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सुसज्जित गाँव (well equipped village)
well equipped village: शहरनु कै सबु बन्द किवाँड़ हवानु पता कतहूँ ना चलै।।
नर नारी युवा सबु बालकु वृन्द छतानु असाढ़ कहाँ निकलैं।।
कबौ पूरब वा कबो पच्छिमु ते याकि दक्खिन मेघ लवारि चलैं
भाखत चंचल उत्तर मेघ बिना बरसातु ना जातु भलैं ।।1।।
बूँदय कबौ धरनी जौ गिरँय तौ अवनिनु धाह तवा समु दहकैं।
बाग बगैचौ देखातु कहाँ चलू गाँव सखी फुलवारी तौ मँहँकैं।।
दिशाएँ दशानु समीरू बहँय छत या टटिया हटिया चहँकैं।।
भाखत चंचल काव कही कश्मीरी हवा गलियाँ महकैं।।2।।
पैइसव दिहे ना समानु मिलँय तौ याहि शहरू मरूथानु लगै।।
लकडाऊन कोरोना कै ठाढि़ रहय घरु बैइठवो तो साँसु ऊसाँसु लगै।।
रोजी रोटी हटी नोकरी भी हटी गलियाँ शहरनु सुनसानु लगैं।।
भाखत चंचल या सखियनु चलो भागि चलैं जँह ठाँव लगैं।।3।।
गवना मा सबै सुविधानु मिलँय शोचालय सबै घरूमाही सजा।
बिजुली दिनुरैनु मा नाहीकटै गलियानु खड़न्जा सफाई मजा।।
टी वी औ कूलर ताँही चलै सखि सावन झूला तौ डारी सजा।।
भाखत चंचल राज हु शान्तिकै चोरी चकारी सिपाही धजा।।4।
क्रोधु
क्रोधु तौ होतु कबौ गुनकारी मुला कबहूँ ना हितू ई रहा है।।
विनती तौ करी प्रभु तीनि दिना तब जलनिधि का फटकारि कहा हे।।
बान मँगायो जबै लक्षिमनु तौ विप्रनु रूप सँवारि रहा है।।
भाखत चंचल याहि विधी प्रभु सैन्य समेत उतारि रहा है।।1।।
अन्तु समय दसकन्धरू भाखत हे अवधैशु सुनौ बतिया।।
ताकत औरू कुटुम्बनु मा नहि आप बडो़ सुन लो नितिया।।
एकहि मोहि सुझात प्रभु बसु भाई तिहारो भवा सतिया।।
बसु भाखत चंचल याहि कमी मोर भ्रातु विभीषणु ना रितिया।।
नाथु यही भुजदण्डनु ते तौ नारिहौ लाई तिहारी धरा।।
सबुकी जिभिया तव नामु नहीमुल अन्त समो निरखों तू खरा।।
उद्धार करा निज संगु कुटुम्बनु अँट्यौ प्रभुवर वहि स्वर्गु परा।।
भाखत चंचल याहि है कारनु आपहुँ युद्ध हौं घोरु करा।।3।।
हौं जात प्रभु हैं आप खडे़ जेहि खोजतु मुनिजन जंगलु मा।।
अन्त समौ उद्धारु हमारकुटुम्ब समेत ई मंगलु मा।।
हौ काव कही प्रभुवर यतना संगी बालि गवा तुमरौ कर मा।।
भाखत चंचल नाथ सनाथ हौ पार हजार तु सम्मुख मा।।4।।
भाग्य
योग कुयोग वियोग संयोगजो ठानि हिया धरनीधर लाई।।
सुक्ख मुसीबत आफत इज्जत काव कही जबु जान पराई।।
ईश जुडा़व जब आतमा मा तौ योग कै उत्तिमु बातु बताई।।
भाखत चंचल योगी कहैंऔ उत्तिमु योगु गती बतियाई।।1।।
साजनु साथु सजै सजनी नहि नयन विरूद्ध परै पतियाई।।
यहि उत्तिमु रीति संयोगु कही अरू नैननु चार गति बतियाई।।
