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मेरी डायरी बनोगे (will you be my diary)
आज सुमन ने फिर सबके सो जाने के बाद अपनी डायरी (my diary) निकाली। डायरी उसकी रूटीन नहीं बल्कि उसकी ज़िन्दगी का हिस्सा थी, “हिस्सा नहीं बल्कि पुरी जिन्दगी”। जो बातें वह किसी से कह नहीं पाती थी वह डायरी में लिख देती और फिर मानों उसके दिल का बड़ा-सा बोझ उतर जाता मन से। मगर कुछ दिनों से वह बहुत बैचेन थी वज़ह था “मानव” जिससे मिले उसे कुछ ही दिन हुए थे।
एक अजीब-सा खिंचाव महसूस करती थी वह उसके लिए। उसका बोलना, उसका हंसना, उसके बाल, उसका हर एक अंदाज़ उसे आकर्षित करता था। अजीब-सी कशिश महसूस करती थी वह उसके लिए। कालेज में उससे सिनीयर था वह। बहुत कम समय में ही बहुत अच्छे दोस्त बन गये थे दोनों, कभीकभी फ़ोन पर बातें भी हुई थी। मानव की हर बात उसे बहुत अच्छी लगती क्योकिं वह उसके स्वभाव से बिलकुल विपरीत था। जहाँ वह शर्मिली थी वहीं वह बिदांस। उसके इसी स्वभाव के कारण जाने कब वह उससे प्यार करने लगी है समझ न पायी। वह उससे प्यार करती है और वह उसे अच्छा नहीं बहुत अच्छा लगता है ये तक न कह पायी थी और एक वह था जो हर मुलाकात में अपने प्यार का इज़हार कर देता था।
वह अक्सर सोचती “कैसे कोई इतनी आसानी से प्यार का इज़हार कर सकता है”। दोस्तों से, कहानियों में, फ़िल्मों में तो उसने देखा और पढ़ा है कि प्यार का इज़हार कर पाना बहुत मुश्किल होता है लोग चाह कर भी नहीं बोल पाते। फिर ये मानव ऐसे कैसे हर वक़्त आइ लव यू की रट लगाये रहता है। उसका ऐसा सोचना भी स्वाभाविक ही था “लड़की जो थी”। भावनाओं का मोलभाव तो बचपन से ही सिखाया गया था उसे। शायद इसलिए मन की बातें खुल कर नहीं कह पाती थी और इसी घुटन के कारण ही तो वह डायरी लिखती थी। पर एक दिन कालेज के बाद काफ़ी शाॅप में जब दोनों मिले तो मानव ने कहा “सुमन मेरी नौकरी लग गयी है मुझे दुसरे शहर जाना होगा और घर पर सबका शादी के लिए दबाव भी आ रहा है” पर मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ “फिर थोड़ा रूक कर उसने कहा क्ई बार नहीं बल्कि हर मुलाकात में मैंने अपना दिल निकाल कर रख दिया तुम्हारे सामने।” जानती हो मैं कितना प्यार करता हूँ तुमसे “।
सुमन हमेशा की तरह एकटक देख रही थी उसे। शायद उसे अब भी मानव की बातें उसका दिलफेंक स्वभाव जैसा लग रहा था या फिर उसका बिंदास पन। उसने तो क्ई बार उसके बारे में पूछताछ भी की थी पर सबने कहा कि हाँ वह बात तो सबसे करता है पर प्यार व्यार जैसा कुछ सुना नहीं कभी। वह उसकी बातों की जादुई दुनिया में खोयी थी और मानव अपनी ही रौ में बोलता जा रहा था। सुमन जानती हो तुम्हारी आंखें, तुम्हारे होंठ और तुम्हारी ये जो मन की हिचक है न उन सबने मुझे बाँध कर रख लिया है। जानती हो जब तुम अपने बालों को खोल कर कालेज आती थी न तो पूरे कालेज में तुम्हारे बालों की खुशबु बिखर जाती थी और मैं उनमें डूब जाता हूँ। जिस दिन तुम मुझे नहीं दिखती उस दिन मैं होकर भी कहीं नहीं रहता था। तुम मुझमें इस क़दर समा गयी हो कि मैं हर वक़्त तुममें ही खोया रहता हूँ। तुम जब भी मेरे पास होती हो न तो लगता है समय बस थम गया है।
कभी-कभी नहीं हमेशा मेरा दिल करता है तुम्हें अपने सीने से लगा लूँ और तुम्हारे हर ग़म को ख़ुद में छुपा लूँ। पर आज तक तुम्हें छुने की कोशिश नहीं की मैंने, जानती हो क्यों? क्योकिं मेरी रूह में बसी हो तुम हर रात तुम्हारे साथ ख्वाबों में चांद को देखता हूँ मैं। सोचता हूँ अगर तुम्हें छुने की कोशिश की तो कहीं तुम मुझसे दूर न हो जाओ। कहते-कहते उसकी आंखें डबडबा ग्ई पर सुमन अपने स्वभाव के अनुसार एकटक बस उसके हिलते होठों को देख रही थी और उन डबडबाई आंखों को। आंसुओं को पोंछ फिर उसने कहा” सुमन नहीं रह पाऊंगा तुम बिन”। पर मुझे पता है मेरा प्यार एकतरफा है इसलिए मैं तुम्हें प्यार करने के लिए विवस कभी नहीं करूंगा क्योंकि प्यार जबरदस्ती नहीं किया जाता। हमेशा खुश रहना।
