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परशुराम जयंती (Parshuram Jayanti)
Parshuram Jayanti : जिस मुहूर्त का क्षय ना हो-वो अक्षय कहलाता है!
जे काज हो अक्षय तृतीया मे-वो अक्षय हो जाता है!
इसी दिन दु: शासन ने-द्रौपदी का चिर हरण किया!
श्रीकृष्ण ने आकर द्रौपदी को-अक्षय चिर प्रदान किया!
भगीरथ प्रयास से देवी गंगा-इसी दिन आई धरती पर!
परशुराम अवतरित हूए-इसी दिन थे धरती पर!
शाहजाॅहापुर के जलीलाबाद मे-जन्मे थे यह पराक्रमी!
गांव जमेथा गोमती तट मे-जौनपुर थी कर्मभूमी!
महर्षि जमदग्नी पिता है-और माता रेणुका है!
सभी बंधु में स्थान ईनका-पराक्रमी यह चौथा है!
विष्णु का अवतार छटा-अनन्य भक्त मात पिता का!
इक्किस बार नाश किया-पृथ्विसे अहंकारी दृष्टो का!
एक बार महर्षि आज्ञा से-बहूत बड़ा अनर्थ किया!
काट दिया माँ रेणुका सर-पितृ आज्ञा पालन किया!
देख पराक्रम परशुराम का-ऋषी प्रसन्न कहे मांगो वर!
सभी भाई, परशुराम कहे-जिवित कर दो माता ऋषीवर!
नाम ईनका राम ही था-शिव प्रसन्न कर परशु पाएँ!
तब से जगत में पराक्रमी-परशुराम ही कहलाएँ!
इस दिन गांवो शहरो मे-रैली निकाल सजाते है!
परशुराम जयंती ब्रह्म समाज-पुरे उत्साह से मनाते है!
पंछी को दाना पानी
जिवित रहने ज़रूरी है
आहार हवा और पानी!
पक्षियो का ध्यान रखो
ना मांग सके बेजूबानी!
मानव का धर्म मानवता
मदद हमारा सही कर्म!
दाना पानी रखो आँगन
करलो थोडा पुण्य कर्म!
पंछी जब आँगन आए
बच्चो के चेहरे खिलते!
कुतुहल से उनको देखे
एक दुजे है दिल मिलते!
अब पुराने दिन वह काहाॅ
पंछी दिखते डाल डाल!
जिधर देखो फैल चुका
मोबाइल टाॅवर का जाल!
ना दिखते पंछी के झुंड
ना घोसले आते नज़र!
दुषित होगई अब हवा
चौतरफा मचा है शोर!
सुबह की पहली किरण
पक्षियो की किलकिल!
शामको घोसलो में जाना
वह पाना अपनी मंजिल!
हरा भरा संसार है जो
योगदान है पंछी का!
मल से जो बिज गिरे
पौधा उगता है उसका!
या जो चोच से निचे गिरे
वह धरती में समाता है!
उसपर होजाए वर्षा तो
वही पेड भी बनता है!
पंछी मानव जिवन का
है एक आवश्यक अंग!
दाना पानी उसको देदो
पुण्य कमाओ जाए संग!
माँ
माया ममता और दया का-अथाह सागर माता है!
कठिन समय में सबसे पहले-मां का नाम ही आता है!
मां अनपढ़ होकर भी वो-जादा शिक्षित होती है!
एक रोटी ग़र माँ से मांगो-हरदम वह दो देती है!
छत टपके तो आधी रात को-बच्चे को महफ़ूज रखती है!
खूद गिले में सो बच्चे को-सुखे में वह सुलाती है!
बेटा चाहे गलती करे पर-मां सतत उसे छिपाती है!
पापा से कह दुंगी कहती-पर कभी नहीं बताती है!
मां की अच्छाई के किस्से-पुरा जगत सुनाता है!
मुनियो ने संतो ने बताएँ-और शास्र भी बताता है!
अंबर-सा है माँ का आँचल-मां गोद धरा की सेजी है!
हर घर ईश्वर रहना मुश्किल-ईसलिये ही माँ भेजी है!
औरंगाबाद रेल हादसा
पेट की खातिर गए थे सारे!
भूखे प्यासे थे बेचारे!
चलते चलते पांव थक गएँ!
ईसिलिये एक जगे रुक गएँ!
भाई बहन पुरा परिवार था!
घर जाने का भूत सवार था!
सामान सरपर साथ में रोटी!
मुनिया भी थी कंधेपर छोटि!
थक गए पग ना करते चाल!
रुकना ही अब हूआँ मुहाल!
