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माँ तुझे प्रणाम (Mother I salute thee)
माँ (Mother) तुझे प्रणाम : इस साल सरदी से है बुरा हाल l चारों तरफ़ कोहरा व धुन्ध, सूरज भी था कहीं बादलों में गुम l हर कोई था ठंड से परेशान, ठंड बढ़ने का हुआ था ऐलान पर। एक माँ थी बड़ी बैचेन, उसे न था इक पल का चैनl अंदर-बाहर वह चक्कर लगा रही थी, अंदर आ अंडों पर बैठ जा रही थी l
हमारी परछत्ती पर था उसका बसेरा जिसका था उसके दो अंडो को आसराl मौसम का था इतना कहर, हमें भी था अंडों का फिकरl कोई और होता तो पूछ भी लेते, पर कबूतरी से हम क्या कहते? आज वह उन्हे छोड़ना न चाहती थी, शायद उनके जन्म की घड़ी आ गई थी l इस सरदी में वह उन्हे सेह रही थी और हमारी मौजूदगी को सह रही थी l इसे कुदरत का करिश्मा कहें या माँ की ममता…
जो एक खटके पर उड़ जाती थी, आज एकदम सुन्न थीl आज कुछ भी हो जाये, वह अंडों को न छोड़ेगी l हर कहर को अपने सिर ले लेगी l आज हम भी, सब काम छोड़ इसी में लगे थे, कब क्या होगा इस सोच में लगे थे l अब तो हमें भी चिन्ता होने लगी थी, कबूतरी के भाग्य की, ये अनमोल घड़ी थी घर हमारा बना था मैटरनीटी वार्ड जहाँ था दो चूजों के आने का इन्तजारl
भगवान से प्रार्थना फिर हमने भी की, चूं-चूं की मध्म ध्वनि हमने सुनी l दौड़ घर में अब ऐसी लगी, सभी को उन्हे देखने की पड़ीl फिर किया मैने यह ऐलान, कोई बाहर न जाये ये दे दो पैगामl हाथ जोड़ किया भगवान को प्रणाम, जिसने दिया इक माँ को आराम। इंसान हो या जानवर, माँ ही वह शक्ति है, जो हर बला पर भारी है lअपने बच्चे के लिए दुनिया की हर ख़ुशी वारी है l माँ की ममता होती है अनमोल, उसका नहीं है कोई और मोलl माँ तुझे प्रणाम।
भाभी-बहन
आज फिर माँ का फ़ोन आया। हाल चाल पूछने के बाद पूछा, “घर कब आ रही हो?” मैने घबरा कर पूछा, “सब ठीक है न” बोलीं, “ठीक है, बस कुछ काम था …जब आओगी तब कर लेंगे।” यह कह कर फ़ोन रख दिया।
अच्छा लगता था कि माँ अब भी मुझे याद करती हैं, पर यह बात खाये जा रही थी कि क्या हो सकता है जो उन्हे फ़ोन करना पड़ा। घर में बेटी से बढ़कर बहु उनके पास है, फिर क्या काम हो सकता है? भाभी ने जिस तरह घर संभाल लिया था उससे तो नहीं लगता कि किसी काम को करने में माँ को अब मेरी ज़रूरत होगी। माना भाभी मुझसे उम्र में छोटी हैं, पर रिश्ते में बड़ी थीं। सोचते-सोचते कब आँख लग गई पता ही नहीं चला।
सुबह उठी तो भी बात दिमाग़ में चल रही थी। नाश्ता निबटा भाभी को फ़ोन किया। वह शायद पहले से ही जानती थी। रसीवर उठाते ही तुरन्त बोली, “दीदी मम्मी ने फ़ोन किया था आपको?” मैने कहा-हाँ। ज़ोर से हँस पड़ी, अरे दीदी खादी की सेल चल रही थी रजाई लेने जाना था। मम्मी से कहा तो कहने लगी अभी रूक जाओ, नीरू आयेगी तो ले लेंगें। आप सण्डे से पहले आ नहीं पायेंगी और सेल दो दिन और है। सारी बात समझ आ गई। भाभी से रजाई की क़ीमत पूछ, दो चार बातें इधर उधर की कर मैंने फ़ोन रख दिया।
बात छोटी-सी थी पर कहीं मुझे कचोट रही थी। भाभी के होते हुए एक रजाई खरीदने के लिए मेरी सलाह की ज़रूरत! मुझे लगता था कि शादी के बाद बेटी को मायके में दखल नहीं देना चाहिए। अलबता भाभी की सलाह को सर्वोपरि रखना चाहिए। अब समय आ गया था स्वयं को बीच से हटाने का।
मम्मी को फ़ोन पर अपने ना आ पाने का बहाना बना दिया। रही बात खरीददारी की सो यह कह कर समझा दिया कि आपके यहाँ चीज़ सस्ती होती है क्योंकि टैक्स कम होता है छोटे सिटी का। माँ को बात जँच गई।
शाम को भाभी के फ़ोन से पता चला कि माँ ने उसे यह कह कर रजाई लाने को कहा कि कहीं सेल न ख़त्म हो जाए। मैं बहुत खुश थी कि काम भी हो गया, सबका सम्मान भी बना रहा और ठेस भी न लगी। आज माँ-पापा नहीं हैं पर यह उन्ही के प्रताप का फल है कि हम तीनों भाई बहन जुड़े हैं। भैया भाभी ने हर वार त्यौहार पर हमें मान दे हमारा सम्मान बढ़ाया है, हमें भी ननदों से ज़्यादा बहन का सम्मान दिया है। सच तो यह है कि भाभी में माँ और भाभी के बनाए खाने में माँ की ख़ुश्बू आती है।
इतने सालों के अनुभव से यह बात तो दावे से कह सकती हूँ कि हमें वह व्यवहार दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए जो स्वयं के लिए पसंद न हो। कुछ पाने के लिए देना भी पड़ता है। रिश्तों की नींव तो वैसे भी प्यार व सम्मान पर टिकी होती है। ताली एक हाथ से नहीं बजती। बेटी और बहु जब एक ही तराजू में तुलेंगें तभी रिश्ते सुदृढ़ हो पाएँगे। परिवार में प्यार की डोर मज़बूत हो जाएगी।
नीरजा शर्मा
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