Table of Contents
कोरोना रिटर्न्स (Corona Returns)
Corona Returns: आतंकित मन अब हो उठा
संयम धीरज सब तोड़कर
भय से हैं भयभीत हो उठा
करोना के पुनः आगमन से
मानस हृदय पीड़ित हो उठा॥
कहर ढ़ा रहा ये कोरोना
पंख फैलाये उड़ रहा है
हुई जरा-सी चूक से ये
पकड़ में अपनी ले रहा॥
रखिए पूरा अपना ध्यान,
चूक न होने पाए कोई भी
नही मिलाना किसी से हाथ
आपकी सुरक्षा अब आपके हाथ॥
देश हित मैं करे ये काज
करोना को अब हराना है
स्वच्छता पर देकर ध्यान,
जन जन मैं जागरूकता लाना है॥
खाकर पीकर मस्त रहे सब
फिजूल न निकले घर से आप
कोरोना की लहर है बाहर
हमको संतुलन बनाना है॥
हाँ पागल ही तो हूँ
हार को जीत बनाती हूँ
हर बात मैं तुम्हारा साथ निभाती हूँ
तुम जो कहते हो उसे मान जाती हूँ
तुम्हारे प्यार में मेरे प्रीतम सच है ये॥
हा पागल ही तो हूँ …
जब भी तुम बाहर जाते हो
तुमको बार-बार कॉल लगती हूँ
तुम्हारा इंतज़ार है मुझे फिर भी
तुमको ही अपना हाल बताती हूँ॥
हाँ पागल ही तो हूँ………
सोचती हूँ किसे कहते है प्यार
आंखों मैं तुम्हारा चेहरा देखकर
मैं मन ही मन ख़ुद मुस्कुराती हूँ!
तुम्हारे प्यार मैं ख़ुद भूल जाती हूँ॥
हा पागल ही तो हूँ…
फिर सोचती हूँ की ज़रूरत क्या
है प्यार जताने की मुझे तुमको
तू मेरा है तभी तो मेरे पास ही
फिर लोट आता है हर हाल में॥
तेरे प्यार में हाँ पागल ही तो हूँ …
तेरा मेरा साथ ही तो प्यार जताता है
मुझसे तेरा रिश्ता ये क्या कहलाता है
तुझे छोड़ कर कही दिल एक मिनिट,
भी मेरा अब चैन नहीं पाता हैं॥
सच हा पागल ही तो हूँ …
मासूम बचपन
भोले नादान परिंदे के जैसे
दिन निकल गए बचपन के,
उड़ती पतंग से यहाँ बहा हम
कब हो गए हम पचपन के!
मासूम-सा बचपन भोलाभाला
अम्मा की पड़ती थी जहा मार
स्कूल जाने के नाम से हमको
आ जाता था तब रोज़ बुखार॥
श्याम आज भी याद आ जाती
उस इमली वाले की दुकान उई
मिलती थी खट्टी मीठी इमली
ले आते थे एक रुपए में समान!
रुपैया एक तब हमें मिलता था
आठना चराना भी चलता था,
छोटी-सी चीज को भी तब हम,
सबके साथ मिल बांटकर खाते॥
आज कहा रहा बो बचपन भी
और कहा रहें वह मीठे से पल,
कहा रही वह छुपन छुपाई भी
कहा गया वह मासूम बचपन॥
मां के हाथ का स्वेटर
गुनगुनी धूप मैं कभी
फुर्सत से बैठी मेरी मां
बुनती रहती कुछ न कुछ
अक्सर घर में सबके लिए,
सोचती हूँ की उनको सच में,
फुरसत मिलती थी क्या कभी!
जब भी ठंड आ जाती है,
मां के हाथ का स्वेटर जो
कभी बुना था मेरे लिए
उसकी याद मुझे आ जाती हैं॥
बंद दराज खोल कर जब भी
उसको देखता हूँ कभी आज
तब तब याद आता है मुझको
मां का वह असीम स्नेह अपार!
मेरे लिए बनाती स्वेटर प्यार से,
खुद पतली-सी शाल को पहिने
बिता देती जो पूरी सर्दी की रात
जब पूछती थी में उनसे यह बात
क्या तुमको ठंड नहीं लगती मां
बड़े प्यार से मुझे बताती थी मां!
