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वट सावित्री पूजा (Vat Savitri Puja)
वट सावित्री पूजा (Vat Savitri Puja)
हाँ मैं आपकी लंबी उम्र की कामना करती हूँ,
इसी लिए तो आपके लिए बट सावित्री व्रत रहती हूँ,
सत्यवान सहित सावित्री की पूजा (Vat Savitri Puja) करती हूँ, साथ में
रक्षा सूत्र से आप पर आने वाले हर काल से मेरा सामना
पहले हो यहीं तो बट देवता से मांगती हूँ,
कोई भी काल अगर आपकी ओर बढ़े तो रास्ते में मैं
उसे खड़ी मिलूं, यहीं तो बट देव से प्रार्थना मैं करती हूँ,
वो मुझे हरा कर वैसे ही उल्टे पैर लौट जाए, जैसे देवी
सावित्री से यमराज, यही तो वर मैं वट देव से मांगती हूँ,
भेंट के रूप में वह मुझे सदा सुहागन
और आपके आखिरी सुंदर का हकदार
हमें आखिरी वक़्त में बनाए यहीं तो
वरदान मैं वट देव से मांगती हूँ,
सोलहों सिंगार कीये मैं जाऊँ, और आप हमारे अर्थी को
कंधा लगाए, यहीं तो मैं वट देव से वरदान मांगती हूँ,
आधुनिकता की होड़
आधुनिकता की होड़ में संस्कार और अपनी संस्कृति भूल रहें हैं!
कैसे शिक्षत हैं हम,अपनों को कष्ट पहुँचा,
गैरों को खुश कर रहे हैं हम,
जिस देश की संस्कृति को विदेशी अपना रहें हैं,
और कितने मूर्ख हैं हम की पश्चात सभ्यता को
हम अपने अंदर समा रहे हैं…
विदेशों में सम्बंध विच्छेद परंपरा का प्रचलन था,
भारत में तो डोली उठी और अर्थी सजी का संस्कार हैं,
जिसे आज विदेशी भी सराह रहे हैं और हम कैसे
संस्कार अपना रहे हैं।
कुछ हद तक ज़िम्मेदार माता-पिता भी हैं जो बेटी
बेटे को शिक्षित तो कर देते हैं, स्वाबलंबी तो बना
देते हैं, पर संस्कार देना भूल जाते हैं, सुख दुख तो
धूप छांव है ये बताना भूल जाते हैं, सिर्फ माँ बाप
बच्चों की सुख की कल्पना ही उन्हें दिखाते हैं,
अगर ऐसा होता तो महलों की राजकुमारी थी सीता,
राजकुमार से ही व्याही गई थी, उन्हें वन-वन ना भटकना
पड़ता और कांटों पर ना सोना पड़ता है, आजकल के माता-
पिता बीटेक, एमबीए तो करा देते हैं, पर बच्चों को महाभारत
रामायण अपनी संस्कृति पढ़ाना भूल जाते हैं,
जो पहले बच्चों को दादी नानी महाभारत रामायण गीता
सुनाया करती थी जिससे बच्चों में संस्कार हमारे भारतीय
विद्यमान रहते थे, आधुनिक बनाइए विचारों से पर अपने
बच्चों को जोड़ें रखिए संस्कारों से,
मनीषा झा
सिद्धार्थनगर
यह भी पढ़ें-
१- मानवता
२- माँ का कमरा
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