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आज की लड़की (today’s girl)
today’s girl: कस कर मुँह पर कपड़ा बाँधे,
मनी बैग महँगा धरे काँधे।
आते जाते स्कूटरों पर,
नजर मिलाती पैनी आँखें।
घर वालों को राह दिखाये,
धंधे के गुर नये सिखाये।
कीमतदार मोबाइल ले कर,
बड़े बड़ो की खोले आँखे।
बदला पहनावा बदली सोचें,
किन्तु न बदली मन की पाँखें।
मन को तन से बाँधे बाँधे,
खोल रही सदियों की गांठें।
बदले संस्कृतियों के ताने बाने,
संयम संस्कारों के नये पैमाने।
सुख दुःख के नये घरोंदे खोदे,
चिरयौवन की भरे उड़ाने।
धर्म धरा-सी बहकी बहकी,
पूरब पश्चिम का फ़र्क़ मिटाये।
आज की लड़की सबको भरमाये!
खो गयी
शहरो में खो गयीं,
गाँव की पगडंडियाँ।
भोर में गूँजे नहीं,
पूजाघरों में घण्टियाँ।
प्रार्थना के स्वर नहीं,
सैबरनेट की ये दुनियाँ।
गाँव से कब मिट गई,
गाँव की सब रीतियाँ।
शिवाले चौपालें नहीं,
गुम हुए काकू मुखिया।
काकी ताई परिजन नहीं,
खो गई रिश्तों की सुधियाँ।
चंद सिक्कों से बनी,
इंसानों में ये दूरियाँ।
कब कहाँ पुरवा चली,
कब रंभाई प्यारी गइयाँ।
अर्ध्य रवि पाये नहीं,
वर्द्धों की बेबस छइयाँ।
गगनचुम्बी भवनों छुपी,
सूर्य की सब रश्मियाँ,
फार्महाउसों में सजीं,
खेत खलिहानों की खूबियाँ।
ट्रैक्टरों में खो गईं,
दो बैलों की जोड़ियाँ।
शहरो में खो गईं,
गाँव की पगडंडियाँ।
एक श्रद्धांजलि शहीदों के लिए
आजादी और गणतंत्र की,
देवी नित करे नमन उन्हें।
मातृभूमि हित जिन वीरो ने,
हँस हँस कर प्राण गवाएँ।
परिजन छितिज निहारे,
वे लौट के घर ना आये।
मधुर मिलन की कसमें,
वे सरहद संग नित्य निभाते।
भारत माँ का भव्य सिंगार,
वे लहू की हर बून्द से करते।
राखी के धागों में वे,
नित रंग तिरंगे के देखे।
अपनत्व के सारे रिश्ते,
वे भारत माँ से ही निभाते।
थे महावीर बलिदानी,
भूले गा न देश वह कुर्बानी।
शतकोटि नमन उनको,
सजल नयन मूक है वाणी।
उगते सूरज की किरणें
लाती हैं नितयादें तुम्हारी।
देश की माटी का कण कण,
दे रहा दुआएँ तुम्हें अनगिन।
तिरंगे के कफ़न में लिपटे,
जब सोये तुम चिर निद्रा में।
हर माँ की ममता चीखी,
उड़ा सिंदूर धरागगन तक।
तुम्हारी अनंत राहों पर,
अर्पित श्रद्धा सुमन तुम्हें,।
हृदयस्थल से निकली,
शब्दसुमनांजलि तुम पर वारूँ।
धरती चीखे
भू दोहन जल अप्लावन,
दुर्लभ अति धरा का जीवन।
सूखी नदियाँ कटते वन,
सब्जियों लगते इंजेक्शन।
फसलों में है खाद केमिकल,
मिले कैसे शुद्ध अन्न जल।
अधूरी वर्षा असमय होवे,
बेबस धरती रोये चीखें।
सतत दोहन के ज़ख़्म कहे,
दरारों से अन्तस् दिखलाए।
कचरा धुँआ उद्योगों का,
अति विषाक्त वसुधा करते।
गर्भ धरा के सब ही सूखे,
द्रव्य सब चट्टानों के सूखे।
जननी सम धरा सुखदाता,
जन्म मृत्यु का इससे नाता।
हरियाली सिंगार धरा का,
वृक्ष लता गुल्म सन्तति इसके।
पंच तत्व की ये जननी,
आशाओं से देती दुगनी।
मिलकर करो अर्चना इसकी,
ये माता जड़ चेतन की।
बाग़ वनों से दो सम्मान,
अंतिम शैय्या देव दनुज की।
सबको अपना ही ये माने,
जाति धर्म के भेद न जाने।
आशीषों से भर लो झोली,
देकर धरा की वृक्षों की टोली।
शारदे वन्दना
मेरेअन्तर्मन में, ज्योतिर्मयी विचरो,
ज्ञान रश्मियो से अन्तःउर बिखरो।
सुर संचित हो स्वर मेरे,
सरस् सर्जना गीत हो तेरे।
पद पद गाये तेरी महिमा,
वर्ण वर्ण हो आर्त करुणा।
मेरे अंतर्मन में
दीन दुखी के दर्द भुला दूँ,
सत्य शिव सुंदर जग कर दूँ।
दो नयनो के दीप जलाऊँ,
भावों की पुष्पांजलि वारूँ।
लेखन सतत सजीव निखरे।
मेरे अंतर्मन में ज्योतिर्मयी विचरो,
ज्ञान रश्मियों से अन्तः उर बिखरो।
बूंदों का त्योहार
सावन बूंदों का त्यौहार,
जगाये मन में मदिर प्यार।
कभी रिमझिम पड़े फुहार,
टिप टिप बरखा दे मनुहार!