बहुत भाग्यशाली होगा वह जिसकी तुम बनोगी। सम्मोहित-सी सुमन अब तक अपलक बिना एक शब्द कहे मानव को देख रही थी। कहना तो वह भी चाहती थी बहुत कुछ पर कह नहीं पायी। सम्मोहन तब टूटा जब मानव वहाँ से उठकर जाने लगा वह रोकना चाहती थी उसे पर रोक नहीं पायी। पर कुछ टूटता हुआ ज़रूर महसूस किया उसने आज। शायद आज समझ आ रहा था उसे भावनाओं का ठहराव मन में दलदल बना देता है जिसमें इंसान ख़ुद के साथ अपने ख़ास को भी डुबो देता है। जब तक मानव आंखों से ओझल न हो गया वह देखती रही उसे।
घर आकर न खाना खाया न ही किसी से बात की। रात के तीन बज गये थे नींद आंखों से नाराज हो गयी थी। दिल की सारी बातें लिखने के लिए डायरी खोली पर दिमाग़ में बस मानव की बातें घुम रही थी। मानव के आखों से ओझल होने का अंतिम प्रतिबिम्ब याद आते ही उसकी आंखें भर आयी। डायरी बंद कर उसने तुरंत मोबाइल में मानव का नम्बर सर्च करके वाट्सअप पर मैसेज किया। मगर वह आनलाइन नहीं था। उसे आनलाइन न देखकर वह खुश हो गयी क्योंकि अगर वह आनलाइन होता तो वह जो कहना चाहती थी वह न कह पाती।
हिम्मत करके उसने लिखा “मानव प्यार का इज़हार कैसे करते है मुझे नहीं आता प्यार होता क्या है नहीं जानती मैं”। मैं इतनी बातें नहीं कर सकती क्योंकि मैं तुम्हारी तरह नहीं हूँ। पर आज तुमसे दूर होकर जाना कि सांसों के रहते मरना क्या होता है। मेरी हमराज़ मेरी डायरी है मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती इसलिए पूछना चाहती हूँ “क्या बनोगे मेरी डायरी”। जिसके साथ मैं अपनी पुरी ज़िन्दगी शेयर कर सकूं। ऐसा लिखकर उसने मैसेज तो सेंड कर दिया पर दिल की धड़कन राजधानी ट्रेन की तरह चलने लगी इतनी तेज कि वह उन धड़कनों को सुन सकती थी।
रात के तीन बजकर पांच मिनट पर उसके मोबाइल में मैसेज रिसीव का वायवरेसन हुआ। मैसेज था “डायरी तो बनने के लिए कब से तैयार हूँ तुम ही मोल_भाव में लगी थी”। वैसे डायरी बनने के बाद मेरी भी एक शर्त है डायरी में जो भी लिखोगी पेन से लिखना होगा पेसिंल से नहीं क्योंकि एक भी शब्द मिटाने की इजाज़त नहीं दूंगा तुम्हें मैं। इस मैसेज के बाद दोनों ही हंस परे। बात करते-करते कब सुबह के पांच बज गये दोनों को पता नहीं चला।
इधर सुमन की आँख लग गयी उधर मानव मैसेज अनसीन देखकर खुश था कि आज पहली बार सुमन ने डायरी के बजाय पुरी रात उसके साथ बितायी है। सुमन के ख़्याल से तो वैसे भी उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी पर आज एक शुकून भी था एक शुकून कि उसका प्यार मुकम्मल हो गया था। वह तो पहले ही जानता था उसका प्यार एकतरफा नहीं था ये सब नाटक तो उसने सुमन के मन की गिरह को खोलने के लिए किया था जिसमें वह कामयाब हो गया था। पर अभी तो बात बस मैसेज में हुई थी सुमन का इज़हार तो अभी भी बाक़ी था। रात भर जागने के बाद भी नींद उसकी आंखों से कोसो दूर थी उसके क्योकिं प्यार के इज़हार के बाद सुमन का गुलाबी चेहरा देखने के लिए उसका मन जो बेताब था।
रूबी प्रसाद
पिता का नाम : स्वर्गीय श्री शम्भु प्रसाद गुप्ता, पति का नाम : राज किशोर प्रसाद, शहर: सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल)
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