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वहम के बीज (Seeds of Wrath)
पता रखते हुए भी मैं ना चला तेरे घर की पगडंडी पर,
क्यो औरो के जहन में वहम के बीज (Seeds of Wrath) बोये जाए॥
माना प्यार की दवा प्यार है, मगर प्यार मिलता कहाँ है,
फिर क्यो इश्क़ के नशे में दुश्मनी मोल ली जाए॥
मै सर्द हाथो से उसके गाल छू भी लेता “कुमार” ,
मगर क्यो दिसम्बर में मेरी शरारत याद दिलायी जाए॥
जो कुछ भी हो दिल मे, बोल देता हूँ मुहं पर,
क्यो बेकार की बातों से बीमार मोल ली/पाली जाए॥
ना दिवार से बाते, ना कांटो की कहासुनी,
क्यो किसी का ज़हर और में बांटा जाए॥
वफा के चलते
वफा के चलते हुए भी बेवफा की बात करते है,
मसला अभी तक जारी है, कल वह उसे गाङी में बिठा कर आया था॥
बाहों में शयन करता, कभी जुल्फो में उलझा करता था,
आज उस झूले को देखते ही चक्कर आया था॥
कुफ्र का दरवाज़ा अब तक टूटा तो नही,
फिर ये कैसे-कैसे लोग अन्दर आ रहे है॥
धरा ने उम्मीद ही छोङ दी, पक्षियों ने जीना सीख लिया,
अब वह अक्कङ की बात ना रही “कुमार” अब बादल ख़ुद बे ख़ुद पिघलना सीख लिया॥
और अब दिन बचे ही कहा है, यह देखने को …कुमार
भीतर ज़मीं खजाने ख़ुद ही ऊपर आ रहे है॥
सुनिल सुथार
पुत्र श्री नारायण लाल सुथार
मु. पो. खारा तह. साचौर
जिला-जालोर (राज.)
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