Table of Contents
नव वर्ष 2025 की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई
दिल पर मत लेना… नव वर्ष 2025 की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई…
जाता हुआ…
यह साल अपने जीवन यात्रा की शाम की ओर अग्रसर…
बड़े ही इत्मीनान से…चहल कदमी करता हुआ…
इस वर्ष ने बहुतों को बहुत ख़ूब दिया…
झोलियाँ भर कर दिया…
इतनी पवित्र खुशियों का अंबार लगा दिया कि शाब्दिक अभिव्यक्ति द्वारा…
मेरे पास शब्दों…भावनाओं से बता पाना आसान नहीं…
बहुत ही शुक्रिया…
धन्यवाद आपका…
हे मेरे हर मित्र…
साथी…
रिश्तों का…
आपकी दुनियाँ से ही मेरी ज़िंदगी…
वाकई खूबसूरत बनी…
मुझे तो रंगों तक की पहचान नहीं…
और आपकी बदौलत…
इन्हीं रंगों की असल हक़ीक़त से…
रूबरू हुआ…
उन व्यक्तियों हस्ताक्षरों को कैसे भूल जाऊँ…
जिन्होंने अपने कीमती वक़्त ही…
मेरे लिए न्योछावर किया…
सभी का हार्दिक आभार…
आप सभी की झोलियाँ भरी रहें…
बरकतें बनी रहें…
शुभकामनाएँ देते हुए अपार ख़ुशी का सुखद अनुभव हो रहा…
उस असीम शक्ति को…
बारम्बार प्रणाम…
शुक्रिया…
धन्यवाद…
जिसकी वज़ह से ही…
यह भरोसा बना रहा…
स्वस्थ व्यस्त व मस्त रहा…
आने वाले हर पल आपके लिए…
बहुत ही मज़बूती लिए…
सकारात्मक सोच व गुणकारी हों…
सरबत का भला…
नए परिवर्तनशील नव वर्ष २०२५…
इक्कीसवीं सदी की रजत जयंती पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई…
हाथों की लकीरें…
हर हाथ में लकीरों का अपना महत्त्व…
कर्तव्य-निष्ठा के चलते कई महत्त्वाकांक्षी महानुभाव..
हस्तरेखा के हस्ताक्षर के आसपास…
ऐसे मंडराते ज्यों शहद पर भंवरें…
कोई हाथ की लकीर के सहारे…
दूसरे के भले की बात कर…
बस अपने फ़ायदे ख़ातिर जीते…
उनका दूसरे के भले से कोई लेना-देना नहीं…
जबकि हक़ीक़त में असलियत…
बस यही ब्याँ किया करती…
इन लकीरों की पृष्टभूमि के पीछे केवल…
अच्छी सोच उर्जावान ज़िन्दादिल दोस्त ही और कुछ नहीं…
बस यही कामयाबी का एहसास कराती…
हाथों की लकीरें…
भावनात्मक अभिव्यक्ति
न घर का पता भूला…
न ही डाकिया बेईमान निकला…
मैने तुम्हें अपने दिल से निकली भावनात्मक अभिव्यक्ति..
