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विश्व फोटोग्राफी दिवस 2025: जानें इस दिन का इतिहास, महत्व और क्यों दुनिया भर में यह दिन फोटोग्राफर्स और कला प्रेमियों के लिए खास होता है। पढ़ें रोचक जानकारी और प्रेरणादायक तथ्य।
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विश्व फोटोग्राफी दिवस : आज से दो सौ वर्ष पहले खींचा गया था पहला फोटो
हर व्यक्ति में रचनात्मकता होती है। इनमें जो सूझबूझ भरे, सजग और सक्रिय होते हैं वे अपने कार्यक्षेत्र में रचनात्मकता को नवाचार के विविध रूपों में प्रदर्शित करते हैं, वहीं कुछ व्यक्तियों के अवचेतन मन में यही रचनात्मकता बीज रूप में सुप्तावस्था में रहती है और उचित एवं अनुकूल परिवेश, प्रेरणा, पोषण एवं प्रोत्साहन प्राप्त कर कृति रूप में साकार होती है। मनस्थ रचनात्मकता को लोकजीवन में उद्घाटित-प्रकाशित करने के लिए विविध साधन एवं कला क्षेत्र माध्यम बनते हैं। लेखन, शिल्पकला, स्थापत्य, मूर्तिकला, चित्रकला, बागवानी, फोटोग्राफी, फ़िल्म एवं वृत्तचित्र निर्माण, संगीत, समाजोपयोगी कार्य, सेवा-साधना इत्यादिक क्षेत्रों में व्यक्ति की रचनात्मकता नवल आयाम के साथ प्रकट होती रही है। संवेदना, समानुभूति और कल्पना का साहचर्य प्राप्त कर रचनात्मकता जीवंत हो उठती है। फोटोग्राफी भी रचनात्मकता की ऐसी ही एक अनूठी आधुनिक उन्नत कला साधना है जहाँ एक फोटोग्राफर जगत् के सौंदर्य के साथ जीवन के सामंजस्य-वैमनस्य, संघर्ष-सह-अस्तित्व, हर्ष-विषाद, आशा-निराशा एवं कटु-माधुर्य दृश्यों को कैमरे के लेंस द्वारा न केवल देखता और सहेजता बल्कि लोक को जीवन दृष्टि का उपहार भी देता है। फोटोग्राफी ग्रीक शब्द फोस और ग्राफे से निकला है जिसका आशय है प्रकाश के माध्यम से चित्रण या लेखन करना।
फोटोग्राफी का पहला पेटेंट १९ अगस्त, १८३९ को हुआ था। इस दिन की स्मृति को संजोने के लिए आस्ट्रेलिया के एक उत्साही फोटोग्राफर ने अन्य २७० फोटोग्राफरों के साथ मिलकर १९ अगस्त, २०१० को एक आयोजन कर फोटो का दुनिया भर में प्रचार-प्रसार तथा साझा करने हेतु वैश्विक आयोजन की आधारशिला रखी और उस दिन अपने फोटो संग्रह से चयनित कुछ फोटो को आनलाइन फोटो गैलरी में प्रदर्शित किया। दुनिया के १०० से अधिक देशों में फोटो गैलरी को देखा-सराहा एवं पसंद किया गया। नये विषयों और क्षेत्रों के फोटो की मांग भी आई। तब से यह आयोजन अबाधित अद्यावधि गतिमान है। ऐसे आयोजन से फोटोग्राफरों को अपने रचनात्मक कलात्मक फोटो के प्रदर्शन, परस्पर लेन-देन से पहचान मिली और फोटो विक्रय से आर्थिक सुदृढता भी। आज के दिन स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालयों और अन्य संस्थाओं द्वारा फोटोग्राफी पर कार्यशालाएँ, प्रतियोगिताएँ, प्रश्नोत्तरी एवं फोटो के प्रदर्शन करने जैसे आयोजन किये जाते हैं। एक फोटो हज़ार शब्दों की व्याख्या है, अनुभूति है और सहज सम्प्रेषणीयता भी। विश्व फोटोग्राफी दिवस का उद्देश्य पूरी दुनिया के फोटोग्राफरों को अपनी कला एवं रचनात्मकता को प्रदर्शित करने, विश्व भर में साझा करने और फोटोग्राफी के महत्त्व को बढ़ावा देने के साथ आमजन को जागरूक करने हेतु एक बड़ा मंच और अवसर देता है।
