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जिस्म के पैंतीस टुकड़े (35 pieces of body)
जिस्म के पैंतीस टुकड़े (35 pieces of body) करा के चल दिये।
अपने मन की हवस बुझाकर के चल दिये,
मौज-मस्तियाँ रंगरलियाँ मनाई रात-दिन,
मौत की गहरी नींद सुलाकर के चल दिये।
अनुराग के सावन में क्या खोया क्या पाया,
पतझड़नुमा में फूल-पत्ते गिरा के चल दिये।
तनबदन और मन झट से हवाले कर दिया,
यौवन पिटारी लूट भूख मिटा के चल दिये।
विश्वास की चादर को रख दिया चीर कर,
प्रेम श्रद्धा की धज्जियाँ उड़ा के चल दिये।
माँ बाप घर बार छोड़ा दिलबर के ही लिए,
वहशियाना कर सांसें रूका कर चल दिये।
प्यार के बदले हमें वहशी बनकर मौत दी,
जीवन के सारे सपने बिखरा के चल दिये।
सोच लो मनसीरत इंजाम झूठे प्यार का,
बापू के सिर की पगड़ी उड़ा के चल दिये।
नजरें चुराने लगे
देख कर मुझे वो। नज़र चुराने लगे
है कोई बात दिल में छुपाने लगे
प्रेम की शुरुआत नजरों से ही थी
उन्हीं नजरों से मुझे कतराने लगे
दिखाई. देता अब कोई फ़िक्र नहीं
बातो हीं बातों में बहकाने लगे
गिले, शिकवे, शिकायतें हैं ज़िक्र नहीं
खामख्वाह यूँ ही बात बनाने लगे
दल बदल की प्रवृत्ति दिखने लगी
तोहमत हम पर ही वह लगाने लगे
चालाकियों में हम सदा फंसते गए
भोलेपन का फायदा उठाने लगे
सितमगर सितम यूँ ही थे ढाते रहे
सुखविन्द्र बहाने हमें बताने लगे
बेसहारा पड़े रहे बाहों में
देख कर महबूब पराई बाहों में
गुलाब राह ताकता रहा राहों में
ना जाने कितने मुसाफिर चले गए
किसी ने भी उठाया नहीं राहों में
गुजरी हृदय पर नहीं हाल ए बयाँ
हाल ए दिल नहीं संभाला राहों में
पीठ पर पीछे से खंज़र घोंपते रहे
घायल दिल लिए पड़े रहे राहों में
रसपान यौवन कर जो वह ऊब गए
छोड़ बीच भंवर गए हमें राहों में
नोचता ही रहे जिसे अवसर मिले
सुखविन्द्र बेसहारा पड़े राहों में
अधूरे तेरे बिन
हसरतें रह गई अधूरी तेरे बिन
ख्वाब भी रह गए अधूरे तेरे बिन
मंसूबे हमारे जग जाहिर थे यहाँ
पर पूरे नहीं हो ये पाए तेरे बिन
सीमाओं में बंधे हुए, थे मजबूर
सरहदें नहीं लांघ पाए तेरे बिन
गहराई में डूबे हम बीच दरिया
किनारें हमें न मिल पाए तेरे बिन
पंख कटे पखेरू जैसा हाल मेरा
प्रेम उड़ानें न भर पाए तेरे बिन
तारीकियों में ठोकरें खाते रहे
उजाले हमें न मिल पाए तेरे बिन
बंदिशों के पहरे में थे जीते रहे
सुखविंद्र नहीं जीत पाया तेरे बिन
दीदार करेंगे हम
रखो यक़ीन हम मिलेंगे ज़रूर
गिले शिकवे हम हरेंगे ज़रूर
जो दिल में था हमारे तुम्हारे
हिसाब रफा हम करेंगे ज़रूर
मन के अंदर मलाल रहा बाकी
मन मैल सफा हम करेंगे ज़रूर
बात जो अधूरी हमारी रही
बची बातें हम करेंगे ज़रूर
हमारे ख़्वाब ख्यालों में हो
ख्यालात सांझें करेंगे ज़रूर
घूँघरु-सी खनकती हुई हंसी