रैनुदिना सुखचैनु मिलय सबु बाति बनावतु बातिनु लाई।।
भाखत चंचल रेसजनी रजनी संगु साजन पीरू पराई।। 2।।
कंत गये परदेशु सखी पर पाती कहाँ अजहूँ पठवाई।।
ट्रेन बरी दुर्घटना घटी याकि डाक ही छूट गयी बरूआई।।
चित्त मेरो सखि चैन नही याकी कौनौ मुसीबत कंत पै आई।।
भाखत चंचल चैन कहाँ जबु कंतु कै हालि खबरि नहि पाई।।3
चैन नही दिनुरैनु मेरौ यहु आफतु जौनु विधी गति आई।।
स्पर्श कर्यो गर हीरकु को तौ मिट्टिनु भाव वहौ हू बिकाई।।
काव कही विधिना कै गती यहु आफतु जौनु गले परी आई।।
भाखत चंचल दाना नही घर आगि लगै यहु कंत कमाई।।4।।
लौ लू हटी बादरी छाई
श्रमसीकरि अबु हटी तन वदन मस्त पवन चौपाई।।
इत उत घूमत मन नहि निधरकु ध्याननु पंथ पराई।।
पानी घुसा घरौंदा जाके बाहेर घूमत जीव देखाई।।
सबु दिशि निरखहू यहू बादरी झुंडनु दौड़ सुहाई।।
छत याकी अवनी सूखै ना सुखवन टरतै दिवसु सिराई।।
कबौ कबो मिलिहँय ना रोटी घरनी बहानै सुझाई।।
लरिकय घुमिहँय बागु बगैचनु जामुन आम चबाई।।
ढुरिहँय तनिक पवन जबु रैननि लरिकनु बागन धाई।।
चंचल सखियनु करैं बतकही बागन झुण्ड रचाई।।1।।
समय व लक्ष्य
महत्तव समय का अजीब बडो़ इहय हौं तुहँय समुझाई रहा।।
बिनु काज किये ना महान भवा केऊ बाति इहय बतियाई रहा
खाया औ सोया लडा़या तू गप्प इहय कैइके गडबड़ाई रहा।।
भाखत चंचल बाति कही निरा पशु जीवन जाई रहा।।1।।
अहार औ नींदु समान कहँयप्रजननु क्षमता समधारी कही।।
बुद्धि विवेकु बड़ो तुम्हरा यहिका सबु जीव जुझारी मही।।
लक्ष्य मना ना धर्या कबहूँ मनुआ ई तना तौ अकारथु ही।।
भाखत चंचल या तनुधारी जाने ना गाँव गिराँव सही।।2।।
निरधारण लक्ष्य करा मनमा औ ध्यानु लगाय के काजु करा।।
आलसि दम्भु ना आवै मना बतिया तनिका इ ख्यालु करा।।
अहंकार विनाशक मानो सदा सब मानव नाहि समानु धरा।।
भाखत चंचल याहि कहौं नहि नीचु केऊ नहि ऊँच धरा।।3।।
नेटवर्क बिसात बिछी जग मा जेहिपै महिला बहु ध्यानु धरैं।।
सीखैं जौउनु गुनवन्त धरा वहि आँचरू माहि समेटि धरैं ।।
तर्क वितर्क सुझाय नहीं वहू अमल मँहँय तनधारि धरैं।।
भाखत चंचल काव कही पुरूषाननु श्रेष्ठ समाजु वरैं ।।4।।
कबीर जी
चौदहीं मा दुई शेष रहाजबु जेठ कै पूनम दाखिल भा।।
आतप हाल बेहाल सबै मुल शीत कै आगम जाहिर भा।।
लाज कुलाज कै बाति हिया तबु जाय तडा़गु समागम भा।।
भाखत चंचल काव कहीजबु दम्पति कै शुभ आगम भा।।1।।
करूण पुकारु जौ कान सुनी तौ इत उत पंथु निहारबु भा।।
याहि अवाजु परी जबु नीमा तौ नीरू कै आँखि विलोकबु भा।
अंकु भरैं निज बालकु वै अरू लालन पाल दुलारबु भा।।
