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सूर्य नमस्कार के साथ स्वास्थ्य लाभ के लिए ज़रूर अपनाएँ “योग”
सूर्य नमस्कार के साथ स्वास्थ्य लाभ के लिए ज़रूर अपनाएँ “योग”
विश्व भर में आज कोई भी योग की जानकारी से अछूता नहीं, हर किसी की ज़ुबान पर योग के विषय की ही चर्चा रहती है। हमारे शरीर को योग से मिलने बाली मजबूती डॉक्टर या किसी दबाई से प्राप्त नहीं हो सकती। हमारा मानव शरीर भी किसी मशीन की तरह ही है, स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए खान-पान से लेकर पाचन शक्ति को दुरुस्त रखना भी ज़रूरी है।
यूं तो अक्सर हम अपने शरीर के लिए कई प्रकार की एक्सरसाइज व जिम इत्यादि में जाकर फिटनेस का ध्यान रखते हैं, परंतु जो लोग किसी भी प्रकार की एक्सरसाइज या जिम ज्वाइन नहीं कर सकते, वह लोग अपने आप को दुरुस्त रखने के लिए “योग” की सहायता ले सकते हैं।
योग में ऐसे कई प्रकार के आसन है, जिनके उपयोग से आप वृद्धावस्था में भी अपने आप को फिट रख सकते हैं। इनमें से हमारे ऋषि-मुनियों के द्वारा बताए गए ८ आसन प्रमुख है, जिनके द्वारा हम स्वास्थ्य लाभ के साथ-साथ, परमात्मा की प्राप्ति साधन भी जान सकते हैं। योग हमारी आत्मा की शुद्धि के लिए भी बहुत ज़रूरी है। योग द्वारा हमें आत्म बल मिलता है, शरीर को ऊर्जा और मन को स्थिरता प्राप्त होती है। योग के प्रमुख आसनों को हम अष्टांग आसन के नाम से भी जानते हैं। यह निम्न प्रकार से हैं:–
१. यम, २. नियम, ३. आसान, ४. प्राणायाम, ५. प्रत्याहार, ६. धारणा, ७. ध्यान, ८. समाधि।
यह सब आसन की मुद्राएँ है जिन्हें हम घर पर आसानी से बैठकर कर सकते हैं इसके अलावा यदि योगासन की विधियाँ जानना चाहते हैं तो वह हमें किसी प्रशिक्षित व्यक्ति से ही सीखना चाहिए।
इसीलिए ही शायद हमारे बुज़ुर्ग लोग “सूर्य नमस्कार” को ज़्यादा मानते थे क्योंकि सूर्य नमस्कार भी योग की तरह ही विधिपूर्वक करने से हमारे शारीरिक रचना के तंत्र को मजबूती प्रदान करता है और इसके कई फायदे हैं। यह एक ऐसा व्यायाम है जिसके पश्चात किसी भी प्रकार के व्यायाम करने की आवश्यकता नहीं होती इसमें योग की भांति ही हर मुद्रा का अपना ही फायदा है जिसके करने से शरीर के सातों चक्र जागृत हो जाते हैं। इसमें १२ मुद्राएँ होती हैं।
इसमें अनाहत चक्र, विशुद्धि चक्र, मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, अनाहत चक्र, आज्ञा चक्र, मणिपुर चक्र सहस्त्रार चक्र इन सभी चक्रों को ऊर्जा प्रदान होती है, जिससे हमारा शरीर चुस्त और दुरुस्त होने के साथ-साथ हमारी पाचन शक्ति भी दुरुस्त हो जाती है। इसीलिए शायद कहा है”योगा से ही होगा” आज भारतवर्ष की संस्कृति का योग पूरे विश्व में अपनी प्रसिद्धि के कारण लोकप्रिय हो गया है। हमारे भारत के ही पतंजलि योग संस्थान के सेंटर आज कई जगह विश्व प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं और विदेशों में भी योग निरंतर लोग अपना रहे हैं ताकि उनके शरीर को नीरोग प्राप्त हो।
हम क्यों मनाएँ हिन्दी दिवस
१० जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है जिसकी शुरुआत वर्ष २००६ में हुई थी। दुनिया भर में लगभग ६५ करोड़ लोग हिन्दी बोलते है। भारत के अलावा लगभग २० देशों में हिन्दी बोली जाती है। आजादी के ७५ साल के बाद विश्व में अपना डंका पीट चुकी हमारी राजभाषा “हिन्दी” आज भी १३० करोड़ आबादी वाले भारतवर्ष में पूर्णता स्वीकार नहीं की जाती। भारत में आज भी कई राज्य ऐसे हैं जहाँ हिन्दी भाषा का उपयोग न के बराबर है वहाँ हिन्दी भाषा संपर्क और कामकाज का हिस्सा तक नहीं हैं।
आखिरकार हमें यह सत्य स्वीकार करना पड़ेगा कि हिन्दी को आज भी भारत में अंग्रेज़ी की तुलना में दूसरी भाषा का दर्जा ही प्राप्त है और यह हमारी हिन्दी भाषा के लिए अच्छी बात नहीं। हम सच से अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते। हमारी राजभाषा हिन्दी इतनी सरल और सहज होने के बाद भी इसको बढ़ावा न देने में कहीं ना कहीं हम लोग ही ज़िम्मेदार है, हम हिन्दी में बात करने की जगह अंग्रेज़ी मैं बात करना अपनी शान समझते हैं।
हमारी मातृभाषा हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की पहल आजादी से पहले हो चुकी थी हमारे महात्मा गांधी जी ने इसे जन भाषा बतलाया था आमतौर पर जिस भाषा में बात की जाती है या जिसे सभी उपयोग करते हैं उसे जन भाषा कहते हैं और आजादी के बाद इसे राज्य भाषा का दर्जा भी मिल चुका है।
सही मायने में देखा जाए तो हमारी मातृभाषा को अब राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हमको स्वयं सूत्रधार बनना होगा हमें हिन्दी को अपनाना होगा और इसकी शुरुआत हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने कर दी है। उन्होंने कार्यक्रम मन की बात द्वारा सबके सामने यह बात स्वीकार की है कि अब से पांचवी कक्षा तक हमारे बच्चों को उनकी मातृभाषा में ही शिक्षित किया जाएगा, ताकि वे मात्रभाषा हिन्दी को जान और पहचान सके, क्योंकि शिक्षा ही ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा जिस प्रकार अंग्रेज़ी भाषा सर्वमान्य कहलाती है वैसे ही अब हिन्दी का भी चहुं ओर विकास के लिए यह बहुत ज़रूरी है और इसके लिए बड़ी-बड़ी (यूनिवर्सिटी) विश्वविद्यालयों में भी अब हिन्दी भाषा में ही समस्त विषयों को पढ़ाने का निर्णय लिया गया है।
अब शोधकर्ता भी हिन्दी में शोध कर सकेंगे। यह ज़रूरी नहीं है कि इंग्लिश भाषा में मोटी-मोटी किताबें पढ़नी पड़े अब वह अपनी ही भाषा में सुलभ रूप से आगे की पढ़ाई कर सकेंगे। हिन्दी के सुनहरे भविष्य के लिए शिक्षा बहुत ज़रूरी है। इसीलिए हिन्दी में भी सभी प्रकार की शिक्षाएँ प्राप्त की जा सकती है इस घोषणा के साथ मोदी जी ने पहल कर दी हैं। इस पहल के लिए समूचे भारत राष्ट्र की तरफ़ से में आदरणीय मोदी जी को शुभकामनाएँ प्रेषित करना चाहती हूँ।
हम सभी भारत वासियों में भी हिन्दी को लेकर ऐसे ही जोश और जुनून होना चाहिए हमें हमारी मातृभाषा को बोलने में असहज और शर्म महसूस नहीं होना चाहिए हिन्दी जितनी सरल है उतनी ही उत्तम भी। हिन्दी से ही भारत की संस्कृति की पहचान हैं। हिन्दी हम सभी को सम्मानित करती है, आज हम बाहर विदेशों में जाते हैं तो विदेशी लोग भी सम्मानित रूप से हमसे हिन्दी सीखना चाहते हैं, इसीलिए सबसे पहले पहल हमें भारत से ही करनी होगी हम हिन्दी को बोले और हिन्दी को अपनाएँ इसके लिए कई संस्थाएँ साहित्य स्तर पर हिन्दी में हस्ताक्षर को लेकर पहल कर चुकी है।
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
भारत
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