बोल पायल के सुनेंगे ज़रूर
सोहणी तस्वीर की मूर्त प्यारी
सूरत का दीदार करेंगे ज़रूर
गुलाब रंगी वह रुखसार तेरे
दुधिया मुख, दीद करेंगे ज़रूर
सुखविंद्र सुंदरता का कायल है
खूबसूरत दर्श करेंगे ज़रूर
प्रेम कहानी थी बहुत पुरानी
प्रेम कहानी थी बहुत पुरानी
याद आई फिर उसकी जुबानी
भूल गए थे वह लम्हे पुराने
आने लगी थी जब नव जवानी
गृहस्थी में उलझे मधु तराने
याद आ गई थी हमको नानी
मोबाइल की घंटी बजने लगी
सुनी आवाज़ जानी पहचानी
मन में उमंगें तरंगें थी जागी
पहचाना उनको वह दिलजानी
बातें, मुलाकातें थी याद आई
यौवन में जो की थी नादानी
कुछ ना बदला वही प्रेम राहें
पहले रंग ढंग अदाएँ मस्तानी
प्रेम नवीनीकरण मिला न्यौता
हलचल हुई थी मेरे जिस्मानी
मानवीय चित फूला न समाये
मन में चली थी बयार सुहानी
अंगप्रत्यंग भी प्रफुल्लित हुए
छाने लगी वही घटा बर्फानी
है पद, प्रतिष्ठा, सम्मान, मर्यादा
नियंत्रित की थी उल्फ़त रवानी
प्रेम रजा कहीं बन जाए क़ज़ा
सजा दिलाए वह मजे में हानि
सुखविंन्द्र पूर्ण नियंत्रण पाया
समझाई बुझायी वह दीवानी
खूब धोया सरकारों में
बेरोजगारी में बेरोजगारों को ख़ूब धोया सरकारों में
अच्छे-अच्छे चाय पकौड़े बेचने ला दिए बाजारों में
पढ़ाई-लिखाई में कुछ नहीं रखा मात्र ये दिखावा है
सबसे उत्तम धंधा यही दिखा यहाँ सियासतदारों में
डिग्रियाँ लेकर लगे खामख्वाह लंबी बनी कतारों में
चाय वाले देश चला रहे देखा सत्ता के गलियारों में
पढ़ पढ़ पोथी ढ़ेर लगाई नज़रे कमजोर कर डाली
झूठे वायदों सिवा मिला नहीं कुछ, मेले रोजगारों में
बूढ़ी आँखों के सपने टूटे, टूटी उम्मीदें जो लगाई थी
खून पसीने की कमाई बह गई डूबे जैसे किनारों में
भ्रष्टाचार का बोलबाला कुशलता क़ निगल है गया
योग्य फिरें धक्के खाते अयोग्य देखे बंगले कारो में
जिसकी लाठी उसकी भैंस कथनी सच्ची कर डाली
नाच नहीं जाने आंगन टेढ़ा नचा दिए खुली बहारों में
सुखविंद्र सुनके हारा राजनेताओं के झूठे वचनों को
राजनीतिक रोटियाँ सेक रहें हैं जो फ़रेबी से नारो में
सुन्दर सुनहरी स्वप्न सजाएँ
सुन्दर सुनहरी स्वप्न सजाएँ
मधुरिम मोती माला में पाएँ
प्रेमभाव है घट रहा धरा पर
सभ मिल के प्रेम तराने गाएँ
भाईचारा सदा रहे जीवित
बंधुत्व बंधन हैं टूटते जाएँ
भाई भाई का ना हो दुश्मन
आओ ऐसी हम प्रीत बनाएँ
ईर्ष्या का हो जाए मुंहकाला
दुनिया में ऐसी रीत बनाएँ
मानुषिक मनवा माधुर्यपूर्ण
मनमौजी, मोहन, मीत बनाएँ
स्वार्थपरायणता रफूचक्कर
सुखविंद्र ऐसा मौसम बनाएँ
याद आते हैं अफसाने
जब से मिले यार पुराने
छिड़ गए हैं प्रेम तराने
वो ही बातें, बीते किस्से
याद आते हैं अफसाने
सच्ची झूठी वह अफवाहें
ताजा हुई इसी बहाने
वो मौज मस्तियाँ, नजारे
खूब दिए प्रेम नजराने
बेखौफ की मनमर्जियाँ