भीग रहे सब व्याकुल मन,
नृत्य करें खेत खलिहार।
तन छूती नन्हीं बुँदियाँ,
बिरहन गाये मेघ मल्हार!
प्यासे पोखर हर्षे उफने,
दादूर की टेर करे पुकार।
अति विलक्चन कीट पतंगे,
गोद धरा की करें दुलार!
बेटी बाबुल अंगना आये,
राखी करे भाई की मनुहार।
पपीहे की कातर बड़ी गुहार,
निम्बूआ की डारन झूले पड़े!
ऊंची पेंगन गगन निहार।
सावन बूंदों का त्यौहार,
जगाये मन में मदिर प्यार।
रसिक मेघ
झुक गए धरा पर रसिक मेघ,
चंचल चपल चित हरन मेघ।
बूंद बूंद अकुएँ उगाए,
कण कण से अंगड़ाई उठे।
सिंगार करें मनुहार करें,
वरुण विहर वरदानी मेघ।
झुक गए धरा पर रसिक मेघ!
क्रोधाकुल हहरै गरजै,
प्रेमरस भीगे तरुण मेघ!
बूंदों के जनक कृष्ण मेघ,
घिर आए गगन में विशद मेघ।
झुक गए धरा पर रसिक मेघ!
कृषकों के ये धन कुबेर,
श्रमिकों के अनुदानी मेघ।
हरित क्रांति कण-कण बरसै,
सुख संदेशों के अग्रदूत मेघ।
झुक गए धरा पर रसिक मेघ!
घनन घन गरजै बरसै घोर,
स्वाति बून्द तरसे चकोर।
नाग नागिनी नाचै मगन मोर,
द्युति दामिनी दमकै तड़ित मेघ।
झुक गए धरा पर रसिक मेघ,
चंचल चपल चित हरन मेघ।
देखती हूँ तुम्हें
देखती हूँ तुम्हें तो याद आते हैं,
स्वर्णिम दिन वे तुम्हारे।
जब तुममें थी आसमान छूने की हिम्मत,
तुममें था सागर-सा मूर्तिमान, साहस।
लेकिन अभी भी तुम,
न थके न टूटे न हारे हो।
कितनी आंखों में तुमने,
सपने अनगिन हैं डालें।
तुम्हारे ही हौसलों से,
हौसलों के पंख मिले कितनों को
वक्त के शिकंजों ने,
तुम्हें बिठाया इस कुर्सी पर।
आने वाला वक़्त ही तुमसे,
छुड़ा लेजाए गा ये कुर्सी।
अब भी हो तुम परिवार के मुखिया
सब हैं साथ तुम्हारे।
बाकी है अब भी कुछ,
स्वर्णिम स्वप्न तुम्हारे।
ये आज बीत जाए गा,
सुनहरी उजास कल लाएगा।
उम्र का ये पड़ाव भरा है,
अतीत के अभिमान से,
शक्ति साहस के अनोखे मेल से।
सोचो तनिक ये भी तो तुम,
किसे बचाने की खातिर,
इस कुर्सी पर पहुचे तुम।
अनजान डगर अनजाने लोगोमें,
मिल जाते है तुम जैसे अपने।
निज आहुति दे जिसे बचाया है,
उस माँ की अमर दुआएँ ही,
नवजीवन तुममें भरती रहेंगी।
नई सुबह
नई सुबह फिर आये गी,
आशा की किरणें लायेगी।
सूरज नया उगाने को,
सबको साथ मिलाने को।
सब पर खुशियाँ बरसाने को
नई सुबह फिर आएगी,
आशा की किरणें लाएगी।
हर दुआ दे रही कॅरोना को मात,
हर निशा लाती स्वर्णिम प्रभात।
सपनों का इन्द्र धनुष ले कर,
मेघ गगन पर छाएंगे।
बारिश की नई फुहारों से,
फिर धरा में अंकुर जागेंगे।
खुशियों के दीप जलाने को,
नई सुबह फिर आएगी,
आशा की किरणें लाएगी।
सम्बल नव जीवन देने को,
प्राणवायु सबमें भरने को।
अपनत्व पगा नेह बरसाने को,
नव जीवन गंगा बहाने को।
नई सुबह फिर आये गी,
आशा की किरणें लाएगी।
लॉक डाउन
लॉक डाउन सुना रहा,
मौन का सम्वाद हमें।
सड़को पर बिखरे सन्नाटे,
बाज़ार मॉल्स आहट को तरसे!
ऑफिस चौराहे सुनसान,
हर तरफ़ पुलिस परेशान!