भाखत चंचल बातु लिखी घर मा किलकारी कै आउब भा।।2
खुशियाली हिया ना समात रही नित दम्पति लाड़ दुलार मिला
घर सून रहा वहि दम्पति कै घुटननु चलैं बाल सुचाल खिला।।
निरखैं परखैं हरखैं वै जना सुकुमार गुरू फिरू नाहि मिला।।
भाखत चंचल काव कही शिव धाम वहीं जबु राम मिला ।।3।।
माई
नदिया कछारे ऊँचो पर्वत निवास माई, जाको लालेलाल ध्वज नीको फहरा रही।।
घंटाघड़ियाल शंख मधुरमधु ध्वनि बाजे, झाँझ करताल ढोल मनवा मा भा रही।।
वेदमंन्त्र वाँचत नीको लागत बटुक जन, कहूँ ध्यानी ध्यानु देतु शोभा लरजा रही।।
भाखैं कवि चंचल मनावौं कर दुइनौ जोरि, माई मोरी नजरौ ना मोहे अरूझा रही।।1।।
द्वारे पै पुकारौं माई मधुरध्वनि बजाय बाजौ, माई मोरी अरजी मनवा काहै को ना भा रही।।
भक्तन उद्धार खातिन भूमि जो निवास कैलू, पण्डन दुःख खण्डन मा बेरी नाही भा रही।।
चंचल भक्त माई अजहूँ कबौ ना कृपा मिली, रस्ता भुलानिऊ माई याकि कछू खता रही।।
जाऊँगा ना दर तेरो याकि ये ठिकानो छाँडि़, आया प्रण ठानि माई जब लौं कृपा सही।।2।।
बन्धन
बन्धनु नीकु कबौ ना रहा गठबन्धनु कै फलु नीकु ना होई।।
कैद भवा पिंजरा शुक तौ वहिकय कस हालि वहय गति जोई
खान औ पान औ लाड़ दुलार कबौ वहिकय नहि किंचितु कम होई।।
भाखत चंचल आवै जौ यादु पूर्व समय बिसरातु ना सोई।।1।।
आदिनुकालु अजादी रही विदुषी जबु गार्गी अपाला रहीं।।
विद्योत्तमा याकि कही मैत्रेयी विरोधी नरोत्तम नाहि कही।।
मुल अऊतय विदेशिनु शासनु तै नित बन्धनु मा बँधती ही रही
भाखत चंचल ता समया तै गति तेहि नीकु कबौ ना रही।।2।।
शिशुकालु मा आश्रितु मातु पिता औ जवानी मा मालिक पूज्यपती।।
धावा बुढापा तौ मालिकु पूत कैइसा रहा बन्थनानु मती।।
कैसी दशा हमु काव कही मुल पुरुषसमाजु ना भानमती।।
भाखत चंचल नारी वही अरू वाकी दशा तू विचारू जती।।3।
अधिकार समान मिलै वहिका तौ तारे सितारे जमीनु पै लावै।।
लिखाई पढा़ई वा खेलु कबड्डी याकि क्रिकेटु मा नाव ऊ लावै।
क्षेत्र नही असु कौनौ सुहाय ई नारी नही जौ पारु ना लावै।।
भाखत चंचल हे नरश्रेष्ड भुलावौ जमानो पुरानौ ना लावै।।4।।
देखौ रिजल्टु तू याही पढा़ई यै बिटियै कसु टाप करी हैं।।
सेना सजीं रनखेतु डटी वै सैइकिलु लै जे जहाजु खरी हैं।।।
नर्सु कही हौं कही या चिकित्सकु याकि कही बहू खोजु करी हैं ।।
भाखत चंचल हे नरश्रेष्ठ बिटियै जे चावला नामु करी हैं ।।5।।
हे करतार
हे करतार करी विनती ई हिन्दुस्तान सुधार करा।।
मनयी तिनयी पशु पक्षी वदे तनी दीनदयाल तू ध्यानु करा।।।
सद्बुद्धि दिया नरमानव का यनमा तू दया कै प्रसार करा।।