चोरी जाते जब बुलाने
पकड़ी जाती थी चिट्ठियाँ
रख देते तले सिराहने
हंसी-ठिठोली, नादानियाँ
हर रोज़ के नये ठिकाने
जवानी की वह निशानियाँ
लद गए वह हसीं ज़माने
आशिकी भरे दिल हमारे
शमां के हम थे परवाने
सुखविंद्र आँखें हैं गीली
प्रेम राही थे हम दीवाने
मुलाकातें होती रहेंगी
मिलें ना मिलें पर दोस्ती ज़िंदा रहेगी
कुछ दिन ठहर मुलाकातें होती रहेंगी
बेबसी ही सही, पर आज यह ज़रूरी
जिंदगी रही तो भेंट होती रहेंगी
करते हैंं कुशलक्षेम की दुआ खुदा से
कुशल मंगल रहे, बातें होती रहेंगी
हाल बेहाल मेरे मुल्क के हुजूम का
बहाली में शुरुआतें होती रहेंगी
दिन का नहीं पता रात भी लापता है
खैरियत में दिन रातें होती रहेंगी
सुखविंद्र अज्ञानी है भविष्यवाणी से
अंधड़ थम गए, राहतें होती रहेगी
रास्ते
तुम्हें सब पता है रास्ते
तुम दिखाओ हमें रास्ते
पहेली में फंसे बैठे
सुलझा दो उलझे रास्ते
मोड़ पर हैं हम आ खड़े
तुम जानते, नये रास्ते
दो रास्तें हैं निकल रहे
चले हम कौनसे रास्ते
रहगुजर हैं काँटों भरी
लगाओ तुम, सही रास्ते
पीछे हमें धकेल रहा
कैसे पार करें रास्ते
हौसले भी तो टूटते
कैसे पूरे होंगे ये रास्ते
सुखविंद्र मंजिलें दूर हैं
कौनसे चुने हम रास्ते
खंजर खाए लगते हो
मुसीबत के मारे लगते हो
तुम चोट-सी खाए लगते हो
नभ में देखें हैं नभचर बहुत
जख्मी पाखी से तुम लगते हो
गैरों को ख़ूब लूटा तुमने
तुम अपनों से ठगे लगते हो
पीठ पर खंज़र घोंपने वाले
सीने खंज़र खाए लगते हो
मतलबपरस्ती की है हद पार
मतलबपरस्त हुए लगते हो
भूल बैठे थे दुनियादारी
दुनिया याद किए लगते हो
अहं से सिर सदा था ऊँचा
मैं चूर-चूर किए लगते हो
बाँधते थे तुम बातों के पुल
बात तले दबे से लगते हो
सदा सिंह-सा दहाड़ने वाले
भीगी बिल्ली सदृश लगते हो
सुखविन्द्र सीखाते थे तुम
आज ख़ुद सीखे लगते हो
तेरे जाने के बाद
जी भर के रोया तेरे जाने के बाद
था मन घबराया, तेरे जाने के बाद
बीते लम्हें वापिस हाथ हैं आते कहाँ
खोया क्या पाया, तेरे जाने के बाद
मन के हारे ही कहते होती है हार
खुद से ही हारा, तेरे जाने के बाद
आँसुओं का सैलाब है ख़त्म हो गया
आँखें भर आई, तेरे जाने के बाद
प्रेम तेरा हमें हुआ मुनासिब ही नहीं
तन्हाई में तन्हाँ, तेरे। जाने के बाद
सुखविन्द्र कैसे तुम्हें है भूल पाएगा
याद आने लगी, तेरे जाने के बाद
प्रीत की तलाश है
दिल को प्रीत की तलाश है
मन को मीत की तलाश है
हसीं वादियाँ हैं दामन
मधु संगीत की तलाश है
पंछी कलरव करते रहें
मधुर गीत की तलाश है
हारों को गले लगाया
हमें जीत की तलाश है
बंदिशों से मिले राहत
नई रीत की तलाश है
अमूमन खुशनुमा जहान
सच्ची नीत की तलाश है
सुखविन्द्र ने देखा जहाँ
जन विनीत की तलाश है
कैसी कहानी कैसा अफसाना
तेरे बिन मेरा सूना हो गया अंगना