विश्व का पहला फोटो आज से दो सौ वर्ष पूर्व सन् १८२६ में जोसेफ निसेफोर नीप्से ने अपने मकान की खिड़की से लिया था, जिसमें ८ घंटे लगे थे परंतु प्राप्त फोटो धुंधली और अस्पष्ट थी। ‘व्यू फ्रॉम द विंडो एट ले ग्रास’ नामक यह फोटो आज ऐतिहासिक धरोहर है। फ्रांस के विज्ञानी जोसेफ नाइसफोर तथा लुई डॉग्यूरे ने १८३७ में फोटोग्राफी की डॉग्यूरेटाईप प्रक्रिया का आविष्कार किया। इसमें तांबे की सीट पर चांदी की पतली परत का लेप लगाते थे, जिस पर कैमरे से व्यक्ति, वस्तु या दृश्य को पकड़ते थे। आगे फ़्रेंच अकादमी ऑफ साइंसेज ने ९ जनवरी, १८३९ को इसकी आधिकारिक घोषणा की तथा फ्रेंच सरकार ने १९ अगस्त, १८३९ को इसका पेटेंट प्राप्त कर पूरी दुनिया के लिए मुफ्त सुलभ करा दिया।
फोटोग्राफी के विकास में विज्ञानी अविराम नित नूतन प्रयोग करते रहे। वर्ष १८६१ में स्काटलैंड के भौतिकशास्त्री जेम्स क्लर्क मैक्सवेल की त्रि-रंग विधि से थामस सटन ने लाल, हरा और नीले रंग की तीन प्लेटों का प्रयोग करके कैमरे से दुनिया की पहली रंगीन तस्वीर प्राप्त की। दो दशकों बाद फोटोग्राफी के इतिहास में एक क्रांतिकारी शोध हुआ जिसने न केवल फोटोग्राफरों का बोझ हल्का किया बल्कि फोटो खींचना भी अपेक्षाकृत सहज-सरल बना दिया। सन् १८८४ में न्यूयार्क के जार्ज ईस्टमैन ने डाग्यूरे टाईप प्रक्रिया को परिष्कृत कर तांबे की प्लेट की जगह सूखी जेल की एक पतली पट्टी लगा दी, जिसे फ़िल्म कहा गया। अब फोटोग्राफरों को तांबे की प्लेटें और विषाक्त रसायनों का बोझ ढोने से मुक्ति मिली। इतना ही नहीं, आगे ईस्टमैन ने सन् १८८८ में एक कोडक कैमरा भी विकसित किया, जिससे कोई भी व्यक्ति अब फोटो खींच सकता था। डिजिटल कैमरों के आने के पहले तक कोडक कैमरा और फ़िल्म रीलों का प्रयोग दुनिया भर में हो रहा था। भारत में फोटोग्राफी का आरंभ १९वीं शताब्दी में अंग्रेजों की पहल से हो गया था। वर्ष १८८० में हैदराबाद निजाम के दरबारी फोटोग्राफर लाला दीनदयाल ने सास-बहू मंदिर का फोटो लिया था, यह किसी भारतीय द्वारा लिया गया पहला फोटो था। हालांकि इसके पूर्व फेलिस बीटो ने १८५७ के युद्ध के फोटो लिए थे। सैमुअल बार्न ने १८६३ में भारत में बार्न एंड शेफर्ड नामक फोटो स्टूडियो स्थापित किया था, उन्होंने भारत के स्थापत्य और वास्तुकला से सम्बंधित भवनों के फोटो लिए थे।
फोटोग्राफी दिवस पर प्रति वर्ष आयोजन की एक थीम होती है। वर्ष २०२५ की थीम है- मेरी पसंदीदा फोटो। वर्ष की थीम पर पूरे विश्व में आयोजित होने वाले कार्यक्रम फोटोग्राफी के प्रति सामान्य जन को उसकी पहुँच से परिचित करा पर्यावरण जागरूकता, वैश्विक एकता, भुखमरी से मुक्ति, मानवीय संवेदना, निर्झर-गिरि-कानन, सर-सिंधु-सरिताओं के संरक्षण, स्वच्छता, अहिंसा, प्रेम, बंधुत्व, जीवन में नवाचारी प्रयासों एवं सांस्कृतिक वैविध्य के साथ ही मानवीय गरिमा को धूमिल-धूसर करते रंग, नस्ल, लिंग, हिंसा, युद्ध, बालश्रम, यौन अपराध, महिला दुर्व्यवहार जैसे ज्वलंत विभेदकारी मुद्दों के प्रति चेतना जगाने का कार्य करता है। यह दिन जीवनोपयोगी वन, डेल्टा, मरुस्थल, दलदल, ऐतिहासिक विरासत के किले, बावड़ी, मंदिर, पुल, बाँध सहित लोक के महत्त्वपूर्ण दृश्यों का अंकन कर भावी पीढ़ी के हाथों में सौंप संरक्षण को प्रेरित करता है।

