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उल्लंघन (Violation)
Violation: अभी सुबह के ७ बजे ही थे कि मैंने मेरे गर्दन पर एक जाने पहचाने हाथो को बढ़ते हुए देखा। ये क्या ये तो निशांत भैया थे। मेरे दूर के भाई बहुत अच्छे है। मेरा बहुत ख्याल रखते है। जब भी आते है मेरे लिये चाकलेट लाते है और मुझे अपनी गोद मे बैठा कर खिलाते है जैसे मैं उनके लिये आज भी ८ साल की गुड़िया ही हूं। लेकिन उनके गुड़िया कहने से ये मतलब था मुझे बिलकुल नही पता था। उनके हाथ जान- बूझ कर मेरी गर्दन की तरफ आ रहे थे जैसे वो मेरे साथ कुछ गलत करना चाह रहे थे।
हां सही कहा वो मेेरे साथ वो करने जा रहे थे जो अंदर से मुझे झकझोरने वाला था। वो मेरे इज्जत के साथ उल्लंघन करने वाले थे। मैं वहा बेबस नींद का नाटक किये हुए पड़ी थी। फिर अचनाक मेरे अंदर की नारी ने आवाज़ दिया ये क्या कर रही हो प्रिया तुम खुद के साथ – साथ और लोगो की ज़िंदगी बर्बाद कर रही हो। तुम्हे समझ नही आ रहा वो तुम्हारे साथ क्या करने जा रहे है। फिर मैने उस गंदगी से बाहर निकलने के लिये खुद को जगाया और स्कूल जाने के लिये तैयार हो गई।
दिन भर मेरे मन मे यही सब चल रहा था की मैं ऐसा क्या करूं जिससे कि भैया को समझ आये। जो कुछ भी वो मेरे साथ करना चाह रहे थे वो गलत था। मै ये सब सोच ही रही थी। तभी हमारी क्लास मे हमारी नयी टीचर आई जिन्होंने ऐसा विषय चुना हमे पढ़ाने के लिये जो मेरे सारे सवालो का जवाब दे गया। उस विषय का नाम था “बलात्कार”। हां ये वही विषय है जिससे मैं अभी बाल – बाल बची हूं और इस उधेड़बुन मे लगी हूं कि कही ये चीज फिर से ना दोहराई जाये जैसे -जैसे मेरे टीचर की कहानी आगे बढ़ती जा रही थी। वैसे – वैसे मेरे सवालो के जवाब भी मिलते जा रहे थे। अब मुझे पता था। मुझे अपने भैया को कैसे समझाना है।
मैं स्कूल से घर पहुँची तो भैया अपने घर लौटने वाले थे। लेकिन मुझे उनकी गलती का एहसास कराना जरूरी था। क्योंकि मैं नहीं चाहती थी, ये गलती वो मेरे साथ या दुबारा किसी और के साथ दोहराएं इसलिये मैने उन्हे ज़िद करके एक दिन के लिये रोक लिया। मेरा परिवार बहुत बड़ा हैं और हर शनिवार हमारे लिये कविता और कहानियों की रात होती है। और आज की रात मेेरे लिये बहुत खास थी। आज की रात के लिये मैं बहुत ज्यादा उत्साहित थी। सभी ने अपनी कहानी और कविता कही। अब बारी मेरी थी कहानी सुनाने की ।
भैया मेरी तरफ बहुत उत्साहित हो कर देख रहे थे। मेरी कहानी ज्यो- ज्यो आगे बढ़ रही थी त्यो -त्यो मेेरे भैया की आँखे नम हो रही थी। उस कहानी मे मैने वो सारी बाते कह दी। जो मेेरे आत्मविश्वास को तोड़ रही थी। लेकिन भैया की आँखों की नमी से येे पता चल गया था के उन्हे अपनी गलती का एहसास हो गया है। अगली सुबह भैया की ट्रेन बंद थी तो उन्हे हमारे घर ही रुकना पड़ा उन्होंने अपनी आत्मग्लानि भरी नजरो से मुझे अपने पास बुलाया और कहा गुड़िया एक कहानी मैं तुम्हे सुनाऊं। मैं डर गई मुझे लगा मेरी कहानी का इन पर कोइ असर नही पड़ा। लेकिन ऐसा नही था। उन्होंने अपनी कहानी को इस प्रकार सुनाया जैसे वो अपनी हरकतो पर शर्मिंदा है।
उन्होंने एक लाईन कही थी जो मुझे आज तक याद है। अच्छा इंसान वही है जिसकी आदत मे चोरी हो लेकिन फिर भी वो चोरी ना करे येे सोच कर येे तो मेरा खुद का घर है। उस वक़्त के बाद से मेरी ज़िन्दगी पूरी तरह बदल गई । आज मै महिला सशक्तिकरण की अध्यक्ष हूं और लोगो को गलत और सही का फर्क बताती हूं , लोगो को समझाती हूं कैसे हमारा दिमाग हमे अपना गुलाम बना लेता है और हम वो कर देते है जो हमे नही करना चाहिए होता हैं।
रचना दीप
झारखंड
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