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बेरोजगारी (Unemployment)
देश में पहले से ही धी,
कितनी-बेरोजगारी (Unemployment)-
युवा पीढ़ी फिरती थी मारी मारी।
कोरोना के चलते चलते,
महामारी से बचते-बचते-
रोजगार गये सारे के सारे।
शिक्षा-परीक्षा भूल गये,
बेरोजगारी (Unemployment) में-
युवा फिरते मारे-मारे।
जिन्हें मिले थे रोजगार,
वह भी बैठे है घर पर-
हाथ पर हाथ धरे।
जिनके बचे रोजगार साथी,
उनको भी मिलता वेतन-
आधे-अधूरे।
सरकार की कोई योजना नहीं,
बहार निकल कर कुछ होना नही-
युवा तो है हारे के हारे।
मुश्किले अभी बढ़नी है,
सोचो कुछ तो करो-
बेरोजगारी (Unemployment) को मिटाने का संकल्प करें॥
अग्नि-परीक्षा
अग्नि-परीक्षा है पग-पग जीवन सारा,
क्यों-तू ख़ुद से हारा-
सत्य-पथ चलकर ही मिलेगा सहारा।
भटके न जीवन-पथ से साथी,
सद्कर्मो संग चल कर ही-
मिलेगा जीवन को किनारा।
दूर नहीं मंज़िल अपनी साथी,
छोड़े न अपनत्व की डोर-
विश्वास ही बनेगा तेरा सहारा।
हार कर भी हारे न जो साथी,
करता रहे प्रयास-
चमकेगा उसका सितारा।
अग्नि-परीक्षा है पग-पग जीवन सारा,
क्यों-तू ख़ुद से हारा-
सत्य-पथ चल कर ही मिलेगा सहारा॥
पूनम की रात
पूनम की रात सखी,
बैठी सागर कीनारे-
देख रही उस पार।
कब-से गये साजन परदेश,
देखे राह उनकी-
सोचे लौट ही आये इस बार।
प्रभु करे कामना हो उसकी पूरी,
मानेगी वह तो-
उनका असीम आभार।
छाई बदली आसमान में,
छिपा है उसमे चाँद-
बदली से झाँका रहा उस पार।
दूर क्षितिज पर उभरी नाव,
देती मन विश्वास-
ज़रूर आयेगे साजन इस बार।
रोज आती बैठ सागर कीनारे,
करती प्रभु से प्रार्थना-
सुन ले उसकी पुकार।
पूनम की रात सखी,
बैठी सागर कीनारे-
देख रही उस पार॥
कैसे-है हम?
मन करता साथी अपना,
बार-बार हमसे-
कैसे-है हम?
जन्म दिया जिसने हमें,
अब उसको न पहचाने-
कैसे-है हम?
किया पालन पोषण जिसने,
उसको भी न माने-
कैसे-है हम?
दिये संस्कार भूल गये,
अपनत्व को न पहचाने-
कैसे-है हम?
स्वार्थ की धरती पर,
बनाये सम्बंध-
कैसे-है हम?
पाया जिनसे सब कुछ,
उनको ही भूल गये-
कैसे-है हम?
प्रभु भक्ति में भी बसा स्वार्थ,
मिले सुख ही सुख-
कैसे-है हम?
परमार्थ की कभी सोची नही-
स्वार्थ कभी भूले नही-
कैसे-है हम?