.लफ्ज़ों के माध्यम से…
काग़ज़ के टुकड़े पर लिखी तो…
बस भेज नहीं पाया…
क्योंकि…
दिल के एक कोने में…
एक अज़ीब-सा भय-सा रहा…
इक रोज़ तुम्हारे सामने बैठकर…
तुमको ख़त पढ़ कर सुना देंगे…
बस इतना मुझे यकीं रह गया…
यही वास्तविक जीवन की…
परिभाषित…
मर्यादित फलसफ़े पर…
भावनात्मक अभिव्यक्ति…
असली कामय़ाबी
मात्र जीवन में…
चंद काग़ज़ के टुकड़े ही कमा लिये…
और ज़िन्दगी सफ़लतापूर्वक आगे बढ़ने की कार्यवाही को ही…
जीवन नहीं कहा जा सकता…
असली सफलता…
व्यवस्था के तहत रह कर…
प्रगतिशील विचारधारा के साथ…
अपने कर्तव्य रूपी सोच को…
उड़ान भरने के लिए…
उत्साहित करते हुए…
वातावरण को अपने कर्मोंनुसार महकाते हुए…
सभी के लिए…
न तो केवल कुछ चुनिंदा के लिए ही प्रेरणा स्रोत बन…
सार्थक बने रहने का नाम ही…
असली कामय़ाबी…
वह गरमाइश नहीं
जी हाँ बिल्कुल सही बात…
सर्दी का मौसम है लेकिन वह गरमाइश नहीं…
ना जीवन में…
ना रिश्तो में…
ना अपनेपन में…
अनुमान क्या…
बिल्कुल सही बात कह रहा हूँ…
कि जो आज से १०…२०…२५ या पिछले कई बरस से लोगों के पास…
इतना साधन नहीं रहा…
अपने को सर्दी का बचाने के लिए…
लोगों के पास ज़्यादा से ज़्यादा एक या दो कमीज़…
पर्वतीय क्षेत्रों में…
सिगड़ी से सहारा लिया करते व ग़ैर पर्वतीय इलाक़े में…
सभी लकड़ी के अलाव के आगे बैठ कर…
हर किसी के जीवन में इतने स्ट्रगल होती लेकिन फ़िर भी अपनापन…
संयुक्त परिवार कि चूल्हे के पास…जाकर रोटी पहले रोटी खानी…
सभी एक जगह…
ताकि गरम-गरम फुलका अंदर जावे और शरीर जो गर्मी लगे और माताश्री भी…
बड़े ही आत्मीय भाव से बच्चे भी बिना किसी लागलपेट के एक ही थाली में…
स्ट्रगल करते परिवार के हर सदस्य की खासियत…
घर की फौज़ के…
सभी जन मौज़ में…
वाली सोच व सेवा भाव रही…
माँ भी रोटी बनाते हुए…
हर पल का आनंद ले रही…
और अन्न दाता को बार-बार नमस्कार कर रही…
हे अन्नदाता मैं ऐसी बनाती जाऊँ और बच्चों को खिलाती रहूँ…
मेरे दर से कोई भी शख़्स…
बिना भोजन के न जाए…
और अब व्यस्तता के कारण…
बिजली के संसाधनों की वज़ह से…
कारण सब कुछ स्वाहा…
हर चीज़ में मिलावट यहाँ तक कि सोच भी…
खत्म सब कुछ बिजली पर आधारित…
रिश्ते नाते बात और जज़्बात…
उड़ गए ख़्यालात…
अब तो बस बिन कारण…
सब कुछ ही अकारण…
वह ग़रमायश नहीं
कलम की पवित्रता
कलाम की पवित्रता…
कलम की पवित्रता…
कलम से हम वही लिखते…
जो हमारे विचार हैं…
जो मन की बात है…
जो दिल के भाव हैं…
क्योंकि क़लम में वह ताकत है…
जो अक्सर ग़ैर को भी परिवार से जोड़ दिया करती…
जब बच्चा छोटा होता है तो उसे माता-पिता अच्छी शिक्षा के लिए…
किसी न किसी विद्यालय में…
स्कूल में या आजकल के हालात से…
कहीं के एक बड़े एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन में दाखिला करवाते हैं…