बहुरावन पैदा किहा करुनानिधि यनहू कै कौनौ उपाय करा।
कहने का अजादी मिली सैतालिसु मुला ना मिली अजहूँ सबुका।।
केहु श्वानु ना दूध रुचै मनका केहु पूत हू आजु उपासनु का।।
केहुका धनधान्य देह्या बेसुमारकेहू ना देह्या कपडा़ तनका।।
अन्याय ना भान देह्या केहुकाकेहु ठोकर खाय रहा दरका।।
नारी कहैं अबला जगमामुल आधेकै भागिऊदार केह्या।।
नरभक्षी कही या कही भेड़हा मुल दानव मानव रूप देह्या।।
जगहाऔ जमीन हरैं बरजोरि भव्य भवन आलीशान देह्या।।
गरीबनु जीना हराम केहे यनही कै विधायक रुप केह्या।।
स्टेज तौ भाषनु नीकु मुला उतरेन तेही राक्षस रूप केह्या।।
खुद तौ ही विभूषित दानव भैअरु दानवरूपु विकासु करैं।।
कैइसो जो गये वै सलाखनु मा तौ वहीँ से वै सांसदु रूप वरैं।।
हे करतार दयो सद्बुद्धि अपराधी ना कैइसौ विधानु रचैं।।
मंत्री बनै महमंत्री बनै औ विधानुभवनु यै अशुद्ध मचै।।
जतने अपराधी औ माफिया हैं सबके सबुका बसु जेल खँचै।।
यै नेता नही अपराधी सबै यै संसद भवनु अशुद्ध जँचै।।
भाखत चंचलकाव कही अबु दीनदयाल तू शुद्ध सँचै।।
उठी चिंगारी
फलस्तीनु हमाम उठी चिंगारी दिशा इजराइल धाय चली।।।
आयरन डोम रचा जेहिकय वहिकय ना गलाई ही दाल गली।।
विरोधी रहे धुर एकदुजो मुल सोवत साँपु कै आँखि चली।।
भाखत चंचल काव कही डारी मिसाइल पतौ ना चली।।1।।
सोवतु बाघ जगाय दियौ तब तड़पतु हालि हौं काऊ कही।।।
आधा ही शहरू विलाइ गयो ऊ दशानु दशा नहि जात कही।
अमरीकौ कै चालु हु सफलु भयी इजराइल कै बौछारू बही।
भाखत चंचल देखि दशा अबु लागत जग दुई भागु सही।।2।।
नयनु गडा़ए है देखतु हिन्द औ पाक सियारू तौ जाय अँटी।।।
दुइ भागु मा लाग बँटा जग हू ईरान औ तुर्की हु जाइ सँटी।।।
अबु देखतु हिन्द दशानु इहय जबु मारू कोरोना रहा निपटी।
भाखत चंचल या करतारू ई यू एन ओ ना सकै डपटी।।4।।
हाल बेहाल लगै फलस्तीनु रहा अंन्दाज कबौ ना सही।।
रमजानु महीना जो पाक रहा तँह खून कै धारु गलीनु बही।।
भहराय परी तौ अँटारी अँटा लगै कैइसु बयारु विरूद्ध बही।।
भाखत चंचल या करतारू ना सोवत शेर जगाऊ सही।।5।।
आतंकगढी़ टर्की याकि पाक चाहै गाजा रहै या हमास कही।।
भारत कै ऐलानु यहय नहि साथी हयी जो भया नु सही।।
पाक तौ साथी अँटा हु तौ गाजा हमास अँटा जे रहा ना कही।।
भाखत चंचल या करतारू ई दुष्टनु कै यहु याहु सही।।6।।
नैतिक मूल्य
नैतिक मूल्य गिरे कतनेहौ हालि कैइसे तुँहका बतियाई।।
आफति याकु रही ई प्रकृति औ दूजिन जौनु है मानव जाई।।
जेलौ सुरक्षितु नाहि रहीयहिका हौं कौनिनु भाँति बुझाई।।