शहीद फ़ौजी की भार्या कहे सुनो सजना
बिखर गया है दुल्हन की मांग का सिंदूर
उजड़ा बसा बसाया खुशहाल आशियाना
छीना है बच्चों के सिरों से छत का साया
कहाँ ढूँढेंगे पिता रूपी भरा खजाना
बूढ़ी माँ की अंधी आँखों का उजियारा
लाचार पिता जी के बुढ़ापे का ठिकाना
टूट गए हैं सपनें, बिखर गए हैं अरमान
शमां से दूर हो गया पतंगा परवाना
तिरंगे से लिपट कर घर मौन लौट आए
सदियों तक शहादत याद करेगा जमाना
सूनी अब दीवाली, बदरंग हुई होली
यह कैसी है कहानी, कैसा है अफसाना
सुखविन्द्र कैसे मोल चुकाएगा तुम्हारा
जब तलक जान रहूंगा तुम्हारा दीवाना
तलाश होती ठिकाने की
आदत हो गई गमों में मुस्कराने की
गहरे जख्मों को ज़माने से छिपाने की
सुबह से शाम तक-तक चाहे ख़ूब घूमो
रात होते ही तलाश होती ठिकाने की
बिस्तर चाहे जितना बिछा हो मखमली
सिर रखने को ज़रूरत हे सिराहने की
लोगों की कथनी करनी में बहुत अंतर
खूब उलझाकर बात करे सुलझाने की
प्रीत की दुश्मन दुनिया, यह रीत पुरानी
हालत बद से बदतर यहाँ दीवाने की
सुखविन्द्र मुखौटे पहने कोई ना मीत
कोशिश रहें करते पग पीछे हटाने की
नवोदय के सपूत
नवोदय के सपूत बहुत निराले
योग्यता, कुशलता के भरे प्याले
सतीश कोंडी, सुरेन्द्र चन्दानियाँ
सरकारी उच्च पदों पर विराजे
कुलदीप मांडले कुशल बनवाला
निजी कम्पनियों में नाम कमाये
बलवंत बल्लू, शिव कुमार बंसल
सैन्य सेवाओं में है झंगे लहराये
रामशरण और गुलशन खुराना
देवेन्द्र ने विदेशों में हैं घर बनाये
करणवीर, रणधीर और महेन्द्र
बैंकिंग, टेक्सेशन में है जा लिए
रमेश सिरोही हैं कानूनी प्रवक्ता
धर्मेन्द्र जैसे वकालत में है छाये
कुलदीप है सरकारी अधिवक्ता
सतबीर ट्रक यूनियन चला रहे
विनोद कलसाना समाजसेवी
हरियाणा राजनीति में छा रहे
अजय, सुभाष, राजबीर चौहान
सुनीता अरोड़ा शिक्षक बन गये
अनुजा है सामाजिक कार्यकर्ता
मोनिका गर्ग व्यवसायी कहलाये
दिलबाग ख़ुद के काम में राजी
विक्रम, सतबीर गाँव में है छाये
शिव कुमार शिक्षक एवं सरपंच
विजय नरेश हैं संस्था चला रहे
सुनीता, कुसुम बनी हैं शिक्षिका
विजया लक्ष्मी गृहिणी कहलाये
अमनदीप अमरीका में जा बैठी
अलका बत्तरा है पीछे जा लिये
मांगे राम भी डाक्टरी में व्यस्त
योगेश वत्स है दुकान चलाये
देशराज और सुभाष टीकवाला
बच्चों को स्कूलों में पढ़ा रहे
रमेश बातान बना है अभियन्ता
प्रद्युम्न शर्मा रहे कराटे सीखाये
दिनेश बना एयरपोर्ट अधिकारी
सुरेश चौहान शिक्षक कहलाये
सुरेशसिरोही, दिनेशनिजी कर्मी
सतबीर भी अपना काय चलाये
संगीता, गीता, किरण और उषा
स्कूलों में है मास्टरानी कहलाये
गीता रंगा हुई राम को प्यारी
गुरमीत निजी गाड़ी है चलाए
सुखविंद्र भी है सरकारी प्रवक्ता
सहपाठियों की है कथा सुनाये
लटकती लटें
माथे पर लटकती लटें