संस्कृति
जीवन में संस्कृति और संस्कार,
मिलते है-साथी-
हमें विरासत में।
ये तो हमें देखना होगा,
समय के साथ-
आये न विकार जीवन में।
मनाएँ अपने तीज़ त्यौहार,
परम्परागत तरीके से-
निखर आयेगी संस्कृति जीवन में।
संस्कृति ही है हमारी जो,
पूजे जाते वृक्ष पीपल भी-
हमारे देवालय में।
पर्यावरण की चिन्ता रही,
हमारे पूर्वजो को-
यही तो संस्कृति है जीवन मे।
संयुक्त परिवार विरासत हमारी,
तभी तो जाने मोल अपनत्व का-
साथी इस जीवन में।
निखरती रहे संस्कृति हमारी,
यही इच्छा है-
साथी इस जीवन में॥
रोटी
रोटी तो रोटी है साथी,
बिन रोटी के-
होता नहीं गुज़ारा।
बिन रोटी के तो साथी,
मिटती नहीं भूख-
होता नहीं कोई सहारा।
दो रोटी के लिए ही तो,
हर इंसान साथी-
फिरता है-मारा-मारा।
दो रोटी के लिए ही तो,
साथी छूट जाता-
घर बार और अपनो का सहारा।
चार दिन देनी पडे़ रोटी, जो अपनो को-
अपने ही कर लेते है कीनारा।
रोटी तो रोटी है साथी,
करें इसका सम्मान-
तभी बनोगे अपनो का सहारा।
रोटी तो रोटी है-साथी,
बिन रोटी के-
होता नहीं गुज़ारा॥
आत्मविश्वास
अपनत्व की धरती पर ही,
पनपता है-विश्वास-
यही बनता आत्मविश्वास।
आस-विश्वास संग ही साथी,
चले जो साथी-
जीवन में अपनत्व का हो वास।
छोड़ चले जो संग साथी,
टूटने लगता जीवन का-
अपना आत्मविश्वास।
आत्मविश्वास से ही जीवन में,
मिलती सफलता-
साथी रखना विश्वास।
चलते रहना संग साथी,
मिलेगी मंज़िल-
रखना विश्वास।
प्रभु भक्ति और सद्कर्मो से ही,
होता जीवन में-
दृढ़ आत्मविश्वास।
अपना बन जब छलता साथी,
टूटने लगता-आत्मविश्वास॥
रास्ते
रास्ते तो सीधे थे साथी,
मगर उन पर-
जीवन में चल न सका।
सत्य-पथ चल भी साथी,
इस जीवन में-
अपनत्व पा न सका।
भटकते जो क़दम मेरे साथी,
जीवन में इसको-
मैं सह न सका।
साथी-साथी बन साथी,
छलता रहा जीवन में-
किसी से कह न सका।
साथी साथी होता साथी,
बिन साथी जीवन में-
अकेला रह न सका।
रास्ते तो सीधे थे साथी,
मगर उन पर-
जीवन में चल न सका॥
धूप-छाँव
धूप-छाँव-सा जीवन साथी,
छाई जो ग़म की बदली-
उससे से तो निकलना ही होगा।
सुख-दु: ख भी तो धूप-छाँव से,
उन्हें तो जीवन-
मानना ही होगा।
सर्दी में भोर की धूप,
गर्मी में घने नीम की छाँव-
मन को अच्छी लगने लगी।
धूप-छाँव से जीवन में,
कितने मिले बिछुड़े-
ये भी तो समझना होगा।
कैसा-भी हो जीवन सपना,
खुली आँखो से भी देखना होगा।
अपनत्व की धरती पर साथी,
अपनो को सम्मान देना होगा।
धूप-छाँव-सा जीवन साथी,
छाई जो ग़म की बदली-
उससे तो निकलना ही होगा॥
मन बंजारा
मन बंजारा भटकता रहा,
पाने को सुख-
साथी अपनो में।
फिर भी पीछा न छोड़ा,
जीवन में छाये-
गम के सायो ने।
संग-संग चल कर भी,
पाया न संग-
साथी छूटा स्वार्थ में।
