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दीवाली (Diwali)
इस बार दीवाली (Diwali) क्यो ना नये अंदाज़ में मनाये
हाथो-सा दीये बनाकर खुशियाँ झोली में भर ले जायें
पटाखे ना बजाकर तेल के दीये से ही आंगन जगमगाये
इस बार दीवाली क्यों ना नये अंदाज़ में मनाये
भेदभाव को भुला कर इन्सानियत की दीवाली हम मनाये
मिठाई घर में ही बना परिवार को प्यार की ख़ुशबू से महकाये
इस बार दीवाली क्यो ना नये अंदाज़ में मनाये
छोड चाईनी चीजे घरों को ख़ुद अपने हाथो से सजाये
मर्यादा पुरुषोत्तम राम का त्यौहार बडे उल्लास से मनाये
इसबार दीवाली क्यो ना नये अंदाज़ में मनाये
अनमोल रिश्ता
समझा नहीं सकते तेरा ओर मेरा क्या है ये रिश्ता
शब्दो से दूर समझ से परे कुछ ऐसा है अनमोल रिश्ता
आसमा से ऊंचा सागर से गहरा है ये रिशता
बिन बोले ही जो समझे दिल की जुबा से
दुनिया की नजरो में गूगा बहरा है ये रिशता
दुनिया निभाती अकसर खून के रिशते
दिल के रिशते से बठकर ना कोई रिश्ता
हासिल हो जाती ये दुनिया की सारी दौलत
नजरो से ही सब पा लेता है ये रिशता
नही होती कोई चाहत कुछ पाने की कभी
खुद में ही मुकम्मल होता है ये रिशता
बधे है इक डोर से हम ओर तुम ऐसे
जनमो का साथ निभा रहा है ये रिश्ता
कैसा ये रिश्ता बीच हमारे जैसे राधा ओर कान्हा का अनमोल रिश्ता
उलझन
उलझन भरी ज़िंदगी को, सुलझाऊँ भी तो कैसे
ख़्वाब जो अभी अधूरे हैं, सुनाऊँ भी तो कैसे
फ़िक्र के घने बादल, छाए जो सब ओर हैं,
रिश्तों की रोज़ टूटती, नाज़ुक-सी इक डोर है
आँसू सहेजे आँखों से, मुस्कुराऊँ भी तो कैसे,
उलझन भरी ज़िंदगी को, सुलझाऊँ भी तो कैसे
अपने जो कहलाते थे, अजनबी से लगने लगे
वक़्त के साथ नासूर बन गये, घाव थे जो मिले
दिल के इन ज़ख्मों पर, मरहम लगाऊँ भी तो कैसे,
उलझन भरी ज़िंदगी को, सुलझाऊँ भी तो कैसे
पास रहकर भी दूर है कोई, कोई दूर होकर क़रीब है,
कैसा है रिश्तों का गणित ये और कितना अजीब है
गुमनाम रिश्तों की परिभाषा, समझाऊँ भी तो कैसे
उलझन भरी ज़िंदगी को, सुलझाऊँ भी तो कैसे
ख़्वाब जो अभी अधूरे हैं, सुनाऊँ भी तो कैसे
अवध में राम हैं आए
आज ख़ुशी के गीत सब गाओ,
अवध में राम है आये
सब मिलकर दीप जलाओ,
अवध में राम है आये
चारों ओर जगमग है आज,
अवध में जैसे दीवाली है आज
करो सब मिल गुणगान,
अवध में राम है आये
तन मन धन न्यौछावर कर दो,
जीवन अपना अर्पण कर दो
हो जाओ भव से पार
अवध में राम है आये
मा शबरी के बेर थे खाये,
सब राक्षस भी मार गिराये
अहिल्या का किया उध्दार,
अवध में राम है आये
हनुमंत जैसा भक्त जो पाया,
माँ सीता का पता लगाया
करो राम गुणगान,
अवध में राम है आये
चारो वर्णों के स्वामी तुम हो,
सबके अंतर्यामी तुम हो
करें अपना कल्याण,
अवध में राम है आये
तेरे दर्शन की मैं प्यासी,
जीवन अर्पण की अभिलाषी
अब दे दो मुझको ज्ञान,
अवध में राम है आये
भाई बहन
मेरी बहन मुझे बहुत याद आती है,
ना जाने क्यूं रूठ गई मेरी प्यारी बहना
बस अब उनकी याद ही बची है,
जो पल-पल मुझे रुलाती है
मेरी बहन मुझे बहुत याद आती है
बचपन की कुछ धुंधली यादें
मुझे बहुत सताती हैं,
मेरी बहन मुझे बहुत याद आती है
वो उनका आना और
प्यार से गले लगाना,
तस्वीर उनकी आज भी
आंखों में अा जाती है,
मेरी बहन मुझे बहुत याद आती है
उनके आने से घर में खुशियाँ छा जाती,
अपनी प्यारी बातें सुनाती,
जब याद उनकी आती है तो
आँख नम हो जाती है,
मेरी बहन मुझे बहुत याद आती है
राखी का त्यौहार जब आता,
मन में कुछ घबराहट लाता
जब उनकी राखी नहीं मिलती,
तो मेरी कलाई सूनी रह जाती है
मेरी बहन मुझे बहुत याद आती है
सावन तुम जल्दी आना
घुमड़ घुमड़ जब बादल छाए,
दिल की धड़कन बढ़ती जाए
बेचैनी को और ना बढ़ाना,
अब के सावन तुम जल्दी आना
काली घटा जब छा जाए,
मेरा मन भी मचला जाए