तेरे सभी पुराने सारे स्वेटर
मेरे लिए ही तो है सब बेटा!
वैसे भी काम मैं कहा ठंड लगती है,
तू तो ठंड मैं रोज़ बाहर निकलती है!
यह कह कर वे मुस्कुरा उठती थी,
प्यार से फिर मुझको वे ठपटी थी!
आज भी जब भी ठंड आ जाती है,
जैकेट निकलने से पहिले मुझको,
मां के हाथ का स्वेटर की याद आ जाती है॥
राखी का त्यौहार
सावन का त्योंहार हैं राखी,
भाई बहिन का प्यार है राखी
बरस रहा है अमृत अंबर से,
ईश्वर का आशीर्वाद है राखी॥
प्रेम से भरा बरस रहा सावन
राखी का उत्सव मन भावन
प्रीत की डोर बाँधे हर बहिन,
भाई की कलाई पर पावन॥
हल्दी रोरी चावल मिठाई से
सज रही हर घर की थाली,
घेवर मलाई से सजा हुआ है
महकें दुकानें मिठाई वाली॥
लगी भीड़ फिर बाजारों में
रौनक छाई है राखी वाली
सज रहे गलियारे राखी से
हर राखी यहाँ रक्षा वाली॥
अपने भैया की रक्षा करती,
बहिन की राखी मन्नत वाली
देती आशीष बहिन भाई को
कोई मन्नत न जाए खाली॥
राखी का त्यौहार है आता
मायके की बहुत याद दिलाता
खिल जाती है मन की डाली
जब भैया ससुराल से लेने आता॥
राखी का उपहार
कुछ जायदा नहीं माग रही में भैया
बस तुम्हारा स्नेह बना रहे मुझ पर
तुमसे ही है मेरे मायका का परिवार
तुम्हारी ख़ुशी हैं मेरा राखी का उपहार॥
वह बचपन की वह प्यारी-सी यादें
रखना सदा संजोकर अपने पास
छोटी-सी इस दुनिया में मेरे भैया
एक तू ही है मात पिता के बाद॥
कभी ख़ुशी है और कभी है ग़म
एक दूजे के लिए सदा खड़े है हम
कैसी भी कोई परिस्थिति आ जाए
एक दूजे की रक्षा सदैव करेंगे हम॥
तुमने भाई बनकर मुझको भैया
बहन होने का यह अधिकार दिया
मेरी राखी का करके सम्मान तुमने
मुझे प्यार भरा राखी का उपहार दिया॥
रक्षाबंधन
उत्सव तो बहुत से आते है लेकिन
जिसका अंबर भी करता अभिनंदन,
त्योहारों में से एक त्योंहार है ऐसा भी
नाम है जिसका प्यारा “रक्षाबंधन” ॥
जब शहद-सी मिठास घुलती रिश्तों में
खुशहाली ही खुशहाली घर में आती
हर घर महके रसोई में ख़ास पकवान
घेवर, बर्फी और रसगुल्ले की मिठास॥
भाई बहिन का है रक्षाबंधन त्योंहार
आओ सजाते है सब मिलकर थाली
हल्दी, रोरी, चावल और राखी वाली
देखो कोई भी कलाई न रह जाए खाली॥
“रक्षाबंधन” जब-जब है आता
घेवर की महक से मन भर जाता
मोहन का हम सब भोग लगाते
फिर धूम धाम से यह पर्व बनाते॥
हिंदुत्व की प्यारी “हिंदी”
हिंदुत्व की प्यारी हिंदी
रज रज मैं बसी हुई है
शब्दकोश का भंडारण
सरलता से भरी हुई।
हिंदी है अनुभवों की बिंदी
यह हिंद का अभिमान है
मात्र हमारी भाषा नहीं ये
“भारत” माता समान है।
कितने युग बीते हिन्दी में
जाने कितने इतिहास पुराने हैं,
देवनागरी लिपि है जिसकी
हिंदी भाषा हमारी शान।
यू तो हिंद की बगिया में
कई भाषाओं के फूल लगे
मातृभाषा हिन्दी है प्यारी
जैसे नीर में कमल खिले।
रची बसी है हिन्दी में दुनिया
रूप रस छंद गीत कहानी मैं
कितने किरदार आए हिन्दी में
