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पर्यावरण का महत्त्व एवं संरक्षण (Importance and protection of environment)
पर्यावरण का महत्त्व एवं संरक्षण (Importance and protection of environment): मैं अपनी बात की शुरुआत महाभारत महाकाव्य के एक प्रकरण जिसमें भीष्म पितामह द्वारा महाराज युधिष्ठिर को दिए उपदेश से करता हूँ, जिसमें वृक्षों व जलाशयों की महत्ता का वर्णन हैं l
पुष्पिता: फलवन्तक्ष्च तर्पयन्तीह मानहानि l
वृक्षदं पुत्रवत् वृक्षास्तारयन्ति परत्र च ll
अर्थात फलों और फूलों वाले वृक्ष मनुष्यों को तृप्त करते हैं, वृक्ष देने वाले अर्थात वृक्षारोपण करने वाले व्यक्ति का तारण वृक्ष परलोक में भी करते हैं l पर्यावरण का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व हैंl मनुष्य एक पल भी इसके बगैर नहीं रह सकता l प्रकृति के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, प्राचीन काल में मनुष्य अपने चारों ओर की सुन्दर प्रकृति को सहेज़ कर रखता था और आस-पास के वातावरण में कम हस्तक्षेप करके प्रकृति के साथ जीवन जीता था l लेकिन समय के साथ-साथ मनुष्य की बढ़ती लालसा व भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए और स्वयं को प्रकृति से ऊपर समझने की चेष्टा ने पर्यावरण का क्षरण व नुक़सान पहुँचाने की प्रक्रिया शुरू हुईl
पर्यावरण को नुक़सान पहुँचाने वाले कारण:-
तेजी से बढती जनसंख्या व अंधाधुंध विकास, शहरीकरण, औद्योगीकरण में अनियंत्रित वृद्धि, व्यापक स्तर पर जंगलों को नष्ट करना, अति चारण, सड़कों पर दौड़ती कारों व बसों से निकलने वाले प्रदूषण, बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण व उसके दबाव से प्राकृतिक आपदाएँ, जीवाश्म ईंधनों का अति उपयोग आदि l
पर्यावरण का संरक्षण / पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के उपाय:-
पृथ्वी पर बढ़ते तापमान व प्रकृति द्वारा सृजित विनाश की कुछ आपदाएँ व घटनाओं ने वैश्विक समुदाय को पर्यावरण संरक्षण के प्रति सोचने के लिए विवश किया हैं l पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाना, अति चारण रोकना, औद्योगीकरण में अच्छी तकनीकों का उपयोग, गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत को बढ़ावा, ओजोन परत को नुक़सान पहुँचाने वाली हानिकारक गैसों को रोकना व सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से पर्यावरण को बढ़ावा शैक्षिक व प्रशैक्षिक पाठ्यक्रमों में पर्यावरण को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल करना व इसके प्रति जागरूक करनाl
हाल ही में विश्व समुदाय के सामने आयीं कोरोना महामारी ने मनुष्य को जो अपने आप को महामानव समझने लगा था, एक छोटे से वायरस के कारण कई महिनों तक घरों में क़ैद रहा l इससे यह साफ़ हो गया है कि प्रकृति को चुनौती देना मनुष्य के लिए हानिकारक रहा है व आगे भी रहेगा l इस महामारी ने भी पर्यावरण की महत्ता को समझा दिया, जब भारत कोरोना महामारी की दुसरी लहर से जुंझ रहा था और ओक्सिजन कमी से कई लोगों ने दम तोड़ा तब ओक्सिजन की महत्ता समझ में आयी l
पर्यावरण जो हमारे लिए ओक्सिजन के सबसे बड़े नि: शुल्क भंडार है, इस पेड़-पौधों की महत्ता स्वयं ही बया कर रहा है l भारत सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण को लेकर उठाए गए क़दम सराहनीय है, इन प्रयासो से मानव समुदाय की भागीदारी भी बढी है, व जागरुक भी हुआ है, इन प्रयासो में स्वच्छ भारत कार्यक्रम, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (१९८६) जैव विविधता संरक्षण अधिनियम (२००२) गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत (पवन सौर) को बढ़ावा, सौर ऊर्जा गठबंधन (२०१५) का गठन व वैश्विक समुदाय को साथ लाना व शैक्षिक पाठयक्रमों में पर्यावरण को अनिवार्य विषय के रूप में पढाया जाना आदि सकारत्मक प्रयास है l
साथ ही विश्व समुदाय द्वारा COP सम्मेलन विश्व पर्यावरण दिवस (५जुन) जैव विविधता के हॉट-स्पॉट घोषित व ग्लोबल वार्मिंग को लेकर सतत सम्मेलन व सन्धि समझौता द्वारा पहल भी सराहनीय है इस वैश्विक सम्सया के लिये पूरे विश्व समुदाय को साथ आकर संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे वैश्विक मंच का प्रयोग कर एक स्थायी समाधान निकालना ज़रूरी है l इसके लीए संकीर्ण व स्वार्थी विचारों को त्याग कर ग्लोबल थिकिंग (वैश्विक चिंतन) के माध्यम से प्रयास करने होगें l
अन्ततः हम शिक्षक होने के नाते हमारा समुदाय व आने वाली पीढ़ी से जुडा़व सबसे ज़्यादा है l इसलिए हमें भी पर्यावरण क प्रति हमारा कर्तव्य समझना होगा l हमें विधार्थियों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहते हुए वृक्षारोपण व इसके महत्त्व को साझा कर ऐसी पीढ़ी तैयार करनी होगी जो स्वयं पर्यावरण को जीवित इकाई मानकर उसके साथ जीवन जीये l इस वर्षा ऋतु में हमें हमारे विद्यालय प्रांगण, सार्वजनिक स्थल व अन्य स्थानों पर अधिक से अधिक वृक्षारोपण करके “हरित राजस्थान” के सपनें को साकार करने के साथ-साथ स्वच्छ पर्यावरण में योगदान देना है l
भबुताराम चौधरी
व्याख्याता (राजस्थानी साहित्य)
राउमावि रनिया देशीपुरा, ब्लॉक-कल्याणपुर, जिला-बाड़मेर, राज।
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१- मानवता
२- माँ का कमरा
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