इसलिए नहीं कि उसे अक्षर ज्ञान हो…
बल्कि उसमें जीवन के असली मूल्यों का निर्माण हो…
निर्वाण हो…
और संस्कार हों…
उसे जीवन में काम आए…
झूठ फ़रेब व सच्चाई में बच्चे पहचान कर पाएँ…
सच की मदद से समाज में नई रोशनी…
नए रास्ते पर चलते हुए…
एक नए सभ्य समाज का निर्माण हो…
कलम से लिखे हुए शब्द…
भले ही कुछ विशेष रूप ले लिया करते…
लेकिन उसके अंदर का जो भाव…
वह लिखने वाले के दिल से निकलता है…
और क़लम सदा ही पवित्र होती है…
जिस दिन क़लम अपवित्र हो गई…
उसी दिन अर्थ का अनर्थ हो जाएगा…
और जिन्हें हम अच्छाइयाँ बता रहे हैं…
वह कुरीतियों में बदल जाएंगी और जिन्हें हम कुरीतियाँ मान रहे हैं…
वह पवित्रता बस बनीं रहे क़ायम रहे चलती रहे…
परमपिता परमात्मा से यही दुआ करता हूँ…
यही अरदास करता हूँ…
यही विनती करता हूँ…
कि क़लम से कभी किसी का बुरा ना लिखा जाए…
कलम की पवित्रता बनी रहे…
जैसे इस धरती पर गंगा नदी के पानी को पवित्र कहा गया है…
पवित्रता का प्रतीक माना गया है…
काश क़लम से लिखा गया हर शब्द…
इस तरह से पवित्र हो और क़लम से लिखे गए हर शब्द…
व्यक्ति…
समाज में अमन…
चैन…
शांति…
भाईचारा स्थापित करते हुए…
उसे क़ायम रखते हुए…
एक अच्छे समाज की संरचना हो…
यही है क़लम की पवित्रता…
दिल पर मत लेना…
यही है क़लम की पवित्रता…
मोह माया का माया जाल
यह शरीर नश्वर…
दुनियाँ सब कुछ ही तो मोह माया…
पैसे का मोह त्याग दें…
यह तो बस हाथ की मैल…
बस एक ही सब कुछ तेरा…
वह सरबत का भला करने वाला सर्वशक्तिमान परम पिता परमात्मा…
बस जीवन की लौ उस को समर्पित कर दो…
सबका भला आपके सभी कार्य बनते ही चले जाएंगे…
य़कीनन यह आपके लालच की लालसा त्याग कर देखोगे…
तो बस मन को बड़ी शान्ति-सी व सन्तुष्टि मिलेगी…
अन्यथा बस किसी न किसी चक्कर के भंवर जाल में फंसते चले जाएंगें…
उम्र के एक पड़ाव के बाद…
अपनी पारिवारिक ज़िम्मेवारी पूरी कर…
बस प्रभू में ध्यान लगाने से ही भला…
हाँ बस जीवन यापन करने के लिए…
न्यूनतम ज़रूरत रखें तो सुख़द अनुभव होगा…
ऐसा बताने वाले हुऩरमंद विद्वजन…
ख़ुद ऐसा बता कर करोड़ों में ख़ेलने के आदि…
अरबों रुपये के आधुनिक सुख़-सुविधानुसार महल नुमा आश्रम…
बस यही कामयाबी हांसिल करने का व्यवस्थित…
मोह माया का माया जाल…
सब बिना वज़ह व्यस्त
कभी कभार उस चुनाव में जो निर्वाचन क्षेत्र की जनता पर…
केवल अपने निजी फ़ायदे की ख़ातिर थोपा गया कि हम ही तो…
फड़फड़ाते हुए कहा जाता हमनें यह…
वह…
ये करवाया…
वो बनवाया…
अपना-उसका सभी अपने…
एक परिवार…
अरे बाबा जब समय रहा तो अनूकल नहीं…
कोई सुनता ही नहीं…
मज़ा तो तब आये…
जब आम आदमी की तरह सिस्टम के तहत…
हर जायज़ काम ठोक बजा कर…
बिना किसी भेदभाव के साथ किये जाएँ…
