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मुआवजा (compensation)
गाँव में फैक्ट्री का गंदा पानी नहर में मिलने के कारण रामदीन की ५ गायें मर गई थी, फैक्ट्री मालिक ने आश्वासन दिया कि आप सभी को मुआवजा (compensation) दिया जाएगा आप सभी अपने जानवरों का और अपना विवरण काग़ज़ पर लिखकर जमा कर दें।
गाँव के ज्यादातर लोग पढ़े-लिखे नहीं थे मास्टर साहब को सभी ने आग्रह किया मास्टर साहब ने बारी-बारी से एक-एक व्यक्ति से रुपया जमा कराया और सभी को एक काग़ज़ पर जानवरों का और उनका का विवरण लिखकर दे दिया। रामदीन ने भी काग़ज़ लिख पाने के रुपए मास्टर साहब को अदा किए और एक काग़ज़ लिखवा लिया।
सभी फैक्ट्री मालिक को काग़ज़ देने के लिए फैक्टरी पहुँचे मगर फैक्टरी पर ताला लगा हुआ था और एक काग़ज़ में कुछ लिखकर चिपकाया हुआ था। गाँव में जो कुछ पढ़े-लिखे लोग थे उन्होंने पढ़कर बताया की या काग़ज़ हमें सरकारी ऑफिस में ले जाकर जमा करना होगा। सरकारी ऑफिस का पता किसी काग़ज़ में लिखा हुआ है।
गाँव के आधे से ज़्यादा लोग काग़ज़ फाड़ कर वहीं फेंक देते हैं क्योंकि सरकारी दफ्तर जाने का मतलब १ दिन की रोज़ी से हाथ धोना और आने जाने का ख़र्चा अलग, मगर राम जी ने मुआवजे की प्राप्ति के लिए सरकारी दफ्तर जाने का निर्णय किया और वह सरकारी दफ्तर पहुँच गया वहाँ जाकर उसने अपना काग़ज़ जमा किया।
वापस घर आकर मुआवजे की प्रतीक्षा करने लगा कुछ दिनों के बाद फैक्ट्री का ताला फिर से खुला फैक्ट्री में जाकर कुछ लोगों ने पता किया तो मालूम हुआ फैक्ट्री के मालिक ने फैक्ट्री किसी और को बेच दिया है। या ख़बर पाते ही रामदीन फिर से अपनी मेहनत की जोड़ी हुई कमाई में से कुछ रुपया ख़र्च करने के लिए दिल मज़बूत कर लेता है और फिर से सरकारी दफ्तर में जाकर जानकारी करता है।
सरकारी दफ्तर जाकर रामदीन सरकारी बाबू से पूछता है बाबू जी हमने दरखास्त दी थी उसका क्या हुआ सरकारी बाबू मुंह में पान चबाते हुए पान की पिच दीवारों को सजाते हुए बोले, देखो भैया रामदेव तुम्हारे काग़ज़ का भजन बड़ा हल्का है काग़ज़ पर थोड़ा वज़न रखो तो तुम्हारा काम आसानी से हो जाएगा।
रामदीन अपने खून पसीने की कमाई से कुछ पैसा सरकारी बाबू जी को दे देता है और आश्वासन के साथ वापस घर लौट जाता है। महीने भर बाद रामदेव फिर अपने खून पसीने की कमाई ख़र्च कर सरकारी दफ्तर पहुँचता है अब उसे मालूम पड़ता है कि सरकारी बाबू का तबादला हो गया है और उनकी जगह दूसरे बाबू कुर्सी पर बैठे हैं। रामदीन सरकारी बाबू जी से पुनः अपने द्वारा जमा किए गए काग़ज़ के विषय में पूरी जानकारी देता है और पूछता है बाबू जी हमें मुआवजा कब तक मिल जाएगा?
बाबूजी रामदीन को समझाते हुए कहते हैं देखो भैया यहाँ तो भजन से ही काम चलता है अगर तुम काग़ज़ पर कुछ वज़न रख दे तो तुम्हारा काम जल्दी हो जाएगा मैं तुम जैसे गरीबों को सताना नहीं चाहता मगर क्या करूं मुझे अपने लिए नहीं ऊपर देना पड़ता है क्या करें हम मजबूर हैं! रामदेव फिर अपनी कमाई का एक हिस्सा सरकारी बाबू जी को अर्पित कर देता है। मुआवजे के इंतज़ार में घर वापस लौटता है।
आमदनी बंद हो जाने के कारण चांदी के घर की हालत दिनोंदिन बिगड़ती जा रही थी रामदीन गालियों से ही अपना जीवन यापन करता था गायों के दूध से भी उसका घर चलता था और जो खेती होती थी वह भी नहीं कर पा रहा था वाह बीड़ी फूंक-फूंक कर बावला हो चुका था चिंता के कारण उसने भूख भी नहीं लगती थी पेट पीठ से चिपक चुका था और खांसी हुई उसके फेफड़ों को अंदर तक घायल कर दिया था।
कुछ दिनों के बाद रामदेव अपने बेटे हो सरकारी दफ्तर भेजता है आज २ साल बाद रामदीन का बेटा ७०८ रुपए का चेक गायों के मुआवजे के रूप में लेकर घर वापस लौट रहा है।
“पलकों की हद तोड़ कर दामन में आ गया,
एक आंसू मेरे सब्र की तौहीन कर गया।”
साधना मिश्रा विंध्य
लखनऊ उत्तर प्रदेश
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