भाखत चंचल काव कही जबु रत्क्षक भक्षक रूप देखाई।।1।।
हालि कही चित्रकूट कै जेलि जहाँ पिस्टलु कै अवाजु सुनाई।।
एकु नही दुई तीनु मरे मुल आजु सवालु तुहँय समुझाई।।
जेलु अधीक्षक या स्टाफ रही करत काव ई कैइसु बताई।।
भाखत चंचल लगी सीसी टीवी क्यों बन्द रही नहि उत्तरू आई
सिस्टमु फेलु हुआ यहू देशु कि नैतिकता जो रसातलु जाई।।
मारे गये जनौ ठीकु कहाँ अपराधी मवाली बवाली कहाई।।।
मुल या करतारू ना आवै समुझ का यहू कलिकालु कै चालु कहाई।।
भाखत चंचल ना आवै समुझ ई मानव कहाँ कबु वासु सुहाई।
घर परिवारू ना पास परोसु नही जौ सुरक्षितु जेलौ बताई।।
बीबी औ बच्चे कहाँ ही सुरक्षितु पढ़न्यौ गये जबु आफतु आई।
हे करतारू भवा है ई काव लागै मच्छर माखी ई जनु समुदाई
भाखत चंचल काव कही असु होतु वही विधिना जो रचाई।।4।
काँपतु आजु शरीरू करेजू औ लागतु तीसरु युद्ध समाई।।
मुस्लिम और यहूदी भिडे अस लागत मुस्लिम अंत देखाई।।
फसिलु उगाई औ काज जौनु किहे काटन वारू गयौ नचुकाई
भाखत चंचल कैइसु दशा ई पुरूषनु अऊर प्रकृत्ति देखाई।।5
आवतु बातु सुनी जेसु पाक तौ बाति वही कै ना समझै मा आई।।
इजराइल देशु खडा़ भुजदण्डनु जग मुस्लिम देशु सत्तावनु भाई।।।
मिलिके लडै़ सबु देशु मुला वहिकय ना तबौ केऊ पीठि लगाई।।
भाखत चंचल पाक बकै बसु मिनिटु मा बारहु देऊँ उडा़ई।।6
हंस औ बाज कपोत उडे़ मुल आजु गँड़ूलरि धाकु जमाई।।
दाना ना पानी घरै मा अँटै मुल जंगु को जीतन खेतनु जाई।।
थाम्हि कटोरा घूमै यहु देशनु भीखु ना देनु का कोऊ देखाई।।
भाखत चंचल आवै हँसी वहू इजराइल धौंसु जमाई।।6.।।
माह जो आवतु
माह जो आवतु नीकहु जेठ गरीबनु गाँव मजा करिहैं।।
घूमिहैं केहु केहु शादी वियाहु औ बागनु बीचु हवा मिलिहैं।।।
आमु गिरैं जँहु भाँति कैइव अरू भिन्नन भिन्न स्वादु लेवैहैं।।
भाखत चंचल काव कही अबु ख्यातनु पाँसि सबै डरिहैं ।।1।।
किसानु केऊ छोडि़हैं बेरनिऊ औ धान कै खेत तयार करैंहै।।
गेंहू तौ काटि धरें जो भुसैलनु बीजहु धानु कोठारी हटै़ंहैं।।
छानि औ छापर छैइहँय केऊ केऊ कंडा भुसैला तयार करैहैं
भाखत चंचल काव कही अबु घूमबु छाँडि ऊ खेती करैंहैं।।2।
ख्यातनु दूबि खनाई करैं अरू खर पतवारू निकारि धरैंगे।।
गाय औ भैसिऊ दूध निकारिनिकारि के हाटु बजारू बेचैंगे।।
गरीबी हटैगी जो खेती बने सरकारू हजार जौ सिक्स मिलैंगे।
भाखत चंचल मेहनतु के बलु जैविक खेती किसानु करैंगे।।3।
गिरिहँय आम मधूपनू बीजु औ जामुन कालि गुलालु गिरैंगी।।
धावै पवन करि झोंका जो राति तौ झोलनू साथु ऊ बाग भिरैंगी
उठि भिनुसारू बिनैंगे ऊ जामुन आसव नीकनु नीकु धरैंगी।।