फोटोग्राफी कला लोक जीवन के इतिहास को न केवल सहेजती है बल्कि रचती भी है। निर्विवाद कह सकते हैं कि एक फोटो की सम्प्रेषणीयता शब्द और काल से परे होती है। उसकी व्यापकता, उपयोगिता एवं संदर्भशीलता दुनिया भर में धारणाओं और भावनाओं को नवल आकार देती है। फोटोग्राफी कला के आधार में धैर्य, संयम, सौंदर्यबोध, सूक्ष्मदृष्टि, कल्पना, संवेदनशीलता एवं साहस के सप्तरंग बिखरे हैं। फोटोग्राफी की राह में सुवासित सुमनों के परिमल पराग का सिंचन नहीं है अपितु चुनौतियों, बाधाओं, जोखिम एवं दुश्वारियों के कंटक बिछे हैं। एक फोटो के पीछे महीनों और कभी-कभी तो वर्षों की साधना छिपी होती है। इसीलिए फोटोग्राफी कला इतिहास, भूगोल, विज्ञान, शिल्प, संस्कृति एवं परम्परा की पहचान है। फोटोग्राफी की दो शताब्दी की यह जीवन यात्रा हमारे लिए प्रमुदित और प्रेरक है।
❓ विश्व फोटोग्राफी दिवस 2025 – FAQ
विश्व फोटोग्राफी दिवस कब मनाया जाता है?
👉 विश्व फोटोग्राफी दिवस हर साल 19 अगस्त को मनाया जाता है।
विश्व फोटोग्राफी दिवस क्यों मनाया जाता है?
👉 यह दिन 1837 में फ्रांस में विकसित की गई डैग्यूरोटाइप तकनीक की याद में मनाया जाता है, जो फोटोग्राफी की पहली तकनीक थी।
विश्व फोटोग्राफी दिवस 2025 की थीम क्या है?
👉 हर साल इसकी एक अलग थीम होती है। वर्ष २०२५ की थीम है-मेरी पसंदीदा फोटो।
फोटोग्राफी दिवस का महत्व क्या है?
👉 यह दिन फोटोग्राफर्स और कला प्रेमियों को उनकी रचनात्मकता दिखाने और समाज को प्रेरित करने का अवसर देता है।
भारत में विश्व फोटोग्राफी दिवस कैसे मनाया जाता है?
👉 भारत में इस दिन फोटोग्राफी प्रतियोगिताएँ, फोटो एग्जीबिशन, वर्कशॉप और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं।
फोटोग्राफी सीखना क्यों जरूरी है?
👉 फोटोग्राफी सिर्फ तस्वीर खींचना नहीं है, बल्कि यह कला, रचनात्मकता और यादों को सहेजने का माध्यम है।
विश्व मानवतावादी दिवस : आपदा एवं संकट में साथ खड़े नायकों के स्मरण का दिन
कालचक्र का अविराम गतिमान रहना ही उसकी नियति है। उसकी परिधि अपरिमित है और अपरिमेय भी। समय के नियम-अनुशासन से आबद्ध प्रकृति में कालानुकुल परिवर्तन स्वाभाविक है और सुनियोजित भी, क्योंकि जागतिक कार्य-व्यवहार के लिए यह आवश्यक है। यह प्रकृति की सृष्टि संचालन की अपनी व्यवस्था एवं शैली है। यह व्यवस्था जीव-जंतुओं, वनस्पतियों, भूमि, जल, मरुस्थल, गिरि-कानन, पठार-मैदान, सागर-सरोवर, नदी-ग्लेसियर, कृषि-वानिकी इत्यादिक की जीवनचर्या के लिए उचित है और उत्तम भी, किंतु अविवेकी मानव जब अपनी अभीप्सा की पूर्ति के लिए इस गतिमान व्यवस्था में हस्तक्षेप करता है तो उत्पन्न क्षोम एवं विकार संकट के रूप में उपस्थित हो हाहाकार मचाता है। मानव मन की कुत्सित शोषण प्रवृत्ति एवं लोभी दृष्टि का परिणाम सृष्टि में विपर्यय पैदा कर अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सुनामी, बादल फटने, भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं के रूप में प्रकट होता है। यह प्राकृतिक संकट मानवीय विस्थापन एवं शरणार्थी समस्या का रूप धर प्रदेश और देशों की सीमाओं को लांघता-फांदता है। जब किन्हीं दो या अधिक देशों के मध्य सीमा विवाद, दूसरे देश की वन-खनिज सम्पदा पर बलात् अधिकार करने या आतंकी हमले करवाने के कारण युद्ध की स्थितियाँ बनती हैं तो मानवता पर संकट का काला धुंआ मंडराने लगता है। युद्ध गरिमामय मानवीय जीवन के लिए कलंक हैं, अभिशाप हैं।