पटरी पर ही सो गए सारे!
गाडी से कुचले गए बेचारे!
किसकी मौत काहाॅ न जाने!
हादसे के है सेकडो बहाने!
ईश्वर मोक्ष उन सबको दे!
पर ऎसी ना मौत किसे दे!
खाना व्यर्थ ना जाए
तरस रहे दुनियामे कई
आज भी दाने-दाने को!
करुण बिनती करता हूँ
मत फेको तुम खाने को!
जितना लगता उतना लो
आप अपनी थाली मे!
खूब खाओ व्यर्थ ना करो
मत फेको तुम नाली मे!
आबादी प्रतीदिन बढ रही
अनाज उसके आगे गौन!
कृषक बेटा शहर में जाएँ
सोचो अन्न उगाएँ कौन!
दिनो दिन हो अनाज महंगा
जरा सोचो इस पैमाने को!
महती अन्न जानो ना फेको
बेमतलब तुम खाने को!
संत गजानन हूंए शेगांव मे
अन्न परब्रंम्ह समझाया है!
अन्न की किमत बताने को
पत्तल से झुठा खाया है!
पर्याप्त देश की आबादी के
हम अन्न उगा नहीं पाते है!
अनाज लाखो टन पुर्ती हेतु
हम विदेशो से मंगाते है!
खेत में एक-एक दाने खातिर
जब किसान धुप में जलता है!
तब जाकर हर परिवार का
बमुश्किल पेट ये भरता है!
आधी रोटी कम खाओ सब
जो आधी रोज़ बच जाएँ!
अपेक्षा यही जो भुखे सोतेॊ
ऎसे गरिब का पेट भर जाएँ!
विश्व पुस्तक दिवस
किताब केवल किताब नही
हमारा सबसे अच्छा मित्र है!
मानव जीवन को महका दे
पुस्तक ऎसा सुगंधित ईत्र है!
जीवन स्तर उंचा करना हो
तो बात बतात हूँ मैं सच्ची!
सौ मित्रो से कई बेहतर है
समझो एक किताब अच्छी!
एक तो सबको ज्ञानी बनाए
और जिवन में लाएँ मोड!
मैतो कहता छोड दे तु सब
और पुस्तक से नाता जोड़!
जिसने अच्छी किताबे पढ़ी
उसका जीवन ही सुधर गया!
कडवाहट जीवन से गायब
जीवन उसका मधुर हूंआँ!
विचारो में होता परिवर्तन
जीवन सुदृढ हो जाता है!
प्रतिदिन जोभी शौक से
नई नई किताबे पढ़ता है!
प्रेरणा नई राह जीवन को
बस किताबे दिखलाती है!
अंधेरा जीवन से हटाकर
वह नई रोशन लाती है!
धार्मिक ग्रंथ सतत पढ़े तो
मन आनंदमय हो जाता!
विचार जीवन में ग़र उतारे
जीवन सुखमय हो जाता!
कोरोना की क्या औकात
बिना काम ना बाहर निकलो
हिस्सा भिड़ का बनो नही!
हो अति ज़रूरी तोही जाओ
है सबके हितमे यही सही!
विदेशो में फसे है देशी
और देशो में विदेशी है!
हवाई उड़ाने स्तब्ध होगई
परिस्थिती ही कुछ ऎसी है!
पडेसी से ना मिले पडोसी
खोल न पाए मनका भेद!
गडबड की है कोरोना ने
है इसी बात का सबको खेद!
बंद माॅल बाज़ार होगए
स्कुल काॅलेज हूए है बंद!
अति ज़रूरी जिसको जाना
वही है दिखते बाहर चंद!
फिर भी ना घबराओ साथी
अपनाओ कुछ हथकंडे!
कपुर जलाओ शंखनाद कर
खूब धुप करो लाकर कंडे!
फिटकरी डाल गरम करो
पानी नहाने और नहालो!
नमक पानी के करो गरारे
और कोरोना को दुर भगालो!
हाॅथ को धो खाने से पहले
हरबार सब साबुन से!
अपने लल्ला कोभी बताओ
और माँ बोलेगी चुनमुन से!
शेक हँड को अब भूल जाओ
झुककर के सब करो प्रणाम!
जोभी मिले अभिवादन करलो!
करो हाॅथ जोडकर राम राम!
निष्ठा से यह सब अपनाओ
मास्क लगाकर करना बात!
“कोरोना” का बाप ना फटके
फिर कोरोना की क्या अवकात!
धनंजय सिते ‘राही’
सौसर, जिला- छिंदवाड़ा (म.प्र.)
२- महिला दिवस
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