जुल्फों की लहराती लटें
काली बदली हो नभ में
बूँदों को झटकती लटें
यौवन से जब टकराती
छाती पर सरकती लटें
नागिन-सी हैं बलखाती
जियरे को हैं डसती लटें
हलचल-सी मचाती रहे
सीने पर रेंगती लटें
चाँद सितारों-सी सुन्दर
तम में है चमकती लटें
सुखविंद्र से सटती रहें
बेइंतहा मचलती लटें
तुम्हारी विरासत मेरा सरमाया है
मयखाने में मय का जाम लगाया है
होठों पर हसीं तेरा नाम आया है
भूले बिसरे थे जो हम नाम तुम्हारा
दर्द ए दिल ने फिर याद करवाया है
दिल दीवाना सदियों से है तुम्हारा
तुम मेरे विरान हृदय का साया है
भावनाओं में बहक गए हैं इस कदर
आज फिर से प्रेम का तूफां आया है
जमाने वालों ने हमें मिलने न दिया
पग पग पर पहरेदार जो बैठाया है
जज्बातों के मारे-मारे हैं फिरते
यादों ने सारी रात भर जगाया है
सुखविंद्र तन्हाई में तन्हाँ अकेला है
तुम्हारी विरासत मेरा सरमाया है
तराने प्यार के गाने लगे
तराने प्यार के गाने लगे
नींद में भी बुड़बुड़ाने लगे
प्रेमरंग चढ़ने लगा इस कदर
सपने दिन में भी आने लगे
इश्क बीमारी का दिखे असर
ठीक ठाक भी सठियाने लगे
भूख प्यास ना रही आसपास
दर्शनों से हम बुझाने लगे
मोहब्बत के तरन्नुम में हम
प्रेमगीत हम गुनगनाने लगे
मय-सा नशा आँखो में तेरी
नशे में दुनिया भूल जाने लगे
सुखविंद्र नहीँ किसी काम का
खामख्वाह लोग बताने लगे
लकीरें
ये जो हाथों की चंद लकीरें हैं
मेरे भाग्य की बंद लकीरें हैं
बिन लकीर तक़दीर सोई रहती
दिशा दिखाती स्वछंद लकीरे हैं
नसीबों वाली सदैव है राज करे
हैं भटकाती दरबंद लकीरें हैं
मिट जाएँ जब हाथों की रेखाएँ
पहुँचाए उग्र दरद लकीरें हैं
सुखविंद्र प्रारब्ध नहीं बिना कर्म
नहीं तो समझो ये बद लकीरें हैं
नीले गगन के तले
सब छोड़ कर बैठे नीले गगन के तले
दिल हार कर बैठे नीले गगन के तले
चलती पूर्वाई के साथ न बह सके हम
सब गवां कर बैठे नीले गगन के तले
दगाबाज़ दुनिया का भरोसा क्यूँ करें
सब हार कर बैठे नीले गगन के तले
मुस्कुराहटों का कोई मोल क्या समझे
गम छिपा कर बैठे नीले गगन के तले
ज़िन्दगी कभी मिलती नहीं है दुबारा
जीवन खोकर बैठे नीले गगन के तले
सुखविन्द्र तारीकियों में सदा डूबा रहा
द्वार ढो कर बैठे नीले गगन के तले
गुरु बिन गति नहीं
गुरु शिष्य की रीति सदियों से चलती आई
गुरु बिना कभी शिष्य ने है गति नहीं पाई
कुंभकार कच्ची मिटृटी से कलाकृति बनाए
गुरु ज्ञान साधना से आभा है चमकती आई
गुरु नाराजगी जैसी क्षति नहीं जग में कोई
मौके पर शस्त्र विद्या कर्ण काम नहीं आई
आशीर्वाद मिले गुरु का सबसे बड़ा सहारा
अर्जुन पर मेहर गुरु की हार पास नहीं आई
दात आचार्य से अज्ञानी ज्ञानी है बन जाए
गुरु बिना ज्ञान की कभी लौ जग नहीं पाई
फूलों जैसा साया गुरु का मिलते सदा फूल
जीवनभर शूल की चुभन समीप नहीं आई
