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आगजनी और हिंसा (arson and violence) सभ्य समाज को अंधकार में ही धकेल रही है…
arson and violence: सेकुलरिज्म के सुरमा अब मुह में दही जमा कर बैठे है…..
मुझे राजनीति पर लिखते और राजनीति को समझते हुए लगभग डेढ़ दशक से ज्यादा का समय हो गया है।इस दौरान एक राष्ट्रीय अखबार के बंगलौर संस्करण में सम्पादकीय विभाग में काम करने का अवसर भी मिला औऱ तब से मैंने राजनीति औऱ समसामयिक विषय पर लिखना शुरू किया औऱ तब से लगाकर अब तक कई राजनेताओं व उनके कार्यकर्ताओं से मिलने का अवसर भी मिला औऱ लिखने का अवसर भी मिला। वर्तमान में मैं सक्रिय पत्रकारिता में नहीं हूँ फिर पत्रकारिता मेरी आत्मा है यहीं आत्मा मेरे अंदर चेतना जगाती है औऱ उसी आत्मा के बलबूते पर बेबाकी से अपनी बात भी लिखता हूँ औऱ सार्वजनिक पटल पर रखता भी हूँ। स्वाभाविक है कि जब आप बेबाकी से बात रखोंगे तो आलोचना होगी ही।
खैर जो भी हो दैनिक जीवन में आपको आलोचना का सामना भी करना भी होता है। कई पत्रकार साथी नफरत औऱ आलोचना के शिकार होते है पर वो उसे अमृत मानकर स्वीकार करते है।जब कोई पत्रकार साथी बोलने के लिए माइक अथवा लिखने के लिए कलम उठाता है तो मानसिक रूप से मानकर चलता है कि दो से शाबाशी मिलेगी तो दस से आपत्तिजनक शब्द भी सुनने को मिलेंगे। खैर मैं विषय से भटक रहा हूँ और ऐसा कर रहा हूँ तो यह आप लोगो के साथ अन्याय है। पुनः विषयवस्तु पर लौटता हूँ। मैं बात राजनीति की कर रहा था तो मैं मेरे अनुभव के आधार पर यह बात कह सकता हूँ कि राजनीति में राजनेताओं की राजनीति का जो तरीका है लगभग सबका समान ही है। दलों के नाम अलग अलग हो सकते है कहने को विचारधारा, सिद्धांत अलग हो सकते है।
कभी कभी राजनैतिक दल नैतिकता का उपदेश भी देते है पर हकीकत कुछ अलग ही है। सच्चाई तो यह है कि राजनीति में नैतिकता औऱ राजनीति दोनों एक साथ रह ही नहीं सकती। दोंनो समुद्र के अलग अलग किनारे है जो कभी भी साथ नहीं मिल सकते यह आप और हम अच्छी हम तरह से जानते है। अब अगर हमें राजनीति में नैतिकता औऱ राजनीति को समझना है तो हमें ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। राजस्थान के करोली में हुई आगजनी के परिदृश्य को ही देख कर इसको गहराई से समझने की कोशिश करें तो आसानी से समझ में आ जायेगा। मैं भी कोशिश करता हूं समझाने की सायद समझ में आ जाये…………….
इसी माह लगभग एक पखवाड़े पूर्व करोली में हिन्दू नववर्ष की शोभायात्रा निकलने पर जो पथराव हुआ वो मंजर सबने देखा और यह भी सबने देखा कि पहला पत्थर कौनसी दिशा से आया था पर मजाल है कोई उनकी ओर इशारा करके यह कह दे कि उन्होंने अपनो के साथ गद्दारी की है। मैं भी अपने शब्द का प्रयोग करके अपने शब्द को ही अपमानित कर रहा हूं पर अपने इसलिय कह रहा हूँ की रैली में जो लोग थे वो आसपास के ही थे। शोभायात्रा में हो सकता है कुछ आपत्तिजनक नारेबाजी हुई हो औऱ हुई भी होगी औऱ सभ्य समाज कभी भी इस कृत्य को जायज नहीं ठहराता है पर उसका जवाव पत्थर से देने के तरीके को भी उचित नहीं ठहरा सकते।
दुःख इस बात का है कि सरकार उस रैली को ही धार्मिक उन्माद फैलाने का दोषी मानकर अपने बचाव का तरीका अपना रही। अफसोस इस बात का भी है कि पथरीले लोगों ने पत्थर का सहयोग लिया। धर्म निरपेक्षता के सुरमा एक बार भी यह नहीं कह सके कि पत्थर फेंकने वालो ने गुनाह किया है।पत्थर छतों पर इकठ्ठे एक योजना के तहत ही रखे जा सकते है यह आम नागरिक भी आसानी से समझ सकता है। निर्लज्जता और तुष्टिकरण से भरी राजनीति की चादर ओढ़े सेकुलरिज्म के सुरमा पत्थर फेंकने वालो की बजाय पत्थरों का वार झेलने वालो को ही बदनाम करने लगें है। अब आप बताए नैतिकता का कही नामो निशान रहा क्या ?
