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औरत (women)
एक औरत (women) जिसका जन्म एक औरत की कोख से होता।
उस समय उसे केवल एक बेटी का रोल अदा करना होता।
उसे पढ़ना, लिखना और कुछ बन कर दिखाना होता।
उसे अपने बाबुल की इज़्ज़त का ध्यान रखना होता।
उसके बढ़े हो जाने पर उसे एक नया सफ़र शुरू करना होता
अब… उसे एक पत्नी और बहू का रोल भी अदा करना होता।
पती की इज़्ज़त बन कर रहना होता।
उसे ससुराल के घर का सभी काम करना होता।
और साथ ही ससुराल के उपहास का सामना करना होता।
सब कुछ चुप रह कर सुनना होता
क्योंकि यही उसे उसके मायके ने सिखाया होता।
और इसके बाद…उसे एक बेटी, पत्नी और बहु
के साथ-साथ एक माँ का रोल भी निभाना होता।
अब उसे भी अपनी माँ की तरह
अपने बच्चो का ध्यान रखना होता।
समाज में इतने रोल निभाने के बाद भी…
ना जाने क्यों… औरत पर अत्याचार होता?
औरत के बिना एक मर्द भी अधुरा होता।
ना जाने… फिर भी क्यों… औरत और मर्द के बीच भेद-भाव होता?
न जाने… क्यों… फिर भी औरत को मर्द… से कम समझा जाता?
ऐसे ही कुछ सवालों से मेरी कविता का अंत होता।
क्योंकि… इन सवालों का जवाब देना…
मेरे लिए असंभव होता …
जिन्दगी
जिन्दगी खुलकर जियो तो है गुलज़ार।
घुट-घुट कर जियो तो है अंगार।
ज़िन्दगी में ग़म किसको नहीं …
पर ग़म को भी हस कर जियो,
तो ज़िन्दगी है बहार।
यही हमें कभी लाती ज़मीं पर और
और कभी करवाती है आसमां पार।
यहाँ कभी मिलती है नफ़रत तो कभी मिलता है प्यार।
यहाँ कभी मिलती है जीत तो कभी मिलती है हार।
यहाँ हर कोई खुश या हर कोई दुःखी नहीं होता,
यहाँ सिर्फ़ ज़िन्दगी का हिसाब किताब होता।
अगर ज़िन्दगी में आप पर कोई मरता हो तो…
कोशिश करे की वह ज़िंदा रहे।
अगर कोई आपसे जलता हो तो…
कोशिश करे उनसे दूर रहे।
जिन्दगी ऐसे ही कभी हंसाती और कभी है रोलाती।
पर यह ज़िन्दगी बहुत कुछ है सिखाती।
जिन्दगी कभी सिखाती और कभी है परखती।
कभी अपनों से बिशोड़ती तो कभी है मिलवाती।
यही है मेरी ज़िन्दगी का भी कुछ अफसाना।
कभी रोना तो कभी रुलाना, कभी हसना तो कभी हसाना।
रमन का सबको यही है कहना,
चाहे ख़ुद ज़िन्दगी ग़म में काट लेना पर कभी किसी को ग़म मत देना।
और यही है मेरी ज़िन्दगी का फलसफा…
वो दिन चले गए
वो दिन चले गए
जब स्कूल दोबारा अप्रैल में थे खुलते।
वो दिन चले गए
जब किताबे लेने हेतु कतारो में खड़े थे होते,
नई किताबे और पोल स्टार थे लेते।
वो दिन चले गए
जब हम दो रविवार थे चाहते ओर सोमवार नहीं थे चाहते।
वो दिन चले गए
जब हम सुबह की प्रार्थना के लिऐ कतारों में खड़े थे हुआ करते।
वो दिन चले गए
जब हम कक्षा में अध्यापकों स छुपाकर खाना थे खाते।
वो दिन चले गए
जब हम बिना बात से एक दूसरे से थे झगड़ते,
बिना ईर्ष्या के एक दूसरे से थे मुकाबला करते।
वो दिन चले गए जब हम सुबह ७: १५ पर घर से थे निकलते,
ओर जाकर झट से खिड़की के पास थे बैठते।
वो दिन चले गए
जब तनावपूर्ण त्रैमासिक, छमाही, वार्षिक परीक्षा थी होती,
ओर उसके बाद सबसे मजे वाली छुट्टियाँ थीं होती।
वो दिन चले गए
जब हम मजे लेते थे, खेलते थे, जीतते थे ओर थे हारते,
हंसते थे, रोते थे, झगड़ते थे ओर थे सोचते।
वो दिन चले गए
जब बहुत सारा आनंद था, बहुत सारा था अनुभव,
बहुत सारे मित्र थे ओर बहुत सारे थे अध्यापक,
जो हमें अच्छे विचार थे देते।
करती है आपकी अध्यापिका यह आशा,
आप स्कूल के सुनहरे दिनों को चाहते हो वापिस लाना,
पर अभी सब जगह हैं फैला कोरोना ही कोरोना,
तो अभि बेहतर है, घर पर ही रहना।
आयें दीपावली मनाएँ
आए दीपावली मनाए
अंतर्मन के दीप जलाए
घर चौखट को रोशनाए
खुशियों की सौगात घर लाए
बुराइयों को दूर भगाए
घर आंगन को रंगोली से सजाए
घर छत पर दीप जलाए
अंधकार को दूर भगाए
आए दीपावली मनाए
अंतर्मन के दीप जलाए
पर कोरोना संक्रमण को न भुलाए
इसके डर को न मन से भगाए
दीपावली दूरी रख मनाए
किसी के नज़दीक न जाए
पर मन की दूरी न बड़ाए
जात धर्म के भेद मिटाए
आए दीपावली मनाए
अंतर्मन के दीप जलाए
कोरोना का ख़ौफ़ खाए
मिठाई देख जी न ललचाए
घर बना खाना ही खाए
सौगात से कोरोना घर न लाए
केवल खुशियों को बढ़ाए
मन में प्रेम के दीप जलाए
आए दीपावली मनाए
अंतर्मन के दीप जलाए…
रमनदीप कौर
लुधियाना, पंजाब
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