अग़र काबलियत होते हुए भी भीख़ की गुज़ारिश की जाऐगी तो फिर उस सेवा भाव का क्या मतलब…
फिर तो बस अपने फ़ायदे ख़ातिर जीते…
कुछ भी अच्छा…
तो हमारे कारण…
बुरा तो वह ज़िम्मेदार जिस का उस दर्द के एहसास का कोई आधार नहीं…
व जनता बेवज़ह ही बेगाने की शादी में दुल्हे-सा महसूस कर रही…
जबकि ज़िन्दगी मौसम की तरह ठंडी…
सब लहरा रहे झंडी…
हम बदल जाते
अरे भाई सुना है…
तुम बदल जाते हो…
हाँ मेरे भाई ठीक सुना…
अरे भाई मेरे भाई सुना है…
यह साल भी रात के गुप्प अंधेरे में…
सुना है तुम रात को…
बदल जाओगे…
हाँ भाई बदल जाएंगे…
इसमें कोई दो राय नहीं…
मैं और मेरे जितने भी रिश्तेदार…
पक्की बात रात में ही बदलते हैं…
और एक निश्चित समय पर…
रात को ठीक १२: ०० बजे ही…
हम इंसान नहीं है…
जब मौका देखा तब बदल गए…
हम वह पक्के इरादे वाले हैं…
चाहे मैं साल हूँ…
मेरे ही खून के रिश्तेदार…
चाहे महीना…
चाहे हफ्ता…
चाहे वार या विशेष दिन…
जिसे आप यह कह सकते कि दिनांक…
सब ही रात के अंधेरे में ठीक १२: ०० बजे बदलते…
हर चीज पक्की…
कोई आगे पीछे नहीं होती…
हाँ तुम्हारा मुक़द्दर है…
वह तुम्हारे कर्मों के अनुसार बदलेगा…
इसलिए नेक काम करते रहो…
तुम्हारा मुक़द्दर कब सिकंदर बन जाए…
अरे भाई ठीक सुना…
हम बदल जाते…
सीधी बात…ज़िंदगी है तो…जीवित रहें व ज़िंदा दिखें
सीधी बात…
ज़िंदगी है तो…
जीवित रहें व ज़िंदा दिखें…
जीवित हैं तो जीवित ही…
कुछ नहीं फिर चाहे दिखाई दे यह न दे…
लेकिन अगर आप जीवित हैं तो फिर दिखाई देना भी ज़रूरी…
ऐसा नहीं कि आप जीवित भी हो और नज़र अंदाज़ भी होते…
जीवित हैं तो जीवित ही…
“शहर” की बहुत “मशहूर हस्तियों” की “मौज़ूदगी” वाली एक सभा में…
एक सज्जन जो नब्बे से अधिक बसन्त देख चुके…
लाठी के सहारे मंच पर पहुँचे और अपनी सीट पर बैठ गए…
होस्ट ने उनसे विनम्रता पूर्वक…
उनकी लम्बी उम्र व तंदुरुस्ती के बारे में पूछा…
“आप तो अक्सर चिकित्सक के पास जाते…बुज़ुर्ग का ज़वाब…”
हाँ, अक्सर जाता हूँ…
“क्यों” पूछने पर बुज़ुर्ग ने कहा…
“रोगियों” को अक्सर चिकित्सक के पास जाना चाहिए…
तभी तो डॉक्टर जीवित रहेगा…
दर्शकों ने बुज़ुर्ग की मज़ाकिया भाषा के लिए ख़ूब तालियाँ बजाईं…
होस्ट ने फिर उनसे सवाल किया…
“फिर तो आप फार्मासिस्ट के पास भी जाते…
बुज़ुर्ग महाशय ने ज़वाब दिया…
जी” बेशक़…
क्योंकि “फार्मासिस्ट” को भी “जीवित रहना” …
सारे सभागार में एक बार फ़िर…
तालियों की जीवंत उपस्थिति…
होस्ट के पूछने पर…
फ़िर तो आप फार्मासिस्ट द्वारा दी गई दवा का सेवन भी…
बुज़ुर्ग का स्टीक ज़वाब…
“नहीं” मैं अक्सर “दवाई नहीं लेता” …
“हां” उसी “लिफ़ाफ़े” में पड़ी रहने देता…
क्योंकि मुझे भी “जीवित” रहना…
इस पर दर्शक और भी हँसे…
अंत में मेज़बान ने कहा…