प्रियतम क़ो मेरे पास बुलाना,
अब के सावन तुम जल्दी आना
उसके प्यार में खोई ऐसी,
खोई मीरा प्रेम में जैसी
यह पैगाम प्रियतम को दे आना,
अब के सावन तुम जल्दी आना
दूर गगन में चाँद सितारे,
हम दोनों को पास बुलाते
मधुर मिलन का गीत है गाना,
अब के सावन तुम जल्दी आना
यादों का जब मिला सहारा,
ऐसे लगा कि तुमने पुकारा
अब ना बनाओ कोई बहाना,
अब के सावन तुम जल्दी आना
अब के सावन तुम जल्दी आना,
बिछड़ा प्यार भी संग में लाना।
प्यार में डूबी आंखें
बस आपके ही ख़्वाब सजाए रहती हैं अब आँखें
क्या जादू है चेहरे से हटती नहीं हैं अब आँखें
ख़यालों में कभी तो कभी रूबरू नज़र आते हो
इसी कश्मकश में ही उलझी रहती हैं अब आँखें
कोहिनूर मिला है मुझे हज़ारों हीरे परखने पर
इसकी रोशनी में ही रोशन रहती हैं अब आँखे
मुस्कुराते हो आप तो मुस्कुराती हैं ये भी
रूबरू होने से सजदे में झुक जाती हैं अब आँखें
नज़रें उठाते हो आप तो मानो वक़्त ठहर जाए
बंद रहकर भी कभी नम तो कभी बहती हैं अब आँखें
बस आपके ही ख़्वाब सजाए रहती हैं अब आखें।
भारत के वीर
यह जो वीर है भारत के,
सभी को नाज़ उन पर है
लगाकर दांव जीवन का,
वतन के काम आते हैं
वह साहस शौर्य की मूरत,
बढ़ते कर्तव्य निष्ठा से
करते ध्वस्त रिपु दल को,
हमें निश्चित सुलाते हैं
यह जो वीर है भारत के,
सभी को नाज़ उन पर है
तिरंगा आन है उनकी,
तिरंगा शान है उनकी
किसी भी हाल में है वो,
तिरंगा ही अपनाते हैं
यह जो वीर है भारत के
सभी को नाज़ उन पर है
लगाकर दाँव जीवन का,
वतन के काम आते हैं
ना घर की चिंता है उनको,
देश का नाम चमकाते हैं
करते देश का सिर ऊंचा,
तिरंगा जब लहराते हैं
यह जो वीर है भारत के,
सभी को नाज़ है उन पर है
पिया का प्यार
कैसे कहूँ पिया से, मेरा प्यार तुम ही तो हो
सिन्दूर से पायल तक, श्रिंगार तुम ही तो हो
तेरे लिए ही तो मेरा, सजना और संवारना है
तू मेरा साया है, तेरे साथ-साथ चलना है
तुझ में ही सुबह और शाम भी मेरी खोती है
सुबह और शाम की चाय, संग तुम्हारे होती है
मेरे दिल की हर धड़कन में, तेरा ही तराना है
जीवन का हर लम्हा, साथ तेरे बिताना है
तेरे घर आँगन में मैंने, संसार अपना बसाया है
मेरे दिल के हर कोने में, तू ही तो समाया है
हर रात तेरे संग महके, चाँद भी मुस्काता है
मन प्रेम में हो दीवाना, गीत मिलन के गाता है
फूलों से सज़ा मेरा दिल, तुम्हारा ही दीवाना है
हंसते हंसते बीते जीवन, साथ ऐसा निभाना है
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार
यहाँ से भी ठुकराया कहाँ जाऊँ पालनहार
सुख में कभी ना तेरी याद है आई
दुख में सांवरिया तुझसे प्रीत लगाई
सारा दोष है मेरा में करता हूँ स्वीकार
यहाँ से भी ठुकराया कहाँ जाऊँ पालनहार
सब कुछ गँवाया बस लाज बची है
तुझ पर कन्हैया मेरी आस टिकी है
सुना है तुम सुनते हो सब भक्तों की पुकार
यहाँ से भी ठुकराया कहाँ जाऊँ पालनहार
जिसको सुनाया मैंने अपना फसाना
सब ने बताया मुझे तेरा ठिकाना
सब कुछ छोड़ के आख़िर आया तेरे दरबार
यहाँ से भी ठुकराया कहाँ जाऊँ पालनहा
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार
यहाँ से भी ठुकराया कहाँ जाऊँ पालनहार
मन के भाव
अपने मन की भावनाओं को काग़ज़ पर उकेरती हूँ
ना कोई चिंता ना कोई फिकर मस्त रहती हूँ
खुद ही चलती रहती है कलम
बना कविता होठों पर अपने सजाती हूँ
उठाकर काग़ज़ क़लम भावों को लिखती हूँ
मन की चाहत मन की भाषा को ग़ज़ल बना
उसे दुनिया को सुनाती हूँ
साथ था जब उसका सब अच्छा लगता था
ना कोई मन्नत ना आरजू थी
ना कोई कमी मुझे खलती थी
उसके बगैर कैसे ढली यह शाम
बस अपने गीतों में गुनगुनाती हूँ
अपने मन के भावों को काग़ज़ पर उकेरती हूँ
सुनीता गर्ग
पंचकुला
यह भी पढ़ें-
२- निराश क्यों?
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