गोमती लेती उबासियाँ,
नावों पतवारों का इंतज़ार!
पार्क स्टेडियम भी वीरान,
रेल पटरियाँ पूछे स्टेशन से,
कब गूंजे गी रेल सीटियाँ?
हो गा कब मुसाफिरों का आगाज?
सुनहली सांझ में भी,
प्रेमियों की जिंदादिली क्यू मौन।
ये सब करते मुखर सम्वाद,
सन्नाटे देते है नई उम्मीदें।
ये जगाते है नए विश्वास,
दौड़ेगा फिर से ये देश,
विजय की हो गी झंकार!
देश का हर कोना गुलशन हो गा,
कोई न कहींबंदिश हो गी!
गाँव शहर फिर दौड़ेगा,
हर चेहरे पर खुशियाँ होंगी।
स्वतन्त्रता दिवस
आजादी की कहानी याद करो,
वीर शहीदों की कुर्बानी याद करो
आजादी के दीवाने मतवाले थे,
भारत के सपूत दिलवाले थे।
अंग्रेजों पर महाकाल से छाए थे,
बारूदों तोपों में सीना ताने थे।
जलियाँ की शहादत याद करो
अंधकूप में दफ़्न माँए याद करो
शिशु को पीठ पर बाँध लड़ी,
लौहखम्भ-सी झांसी में अड़ी।
बाल पाल और लाल की तिकड़ी,
गोरी सत्ता के कफ़न की सिकड़ी।
लक्ष्मीबाई की कुर्बानी याद करो,
भगतसिंह की रवानी याद करो।
गाँधी की आंधी यूँ आई,
काँपे सभी फिरंगी भाई।
सत्य अहिंसा की बीन बजाई,
सात समुंदर पार तक सुनाई।
उस सन्त की बानी याद करो,
नेहरू सुभाष की कथनी याद करो।
आजादी कीकहानी याद करो,
वीर शहीदों की कुर्बानी याद करो।
कृष्ण
तुमरे दरश बिन जीवन किस काम,
करुणानिधि मुरलीधर घनश्याम!
निशि दिन तुमरा नाम रटत,
राधा हुई बदनाम!
तुम तो श्याम हिरदे बसते,
करते हो विश्राम।
तड़पु मैं ज्यूँ जल बिन मीन,
हो गई नींद हराम।
तुमरे दरश बिन जीवन किस काम।
करुणानिधि मुरलीधर घनश्याम!
राधा विरहन के अधरन,
मोहन तेरा नाम।
चरण कमल में प्राण धरूँ,
पीकर प्रेम का जाम।
भेज रही हर सांस हमारी,
तुम्हे प्रेम का पैगाम।
तुमरे दरश बिन जीवन किस काम,
करुणानिधि मुरलीधर घनश्याम!
रक्षाबंधन
भाई बहन के प्यार का बंधन,
कच्चे धागों का अमर वन्दन।
अटल विश्वासों का दर्पण,
अमर उदगारों का अर्पन।
बदली और पवन-सा रक्षाबंधन!
बन्ध गया था गोरी भी,
संयोगिता की राखी में।
बन्धे कृष्णयोगीश्वर भी,
द्रौपदी के धगों में!
बना गए इतिहास दोनों
कच्चे धगों के प्यार का।
दीपक और प्रकाश-सा रक्षाबंधन!
रिश्तों की अटूट कड़ियाँ,
निर्वाहो की अमिट घड़ियाँ।
जातिधर्म के भेद न माने,
बन्धन ये बस नेह ही जाने।
आन मान शान-सा रक्षाबंधन!
नन्हें भइया का मुखड़ा,
जैसे गगन में चाँद सलोना।
कंटक पग न चुभे कभी,
उम्मीदों के सुमन खिले।
चंदा और चांदनी-सा रक्षाबंधन!
अग्रज की बातें न्यारी,
घनी धूप में छाँव-सी प्यारी।
नेह भरा बाबुल का आंगन,
आमंत्रण का माह ये सावन!
सूरज और किरण-सा रक्षाबंधन!
कच्चे धागों का अमर बन्धन!
दीपोत्सव
दीपमाला सज गयी,
द्वार देहरी आँगना।
ड्योढ़ीयो पर हंस रही,
रँगी रंगोली अल्पना।
तिमिर तिरोहित हो गया,
दीपों की धवल श्रंखला।
हर्ष ख़ुशी सद्भावों की,
उर छलकती शुभकामना।
नव वधू-सी निशा उमगती,
ज्योतियो की लिए ओढ़नी।
अमा संकुचित द्वार खड़ी,
रोशनी का करे पै लगना।
विजय पर्व ले कर आया,
उजालों का बहता झरना।
धरा प्रकृति संग झूम रही,
बहक उठा मन का सुगना।
धर्म कर्म की वायु सुरभित,
पंच पर्व का उल्लास घना।
दीपोत्सव सबका हो अद्भुत,
लक्ष्मी गनेश की हो अर्चना।
रिद्धि सिद्धि भंडार भरें,
मिटे समूल देश से कॅरोना।
डॉ. अर्चना प्रकाश
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