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खुशी की होली (happy holi)
happy holi: होली ख़ुशी का त्यौहार, सब को अपना बनाने का पर्व, दुर्गणों को, बुराइयों को भूल, सद्गुण व अच्छाई अपनाने के गर्व की अनुभूति! खुशी तो हमारे मन का एहसास है, भावनाओं की अभिव्यक्ति है। अपनी सामर्थ्य के प्रति भ्रामक धारणा व वास्तविकता को स्वीकार न करने की प्रवर्ति ख़ुशी की राह में सबसे बड़ी बाधा है, कोई कभी भी सर्वगुणसम्पन्न नहीं हो सकता।
अपनी क्षमता का आकलन हमें ख़ुशी देता है व एक भी अक्षमता का एहसास ख़ुशी से दूर कर देता है, गर इसी को स्वीकार कर लें या दूर कर लें तो ख़ुशी फिर से वापस! जब खुश हैं, ख़ुशी महसूस कर रहे हैं तो हर दिन त्यौहार है, ख़ास है, होली, दीवाली सदृश!
जब उत्पन्न परिस्थितियाँ अपने बस में नहीं हैं, तो उनमें ख़ुशी ढूँढने का, उसे अच्छे से मनाने का अवसर समझ लेंगे, तो हमारा जीवन खुशियों से भर जायेगा! इसके विपरीत यदि बच्चों को छोटी-छोटी बात पर बार-बार झिड़कने व बीवी से भी किसी भी बात पर उलझना व किचकिच मचाना, टोकाटाकी करना शुरुआत किसी की तरफ़ से हो, घर में कलह का ही वातावरण हो गया, सारी की सारी खुशियाँ काफ़ूर! घर में ख़ुशी का, आपसी विश्वास का माहौल न हो तो होली, दीवाली भी मुहर्रम लगती है, घर-घर नहीं, मकान जैसा लगता है, जिसमें कुछ प्राणी ईंट सीमेंट से बने एक ढांचे में रहते हैं, जिसमें ढल नहीं पाये! खुशियाँ सहेजने में समय लगता है बिखरने में कुछ क्षण।
खुशी तो हमारे मन की ही उपज है, उपजती भी अंदर से ही है। यदि तेज़ मिर्च लग रही हो थोड़ा-सा गुड़ उसके एहसास को शांत कर देता है, बस अपने अंदर से किसी के प्रति घृणा, नकारात्मक विचार नहीं रखे तो ख़ुद को भी अच्छा लगेगा व क्रोध भी नहीं आयेगा। मन ख़ुशी के एहसास से भर जाएगा।
आज का रँग, फिर गाइड के सँग
“पूरा दिन बस क्रिकेट, क्रिकेट, क्रिकेट और कोई काम धाम नहीं, तँग आ गई मैं तो! मैं घर छोड़ कर जा रही हूँ!” इस पर पति की कमेंट्री-“पहली बार कदमों का बेहतरीन इस्तेमाल!”
“पापा, ये मर्द कौन होता है!”
“जो इन्सान पूरे घर में अपनी हकूमत चलाये वह मर्द होता है!”
“पापा, मैँ भी बड़ा हो कर, मम्मी की तरह मर्द बनूँगा!”
“आप किस समय सही थे, कितने समय सही थे, यह कोई याद नहीं रखता लेकिन आप कब ग़लत थे, इसे सब याद रखते हैं!”
“एक समय था, जब डॉक्टर कंपाउंडर को नौकरी पर रखते थे, आजकल कंपाउंडर हॉस्पिटल बना रहे हैं और डॉक्टरों को नौकरी पर रख रहे हैं!”
“तुम्हें सड़कों पर इस तरह घूम कर भीख माँगते हुए शर्म नहीं आती!”
“तो क्या, मेम साहब, भीख माँगने के लिये दफ़्तर खोल लूँ!”
“कुछ लोग काफ़ी गरीब होते हैं, उनके पास दौलत के सिवा कुछ नहीं होता!”
“जिन लडकियों को शहर में ‘जीरो फिगर’ बता कर भाव दिया जाता है…उन्हें ही गाँव में कुपोषण का शिकार कह चिढ़ाया जाता है! ताश खेलते हुए पत्नी ने कहा-” स्थिति साफ़ है, एक जगह मैँ हूँ, तीन जगह आप हैं, कह कर उछाल कर पते फेंके तो मानो सम्बन्धों के पत्ते खुले, एक जगह बेगम और तीन जगह गुलाम मिले!”
“यह सिर कैसे फटा आपका?”
“मैं ईँट से पत्थर तोड़ रहा था तो किसी ने मूझे सलाह दी कभी खोपड़ी का इस्तेमाल भी कर लिया करो!”
“तुम रो क्योँ रही हो!”
मेरे मार्क्स नब्बे प्रतिशत से एक नंबर कम रह गये! “
“अरे! रहम कर पगली, रहम, इतने में हम जेसे दो लड़के पास हो जायें और एक बेचारे की री अपीयर आ जाये और फेल होने की ज़लालत से बच जाये!”
एक महिला उतनी ही देर बेबस होती है, जितनी देर उसकी नेल पॉलिश या मेहँदी सूखने में लगती है! “
उस इन्सान से कभी झूठ मत बोलना, जिसे आप के झूठ पर विश्वास हो! … नतीजा?
राजकुमार अरोड़ा गाइड
सेक्टर २, बहादुरगढ़ (हरि०)
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१- रत्ना
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