मैं-ही-मैं संग चलता रहा,
भटकता रह मन-
बंजारा बन जीवन में।
मन की मन ही जाने,
जाने न कोई और-
बाकी सब लगे अनजाने से।
मन बंजारा साथी जीवन में,
ढूँढ रहा साथी-
अनजानो में।
मन बंजारा भटकता रहा,
पाने को सुख-
साथी अपनो में॥
नज़राना
तुमसे मिलना ही जीवन में,
समझना तुम-
मेरे प्यार का नज़राना।
फिर भी लेकर आया मैं तो,
फूलों का गलदस्ता-
समझना मेरे प्यार का नज़राना।
महकते इन फूलों की ख़ुशबू से,
मद्होश होकर-
तुम न इतराना।
प्यार तो प्यार हौता है साथी,
इसमें स्वार्थ नहीं होता-
इतना तुम समझ जाना।
मन आँगन में खिलते रहे फूल,
जीवन में आये न कोई शूल-
हो भूल मुझसे भूल जाना।
तुमसे मिलना ही जीवन में,
समझना तुम-
मेरे प्यार का नज़राना॥
रामधारी सिंह दिनकर
राम धारी दिनकर जी,
आधुनिक कवि के रूप में-
साहिय जगत में छाये।
अपनी ओजस्वी रचनाओं से,
देश में देश भक्ति की-
उन्होने अलख जगाई।
बिहार में जन्मे वह महाकवि,
अपनी ओजस्वी रचनाओं से-
राष्ट्कवि कहलाये।
साहित्य जगत में अपनी,
एक अलग ही-
पहचान बनाये।
महान राष्ट् कवि के जन्म दिवस पर,
शत्-शत् नमन करे-
जीवन सार्थक कर जाये।
उनकी रचनाओं को पढ़े-पढ़ाये,
जीवन सार-
जीवन में अपनाये।
रामधारी दिनकर जी,
आधुनिक कवि के रूप में-
साहित्य जगत में छाये॥
ज़ुल्फ़
संवारती रही ज़ुल्फ वह तो,
देखा जो आइना-
ज़ुल्फ़ो में घिरा चेहरा तेरा।
लगता है जैसे बदली में,
छिपा है-
चाँद मेरा।
जरा-सी हटी ज़ुल्फ़े तेरी,
लगा बदली से-
झाँक रहा चाँद मेरा।
चेहरे से हटाई जो ज़ुल्फ़े,
बाँधी उनको निकला चाँद-
और चाँदनी से भर गया घर मेरा।
छू कर जो देखा उनको,
उनमें तो बसा था-
प्यार मेरा।
तेरी ज़ुल्फ़े के साये में,
गुज़ार दी ज़िंदगी सारी-
क्या-रहा तेरा मेरा?
रात बढ़ने लगी
दिन घटने लगा पल-पल,
रात बढ़ने लगी-
मौसम बदलने लगा।
बदलते मौसम का रखना ख्याल,
नहीं तो होगा बुरा हाल-
दिन बितेगी न रात।
सम्भल कर रहना तुम,
चलना तुम साथ-
सपना नहीं सत्य होगी बात।
भोर के उजाले के संग,
भाने लगी धूप-
घटने लगा दिन बढ़ने लगी रात।
देखे स्वप्न सुनहरे साथी,
सच हो सपने अपने-
ये हो बढ़ती रात की सौगात।
घटने लगी तपिश गर्मी की,
गर्मी से मिली राहत-
अब रात बढ़ने लगी॥
मातृभाषा
हिन्दी का नित दिन करे प्रयोग,
हिन्दी का बढ़े-
पग-पग सम्मान।
मातृभाषा बने राष्ट्भाषा,
कही पर भी साथी-
हो न इसका अपमान।
हर दिन हो हिन्दी दिवस,
क्यों-मनाये अलग से-
बना रहने दो इसका सम्मान।
एक दिन मना कर हिन्दी दिवस,
भूल न जाना इसको-
होगा अपना और हिन्दी का अपमान।
हिन्दी सम्पर्क भाषा बन,
हर हृदय में बसी-
तभी कहते हिन्दी-हिन्दी हिन्दुस्तान।
भाषाएँ और भी अच्छी है,
सीखे बढ़ाएं-
अपना ज्ञान बने महान।