वर्षों-वर्षों तक युद्धरत देशों की भूमि बम-बारूद के विस्फोट के ताप को सहती चीत्कार करती है, वायु में घुला ज़हर नागरिकों के फेफड़े छलनी करता है। भूमि बंजर हो रुदन करती है। संकट के इस भयावह कालखंड में पशु, पक्षी, मनुष्य बेहाल तड़पते हैं, जिन्हें सामान्य जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक भोजन, जल, नींद, शिक्षा, स्वास्थ्य सुलभ नहीं होता। ऐसे संकट काल में देवदूत बन सम्मुख उपस्थित होते हैं मानवतावादी राहत कर्मी एवं बचाव दल। क्षेत्र, रंग, नस्ल, मजहब, भाषा के तमाम विभेदों से परे ये राहत कर्मी अपने प्राणों की चिंता किए बिना अहोरात्र पीड़ित मानवता की सेवा-साधना में जुटे रहते हैं ताकि उनके चेहरों पर खुशियों का उजाला चमकता रहे। परंतु यह सेवा-पथ इतना सरल नहीं है, जितना दिखने-सुनने में सहसा लगता है। आतंक, अराजकता और अशांति के पक्षधर इनकी राह में कंटक बन उभरते हैं, क्योंकि राहत कर्मियों के दल उनके नापाक मंसूबों पर पानी फेरते दिखाई देते हैं। परिणामत: राहत कर्मियों के ऊपर जानलेवा हमले, अपहरण और स्थान छोड़ चले जाने की धमकियाँ। जबकि अंतरराष्ट्रीय कानून एवं संधियों के अनुसार बचाव दल एवं राहत कर्मी चिकित्सक, नर्स, रेडक्रास, स्काउट-गाइड आदि संस्थाओं के कार्यकर्ताओं पर हमला नहीं किया जा सकता, बल्कि सुरक्षित रास्ता देने का प्राविधान है।
संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा जारी गत वर्षों के आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक वर्ष राहत कर्मियों एवं बचाव दल पर औसतन लगभग आठ सौ हमले होते हैं, तीन सौ के लगभग राहत कर्मी सेवा-अनुष्ठान में अपने प्राणों को होम कर देते हैं। बड़ी संख्या में घायल भी होते हैं। बावजूद इसके राहत कर्मी आपदा, विपदा, युद्ध में फंसे विवश कराहते मानव को संकट से मुक्ति दिलाने के लिए बद्ध परिकर हो सेवा-साधना में जुटे रहते हैं। दवा, भोजन, पानी, राहत कैम्प की व्यवस्था करते हैं। मानवता के ध्वजवाहक ऐसे राहत कर्मियों का सम्मान करने, वैश्विक समुदाय को संकट प्रबंधन और आपदा राहत के महत्त्व से परिचित कराने, संकट में फंसे व्यक्तियों की सहायता करने एवं उनके मानवाधिकारों की सुरक्षा करते हुए शांति स्थापना के प्रति जागरूक करने के लिए १९ अगस्त को विश्व मानवतावादी दिवस के रूप में आयोजित करने हेतु संयुक्त राष्ट्रसंघ ने २००८ में महासभा की बैठक में स्वीडन के प्रस्ताव को स्वीकार कर वैश्विक आयोजनों का आरम्भ किया था। तब से प्रत्येक वर्ष पूरी दुनिया में विश्व मानवतावादी दिवस मनाकर जन-जन के हृदय में शांति, सख्य, सेवा का भाव जागरण करने का प्रयत्न रहता है।
विश्व मानवतावादी दिवस के आयोजनों के सूत्रपात की पूर्व पीठिका समझना भी आवश्यक है। १९४५ में गठित संयुक्त राष्ट्रसंघ विश्व में शांति एवं अहिंसा के पावन परिवेश की सर्जना में विविध कार्यक्रमों के माध्यम से मानवता के पक्ष में अपनी सेवाएँ समर्पित करता है, ताकि प्रत्येक मानव के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। उल्लेखनीय है कि विश्व के किसी भी देश एवं भू-भाग में किसी भी व्यक्ति को जन्म से ही धर्म, लिंग, रंग, राष्ट्रीयता एवं जातीयता आदि भेदों से मुक्त हो गरिमामय मानवीय जीवन जीने, शिक्षा प्राप्त करने, स्वतंत्र वातावरण में रहने, मनोभावों को निर्भय हो अभिव्यक्ति करने, जीविका हेतु काम करने, रुचि आधारित धर्म-मजहब पालन करने तथा समानता के साथ व्यवहार किये जाने के मानव अधिकारों की प्राप्ति है। किंतु प्राकृतिक आपदाओं और मानवजनित युद्धादि संकट काल में व्यक्ति के मानव अधिकारों का हनन होता है। ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्रसंघ की विभिन्न संस्थाओं द्वारा तथा स्थानीय स्तर पर वैयक्तिक एवं सामूहिक प्रयास राहत एवं बचाव के रूप में किये जाते हैं। बचाव कार्य के दौरान राहत कर्मी भी हताहत होते हैं, कुछ स्वाभाविक प्राकृतिक आपदा का शिकार बन जाते हैं तो कुछ आतंकियों के हमलों में जान गंवाते हैं।