भाखत चंचल नीकु मजा फल कटहलु खूब बजारू बिकैंगी।।
प्रकृति
याकु तौ मारू कोरोना चलै अरू दूजो तुफानु उठय अँगिराई
तीजौ युद्ध लगे निहचय जेहिमा तो फलस्तीनु परा भहराई।।।
सबु मुसलिमु देशु विचारु करैं इजराइल भेजू रसातलु जाई।।
भाखत चंचल दीनदयालु ई कैइसु विकास धरानु देखाई।।1।।
राकेट अऊर दगै जौ मिसाइल नारी नरौ सबु बालु बताई।।।
कँह रमजान रहा अरू माधव पाक महीना मा युद्ध रचाई।।।
कतनेन जीव कोरोना मरे अरू जीव विनाशकु युद्ध देखाई।।।
या करतारू दयो सद्बुध्दि ई कवनु बवालु धरानु पै आई।।2।
अबै आवै जौ माह ई जेठु असाढु तौ इन्द्र धरानु हु आफतु लाई।।।
सगरी नदियानु बहैगी ऊफानि औ वारिधि लहरू अकाशनु जाई।।।
कहूँ बाढ भयानकु रूप धरै अरू बूँद धरानु कतौ नहि आई।
भाखत चंचल कारनु याहिव जीव इहै सरकारहू लाई।।3।।
जो वृक्षानु रहे ई धरानु तँहा अबु रोड अँटारी सुहाई।।
चंचल चील औगिद्ध गौरैय्या उठाई लयो यहू टावरु लाई।।
प्रकृति विनाशु जौ जीव करै तौ कोपि गयी इहौ प्रकृतिऊ भाई
कहूँ कहूँ बाढ दिखै विकरालु औ कहूँ भुँईडोल मकानु ढहाई।
आपदा
हे करतारू ई सृष्टि तोहारू जँहा कर हालु विचित्र देखाई।।
कहूँ कहुँ मारु कोरोना बेहालू और कहूँ तूफानु है आई।।
ई तौ रही प्राकिरतिकु मारू मुला ई धरानु हौं काव गनाई।।
भाखत चंचल दीनदयालु युद्ध शुरू दुई देशु बताई।।1।।
नाशु भयो है हमास जो गाना इजरैलहु मा बहु जान नसाई।।
एकु रहे कल तक जो मुसलमानु आजु धडा़ दुई माहि जनाई।
दुइनौ भिडे़ यहु नीकु कहाँ मुल चीनो अमेरिका युद्ध गनाई।।
भाखत चंचल दीनदयाल ई कैइसु दुर्बुद्धि जहानु बताई।।2।।
ग्रीसम कै रितु माधव मासु मुला झरि लागि मघा कसु नाईं।।
होतु सुबेरु घमण्ड घटा चढिँ औरू धरानु है बूँदि जनाई।।
लाग झरी बरसातु शुरू अबु ताप ना भाप हवा सुखदाई।।
भाखत चंचल काव कही विरूद्व प्रकृत्ति धरानु जनाई।।3।।
बाल औ नारी प्रसन्न भये औ प्रसन्न किसानु हौं काव बताई।।
खेतै कै घासु औ खर पतवारू जो नासनु हेतु जुगाड़ लगाई।।
घाम भये जुटिहँय अबु वै अबु ख्यातनु दूबि करैंगे खनाई।।
भाखत चंचल लागत ई जसु भयीलु हमास ऊ दूबि जनाई।।4।
विधाता कै लेखी विचित्र बडी़ कल होवैगो काव समुझि नहिआई।।
मानव नाशु कर्यौ जसु जंगलु काटि पहारू अवासु रचाई।।
छेनी हथौडी़ तै काटे नहीं बम औ बारूदनु काटि बहाई।।
भाखत चंचल जीव नसै पशु पक्षी नसै जबु टावरू आई।।5।।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी ‘चंचल’
ओमनगर, सुलतानपुर, उलरा, चन्दौकी, अमेठी, उ.प्र.
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