मातृभाषा बने राष्ट्भाषा,
कही पर भी साथी-
हो न इसका अपमान॥
गुज़रा कल
आज जो बीत गया साथी,
वही बनता है-
जीवन का गुज़रा कल।
न चिंता करे आने वाले कल की,
न अफ़सोस करे-
साथी जीवन में बीते कल की।
कर सके तो करे चिंता,
इस जीवन में-
मिले आज की।
सद्कर्मो से सींचे जीवन को,
फिर चिंता होगी न कभी-
गुज़रे कल की।
बेहतर होगा जीवन साथी,
स्वागत करे मिल कर-
आने वाले पल की।
सार्थक होगा जीवन सारा,
कभी चिंता न होगी-
साथी कल की।
आज जो बीत गया साथी,
वही बनता है-
जीवन का गुज़रा कल॥
गाँव की ख़ुशबू
शहर की थका देने वाली,
भीड़-भाड़ से-
साथी ऊब गया हूँ।
मंज़िल-दर-मंज़िल इमारतो को,
देख कर घबरा गया-
उससे दूर भाग रहा हूँ।
खुली हवा में जीने को,
गाँव की ख़ुशबू-
पाने गाँव जा रहा हूँ।
भोर के उज़ाले संग-संग,
पंछियों की चहचाहट सुनने-
गाँव जा रहा हूँ।
परिवार के सम्बंधो को समझने,
अपनत्व का सुख पाने-
गाँव की ख़ुशबू पाने जा रहा हूँ।
लहराते खेतो में बसी आत्मा जिनकी,
उनके मधुर गीतो को-
सुनने गाँव जा रहा हूँ।
गाँव की ख़ुशबू से महका
जीवन सारा,
उसे जीवन मे-
साथी अपनाने जा रहा हूँ।
महकती रहे गाँव की ख़ुशबू,
जीवन भर संग मेरे-
उस गाँव की दुल्हनियाँ लेने जा रहा हूँ।
कम न हो गाँव की ख़ुशबू,
नित एक पीपल और नीम-
ख़ुद लगा रहा हूँ।
महकती रहे गाँव की ख़ुशबू,
आम के बाग़ में-
साथियों संग बैठा हूँ॥
हम भी सेना के साथ हैं
सब कुछ भूल कर साथी,
सीमा की रक्षा को बैठा सैनिक-
हमारी दुआएँ उसके साथ है।
टूटे न आस-विश्वास उसका कभी,
सजग रह रक्षा करें-
हम भी सेना के साथ है।
घर में छिपे देशद्रोही को,
रहने न देगे-
ढूँढ निकालेगे सब साथ हैं।
व्यर्थ न जायेगा कभी भी,
बलिदान सैनिक का-
देगे समर्थन हम भी सेना के साथ है।
तन-मन-धन से देगे साथ,
सीमा पर बैठा सैनिक-
कभी होना न उदास हम तुम्हारे साथ है।
होसला तुम्हारा बना रहे,
दुश्मन सदा डरा रहे-
हम भी सेना के साथ है।
अखण्ड भारत का सपना,
होगा ज़रूर पूरा-
रखना विश्वास हम भी सेना के साथ है॥
पुस्तक
पुस्तकों में भरा पड़ा,
आपार ज्ञान-
जिसे पढ़कर मिटे अज्ञान।
चाहे हो साहित्य जीवन में,
या हो विज्ञान-
बिना पुस्तक मिलता नहीं ज्ञान।
चाहे डाक्टर बनो या बनो
इंजीनियर,
तुम्हारे बनने में-
पुस्तक का अमिट योगदान।
भले ही पुस्तक पढ़ने का,
चलन कम हो रहा-
फिर भी कम नहीं पुस्तकों भरा ज्ञान।
एक अच्छी पुस्तक कभी,
अच्छे दोस्त से कम नहीं-
समय बिताती मिटाती अज्ञान।
पुस्तक तो पुस्तक है,
करो उनका सम्मान-
पाओ उनसेअसीम ज्ञान॥
सुनील कुमार गुप्ता
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२- निराश क्यों?
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