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फटी जींस
पूछती है वह क्या फ़र्क़ पड़ा फटी जीन्स से
सोचती है वह क्यों तर्क हुआ फटी जीन्स से
यही तो आधुनिक फैशन है लड़कियों का
चाहती है वह कैसा वर्क’ छुआ फटी जीन्स से
(सोच)
ये ना ही संस्कृति नहीं कोई संस्कार अपने
समझती है वह दर्क’ बना फटी जीन्स से
(बेमतलब की कहानी)
माँ-बाप को होती है परवाह बेटियों की
वो समझाते बेड़ा गर्क हुआ फटी जीन्स से
“उड़ता” जहान जर्क’ मुआ फटी जीन्स से (बर्बाद)
बुरे मंसूबो में गुलमर्ग धुआँ फटी जीन्स से
अरसा बिता दिया
तुमसे बात हुए अरसा बिता दिया
बिना मुलाक़ात बरसा बिता दिया
नहीं आ सका कभी कूचे तुम्हारे
तेरी राह में एक दर-सा बिता दिया
जीवन में कुछतो बोझिल हुआ है
वजन से दूर अबर-सा बिता दिया
तेरी खैरियत किससे पता करता
जैसे किसी खबर-सा बिता दिया
“उड़ता” आस-सबर-सा बिता दिया
बिना बारिश अंबर-सा बिता दिया
साल बदला है
देखो तो साल बदला है
देखो तो हाल बदला है
हवा में ठंडक आयी है
देखो तो काल’ बदला है (वक़्त)
नाराज़गी गिले-शिकवे
देखो तो फाल’ बदला है (नज़रिया)
नयी उम्मीद और आशाएँ
देखो तो भाल’ बदला है (सोच का दायरा)
चल रही पुरानी कश्ती
देखो तो पाल बदला है (नाव-पताका)
मीन-जल विचरण करती
देखो तो जाल बदला है
“उड़ता” ना जंगली राल’ बदला है
(सदाबहार पेड़)
देखो तो साल बदला है
रूह को
कुछ सुकून दे इस रूह को
कोई मर्ज बता मजरूह’ को (घायल)
किन आवाज़ों में घिरा हूँ मैं
ना सुनने वाला कोई कूह’ को (चीख)
अपनी भी एक पहचान बने
कोई हमें जाने नाकि समूह को
जितना मिला ख़ुश ही रहा हूँ
कैसे बिसरा देता मैं दूह’ को (दूध)
“उड़ता” मैं नहीं छिपाता मुँह को
बस सुकून मिले इस रूह को
पतंग नहीं
भले घर की लड़की पतंग नहीं उड़ाती
भले घर की लड़की मृदंग नहीं बजाती
तीन पीढ़ियों को एकसाथ जोड़ती है
कभी किसी को ग़लत ढंग नहीं बताती
वो बेटे और बेटी में फ़र्क़ नहीं समझती
बेसंस्कार लड़के को मलंग नहीं बनाती
सूझबूझ से सुलझाती है सारे मामले
बिना बात तकरार या जंग नहीं कराती
स्वभाव पर उसके सबकुछ निर्भर है
वो मैली-सी दुनिया में रंग नहीं सजाती
“उड़ता” वो रमा है मोहभंग नहीं कमाती
भले घर की लड़की पतंग नहीं उड़ाती
हर विजेता
हर विजेता स्व-चिन्ह छोड़कर जाता है
हर विजेता प्रतिबिम्ब छोड़कर जाता है
वो अपने से छोटों को ऊपर उठाता है
हर विजेता कलिंग छोड़कर जाता है
उसकी एक अलग ही मिसाल बनती है
हर विजेता एक जिंग’ छोड़कर जाता है
(तेज प्रकाश)
उसमें जीतकर क्षमा देने का हुनर होता है
हर विजेता अंतरंग छोड़कर जाता है
उसके होने से जन-ज़िन्दगी बदलती है
हर विजेता सौहार्द-पतंग छोड़कर जाता है
वो लोगों में अपना विश्वास बनाता है
हर विजेता नव-रिश्ते ढंग छोड़कर जाता है
उसे अपने दुश्मनों की ख़बर रहती है
हर विजेता अदृश्य रंग छोड़कर जाता है
“उड़ता” विजेता नवरंग छोड़कर जाता है
हर विजेता छवि-दबंग छोड़कर जाता है
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल “उड़ता”
झज्जर-१२४१०३ (हरियाणा)
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२- कोरोना
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