो साथी,
वो अपने होगे-
उन्ही में शान है-बाकी।
सपनों में ही बसा है साथी,
जीवन का सम्मान-
मिल करेंं पूरे उड़ान है-बाकी।
सपने हो जाये सच साथी,
सच का हो साथ-
बस सपनो की उड़ान बाकी।
सपने तो सपने है-साथी,
कुछ सार्थक-कुछ निरर्थक-
सपनों की उड़ान बाकी॥
गाँव की मिट्टी
गाँव की मिट्टी-मिट्टी नहीं साथी,
वो तो सोना है-
जीवन का बिछौना है।
गाँव की इस माटी से ही तो,
पाते भरपूर अन्न-
उसके आगे सब कुछ बौना है।
गाँव की मट्टी में ही तो साथी,
अपनों संग अपनत्व का-
हुआ गौना है।
महकती है ख़ुशबू हवाओ में,
लगता सब कुछ-
सलोना सलोना है।
गाँव की मट्टी साथी,
चंदन से कम नही-
इसी में जीना-मरना है।
गाँव की मिट्टी में ही साथी,
बसा देश प्रेम-
जो और कही न होना हैं॥
तेरी पायल
मेंहदी लगे पाँव में सखी,
कैसी-सज रही-
पायल तेरी।
तेरे आने की आहट भी,
सखी दे जाती-
ये पायल की छम-छम तेरी।
मधुर संगीत का देती आभास,
धीमे-धीमे चलती जब-
ये पायल तेरी।
भूले न वह पल वह अहसास,
साजन ने बाँधी-
पाँव में पायल तेरी।
जीवन में देती प्रीत का अहसास,
मन में विश्वास-
जब छम-छम बजती पायल तेरी।
कितनी अद्भूत कीमती,
जब जब सजती-
तेरे पाँव में पायल।
पायल की झंकार से ही,
मन में उपजने लगता प्रेम-
धन्य है-तेरी पायल॥

संगमरमर
संगमरमर-सा तन तेरा,
ऊपर से तीखे नक्श-
कितनो को तूने लुभाया।
-लेकिन,
सोच जीवन में अपने,
किसको-अपना बनाया-
अपनत्व की कसौटी पर खरा पाया।
संगमरमर-सा तन पा कर भी,
कुलषित मन संग-
सब कुछ जीवन में गवाया।
रूप मोह के जाल में,
मन पग-पग भरमाया-
समझे न कुछ पाया।
मन की सुंदरता के आगे,
संगमरमर-सा ये तन-
जीवन में काम न आया।
डसता रहा जीवन साथी,
अपने को पल पल-
अपना ही साया॥
आशा का परचम लहरा
छट जायेगी ग़म की बदली,
भोर के उजाले संग-
आशा का परचम लहरा रहा।
जीवन में छायेगा मधुमास,
सम्बंधों में जागेगी आस-आशा का परचम लहरा रहा।
सद्कर्मो से ही जीवन में साथी,
लौटेगी प्रतिष्ठा फिर से-
आशा का परचम लहरा रहा।
भक्ति में डूबेगा तन-मन साथी,
मन उपजेगा आनंद-
आशा का परचम लहरा रहा।
होगी प्रभु कृपा जीवन में,
मिलेगा अपनो का संग-
आशा का परचम लहरा रहा।
मिट जायेगी कटुता तन-मन से,
होगा अपनत्व का आभास-
आशा का परचम लहरा रहा॥
सुनील कुमार गुप्ता
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