सुखविन्द्र चरण धूलि को मस्तक पर लगाए
गुरु के गुणगान बिन मन में शांति नहीं आई
रुत प्यार की
आ गई है देखो फिर, रुत प्यार की
प्रेमी परिंदों के पर, रुत प्यार की
कस लीजिएगा कमर, रहे ना कसर
शुरू कर दीजिए सफ़र रुत प्यार की
पंछियोंं ने भी नीड़ हैं छोड़ दिए
पकड़ लीजिए ये डगर, रुत प्यार की
भावनाओं को राह मिल जाएगी
नेह की पड़ी है नजर, रुत प्यार की
अरसे से सब जैसे बंधें से हों
खोल दीजिए जंजीर, रुत प्यार की
तारीकी के बाँध टूट जाएंगे
प्रयास करो प्रखर, रुत प्यार की
सुखविन्द्र भी प्रेम से अछूता नहीं
चाहे कुछ भी हो हसर, रुत प्यार की
इंसानियत की बंद दुकान हो गई
कितनी अहसान फ़रामोश ज़ुबान हो गई
लगता है इंसानियत की बंद दुकान हो गई
जुबां की हिफ़ाज़त में सर कटा देते कभी
कथनी पर टिके रहना तो दास्तान हो गई
कहे बोल चले आते थे नतमस्तक हो कर
देखते ही चेहरों पर गायब मुस्कान हो गई
बड़ों के आगे झुकी-सी रहती थी निगाहें
वो सम्मान करने की कला कुरबान हो गई
आँख के ईशारे से समझ जाते थे बात
आँखें दिखाना लगता है सुर तान हो गई
नातों के मनावन में रुक जाते रश्म रिवाज
भाईचारा भाड़ में बात परवान हो गई
ज़ुर्रत नहीं थी किसी की दर पर दे दस्तक
बिन बताए आ जाने की पहचान हो गई
सुखविंद्र हालात देखकर है गमगीन हुआ
बसते अयनों की शक्ल बंद मकान हो गई
खुशियाँ मिल जाएगी
फूलों की बगिया खिल जाएगी
जीवन में खुशियाँ मिल जाएंगी
भावनाओं पर रखो नियंत्रण
मंजिलें तुम्हारी मिल जाएंगी
परिस्थितियों का कर तू सामना
बुनियादें आख़िर हिल जाएंगी
सब्र से मिलते सदैव गंतव्य
मुरझाई कलियाँ खिल जाएगी
हौसलों से होती है नैया पार
ये बुझी आग भी जल जाएगी
टकरा जाओ लहरों से निर्भय
नावें किनारे निकल जाएगी
चढ़े यौवन का मत करो गुमान
जवानी मस्तानी ढल जाएगी
सुखविंद्र नहीं हुआ नतमस्तक
सूखी परतें भी गिल जाएगी
आम का पेड़ रे
घर आंगन द्वार बाहर लगा आम का पेड़ रे
हरी भरी पार्क साथ सटा आम का पेड़ रे
गुब्बारों से हैं दिखें पीले पके लटके आम
फलों से लदा है ललचाता आम का पेड़ रे
हिलाए कोई, उठाए कोई, खाए कोई
बहुत नसीब वाला खड़ा आम का पेड़ रे
चीनी की चासनी-सी मिठास वाला अंब
चूसते हुए लथपथ करता आम का पेड़ रे
आता जाता कभी ऊपर देखे कभी नीचे
शायद गिराए रसाल पका आम का पेड़ रे
बाहर निकलते देख आता हवा का तूफान
कामशरों का ढेर लगाता आम का पेड़ रे
ऊपर चढ़ा कोई जन ज़ोर से पेड़ हिलाए
उठाए कोई लगा मौका आम का पेड़ रे
जिसने पिकबंधु का अंजाने में पेड़ लगाया
पोता चूसे दादे ने लगाया आम का पेड़ रे
सुखविंद्र निशदिन चूसता रहे मीठे रसाल
ज्यादा ही है मन को भाया आम का पेड़ रे
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
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