इस “साक्षात्कार” के लिए आपका बहुत-बहुत “धन्यवाद” …
बुज़ुर्ग ने उत्तर दिया…
आपका भी स्वागत…
मुझे पता आपको भी जीवित रहना…
इस परिदृश्य पर उपस्थित “दर्शक” काफ़ी हंसे…
यह दौर जो काफ़ी देर तक चलता रहा…
मेज़बान ने एक और सवाल पूछा…
“क्या आप अक्सर अपने” व्हाट्सएप”ग्रुप या” सामाजिक पटल “पर” एक्टिव” रहते…
बुज़ुर्ग ने सहजता से बताया…
” हाँ… कभी कभार मैसेज या दिल की बात डालता रहता…
क्योंकि मैं भी जीवित रहना चाहता…
अगर मैं ऐसा नहीं करूंगा तो…सभी को लगेगा कि “मैं” शायद कहीं…
और ग्रुप एडमिन मुझे डिलीट कर सकता…
क्योंकि हर किसी को जीवित…
इसलिए मेरे सभी प्यारे-प्यारे दोस्तों…
मित्रों…
साथियों…
मुस्कुराइए और अपने संदेश और प्रतिक्रियाएँ…
अपने “प्रियजनों” तक पोस्ट कर पहुँचाते रहें…
जुड़े रहें लोगों को बताइए कि आप वाकई “जीवित” …
“मानसिक” और “शारीरिक” रूप से भी “ख़ुश” व “व्यस्त” …
बस सीधी बात…ज़िंदगी है तो जीवित रहें व ज़िंदा दिखें…
दिल पर मत लेना…सीधी बात…ज़िंदगी है तो…जीवित रहें व ज़िंदा दिखें…
परमात्मा वाकई है
परमात्मा…
अल्लाह…
वाहेगुरु…
गॉड…
अब आप जो भी नाम देना चाहे…
उस असीम शक्ति को…
दे सकते हैं…
और यह शक्ति यह अटल विश्वास जो आपके दिल में है…
वह कोई सामाजिक पटल की तरह से नहीं…
विराज़मान है और वाकई ही विराजमान है…
जिसे देख नहीं जा सकता…महसूस किया जा सकता…
और जब आप देखते…
कि हालात जब आप के हाथ में नहीं…
आप किसी भी कारण से टूट चुके…
यह ऐसा है महसूस करते…
हालांकि आप इस समय उस परमात्मा को याद करते…
लेकिन वह विराज़मान है…
वही इस दुनिया को चल रहा…
आदमी की औक़ात नहीं…
कि वह खुद-ब-खुद चल पड़े…
आप इस चीज से अंदाजा लगा सकते कि जो प्राणी संसार में आता…
चाहे वह इंसान के रूप में…
जानवर के रूप में…
पेड़ पौधे के रूप में…
या किसी और रूप में…
तो उसकी सांस चलती…
जितना जीवन या गतिशीलता उसे परमात्मा ने…
हमारे कर्मों के अनुसार हमें बख़्शी…
हमें दी है उसके बाद हमारी आवाज़…
हमारा शरीर…
हमारी धड़कन…
सब शांत हो जाता है…
यही वह परमात्मा…
जो इस दुनियाँ को चला रहा…
परमात्मा वाकई है…
समाज में यह जो भी…
नित नए परिवर्तन…
नई खोज…
उड़ान…
बदलाव…
देखने को मिल रहे हैं ना…
यह सब उसी परमात्मा की देन…
और हर चीज हर व्यक्ति के हाथ से नहीं…
एक संयुक्त परिवार की तरह से…
हर व्यक्ति को परमात्मा ने अपने हिसाब से…
एक जिम्मेदारी दे रखी…
और वही व्यक्ति…
इस जिम्मेवारी को पूरा कर रहा…
परमात्मा वाकई है…
यह जो कुछ भी आप शब्दों…
भावनाओं के माध्यम से…
आप पढ़ रहे वह भी उस असीम शक्ति की कृपा मात्र…
ज्ञान की देवी माँ सरस्वती जी के कारण…
परमात्मा बाक़ी है…
परमात्मा वाकई है…
दिल पर मत लेना…परमात्मा वाकई है…
आपका अपना
वीरेन्द्र कौशल
यह भी पढ़ें-