यह सालों साल पुरानी है।
बहुत बोली फिरंगी बोली
अब हिन्दी का मान करें
बोले और बुलाए हिन्दी में
हिंदी का सम्मान करें।
आओ नवयुग का निर्माण करें
इसमें हिन्दी को प्रथम रखें
मातृ भाषा है हिन्दी अपनी
सब मिलकर सम्मान करें।
हिंदी है हिन्दी की बोली
जैसे मीठी मुस्कान हो भोली
भारत माता की जय है जैसे
अब हिन्दी की जय-जय कार करे।
श्रावण मास
शुभ है बहुत यह “श्रावण” मास
भक्ति भाव से भरा हुआ मन
प्रफुल्लित रहता आठो याम
लेता है बस “शिव” का ही नाम॥
बहुत ही शुभ है यह “श्रावण” मास
नन्ही नन्ही रिमझिम फुहार
अंबर से यह जब गिरती है,
नन्हें-नन्हें अंकुरण से
धरा की गोद को भर्ती है,
जैसे कोई प्रेम की बात॥
बहुत ही शुभ है यह “श्रावण” मास
पीहर से आता है यह संदेश
घर आओ तुम दोनों साथ
भाई बहन के रिश्ते में घुल जाती है
फिर से बचपन बाली मिठास॥
बहुत ही शुभ है यह “श्रावण” मास
जैसे कोई प्रीत की बात
शिव से लू बस यही वरदान
प्रिय संग बीते हर “श्रावण” मास॥
हरियाली अमावस्या
सुखद बड़ा यह दिन त्यौहार का
पीपल, बरगद नीम का पूजन कर!
हरियाली अमावस्या पर प्रकृति माँ से
सभी लेते है नीरोग का आशीर्वाद॥
हरी हरी चूड़ी, हरी-हरी मेहंदी
हरा ही हो रहा सारा साजो श्रंगार
खुशहाली छाई है देखो मना रहे सब
हरियाली पर्व पर अमावस्या का त्योंहार॥
शुभ संयोग बन रहा सुखद
मिल रहा भोले का आशीर्वाद,
अमृत बरस रहा है अंबर से,
बुझा रही धरती की प्यास॥
हरि चुनरिया ओढ़ कर
प्रकृति ने कर लिया हरा श्रृंगार
हरियाली के छा जाने से धारा पर
प्रकृति दे रही सबको उपहार॥
झूला पड़ रहे पेड़ो पर
सावन में बरस रही फुहार
प्रफुल्लित मन हो रहा है
हरियाली अमावस्या का आया त्यौहार॥
एक नई शुरुआत
बहुत कुछ फिसल गया हाथों से
बहुत कुछ अब नहीं रहा है पास,
माना नहीं रहा अब पहिले जैसा
मन में किसी के आत्मविश्वास
पर जंग तो जारी है!
अब ज़िन्दगी की बारी है,
फिर से कोशिश करनी होगी
करनी होगी एक नई शुरुआत॥
सीख कर अपनी गलतियों से
फिर से क़दम बढ़ाएंगे, उप
नई दिशा में नए जीवन का
हम फिर से लक्ष्य बनाएंगे!
धरोहर जो प्रकृति की है,
उसे अब हम लोटाएंगे,
नही कटने देंगे इतने वृक्ष
हर अवसर पर वृक्ष लगाएंगे॥
फिर से करेंगे एक नई शुरुआत
हम जन–जीवन को बचाएंगे,
अमृत समान है जल हमारा
अब इसको व्यर्थ न बहाएंगे!
अपने पर्यावरण की खातिर,
अब अनुशासन को अपनाना है,
हर पल प्रकृति से जो छीना है,
अब सब उसको लोटना है॥
प्रदूषित न हो पर्यावरण
इसको ही लक्ष्य बनाना है!
हरी भरी हो ये धरा हमारी,
जल से भरा हो सबका जीवन
लहलाती फसलों से फिर से
खुशहाली फ़ैलाना है!
गांव या शहर सभी को अब फिर,
एक नई शुरुआत से आगे आना है॥
प्रतिभा दुबे
(स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर मध्य प्रदेश
यह भी पढ़ें-
१- हिन्दी दिवस
2 thoughts on “कोरोना रिटर्न्स (Corona Returns)”