वर्ष २००३ में इराक के बगदाद में स्थित संयुक्त राष्ट्रसंघ के क्षेत्रीय मुख्यालय में १९ अगस्त को किये गये आतंकी हमले में २२ व्यक्ति मारे गये थे, जिनमें १७ राहत कर्मी थे। हृदय झकझोरने वाली उस घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा और तब, महासभा की बैठक में स्वीडन के प्रस्ताव पर १९ अगस्त को विश्व मानवतावादी दिवस के रूप में मनाने की संयुक्त राष्ट्रसंघ की मुहर लगी। तब से हरेक वर्ष थीम आधारित कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है ताकि आमजन भी राहत कर्मियों के त्याग, बलिदान, नि: स्वार्थ सेवा को स्मरण कर उनके प्रति श्रद्धा एवं सम्मान का प्रदर्शित कर सकें। आज के दिन छोटे-बड़े सरकारी एवं गैर-सरकारी आयोजनों के माध्यम से हम न केवल जागरूकता का पावन प्रकाश बिखेर पाएंगे, बल्कि आमजन अज्ञात राहत कर्मी नायकों के योगदान से परिचित-प्रेरित हो सेवा हेतु स्वयं को प्रस्तुत भी कर सकेंगे। इसके लिए वाद-विवाद, भाषण, कविता एवं निबंध लेखन, चित्रकला, प्रश्नोत्तरी तथा संवाद-परिचर्चा आयोजित कर सकते हैं। कह सकते हैं, विश्व मानवतावादी दिवस संकट काल में साथ खड़े राहत कर्मियों की जिजीविषा, मानवीय भावना एवं उच्च आदर्शों के स्मरण का दिन है। हम राहत कर्मियों के अतुल्य योगदान के प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हैं।
प्रमोद दीक्षित मलय
लेखक शैक्षिक संवाद मंच उ.प्र. के संस्थापक हैं। बांदा, उ.प्र.
मोबा- ९४५२०८५२३४
विश्व मानवतावादी दिवस: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
विश्व मानवतावादी दिवस कब मनाया जाता है?
👉 विश्व मानवतावादी दिवस हर साल 19 अगस्त को मनाया जाता है।
विश्व मानवतावादी दिवस क्यों मनाया जाता है?
👉 यह दिन उन मानवतावादियों और स्वयंसेवकों की याद में मनाया जाता है जिन्होंने संकट के समय मानवता की सेवा करते हुए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
विश्व मानवतावादी दिवस का उद्देश्य क्या है?
👉 इसका उद्देश्य मानवता, सहयोग और निःस्वार्थ सेवा के मूल्यों को बढ़ावा देना और लोगों को एक-दूसरे की मदद के लिए प्रेरित करना है।
विश्व मानवतावादी दिवस कैसे मनाया जाता है?
👉 इस दिन सेमिनार, जागरूकता अभियान, वॉलंटियर प्रोग्राम और ऑनलाइन कैम्पेन आयोजित किए जाते हैं। लोग ज़रूरतमंदों की मदद के लिए दान और सेवा कार्यों में भाग लेते हैं।
विश्व मानवतावादी दिवस से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
👉 यह दिवस हमें सिखाता है कि मानवता से बढ़कर कुछ नहीं और हर छोटे-बड़े संकट में हमें एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।
क्या केवल संगठन ही इस दिवस में भाग ले सकते हैं?
👉 नहीं, हर व्यक्ति इस दिवस का हिस्सा बन सकता है। कोई भी इंसान अपने स्तर पर ज़रूरतमंद की मदद करके इस दिन को सार्थक बना सकता है।
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