तथाकथित गाँधी वादी सोच के लोग तो पत्थर फेंकने वालो से दो कदम आगे निकल कर देश के प्रधानमंत्री औऱ गृह मंत्री को ही दोष देने लगे। मुझें समझ में नही आता है की एक प्रदेश के मुखिया प्रदेश के असामाजिक तत्वों को नियंत्रित नहीं कर पाने की कमजोरी को स्वीकार करने की बजाय दूसरों पर दोषारोपण का सहारा ले कर बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।उपदेश तो देते है कि गलती कीमत माँगती है जब खुद पर बात आती है तो गलती दूसरों में नजर आती है।यही राजनेताओं का दोगलापन लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है।
शोभायात्रा पर जिस भी असामाजिक तत्वो ने हमला किया और जिस प्रक्रिया के साथ किया अगर समय रहते ऐसे लोगों के खिलाफ सभी धर्मो व वर्गो के लोग साथ नहीं आये तो इनके हौसले बुलंद हो सकते है। एक प्रदेश के मुख्यमंत्री जो स्वयं गृह मंत्रालय भी संभालते हो वो केंद्र से शांति की अपील की माँग करते हो तो प्रदेश की जनता कितनी सुरक्षित है इसका अंदाजा आप स्वयं लगा सकते है। करौली में हिन्दू नव वर्ष पर आयोजित शोभायात्रा में जिस तरह से पथराव हुआ औऱ उसके बाद सरकार का जो रवैया रहा वो प्रदेश की जनता ने बिल्कुल देखा।सरकार खुद के पास कोई बचाव का तरीका नहीं रहा तो भुड़ का ठीकरा विपक्ष पर फोड़ कर बचने का अच्छा रास्ता निकाला है……….. और यह रास्ता हर सत्ताधारी दल अपनाता है इसमें कोई दोराय नहीं…. हो सकता है मेरे इस विचार से कोई सहमत नहीं हो। आपकी सहमति और असहमति सर आँखों पर ……….
सरकार का तर्क है कि भाजपा औऱ आरएसएस वालों ने आग लगाई, मुख्यमंत्री ख़ुद कह रहे है भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आग लगाई तो देर किस बात की ।आम नागरिक से छोटा सा गुनाह होने पर घर से उठा कर सलाखो के पीछे धकेल देते है फिर इन लोगों के प्रति नरम रवैया क्यो…. आपने कौनसी धाराओं के तहत इनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया यह सार्वजनिक करना चाहिए …… क्या भाजपा की तरह आरोप ही लगाते रहेंगे जैसे वो 2014 से पहले मनमोहन सरकार पर लगाते थे पर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही कितनी हुई सबको पता है।
मुझे लगता है कि राजनैतिक दलों को आरोपो की राजनीति रास आ रही है बस पीस रही है तो बेकसूर जनता…..कुछ लोग तो नफरत के गहरे गड्ढे में इतने दुबे है कि शोभायात्रा को ही गलत ठहरा रहे है। कुछ दल तुष्टिकरण के मोह में इतने डूब चुके है उनको भान भी नहीं है कि पहला पत्थर आया कंहा से था औऱ हम कर क्या रहे है। हिन्दू सनातन संस्कृति में सहिष्णुता की दाद देनी होगी कि पत्थर खाने के बाद भी गजब की सहनशीलता का परिचय दिया। कुछ लोगों को घर से उठा उठा कर गिरप्तार कर लिया लेकिन छद्दम धर्मनिरपेक्षता का ढिंढोरा पीटने वाली पार्टी के पार्षद महोदय जी अभी भी फरार है।
अगर मैं यह कहूं कि सायद दिल्ली से पथराव के पत्थर को रखने व पथराव करने के तरीके का प्रशिक्षण प्राप्त किया होगा तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होंगी क्योंकि दिल्ली दंगों में हुए पथराव के तरीक़े में और करोली में हुए पथराव में ज्यादा कोई अंतर नहीं है……. खैर इस पथराव से तथाकथित ग़ांधी वादी सरकारों के चेहरे से भी नकाब उतर गया। वोटो की राजनीति होनी चाहिए पर हिंसा को पनाह देकर जो राजनीति हो रही है वो लोकतंत्र के लिए घातक है। वो किसी भी राजनैतिक दल की तरफ से हो…
मैं तो यही कहूँगा की हमें पथराव करने वाले पथरीले लोगों से बचने की जरूरत है औऱ आपसी भाईचारे व तालमेल बिठाने की जरूरत है इस पर ध्यान दिया जाए तो देश और प्रदेश दोंनो का भला होगा। कोई भी मजहब आपस मे वैर रखना नहीं सिखाता पर राजनेताओं की जहरीली भाषा जरुर वैर के बीज बो देते है वो बीज जब पनप कर नफरत की खेती में बदल जाते है तब हर तबके के लिए नुकसानदेह है। यह हिंदुस्तान के लिए घातक है।
गुलाब कुमावत ‘खिमेल‘
सांचौर, जालौर,
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